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तनिष्क: May 2012
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Wednesday, 23 May 2012. तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन' पर चर्चा और कवि गोष्ठी. पहले सत्र में डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा की नई ताजी किताब 'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन. पर चर्चा हुई. श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल. अध्यक्ष आसन से संबोधित करते हुए डॉ ऋषभ देव शर्मा. भीड़ में अकेला. बीच में जल-पान की भी व्यवस्था थी. अच्छा घरेलू-सा माहोल बन गया था. बढ़िया लगा. डॉ.बी.बालाजी. Labels: गतिविधि. Subscribe to: Posts (Atom). हैदराबाद से. तेलुगु ग्राम-जीवन की कहानियाँ. सागरिका. संज्ञान. गर्भ में. प्रफुल्लता. View my complete profile.
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अर्पणा दीप्ति: August 2010
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अर्पणा दीप्ति. शनिवार, 21 अगस्त 2010. प्रेम के लिए देह नहीं, देह के लिए प्रेम ज़रूरी! मैत्रेयी पुष्पा. मैत्रेयी पुष्पा का 2004 में प्रकाशित उपन्यास. कही ईसुरी फाग'. बड़ा खतरनाक होता है, जंगलों , पहाड़ों और समुद्र का आदिम सम्मोहन .हम बार-बार उधर भागते हैं किसी अज्ञात के दर्शन के लिए ।'. दर्शक उठकर खड़े हो जाते हैं रघु नगड़िया वाला आकर कहता है -. काकी के कोप का आधार? ईसुरी ने अपनी ओर से रज्जो को नाम दिया - रजऊ ।. रज्जो सास के हाथों पर घाव के भयानक...काकी हम जिस रजऊ का नाम फ...सरस्वती दे...मीर...
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तनिष्क: हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन
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Thursday, 2 August 2012. हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन. भारत डायनामिक्स लिमिटेड. मेदक में. दिनांक. हिंदी शिक्षण योजना के अंतर्गत हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम के सत्र जुलाई-नवंबर. उद्घाटन संपन्न हुआ. दिनांक. से नियमित रूप से. का उद्घाटन करते हुए भानूर इकाई के महा प्रबंधक (उत्पादन) श्री पी के दिवाकरन ने. प्रेरित करना चाहिए. हिंदी सीखने के बाद उसका यथावश्यक. भी करना चाहिए. हिंदी का प्रचार-प्रसार. करना केवल. का दायित्व. है. यह. के प्रत्येक. का कर्तव्य. से प्रस्तुत. के कर्मचारी. में सफल. हिंद&...को ...
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तेवरी: June 2008
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ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ. सोमवार, 16 जून 2008. लोकतंत्र : दस तेवरियां. लोकतंत्र : दस तेवरियां. अपने हक़ में वोट दिलाके, क्या उत्ती के पाथोगे. दिल्ली के दरबार में जाके, क्या उत्ती के पाथोगे. कुलपतियों की मेज़ तोड़के , लड़के डिस्को करते हैं. ऐसे में इस्कूल खुलाके, क्या उत्ती के पाथोगे. पाँच साल के बाद आज वे, अपने गाँव पधारे हैं. ऐसे नेता को जितलाके, क्या उत्ती के पाथोगे. लंबे कुर्तों के नीचे जो, पहने हैं राडार कई. औंधी कुर्सी उस पर पंडा. और हाथ में हिटलर डंडा. कुर्सी का आदेश ...पड़ें...लोकतæ...
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नव्यदृष्टि: April 2011
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नव्यदृष्टि. मंगलवार, 26 अप्रैल 2011. अन्ना का आगे का रास्ता आसान नहीं है. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. राधेश्याम शुक्ल. 2 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. गुरुवार, 21 अप्रैल 2011. हजारे की व्यवस्था परिवर्तन की जंग. नई दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर अपने समर्थकों के साथ अन्ना हजारे. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. राधेश्याम शुक्ल. 3 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. राधेश्याम शुक्ल. 6 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. ब्लॉग आर्काइव. राजनीति. वन्देमातरम. हिन्द&...फर्...
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तेवरी: June 2011
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ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ. शनिवार, 25 जून 2011. गूंगों के गाँव में अंधों का राज है. गूँगों के गाँव में अंधों का राज है. चिड़िया दबोचता पजों में बाज़ है. कमज़ोर हाथ वे पतवार खे रहे. लहरों में डोलता इनका जहाज़ है. लो चल पडी हवा छाती को चीरती. मौसम ने आज फिर बदला मिज़ाज है. अंबर में फिर कहीं बिजली चमक उठी. तांडव के राग में य' किसका साज़ है. गिद्धों की मच गई हर ओर चीत्कार. लगता है गिर रही बरगद प' गाज है [123 ]. प्रस्तुतकर्ता. ऋषभ देव शर्मा. 3 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. लेबल: तेवरी. निर्दो...वह चीरत&#...
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संवेग: May 2011
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शुक्रवार, 13 मई 2011. एक प्रेम का दरिया बहता है! न जाने कब से! उसे रोकने के सारे प्रयास. आखिर में विफल रहे! जैसे एक छोटी-सी झनकार. न जाने इतने कठोर बंद कमरे में. कहाँ से चली आई! लाख़ बहाने बनाए,. पर तार तो छू गया था. अब भला कहाँ संभलता! दरिया से मिला और. और दरिया हुआ! ये कैसी अजीब दीवानगी है? शायद इस दुनिया को इसकी. ज्यादा ज़रूरत हैं! प्रस्तुतकर्ता. 8 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! लेबल: कविता. केदा...प्र...
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संवेग: कुछ मुक्तक
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! गुरुवार, 3 नवंबर 2011. कुछ मुक्तक. जिंदगी में आना. दो वक्त का ख़ाना. फिर सब भूलाना. वापस चले जाना।. तेलंगाना का होना. ये है कैसा रोना. राजनीति का खिलौना. जनता का कभी न होना।. दर्द का आना. जैसे हो फसाना. कभी इधर आना. कभी उधर जाना. और कभी न हो ठिकाना! आँखों का मोल बड़ा. जो न कहा वह गढ़ा. न कहकर कुछ मढ़ा. जिसे ले तू अढ़ा! पानी न होता. तो फिर कैसा गोता! कपड़े कैसे धोता. इंसान कैसे होता! फूल का खिलना. कली का टूटना. किसका-किससे? एक टिप्पण&#...पुर...
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संवेग: रिश्ते
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शनिवार, 4 मई 2013. रिश्ते. फिर द्वन्द्व में झुझलाया मन! रिश्ते समर्पण चाहते है. मैं कब पीछे थी इसमें. पर द्वन्द्व किस बात का. असल में रिश्ता होते ही कुछ. बँधने-सा लगता. रिश्ते भी सीमा में जकड़ने लगते. ऐसे में जो पूरे डूबते. या फिर स्तह पर ही रहते . उनका क्या. उन्हें मिलती - असुरक्षा और. और निराह द्वन्द्व! तो अब समझ आया. सभी कुछ नहीं निभ सकता. ईमानदारी से! कुछ न कुछ छूट ही जाता है. हर रिश्ते को. पर कैसे. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. I am an observer.
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