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शब्द-गुंजन: September 2009
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 14 सितंबर 2009. वो रात. वो रात यूँ गुजरी की,कुछ पता न चला,. क्यों दो दिलो के बीच,आ गया. था फासला ।. तन्हाइयों ने मुझे ,इस कदर घेर लिया था ,. भीड़ में भी ये मन ,अकेला था हो चला ।. न चाहत थी शोहरत की , न जन्नत माँगी थी,. अब न खुदा से,मैं कुछ और मांगता हूँ ,. मेरे मित्र ' अरुल. श्रीवास्तव. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म...
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लम्हों का सफ़र: 492. दुःखहरणी...
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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Wednesday 1 April 2015. 492 दुःखहरणी. दुःखहरणी. जीवन के तार को साधते-साधते. मन रूपी अंगुलियाँ छिल गई हैं. जहाँ से रिसता हुआ रक्त. बूँद-बूँद धरती में समा रहा है,. मेरी सारी वेदनाएँ सोख कर धरती. मुझे पुनर्जीवन का रहस्य बताती है. हार कर जीतने का मंत्र सुनाती है,. जानती हूँ. संभावनाएँ मिट चुकी है. सारे तर्क व्यर्थ ठहराए जा चुके हैं. पर कहीं न कहीं. जीवन का कोई सिरा. जो धरती के गर्भ में समाया हुआ है. यह धरती मुझे झकझोर देती है. जीवन प्रवाहमय रहे. April 02, 2015 8:14 PM.
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लम्हों का सफ़र: 493. सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु)
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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 4 April 2015. 493 सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु). सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु). जीवन त्वरा. बची है परम्परा,. सरल गाँव. घूँघट खुला,. मनिहार जो लाया. हरी चूड़ियाँ! भोर की वेला. बनिहारी को चला. खेत का साथी! पनिहारिन. मन की बतियाती. पोखर सुने! दुआ-नमस्ते. गाँव अपने रस्ते. साँझ को मिले! खेतों ने ओढ़ी. हरी-हरी ओढ़नी. वो इठलाए! असोरा ताके. कब लौटे गृहस्थ. थक हारके! महुआ झरे. चुपचाप से पड़े,. सब विदेश! खंड-खंड टूटता. ग़रीब गाँव! बाछी रम्भाए. April 05, 2015 8:05 AM.
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.... PRRITIY प्रीति: kuchh fir bikhre pal कुछ फिर बिखरे पल
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PRRITIY प्रीति. Songs i am humming. ब्लॉग में आपका स्वागत है. हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है. आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं . You are my strength, inspiration :). Monday, August 10, 2015. Kuchh fir bikhre pal कुछ फिर बिखरे पल. फिर बदरी छायी फिर बूँदें बरसी. फिर पपीहे ने टेर लगाई पीहू पीहू. Prritiy, 4.05 pm, 10 August, 2015. हमारे इन नैनों में सपने उन्होंने ही जगाये थे. Prritiy, 2.58 pm, 10 August, 2015. Prritiy, 2.14pm, 10 August, 2015. दोनों कह र...जान ज...
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शब्द-गुंजन: December 2009
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. रविवार, 6 दिसंबर 2009. पूछता हूँ, ये कैसा दिवस? ये कैसा शौर्य दिवस. जिसने बढाई है सामाजिक विद्वेष,. और जिसके लपटों से. धू-धू कर जलता है मेरा अंतस।. पूछता हूँ ,ये कैसा शौर्य? जिसके हथोड़े ने,. सिर्फ़ मस्जिद/मन्दिर ही नही तोडा।. बल्कि जिसके चोट ने कितने घर तोड़े,. जिसने लुटी अपने ही,. और,नंगी खड़ी कर दी ,. लेबल: कविता. पूछतì...
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शब्द-गुंजन: March 2012
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. बुधवार, 7 मार्च 2012. कौन तुम? कौन तुम? मेरे मौन की अभिव्यक्ति,. मेरी सहज प्रकृति! कौन तुम? मेरे चित्त की आवृति,. मेरे जीवन की आत्म-स्वीकृति! कौन तुम? मेरी अवचेतन मनोवृति,. मेरे चेतना की काव्य-कृति! कौन तुम? मेरे निज की प्रेरणा शक्ति,. मेरे अंतस की आत्म-अनुभूति! कौन तुम? कौन तुम? कौन तुम? कौन तुम? लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ ...
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शब्द-गुंजन: January 2010
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. शुक्रवार, 29 जनवरी 2010. जीवन-नौका. देख रहा हूँ मैं,. खुद को वक़्त की धारा में ,. बहते हुए नौका पर सवार,. बिन पतवार के,. बिना किसी सुरक्षा कवच के ।. देख रहा हूँ मैं,. काल-क्रम की फेनिल लहरें ,. दैत्याकार हो मुझे ग्रसना चाह रही है,. हाँ, उसी नौका को ,. जिसमे सवार हूँ मैं ।. देख रहा हूँ मैं,. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ मे...
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शब्द-गुंजन: February 2010
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. रविवार, 28 फ़रवरी 2010. इस बार होली में. होली का त्यौहार है जो आया,. अपने संग विविध रंग समेटे. उसमें अपने प्रेम का ,. गाढ़ा रंग मिलाना तो,. प्रिये ।. हो उठे दिल के तार झंकृत ,. रंगोत्सव के इस बेला में. ऐसा ही कोई फागुन-गीत ,. गा-गा मेरे संग झुमना तो,प्रिये ।. जैसे अपने अस्तित्व मिटाए;. रंगों. के साथ-. लेबल: कविता. पुरा...मुख...
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शब्द-गुंजन: June 2012
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. शुक्रवार, 15 जून 2012. लौटना तुम्हारा? शब्द जो मेरे ह्रदय के परतों में बसते है,. उन्हें मैंने स्वतंत्र है किये ;. वही शब्द व्योम में प्रतिध्वनित होते है ,. अनंत तक दुरी तय कर मेरे पास ही लौट है आते . सिर्फ शब्द ही नहीं ,. जो तुम्हारी है ,. फिर कब तक कैद करता तुम्हे ;. मुझे तलाशते ,. सोच रहा हूँ ;. लेबल: कविता. नई पोस्ट. लौटन...
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शब्द-गुंजन: March 2014
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 24 मार्च 2014. चित्र:गूगल से साभार. लाख चाहता हूँ ,. शब्दो से तुम्हे,. पूरा का पूरा,. समेट लूँ।. वही नैन-नक्श ,. प्यारी सी मुस्कान ,. शब्द भी चुन लूँ ऐसे,. जो बया कर जाय तेरा ही अक्स।. तुम्हारी मासूमियत ,. तुम्हारा बावलापन ,. लाख चाहूँ कुछ लिख जाऊँ ऐसा ,. थोड़ा नहीं ,. आज बस इतना ही. रोहित /२४. ०३. २०१४. सुनो,. Create your ...