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एक हिंदुस्तानी की डायरी: January 2010
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एक हिंदुस्तानी की डायरी. Friday 29 January 2010. ला रहा हूं अर्थकाम, सहयोग जरूरी है. दोस्तों, एक नई वेबसाइट शुरू करने जा रहा हूं। जीवन को सुंदर बनाने की कोशिश का हिस्सा है यह वेबसाइट - अर्थकाम. अनिल रघुराज. Links to this post. Labels: आगाज़. Subscribe to: Posts (Atom). मेरा ब्लॉग. Read in your own script. कोई अनोखे नहीं हैं हम. अनिल रघुराज. View my complete profile. ला रहा हूं अर्थकाम, सहयोग जरूरी है. मन के पटल. अंदर की दुनिया. अनसुलझी गुत्थियां. अर्थनीति. उनका कोना. कल का कर्ज. खरी-खोटी. सच का दम. रव...
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एक हिंदुस्तानी की डायरी: October 2011
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एक हिंदुस्तानी की डायरी. Tuesday 4 October 2011. इनफोसिस के मूर्ति दुखी हैं अंग्रेजी को दबाने से. बात एकदम सही है। आज के जमाने में ग्लोबल नागरिक होना जरूरी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपनी जमीन को पकड़ने से कोई ग्लोबल होने से रुक जाता है? क्या कोई अपनी भाषा जानने से अंग्रेजी में कमजोर हो जाता है? अनिल रघुराज. Links to this post. Labels: ताकि सनद रहे. Subscribe to: Posts (Atom). मेरा ब्लॉग. Read in your own script. कोई अनोखे नहीं हैं हम. अनिल रघुराज. View my complete profile. मन के पटल. सच का दम. बच...
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एक हिंदुस्तानी की डायरी: April 2014
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एक हिंदुस्तानी की डायरी. Friday 25 April 2014. मोदी से गांधीवादी चिंतक कनक तिवारी के दस सवाल. 1 मोदी ने महात्मा गांधी की स्मृति में गुजरात में अहिंसा विश्वविद्यालय खोलने का. ऐलान सालों. पहले किया था। उस अहिंसा विश्वविद्यालय का क्या हुआ. अहमदाबाद स्थित महात्मा गांधी के. साबरमती आश्रम के लिए गुजरात सरकार क्या कुछ करती है. उस आश्रम को विश्व प्रसिद्ध. सरदार पटेल की अंत्येष्टि में नेहरू के शामिल होने. चीन की शैक्षणिक विकास दर. मुसलमानों. मुखर्जी ने संविधान सभा क...संविधान के प्र&...दिया गया ...उनका न...
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एक हिंदुस्तानी की डायरी: October 2012
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एक हिंदुस्तानी की डायरी. Wednesday 17 October 2012. झूठे इतिहास की घुट्टी का मिथ कब तक! यह लेख हिमाचल के रहनेवाले राकेश कुमार. निम्न तथ्यों को बहुत ही ध्यान से तथा मनन करते हुए पढ़िए। एक,. भारत छोड़ो. आन्दोलन को ब्रिटिश सरकार कुछ ही हफ्तों में कुचल कर रख देती. में ब्रिटेन विश्वयुद्ध में विजयी. देश के रुप में उभरता है।. ब्रिटेन न केवल इम्फाल-कोहिमा सीमा पर. आजाद हिन्द फौज को पराजित करता है. बाहर करता है।. इतना ही नहीं. वापस अपने कब्जे में लेता है।. पांच,. को आजाद करने. के बीच ऐसा. हिंसा. इसलिए उन...
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कुमार अम्बुज: January 2013
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कुमार अम्बुज. मंगलवार, 29 जनवरी 2013. पाठ्य पुस्तकें और राष्ट्रीय कविता. असुविधा ब्लॉग पर यह आलेख कवि अशोक कुमार पांडे ने दिया था।. यहॉं अपने ब्लॉग पर महज दस्तावेजीकरण के लिए और. उन साथियों के लिए जिन्होंने इसे पूर्व में नहीं पढ़ा है।. पाठ्य पुस्तकें और राष्ट्रीय कविता. जैसे राष्ट्र सिर्फ सीमाओं से बनता है, किसी मनुष्य समाज से नहीं।. प्रस्तुतकर्ता. कुमार अम्बुज. 1 टिप्पणी:. मंगलवार, 8 जनवरी 2013. जीवन का चुनाव. वाया-पुष्यमित्र. मैंने. मैंने. पुष्यमित्र. प्रस्तुतकर्ता. लड़कियो! धरती की...टॉप...
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एक हिंदुस्तानी की डायरी: August 2009
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एक हिंदुस्तानी की डायरी. Thursday 20 August 2009. बदलाव तो शतरंज का खेल है, शह और मात. जो पुराने और नए के बीच की अटूट कड़ी को सही से पहचानते हैं? जो लोकतांत्रिक मूल्यों से लवरेज हैं? जो अपने देश को अपनी मां से भी ज्यादा प्यार करते हैं? जो ज़िंदगी में जनक से बड़े योगी हैं? अनिल रघुराज. Links to this post. Labels: अंदर की दुनिया. बाहर का संसार. राजनीति. Subscribe to: Posts (Atom). मेरा ब्लॉग. Read in your own script. कोई अनोखे नहीं हैं हम. अनिल रघुराज. View my complete profile. मन के पटल. सच का दम. अपन...
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तत्सम: March 2015
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व्यंग्य. शनिवार, 28 मार्च 2015. हमारे समय को लगातार परखती हुई शहंशाह आलम की कविताएँ. प्रदीप कांत. शहंशाह आलम हमारे समय पर लगातार रचनात्मक दस्तक देते हुए. ऐसे कवि हैं. जो मनुष्य को कद्दावर और समर्थ देखना चाहती है। वे कवि के सरोकारों और जिम्मेदारियों को बखूब समझते हैं और कहते हैं. झूठ नहीं बोलता. तो गवाह भर हैं स्वयं के लूटे जाने के. क्या यह हमारे समय का कठोर सच नहीं है. मिलते ऐसे जैसे. कुम्हार. से चाक. से रंदा. या फिर. के शंख को. कुएँ में फेंक आने से ।. बार सुना हूँ कि. हम सब वनवासी रहते. बारि...संप...
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कुमार अम्बुज: February 2014
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कुमार अम्बुज. शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014. प्रेम के लिए संस्कृति की दुहाई. यह आलेख, दखल प्रकाशन द्वारा अगले सप्ताह में प्रकाश्य विचार-पुस्तिका 'क्षीण संभावना की कौंध' में संकलित है। आज के दिन इसे शेयर करना प्रासंगिक होगा।. खबरें आती ही रहती हैं कि प्रेमी युगलों को पार्कों से, धार्मिक परिसरों से, प्राकृतिक. मन में कभी प्रेम का बीज प्रस्फुटित न हुआ हो। उस प्रेम का गौरव या उसकी कसक. फिल्में, लोकगीत और साहित्य का उल्लेखनीय हि...है। उनकी लोकप्रियता मेæ...दमित भावनाओं की...स्त्री-प&...कितनì...
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कुमार अम्बुज: July 2015
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कुमार अम्बुज. शुक्रवार, 10 जुलाई 2015. जब सोने में जंग लगेगी तो लोहा क्या करेगा- तीसरी किश्त. हालॉंकि अनेक लेखक ऐसे भी हैं जो इनमें सहज ही उपस्थित होते रहे हैं।. बहरहाल, उसी श्रंखला में आज यह एक वक्तव्य और जारी किया है।. और अब यह तीसरा वक्तव्य'. 10 जुलाई 2015. प्रिय लेखको,. लेकिन उस दिन तुम्हारे पक्ष में बोलने वाला कोई नहीं होगा. क्या आज के ये लेखक सिर्फ काग़ज़ के भोंपू हैं? पहले वे यहूदियों के लिये आये. और मैं चुप रहा. और तब भी मैं चुप रहा. और मैं चुप रहा. 1 टिप्पणी:. नई पोस्ट. यह दूसरा...
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कुमार अम्बुज: July 2014
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कुमार अम्बुज. शुक्रवार, 25 जुलाई 2014. जिसने अपनी आवाज का कभी सौदा नहीं किया. पियानो. उसके विशाल पहलू में हमेशा. एक मनुष्य के लिये जगह खाली है. वह जगह दिन-रात तुम्हारी प्रतीक्षा करती है. उसे वही बजा सकता है. जिसे कुछ अंदाजा हो जीवन की मुश्किलों का. जो रात का गाढ़ापन, तारों का प्रकाश और चांद का एकांत याद रखता है. उसमें से, तुमने सुना होगा, मादक आवाज उठती है. जिसमें शामिल होता है एक रुंधा हुआ स्वर. जो किसी बेचैन आदमी का ही हो सकता है. वह उस राजा की तरह दिखेगा. उसे कौन छुयेगा? जो अपनी पहचान. 2 टिप...