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समकालीन ग़ज़लग़ज़ल पर आधारित पत्रिका
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ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका
समकालीन ग़ज़ल: June 2009
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समकालीन ग़ज़ल. ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका. Wednesday, June 3, 2009. एक शायर/विनय मिश्र. विनय मिश्र वर्तमान दौर में ग़ज़ल विधा के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं और ग़ज़ल के लिये पूरे मनोयोग से जुडे़ हुए हैं।. १-नहीं यूँ ही हवा बेकल है मुझमें-. नहीं यूँ ही हवा बेकल है मुझमें।. है कोई बात जो हलचल है मुझमें।. सुनाई दे रही है चीख कोई,. ये किसकी जिन्दगी घायल है मुझमें।. बहुत देखा बहुत कुछ देखना है,. अभी मीलों हरा जंगल है मुझमें।. लगाये साजिशों के पेड़ किसने,. एक छोटी-सी चाह मिलने की,. ये दिन भी परेश&#...लोगोæ...वैस...
समकालीन ग़ज़ल: September 2009
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समकालीन ग़ज़ल. ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका. Sunday, September 27, 2009. देवेन्द्र आर्य की ग़ज़लें. इस बार गोरखपुर के देवेन्द्र आर्य जी की ग़ज़लें प्रस्तुत हैं. Posted by PBCHATURVEDI प्रसन्नवदन चतुर्वेदी. Subscribe to: Posts (Atom). मेरे अन्य ब्लाग. फुलवारी. रोमांटिक रचनाएँ. बनारस के कवि और शायर. गीत, ग़ज़ल, कविता की दुनिया. देवेन्द्र आर्य की ग़ज़लें. हिंदी चिट्ठा संकलक. PBCHATURVEDI प्रसन्नवदन चतुर्वेदी. View my complete profile. Watermark theme. Powered by Blogger.
समकालीन ग़ज़ल: July 2009
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समकालीन ग़ज़ल. ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका. Friday, July 31, 2009. एक शायर/ डा0 गिरिराजशरण अग्रवाल. गिरिराजशरण. प्रस्तुत. हैं।डा०. गिरिराजशरण. हुआ।डा०अग्रवाल. द्वारा. सम्पादित. पुस्तकें. प्रकाशित. हो चुकी हैं, एकांकी. व्यंग्य. साहित्य. गिरिराजशरण. स्नातकोत्तर. महाविद्यालय. हिन्दी. हैं।हिन्दी. साहित्य. दृष्टि. प्रकाशित. विशिष्ट. ग्रन्थों. 8217;,` सूर. साहित्य. हिन्दी. साहित्य. 8217; को. गौरवपूर्ण. प्राप्त. पुरस्कार. हिन्दी. संस्थान. द्वारा. व्यंग्यकृति. 8217; बाबू. झोलानाथ. 8217;[1998] तथा. 8217; सूर. क्य...
समकालीन ग़ज़ल: समकालीन ग़ज़ल
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समकालीन ग़ज़ल. ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका. Thursday, May 21, 2009. समकालीन ग़ज़ल. समकालीन ग़ज़ल. केन्द्रित. प्रतिनिधि. पत्रिका. जिसमें. सरोकारों. जुडी़. रचनायें. प्रकाशित. होंगी।. रचनाकारों. रचनायें. छन्दानुशासन. रखें।. सभी ग़ज़लकार मित्रों से यह आग्रह है कि वे अपनी उम्दा रचनायें ई मेल द्वारा -. पर भेज सकते हैं. रचनायें. प्रकाशित. होंगी।. संक्षिप्त. जीवन परिचय. प्रेषित. करें।. फ़ुलवारी. चुनिन्दा. विभिन्न शायरों के कुछ चुनिन्दा शेर-. १- विज्ञान. यानी एक सफ़र ज़िन्दा है।. ३- ज्ञान. ४- जयकृष्ण. लोगों. फुलवा...
समकालीन ग़ज़ल: फुलवारी/पाँच रचनाकारों की रचनायें
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समकालीन ग़ज़ल. ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका. Friday, July 31, 2009. फुलवारी/पाँच रचनाकारों की रचनायें. 1-ग़ज़ल/महेश अग्रवाल. हार किसकी है और किसकी फतह कुछ सोचिये।. जंग है ज्यादा जरुरी या सुलह कुछ सोचिये।. यूं बहुत लम्बी उडा़नें भर रहा है आदमी,. पर कहीं गुम हो गई उसकी सतह कुछ सोचिये।. मौन है इन्सानियत के कत्ल पर इन्साफ-घर,. अब कहाँ होगी भला उस पर जिरह कुछ सोचिये।. अब कहाँ ढूँढें भला अवशेष हम इमान के,. खो गई सम्भावना वाली जगह कुछ सोचिये।. 71,लक्ष्मी नगर,रायसेन रोड. भोपाल-462021 म.प्र. देखो,सच्च&#...जिनकí...
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रोमांटिक रचनाएं: June 2009
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रोमांटिक रचनाएं. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी. Tuesday, June 30, 2009. ग़ज़ल/प्रसन्न वदन चतुर्वेदी/पास आओ तो बात बन जाए. कई दिनों बाद इस ब्लाग पर कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।देर की वजह कुछ तो " समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका]. बनारस के कवि/शायर. मेरी ग़ज़ल/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी. और मेरे. प्रसन्नवदनचतुर्वेदी. पास आओ तो बात बन जाए।. दिल मिलाओ तो बात बन जाए।. बात गम से अगर बिगड़ जाए,. मुस्कुराओ तो बात बन जाए।. बीच तेरे मेरे जुदाई है,. याद आओ तो बात बन जाए।. आ भी जाओ तो बात बन जाए।. Links to this post. Monday, June 8, 2009.
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रोमांटिक रचनाएं: ग़ज़ल/मुझे तनहाइयां भाती नहीं है
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रोमांटिक रचनाएं. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी. Friday, August 28, 2009. ग़ज़ल/मुझे तनहाइयां भाती नहीं है. मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं।. मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नही है।. तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,. सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।. गये हो दूर तुम जबसे यहाँ से,. बहारें भी यहाँ आती नहीं है।. तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,. वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।. तुझे अपना बनाना चाहता था,. कसक दिल की अभी जाती नही है।. शिकायत है यही किस्मत से अपने,. बनारस के कवि/शाय. पी.सी.गोदियाल. August 28, 2009 at 6:15 PM. वहा...
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रोमांटिक रचनाएं: August 2009
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रोमांटिक रचनाएं. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी. Friday, August 28, 2009. ग़ज़ल/मुझे तनहाइयां भाती नहीं है. मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं।. मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नही है।. तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,. सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।. गये हो दूर तुम जबसे यहाँ से,. बहारें भी यहाँ आती नहीं है।. तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,. वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।. तुझे अपना बनाना चाहता था,. कसक दिल की अभी जाती नही है।. शिकायत है यही किस्मत से अपने,. बनारस के कवि/शाय. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom).
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रोमांटिक रचनाएं: ग़ज़ल/प्रसन्न वदन चतुर्वेदी/पास आओ तो बात बन जाए
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रोमांटिक रचनाएं. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी. Tuesday, June 30, 2009. ग़ज़ल/प्रसन्न वदन चतुर्वेदी/पास आओ तो बात बन जाए. कई दिनों बाद इस ब्लाग पर कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।देर की वजह कुछ तो " समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका]. बनारस के कवि/शायर. मेरी ग़ज़ल/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी. और मेरे. प्रसन्नवदनचतुर्वेदी. पास आओ तो बात बन जाए।. दिल मिलाओ तो बात बन जाए।. बात गम से अगर बिगड़ जाए,. मुस्कुराओ तो बात बन जाए।. बीच तेरे मेरे जुदाई है,. याद आओ तो बात बन जाए।. आ भी जाओ तो बात बन जाए।. June 30, 2009 at 9:59 AM. अतिसुन...सुन...
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Sam Kalensky: Creative.
SamKalensky (Sam Kalensky) - DeviantArt
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Sam Kalil - Fine Home Renovations
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समकालीन ग़ज़ल. ग़ज़ल पर आधारित पत्रिका. Sunday, September 27, 2009. देवेन्द्र आर्य की ग़ज़लें. इस बार गोरखपुर के देवेन्द्र आर्य जी की ग़ज़लें प्रस्तुत हैं. Posted by PBCHATURVEDI प्रसन्नवदन चतुर्वेदी. Friday, July 31, 2009. एक शायर/ डा0 गिरिराजशरण अग्रवाल. गिरिराजशरण. प्रस्तुत. हैं।डा०. गिरिराजशरण. हुआ।डा०अग्रवाल. द्वारा. सम्पादित. पुस्तकें. प्रकाशित. हो चुकी हैं, एकांकी. व्यंग्य. साहित्य. गिरिराजशरण. स्नातकोत्तर. महाविद्यालय. हिन्दी. हैं।हिन्दी. साहित्य. दृष्टि. प्रकाशित. विशिष्ट. 8217;,` सूर. या ख&...
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Samkalin Katha Yatra
समकालीन कथा यात्रा .BY DR (Miss) SHARAD SINGH. मुखपृष्ठ. कथा विमर्श. उपन्यास चर्चा. कविता प्रसंग. पुस्तक समीक्षा. साहित्यिक गतिविधियां. लोक वार्त्ता. शुक्रवार, जुलाई 31, 2015. ठाकुर का कुंआ.प्रेमचंद .(आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्य). लेखकः प्रेमचंद. ठाकुर का कुंआ (कहानी). लेखकः प्रेमचंद. प्रस्तुतिः डॉ. शरद सिंह. को हुआ था। उनका असली नाम श्री धनपतराय।. विभिन्न साहित्य रूपों में. समीक्षा. सम्पादकीय. कथा सम्राट. की उपाधि मिल गयी थी।. प्रतिज्ञा. प्रेमाश्रम. निर्मला. रंगभूमि. कायाकल्प. पानी...
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