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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Sunday 8 March 2015. 51 जीना है तो मरना सीखो. जेन्नी शबनम (8. 3. 2015). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. इस संदेश के लिए लिंक. Monday 1 December 2014. 50 यह ह्त्या नहीं स्त्रियों का सामूहिक नरसंहार है. न उनकी ज़िन्दगी का कोई मोल है न उनकी मृत्यु का कोई अर्थ! औरतों की ही नसबंदी क्यों, पुरुष की क्यों नहीं? जेन्नी शबनम (1. 12. 2014). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. Tuesday 7 October 2014. 2404; वे. मेरे अ...ज़र...

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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Sunday 8 March 2015. 51 जीना है तो मरना सीखो. जेन्नी शबनम (8. 3. 2015). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. इस संदेश के लिए लिंक. Monday 1 December 2014. 50 यह ह्त्या नहीं स्त्रियों का सामूहिक नरसंहार है. न उनकी ज़िन्दगी का कोई मोल है न उनकी मृत्यु का कोई अर्थ! औरतों की ही नसबंदी क्यों, पुरुष की क्यों नहीं? जेन्नी शबनम (1. 12. 2014). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. Tuesday 7 October 2014. 2404; वे. मेरे अ...ज़र...
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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Sunday 8 March 2015. 51 जीना है तो मरना सीखो. जेन्नी शबनम (8. 3. 2015). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. इस संदेश के लिए लिंक. Monday 1 December 2014. 50 यह ह्त्या नहीं स्त्रियों का सामूहिक नरसंहार है. न उनकी ज़िन्दगी का कोई मोल है न उनकी मृत्यु का कोई अर्थ! औरतों की ही नसबंदी क्यों, पुरुष की क्यों नहीं? जेन्नी शबनम (1. 12. 2014). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. Tuesday 7 October 2014. 2404; वे. मेरे अ...ज़र...

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साझा संसार: July 2010

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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Tuesday 20 July 2010. 9 वो जो मेरे पिता थे. आज पापा के लिए मन बहुत उदास है, जिनको यहाँ से गए आज 32 साल हो गये ।. फिर भी यादों में, बातों में, जीवन के हर क्षण में उनकी कमी और ज़रूरत महसूस होती है ।. गांधीवाद और मार्क्सवाद पर व्याख्यान देने केलिए उनको कई संस्थाओं द्वारा ब&#...एक साल तक वो बीमार रहे, लेकिन जिस दिन अचेत हुए उस दिन तक वो स&#...विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेस...उनके अधीन जो छात्र श&...अपने छात्...विच&#2366...

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साझा संसार: September 2010

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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Wednesday 29 September 2010. 12 हर दिन खुशियों का दिन. आज भी मैं यही सोच रही कि इस बार एक भी सन्देश न आया कि ये ' जॉय डे' क्यों मनाया जा रहा? एक भी सन्देश नहीं न तो चेतावनी क्या सिर्फ इसलिए कि इसमें प्रेम शब्द शामिल नहीं? अब इस जॉय वीक को कैसे मनाया जाए? जद्दोजहद से भरी जिंदगी में कुछ नया पाने देखने सोचने क&#2368...जेन्नी शबनम २७. ०९. २०१०. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. Subscribe to: Posts (Atom). कही&#23...

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साझा संसार: January 2010

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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Friday 29 January 2010. 4 गाँधी, गाँधीवाद और गाँधीगिरी. महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि है. फिर गाँधी जयंती तक ख़ामोशी! गाँधी जयंती का इंतज़ार भी अब इसलिए रह गया है कि उस दिन से खादी के वस्त्र पर छूट मिलना शुरू होता है. विगत कुछ वर्षों में खादी फैशन में आ गया है. खादी का चलन अब सिर्फ नेताओं तक सीमित नहीं रह गया है. इनकी सार्थकता तो आज भी उतनी ही है, परन्त&#23...मैं गाँधीवादी व...परन्तु कुछ ऐसे ...मेरे प&#2...उनक&#2375...

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साझा संसार: March 2010

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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Monday 8 March 2010. 6 चहारदीवारियों में चोखेरबालियाँ. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल). एक बार फिर महिला दिवस गुजर गया. अलग-अलग तरह के आयोजनों से लोगों ने महिलाओं को बताया कि ये ख़ास दिन आपके लिए है. समय परिवर्तन के साथ ही भारतीय औरतों की स्थिति भी बदली. यह सच है कि हमारे संविधान द्वारा महिलाओं को शिक्षा, स&...उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए क...लेकिन इन सभी कानूनी और स&#2...सामजिक और सा&#2...महिल&#236...

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साझा संसार: December 2009

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साझा संसार. अंतस की रिसती भावनाएँ जिन्हें शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर संसार से साझा करती हूँ. Friday 11 December 2009. 2 मोहल्ला मुख्यमंत्री. हम भी बनेंगे मुख्यमंत्री! अब हर राजनीतिज्ञ जब प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री बनना चाहता तो हम क्यों न बने? राजनीति से अच्छा आजकल कोई धंधा भी नहीं जिसमें सब मिल जाता है ।. कैसा लगा मेरा सुझाव? मेरी, आपकी और सबकी महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी ।. जेन्नी शबनम (11. 12. 2009). प्रस्तुतकर्ता. डॉ. जेन्नी शबनम. इस संदेश के लिए लिंक. Sunday 6 December 2009. शर्म है! लोकसभ&...

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शब्द-गुंजन: September 2009

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 14 सितंबर 2009. वो रात. वो रात यूँ गुजरी की,कुछ पता न चला,. क्यों दो दिलो के बीच,आ गया. था फासला ।. तन्हाइयों ने मुझे ,इस कदर घेर लिया था ,. भीड़ में भी ये मन ,अकेला था हो चला ।. न चाहत थी शोहरत की , न जन्नत माँगी थी,. अब न खुदा से,मैं कुछ और मांगता हूँ ,. मेरे मित्र ' अरुल. श्रीवास्तव. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म&#2...

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लम्हों का सफ़र: 492. दुःखहरणी...

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Wednesday 1 April 2015. 492 दुःखहरणी. दुःखहरणी. जीवन के तार को साधते-साधते. मन रूपी अंगुलियाँ छिल गई हैं. जहाँ से रिसता हुआ रक्त. बूँद-बूँद धरती में समा रहा है,. मेरी सारी वेदनाएँ सोख कर धरती. मुझे पुनर्जीवन का रहस्य बताती है. हार कर जीतने का मंत्र सुनाती है,. जानती हूँ. संभावनाएँ मिट चुकी है. सारे तर्क व्यर्थ ठहराए जा चुके हैं. पर कहीं न कहीं. जीवन का कोई सिरा. जो धरती के गर्भ में समाया हुआ है. यह धरती मुझे झकझोर देती है. जीवन प्रवाहमय रहे. April 02, 2015 8:14 PM.

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लम्हों का सफ़र: 493. सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु)

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 4 April 2015. 493 सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु). सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु). जीवन त्वरा. बची है परम्परा,. सरल गाँव. घूँघट खुला,. मनिहार जो लाया. हरी चूड़ियाँ! भोर की वेला. बनिहारी को चला. खेत का साथी! पनिहारिन. मन की बतियाती. पोखर सुने! दुआ-नमस्ते. गाँव अपने रस्ते. साँझ को मिले! खेतों ने ओढ़ी. हरी-हरी ओढ़नी. वो इठलाए! असोरा ताके. कब लौटे गृहस्थ. थक हारके! महुआ झरे. चुपचाप से पड़े,. सब विदेश! खंड-खंड टूटता. ग़रीब गाँव! बाछी रम्भाए. April 05, 2015 8:05 AM.

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.... PRRITIY प्रीति: kuchh fir bikhre pal कुछ फिर बिखरे पल

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PRRITIY प्रीति. Songs i am humming. ब्लॉग में आपका स्वागत है. हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है. आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं . You are my strength, inspiration :). Monday, August 10, 2015. Kuchh fir bikhre pal कुछ फिर बिखरे पल. फिर बदरी छायी फिर बूँदें बरसी. फिर पपीहे ने टेर लगाई पीहू पीहू. Prritiy, 4.05 pm, 10 August, 2015. हमारे इन नैनों में सपने उन्होंने ही जगाये थे. Prritiy, 2.58 pm, 10 August, 2015. Prritiy, 2.14pm, 10 August, 2015. दोनों कह र...जान ज&#23...

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शब्द-गुंजन: December 2009

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. रविवार, 6 दिसंबर 2009. पूछता हूँ, ये कैसा दिवस? ये कैसा शौर्य दिवस. जिसने बढाई है सामाजिक विद्वेष,. और जिसके लपटों से. धू-धू कर जलता है मेरा अंतस।. पूछता हूँ ,ये कैसा शौर्य? जिसके हथोड़े ने,. सिर्फ़ मस्जिद/मन्दिर ही नही तोडा।. बल्कि जिसके चोट ने कितने घर तोड़े,. जिसने लुटी अपने ही,. और,नंगी खड़ी कर दी ,. लेबल: कविता. पूछत&#236...

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शब्द-गुंजन: March 2012

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. बुधवार, 7 मार्च 2012. कौन तुम? कौन तुम? मेरे मौन की अभिव्यक्ति,. मेरी सहज प्रकृति! कौन तुम? मेरे चित्त की आवृति,. मेरे जीवन की आत्म-स्वीकृति! कौन तुम? मेरी अवचेतन मनोवृति,. मेरे चेतना की काव्य-कृति! कौन तुम? मेरे निज की प्रेरणा शक्ति,. मेरे अंतस की आत्म-अनुभूति! कौन तुम? कौन तुम? कौन तुम? कौन तुम? लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ ...

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शब्द-गुंजन: January 2010

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. शुक्रवार, 29 जनवरी 2010. जीवन-नौका. देख रहा हूँ मैं,. खुद को वक़्त की धारा में ,. बहते हुए नौका पर सवार,. बिन पतवार के,. बिना किसी सुरक्षा कवच के ।. देख रहा हूँ मैं,. काल-क्रम की फेनिल लहरें ,. दैत्याकार हो मुझे ग्रसना चाह रही है,. हाँ, उसी नौका को ,. जिसमे सवार हूँ मैं ।. देख रहा हूँ मैं,. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म&#2375...

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शब्द-गुंजन: February 2010

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. रविवार, 28 फ़रवरी 2010. इस बार होली में. होली का त्यौहार है जो आया,. अपने संग विविध रंग समेटे. उसमें अपने प्रेम का ,. गाढ़ा रंग मिलाना तो,. प्रिये ।. हो उठे दिल के तार झंकृत ,. रंगोत्सव के इस बेला में. ऐसा ही कोई फागुन-गीत ,. गा-गा मेरे संग झुमना तो,प्रिये ।. जैसे अपने अस्तित्व मिटाए;. रंगों. के साथ-. लेबल: कविता. पुरा...मुख...

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शब्द-गुंजन: June 2012

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. शुक्रवार, 15 जून 2012. लौटना तुम्हारा? शब्द जो मेरे ह्रदय के परतों में बसते है,. उन्हें मैंने स्वतंत्र है किये ;. वही शब्द व्योम में प्रतिध्वनित होते है ,. अनंत तक दुरी तय कर मेरे पास ही लौट है आते . सिर्फ शब्द ही नहीं ,. जो तुम्हारी है ,. फिर कब तक कैद करता तुम्हे ;. मुझे तलाशते ,. सोच रहा हूँ ;. लेबल: कविता. नई पोस्ट. लौटन...

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शब्द-गुंजन: March 2014

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 24 मार्च 2014. चित्र:गूगल से साभार. लाख चाहता हूँ ,. शब्दो से तुम्हे,. पूरा का पूरा,. समेट लूँ।. वही नैन-नक्श ,. प्यारी सी मुस्कान ,. शब्द भी चुन लूँ ऐसे,. जो बया कर जाय तेरा ही अक्स।. तुम्हारी मासूमियत ,. तुम्हारा बावलापन ,. लाख चाहूँ कुछ लिख जाऊँ ऐसा ,. थोड़ा नहीं ,. आज बस इतना ही. रोहित /२४. ०३. २०१४. सुनो,. Create your ...

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حسین اظهری ساجد

اشعار حسین اظهری ساجد. هرچند با من خوب بود افسوس ، بد شد. رسم بد معشوقه بودن را بلد شد. پرسیدم از من دل بریدی بی مروت؟ I can,t answer this question. گفت و رد شد. نوشته شده در پنجشنبه بیستم آبان ۱۳۹۵ساعت 22:38 توسط حسین اظهری ساجد. یک شبه ثروتمند شدن امکان پذیر است. یک شبه مشهور شدن هم شدنی است. بودند افرادی که یک شبه به قدرت رسیدند اما در تاریخ هیچکس یک شبه عالم نشده است. یاد گرفتن هر علمی نیازمند ممارست و تلاش است بنابراین تنها کسانی از عهده یادگیری برمی آیند که به طور پیوسته دنبال آن باشند. مهم ترین کا...

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मुखपृष्ठ. साझा-सरोकार. तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों. की तर्ज़ पर मीनारों और. गुम्बदों को ऊँचा. करने और सड़कों पर. नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब. हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट. ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को. इससे काफी चोट पहुँच रही है. सर्व-धर्म समभाव. विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो. संवाद बनता है. शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का! On शनिवार, 7 अगस्त 2010. हिन्दू-मुस&#...मैं हम&#2...विव...

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