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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Friday, September 28, 2007. मैं ख्वाब हूं. मैं ख्वाब हूं. मुझे पलने दो अपनी पलकों में. जरा सी देर को मैं भी सूकून पा जाउं. जरा सी देर की राहत, जरा सी मदहोशी. जरा सी देर की ठंडक, जरा सी बेहोशी. मैं ख्वाब हूं.मुझे जीने दो, दो घडी ही सही. अभी न अश्क बहाओ, न आंख खोलो तुम. रहो खमोश रहो लब से कुछ न बोलो तुम. सम्हालो जिस्म को अपने न थरथराए अब. मैं गिर पडूंगा.बिखर जाउंगा फिर कुछ ऐसे. तमाम उम्र समेटोगी तुम मेरे टुकडे. मैं ख्वाब हूं. Thursday, September 27, 2007. कई दिन ह&#...

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Friday, September 28, 2007. मैं ख्वाब हूं. मैं ख्वाब हूं. मुझे पलने दो अपनी पलकों में. जरा सी देर को मैं भी सूकून पा जाउं. जरा सी देर की राहत, जरा सी मदहोशी. जरा सी देर की ठंडक, जरा सी बेहोशी. मैं ख्वाब हूं.मुझे जीने दो, दो घडी ही सही. अभी न अश्क बहाओ, न आंख खोलो तुम. रहो खमोश रहो लब से कुछ न बोलो तुम. सम्हालो जिस्म को अपने न थरथराए अब. मैं गिर पडूंगा.बिखर जाउंगा फिर कुछ ऐसे. तमाम उम्र समेटोगी तुम मेरे टुकडे. मैं ख्वाब हूं. Thursday, September 27, 2007. कई दिन ह&#...
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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Friday, September 28, 2007. मैं ख्वाब हूं. मैं ख्वाब हूं. मुझे पलने दो अपनी पलकों में. जरा सी देर को मैं भी सूकून पा जाउं. जरा सी देर की राहत, जरा सी मदहोशी. जरा सी देर की ठंडक, जरा सी बेहोशी. मैं ख्वाब हूं.मुझे जीने दो, दो घडी ही सही. अभी न अश्क बहाओ, न आंख खोलो तुम. रहो खमोश रहो लब से कुछ न बोलो तुम. सम्हालो जिस्म को अपने न थरथराए अब. मैं गिर पडूंगा.बिखर जाउंगा फिर कुछ ऐसे. तमाम उम्र समेटोगी तुम मेरे टुकडे. मैं ख्वाब हूं. Thursday, September 27, 2007. कई दिन ह&#...

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शब्दबाण: बनारसी पन से मुक्त होना चाहती है नई पीढ़ी

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Monday, June 25, 2007. बनारसी पन से मुक्त होना चाहती है नई पीढ़ी. अनिल सर उर्फ अनिल पांडे. फुटपाथ किनारे चाय की दुकानों पर. June 25, 2007 at 9:31 AM. Bhai sahab ye haal kewal varansi ka hi nahi hai kanpur, ilahabad, kannuj, ghazipur sahit sabhi jagah ka yahi haal hai. or dur kyo jaate hai aap noida me hai yanhi ki parampra or sanskriti ko dekh lijiye ekdam samapt ho chuki hai. June 26, 2007 at 4:33 AM. July 23, 2007 at 3:30 AM. Subscribe to: Post Comments (Atom).

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शब्दबाण: मैं ख्वाब हूं....

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Friday, September 28, 2007. मैं ख्वाब हूं. मैं ख्वाब हूं. मुझे पलने दो अपनी पलकों में. जरा सी देर को मैं भी सूकून पा जाउं. जरा सी देर की राहत, जरा सी मदहोशी. जरा सी देर की ठंडक, जरा सी बेहोशी. मैं ख्वाब हूं.मुझे जीने दो, दो घडी ही सही. अभी न अश्क बहाओ, न आंख खोलो तुम. रहो खमोश रहो लब से कुछ न बोलो तुम. सम्हालो जिस्म को अपने न थरथराए अब. मैं गिर पडूंगा.बिखर जाउंगा फिर कुछ ऐसे. तमाम उम्र समेटोगी तुम मेरे टुकडे. मैं ख्वाब हूं. October 7, 2007 at 7:42 AM.

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शब्दबाण: June 2007

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Wednesday, June 27, 2007. सच्‍ची खबरें. अशोक चक्रधर. सच्‍ची. खबरें, सच्‍ची खबरें. आप चार दिन रहे लापता. अखबारों में खुद गई कबरें. सच्‍ची खबरें. खबरें छप गईं, प्‍यार हो गया. कहां हुआ है - हो जाएगा. समाचार ऊपर से आया. रोको इसको - नो जाएगा. खबर छप गई लट्ठ गड गया. कहां गडा है - गड जाएगा. खबर छप गई, छापा पड गया. कहां पडा है, पड जाएगा. देख रहीं अनकिए काम को. पता नहीं ये किसकी नजरें. सच्‍ची खबरें. अगर न दी वाशिंग मशीन तो. लडका मेरा अड जाएगा. खबर अटपटी, खबर चटपटी. दुन&#23...

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शब्दबाण: कई दिन हो चुके हैं.....

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Thursday, September 27, 2007. कई दिन हो चुके हैं. कई दिन हो चुके हैं.तुम नहीं हो. कई दिन हो चुके हैं. कुछ नहीं है. जिंदगी ठहरी हुई. हलचल नहीं, आहट नहीं. उदासी और सन्‍नाटा है. मन के ताल में. तुम फेंक दो कंकर सुनहरे प्रेम का. लहर उठ जाए.मन फ‍िर हो तरंगित. फ‍िर वही आवाज़ हो. कहो कुछ तो कहो मत चुप रहो अब. मधुर संगीत जीवन कामेरे कानों में फ‍िर घोलो. ज़रा हौले से तुम बोलो. तुम फ‍िर आओगी.इतना तो कहो. न जाने कब तुम आओगी. मगर आओगी तो हंस दोगी. हमेशा के लिए. यही सच है. August 6, ...

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शब्दबाण: देहधर्म

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Friday, June 22, 2007. कुतिया. परभतिया का पोर पोर दर्द में डूबा था। आज नरेस उसके साथ ज्‍यादा बेदर्दी के साथ पेश आया। अंदर से खून तक निकल गया। नरेस ने कल अस्‍पताल चलने की बात कही है. This comment has been removed by the author. June 22, 2007 at 8:21 AM. The words and the visuals which comes in the mind while reading ,reminds the art movie taste.Very nice. June 24, 2007 at 4:46 AM. June 25, 2007 at 9:44 AM. June 26, 2007 at 5:04 AM. Subscribe to: Post Comments (Atom).

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महफ़िल: 08/01/2008 - 09/01/2008

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एक कोशिश मिल बैठने की. Tuesday, August 5, 2008. आखिर नायक कौन है? आखिर क्या चीज़ें हैं जो हमें उनसे अलग करती हैं।क्या हम उनकी तलाश में किसी नतीजे तक पहुँच पाये हैं? यही ध्यान देने की बात है।. और फ़िर मैं अकेला भी तो हूँ और अकेला चना भाड़ कहाँ फोड़ता है। बहुत ख़ूब! हाय पैसा! हद तो यह है की शिक्षा के क्षेत्र में भी इन्ही हाथों का फैलाव स्पष्ट दिखता है! बैंकिंग के लिए भी गुंजाईश है! बस सबकी अलग अलग कीमत है! वाह क्या बात है! अंत में इतना ज़रूर बोलूँगा क&...Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). दिन...

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महफ़िल: कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।

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एक कोशिश मिल बैठने की. Monday, August 27, 2007. कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।. कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।. फूलों से भी अधिक सुकोमल. नरम अधिक नवनी से,. प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वाली. अति इन्दु मनी से,. नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है।. तनया-प्रिया-जननि के. अवगुण्ठन में रहने वाली,. सत्यं शिवम् सुन्दरम् सी. जीवन में बहने वाली,. विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।. है आधार-शिला सुन्दरता की. मधु प्रकृति-परी सी,. मनु की उस तरुण-तरी सी,. जग आधार अकेली,. Create your like badge.

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महफ़िल: नायक

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एक कोशिश मिल बैठने की. Tuesday, August 5, 2008. आखिर नायक कौन है? आखिर क्या चीज़ें हैं जो हमें उनसे अलग करती हैं।क्या हम उनकी तलाश में किसी नतीजे तक पहुँच पाये हैं? यही ध्यान देने की बात है।. और फ़िर मैं अकेला भी तो हूँ और अकेला चना भाड़ कहाँ फोड़ता है। बहुत ख़ूब! हाय पैसा! हद तो यह है की शिक्षा के क्षेत्र में भी इन्ही हाथों का फैलाव स्पष्ट दिखता है! बैंकिंग के लिए भी गुंजाईश है! बस सबकी अलग अलग कीमत है! वाह क्या बात है! अंत में इतना ज़रूर बोलूँगा क&...जब पिंजरा टूटता है त&...July 13, 2009 at 2:20 AM. यह&#236...

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महफ़िल: कबीर

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एक कोशिश मिल बैठने की. Thursday, April 22, 2010. मतभेद भरा जीवन. कबीर के ही शब्दों में- 'हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये'।. धर्म के प्रति. वाणी संग्रह. वे कभी कहते हैं-. हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया' तो कभी कहते हैं, 'हरि जननी मैं बालक तोरा'।. और कभी "बडा हुआ तो क्या हुआ जैसै". बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान। करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।'. कबीर के राम. वह कहते भी हैं. 8221; नहीं है।. माया महा ठगनी हम जानी।।. तिरगुन फांस लिए कर डोले. यह सब अकथ कहानी।।. प्रस्तु...देन&#2375...

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महफ़िल: 01/01/2011 - 02/01/2011

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एक कोशिश मिल बैठने की. Friday, January 28, 2011. केदारनाथ पाण्डेय. मंच के सफल गायक कवि,मृदुभाषी और लगनशील श्री केदारनाथ पाण्डेय. को बहुत बहुत धन्यवाद. मोती बरसा जाता. रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।. शतदल के दल दल पर ढलकर. नयन नयन के तल में पलकर. बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।. हिलती डुलती लचक डालियाँ. बजा रही हैं मधुर तालियाँ. हृदय- हृदय में तरल प्यास है. प्रिय के आगम का हुलास है. नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।. चहल-पहल है महल-महल में. फली आस पल-पल मरती की. रश्म&#236...

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महफ़िल: रामधारी सिंह "दिनकर"

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एक कोशिश मिल बैठने की. Wednesday, January 26, 2011. रामधारी सिंह "दिनकर". जीवन परिचय. प्रमुख कृतियाँ. रे रोक युधिष्ठर को न यहां, जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर (हिमालय से). क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो (कुरूक्षेत्र से). मरणोपरांत सम्मान. दो न्याय अगर तो आधा दो, और, उसमें भी यदि बाधा हो,. हम वहीं खुशी से खायेंगे,. परिजन पर असि न उठायेंगे! लेकिन दुर्योधन. हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।. January 27, 2011 at 9:32 AM.

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महफ़िल: प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।

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एक कोशिश मिल बैठने की. Tuesday, February 19, 2008. प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।. प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।. जा रहा हूँ मैं अकेला. शून्य पथ वीरान सारा. विघ्न की बदली मचलकर. है छिपाती लक्ष्य तारा. दूर मंज़िल है न जाने. क्यों स्वयं मुस्का रहा हूँ॥. जलधि सा गम्भीर हूँ मैं. चेतना मेरी निराली. प्रगति का संदेशवाहक. लौट आऊँगा न खाली. कंटकों के बीच सुमनों की. मधुरिमा पा रहा हूँ. तुम करो उपहास पर. तुम समय की मांग पर. आज तक की निज अगति पर. भी बल रही हैं. Have you written it?

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महफ़िल: केदारनाथ पाण्डेय

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एक कोशिश मिल बैठने की. Friday, January 28, 2011. केदारनाथ पाण्डेय. मंच के सफल गायक कवि,मृदुभाषी और लगनशील श्री केदारनाथ पाण्डेय. को बहुत बहुत धन्यवाद. मोती बरसा जाता. रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।. शतदल के दल दल पर ढलकर. नयन नयन के तल में पलकर. बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।. हिलती डुलती लचक डालियाँ. बजा रही हैं मधुर तालियाँ. हृदय- हृदय में तरल प्यास है. प्रिय के आगम का हुलास है. नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।. चहल-पहल है महल-महल में. फली आस पल-पल मरती की. 2405;गीत&...

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महफ़िल: मोती बरसा जाता ।

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एक कोशिश मिल बैठने की. Tuesday, February 26, 2008. मोती बरसा जाता ।. रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।. शतदल के दल दल पर ढलकर. नयन नयन के तल में पलकर. बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।. हिलती डुलती लचक डालियाँ. बजा रही हैं मधुर तालियाँ. बून्दों की फुलझड़ियों में वह,गीत प्रीत का गाता ।. हृदय- हृदय में तरल प्यास है. प्रिय के आगम का हुलास है. नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।. शुभ्रवला का बादल दल में. चहल-पहल है महल-महल में. फली आस पल-पल मरती की. विभावरी रंजन. Create your like badge.

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Sunday, July 26, 2015. द गोल्डफिंच. समजून घ्यायला! काय चाललंय आपल्या आजूबाजूला ते समजून घ्यायला (हा! 8217; किंवा मनू जोसेफ. किंवा फॅमिलीज अॅट होम. मग लॉर्ड ऑफ द रिंग्स. जंप इन टू फँटसी. आपल्यातल्या वेगाने बथ्थड होत जाणाऱ्या संवेदनेला काल्पनिक हाय. एस्केप रूट. पण मग फ्रोडो जातोच ग्रे हेवन्सना. आणि मीही लोकल ट्रेन्समध्ये परत. काहीतरी थिअरी? कमकुवत दुवा: लोकल ट्रेनमध्ये स्पार्टन आणि उंदीर वर्तन करणे. कि...आवश्यक सोल्युशन: वेळ काढणे. म्हणजे पुस्तक. कुठलं? द गोल्ड्फिंच. मग कोणाला तरी ए...मी माझ&#2...पे&...

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Lunes, 28 de noviembre de 2011. TALLER : MEDITACION SHABDA. DOMINGO de 16.30 a 20.30. Existen dos herramientas poderosas a tu disposición: las palabras y el ritmo. Un uso simple y consciente de estas tiene profundos efectos. Las palabras y los sonidos son hechos psicoactivos enraizados en el cuerpo y le dan raíz al sentido del ser. El ritmo aumenta nuestro sentido de balance, de control de nuestros movimientos y bienestar general. INTRODUCCION A LA MEDITACION SHABDA. Provee la "transmisión espiritual"&#4...

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शब्‍दों की कथा, शब्‍दों की व्‍यथा. Friday, September 28, 2007. मैं ख्वाब हूं. मैं ख्वाब हूं. मुझे पलने दो अपनी पलकों में. जरा सी देर को मैं भी सूकून पा जाउं. जरा सी देर की राहत, जरा सी मदहोशी. जरा सी देर की ठंडक, जरा सी बेहोशी. मैं ख्वाब हूं.मुझे जीने दो, दो घडी ही सही. अभी न अश्क बहाओ, न आंख खोलो तुम. रहो खमोश रहो लब से कुछ न बोलो तुम. सम्हालो जिस्म को अपने न थरथराए अब. मैं गिर पडूंगा.बिखर जाउंगा फिर कुछ ऐसे. तमाम उम्र समेटोगी तुम मेरे टुकडे. मैं ख्वाब हूं. Thursday, September 27, 2007. कई दिन ह&#...

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