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शब्द और अर्थ

शब्द और अर्थ. 16 अगस्त 2013. हम पुरनिया! धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का. ढीला-ढाला वस्त्र देह का ;. मद्धिम होती तपिश प्रेम की. स्वर-फुहार अतिरिक्त नेह की ;. शांत-स्निग्ध स्पर्श तुम्हारा. सदा रहें दो-दृग जल-धारा ;. मन के वृन्दावन में महा-रास. अब नहीं, रे धनिया! हम पुरनिया! हम सनातन , पोंगापंथी ,. चिर रहे बंधे , कुंठा - ग्रंथि ;. हर बात पै शंका , हर पथ भ्रांति,. विस्मृत-स्मृतियों सी विश्रांति ;. नहीं कभी की कोई धींगामुश्ती. अवध की शाम, न बनारस की मस्ती ;. उम्र अब मार रही हमको. हम पुरनिया! किसी अन&#...सिर...

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शब्द और अर्थ. 16 अगस्त 2013. हम पुरनिया! धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का. ढीला-ढाला वस्त्र देह का ;. मद्धिम होती तपिश प्रेम की. स्वर-फुहार अतिरिक्त नेह की ;. शांत-स्निग्ध स्पर्श तुम्हारा. सदा रहें दो-दृग जल-धारा ;. मन के वृन्दावन में महा-रास. अब नहीं, रे धनिया! हम पुरनिया! हम सनातन , पोंगापंथी ,. चिर रहे बंधे , कुंठा - ग्रंथि ;. हर बात पै शंका , हर पथ भ्रांति,. विस्मृत-स्मृतियों सी विश्रांति ;. नहीं कभी की कोई धींगामुश्ती. अवध की शाम, न बनारस की मस्ती ;. उम्र अब मार रही हमको. हम पुरनिया! किसी अन&#...सिर...
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शब्द और अर्थ. 16 अगस्त 2013. हम पुरनिया! धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का. ढीला-ढाला वस्त्र देह का ;. मद्धिम होती तपिश प्रेम की. स्वर-फुहार अतिरिक्त नेह की ;. शांत-स्निग्ध स्पर्श तुम्हारा. सदा रहें दो-दृग जल-धारा ;. मन के वृन्दावन में महा-रास. अब नहीं, रे धनिया! हम पुरनिया! हम सनातन , पोंगापंथी ,. चिर रहे बंधे , कुंठा - ग्रंथि ;. हर बात पै शंका , हर पथ भ्रांति,. विस्मृत-स्मृतियों सी विश्रांति ;. नहीं कभी की कोई धींगामुश्ती. अवध की शाम, न बनारस की मस्ती ;. उम्र अब मार रही हमको. हम पुरनिया! किसी अन&#...सिर...

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शब्द और अर्थ: March 2012

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शब्द और अर्थ. 22 मार्च 2012. एकांत में बैठ. मैं तुम्हारे वक्ष से गुज़रती धडकनें देखूँ. तुम मेरी आती-जाती सांसें गिनो. सुनो और बताओ. इस जुगलबंदी से. कोई नया राग उपजा है क्या? एक पुरानी किताब में. एक खत मिला है. लिखा है -. तुम मुझे प्राणों से प्रिय हो. तुम्हारा प्रेम मेरे रोम-रोम में बसा है. तुम्हे याद न किया हो ,. ऐसा शायद ही कोई पल गुजरा है. क्या तुम्हे पता है? किसकी कहानी है यह? क्या वो अब भी जिंदा है? क्या ये प्यार जिंदा है? किसको पता है? अपने में घुल-मिल मगन. याद करता हूँ -. काश, मेर&#2368...हिन...

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शब्द और अर्थ: June 2011

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शब्द और अर्थ. 29 जून 2011. कोटा' का बंकर. कत्लेआम मचाया नादिरशाह ने दिल्ली में. प्यास अभी तक है बाकी खंजर क्या करे? अंकतालिका है या घी का विज्ञापन कोई? इस देश में कैसे -कैसे मंजर क्या करे . चक्रव्यूह में चला अभिमन्यु प्रवेश को. पता उसका 'कोटा' का बंकर क्या करे? ऋषी मुनियों की तपोभूमि का हश्र है ,. सब भूमी गोपाल की बंजर क्या करे . है वक्त की पहचान शत नंबर क्या करे. यही फर्क आदमी औ' बंदर क्या करे . मर्तबान को तल तक चाट गए बिलाव. 3 टीका-टिपण्णी. लेबल: कविता. इसे ईमेल करें. 23 जून 2011. 22 जून 2011. कभ&#2368...

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शब्द और अर्थ: April 2012

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शब्द और अर्थ. 3 अप्रैल 2012. संभवामि युगे-युगे! संभवामि -संभवामि. संभावनाएं हैं. समय की यही विडम्बनाएं हैं. युगे-युगे. हर युग में. किसी से नहीं मिला. क्यों नहीं मिले? मिलना चाहिए! शब्दों को अर्थ. देना चाहिए. अर्थ के बिना. परसाई जी नहीं रहे. शब्द व्यर्थ रहे! पाला-पोसा. बड़ा किया. काम नहीं आए. संभावनाएं! गर्भ का शिशु अभागा. ही डिड-नॉट न्यू! अभिमन्यु! किस काल में आ रहा है! घबरा रहा है. भविष्य अर्थगर्भित है. परिपूर्ण है. वायदा-कारोबार. वायदे-का-कारोबार. सूचकांक. सूचना का युग. बदलो -बदलो. आईना बदलो. हम अपन&#2...

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शब्द और अर्थ: July 2013

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शब्द और अर्थ. 28 जुलाई 2013. चौबीस घन्टे. कितने दिनों बाद. बिना किसी डायरी के. बिना शायरी के. बिताया ज़िंदगी का एक दिन! खोला नहीं घर का मुख्य द्वार. नहीं लिया आज का अखबार. ना ही सुबह से चलाया टी वी. सिर्फ एक अदद फ़ोन, वह भी. घर से बीवी. नहीं , यह भी सिर्फ मेरा ख्याल था. स्वयं से जूझता अदद सवाल था. बिना किसी दैनंदिनी के. बिना किसी कामकाज़ के. बिना मूल या ब्याज़ के. कैसे खर्च डाला एक दिन! सुबह हुई , शाम हुई. बहुत से जन्म हुए. बहुत सी जिंदगियां तमाम हुई. बहुत से बिछड़े. कोई कैसे. किसी तरह. Take it easy....

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शब्द और अर्थ: July 2011

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शब्द और अर्थ. 29 जुलाई 2011. मृत्यु पर्व. भोपाल की भीषण त्रासदी के बाद. विश्व कविता समारोह के आयोजन पर्व पर. गूंजा विख्यात कवि का स्वर. 8220;मरे हुए लोगों के साथ मरा नहीं जा सकता “. मनुष्य कहाँ मरता है? मरती है संवेदना. भोग नहीं मरता. इच्छायें नहीं मरतीं. कामना नहीं मरती! कौवा , कुत्ता , गाय , ब्राह्मण. दसवाँ, बारहवाँ, तेरहवीं. मुंडन ,स्नान , पगड़ी. पिण्डदान, हांडी , अस्थिफूल. सब संगम के कूल. संस्कार है मृत्यु! मणिकर्णिका , गया , गंगासागर. जिसको जो अनुकूल. गौदान , सीधा , भोज. अर्पण , तर्पण. बहुत ब&...

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सोमवार, 5 अप्रैल 2010. क्रिया. क्षुब्ध. बुजुर्गों. रास्तों. पुनरावलोकन. क्यों. हैं।. प्रस्तुत. पुरखों. जानवरों. भांति. जिसमें. परिधानों. हिंसा. इन्द्रधनुष. वादों. स्वीकार. अंगड़ाई. निर्मलता. घावों. निचोड़. क्यारी. गुड़ियों. झिंझोड़. प्रस्तुतकर्ता. डॉ.त्रिमोहन तरल. सोमवार, अप्रैल 05, 2010. 16 टिप्‍पणियां:. डा.सुभाष राय. 3 जून 2010 को 2:40 am. Are mahakavi, yahan koi naya sargam hapte men to chhede rakhiye. उत्तर दें. रौशन जसवाल विक्षिप्त. 27 जून 2010 को 7:24 am. उत्तर दें. उत्तर दें. आपका लेख प...उसम&#2375...

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शब्द और अभिव्यक्ति. Sunday, November 13, 2011. कहाँ उर्दू का हुस्न, कहाँ तेरा ग़ालिब. की मेरे मुल्क से, अब कहाँ अलफ़ाज़ यूँ निकले. मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib). हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले. बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले. डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर. वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले. निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन. बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले. हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले. मेरी पसंद. Thursday, July 29, 2010.

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शब्द और अर्थ. 16 अगस्त 2013. हम पुरनिया! धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का. ढीला-ढाला वस्त्र देह का ;. मद्धिम होती तपिश प्रेम की. स्वर-फुहार अतिरिक्त नेह की ;. शांत-स्निग्ध स्पर्श तुम्हारा. सदा रहें दो-दृग जल-धारा ;. मन के वृन्दावन में महा-रास. अब नहीं, रे धनिया! हम पुरनिया! हम सनातन , पोंगापंथी ,. चिर रहे बंधे , कुंठा - ग्रंथि ;. हर बात पै शंका , हर पथ भ्रांति,. विस्मृत-स्मृतियों सी विश्रांति ;. नहीं कभी की कोई धींगामुश्ती. अवध की शाम, न बनारस की मस्ती ;. उम्र अब मार रही हमको. हम पुरनिया! किसी अन&#...सिर...

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