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शिरीष कुमार मौर्य | अनुनाद का अनुषंग

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शिरीष कुमार मौर्य | अनुनाद का अनुषंग | shirishmourya.wordpress.com Reviews

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दादी की चिट्ठियाँ | शिरीष कुमार मौर्य

https://shirishmourya.wordpress.com/2010/02/25/दादी-की-चिट्ठियाँ

अन न द क अन ष ग. च दह बरस पहल ग ज र गई द द. म तब ब स क भ नह थ. द द बह त पढ़ -ल ख थ. और सब ल ग उनक ल ह म नत थ. म प स च खव ग र क त लस त य ल -श न तक क. पढ़ रख थ उन ह न. और हम तब तक बस ईदग ह और प च-परम श वर ह. म और म स द र उत तर क पह ड़ पर रहत थ. न कर करन गए प त क स थ. द द मध य प रद श म प श त न घर सम भ लत थ. आस-पड़ स म क फ सम म न थ. वह श सक य कन य श ल क र बद र प रध न ध य प क थ. वह जब भ अक ल पन महस स करत. हम च ट ठ ल खत. य मह न म त न य च र त आ ह ज त थ उनक च ट ठ य. इनम ब त क ख ज न ह त थ. ब द म इसक उल ट ह न लग.

2

“नींद की गोली” और एक खुफ़िया “एकालाप” | शिरीष कुमार मौर्य

https://shirishmourya.wordpress.com/2010/01/18/नींद-की-गोली-और-एक-खुफ़िया

अन न द क अन ष ग. 8220;न द क ग ल ” और एक ख फ़ य “एक ल प”. क स रस यन. और क स व श व स क स थ बन ह य. क इस ख न पर. सफ़ द जलह न ब दल क तरह झ ट द ल स ल ए. त रत आत ह न द. ल क न ज र रहत ह द न य क स न ई पड़न. आसप स ह त हरक़त क महस स ह न ज र रहत ह. वह श यद न द नह. बरस -बरस प छ करत ह आ ज वन क पहल. चलच त र क तरह. ग ज र वक त क श व त-श य म द श य. और ग़ ब र स भर. म र नन ह ब ट क ह थ म झ टट लत ह. वह प क रत ह प र त क़त स. म र इस उच ट न द म अपन म ह ड ल. पर म उस जव ब नह द प त. म र च हर पर जमन लगत ह. उसक ह न क. ब हद स खद. अब त म ह ...

3

टामस ट्रांसट्रोमर (तोमास त्रांसत्रोमर)-शंघाई की सड़कें | शिरीष कुमार मौर्य

https://shirishmourya.wordpress.com/2010/01/10/टामस-ट्रांसट्रोमर-तोमास

अन न द क अन ष ग. ट मस ट र सट र मर (त म स त र सत र मर)-श घ ई क सड़क. श घ ई क सड़क. कई ल ग ध य न स द ख रह ह. सफ द त तल य क. म झ वह त तल बह त पसन द ह. ज ख द ह ज स सत य क फड़फड़ त ह आ. स रज क उगत ह. द ड़त -भ गत भ ड़ हम र इस ख म श ग रह क. गत म न बन द त ह. और तब प र क भर ज त ह. हर आदम क प स आठ-आठ च हर ह त ह. नग -स चमचम त. गलत य स बचन क व स त. हर आदम प स एक अद श य च हर भ ह त ह. ज जत त ह –. 8221; क छ ह ज सक ब र म आप ब त नह करत! क छ ज थक न क क षण म प रकट ह त ह. और इतन त ख ह. ज स क स ज नद र शर ब क एक घ ट. स व द क तरह.

4

पहाड़ | शिरीष कुमार मौर्य

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अन न द क अन ष ग. उनक ब र म स चत ह. एक क ब द एक. कई स र पह ड. और खड़ ह ज त ह. म र द ह और आत म क. द र तक व खड़ रहत ह. म उन ह द खत ह. म र चढ ई चढ त स स क. उत तप त वलय. उनस म लत ह. व थ ड़ स ह लत ह और ह ज त ह. उन ह पर खड़ ह कर. म अपन आसप स प क र द य करत ह. म र भ तर बढ़त रह. उर वर ह त रह. ज गल घन और ज म न. उनक चट ट न. पकत रह म र रक त क. और म र भव ष य क. म बदल ज न च हत ह. रचन क ल -1995. Posted by shirishmourya on 01/01/2010 at 2:31 अपर ह न. Filed under शब द क झ रम ट म. ट प पण कर. Previous Entry: नय स ल. ईम ल (आवश यक).

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नया साल | शिरीष कुमार मौर्य

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अन न द क अन ष ग. ग लत य क कथ. स व क र करन ह. और नट ज न ह क छ स त. इस तरह करन ह. परम पर ह क छ ऐस ह. Posted by shirishmourya on 31/12/2009 at 1:53 अपर ह न. Filed under शब द क झ रम ट म. ट प पण कर. Previous Entry: ज सक द न य र ज बनत ह! Next Entry: पह ड. ग तम र जर श. और नट ज न ह क छ स त /स फ ह. बह त ख ब! Posted on 05/01/2010 क 5:46 अपर ह न. RSS Feed for this entry. एक उत तर द जव ब रद द कर. Enter your comment here. Fill in your details below or click an icon to log in:. ईम ल (आवश यक). Address never made public).

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: August 2010

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Friday, August 20, 2010. अब और बंजर होने की जगह नहीं हो. वे टूटें. भूकंप के मकानों की तरह. और फटें. बादलों की तरह. हम कहीं दूर सूखे में बैठ कर. देखें उनका टूटना और फटना. लिखे उनके दुख और खुश होवें. टूट पड़ें सड़क पे. लाल बत्ती के हरी होते हीं. और बाजू में. बच कर निकलने के लिए संघर्ष करते. साइकिल वाले की साँसों का. उथल-पुथल देखते हुए. पार कर जाएँ सफ़र. रात की तेज बारिश में. बह गयी हों सारी यादें. तब भी सुबह उठ कर हम टाल जाएँ. अपनी मासूमियत. उधर पत्थर फ&#23...

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: February 2011

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Tuesday, February 8, 2011. रूह में नंगे जाना होता है. मैं चलता गया था उसकी तरफ. दूरी कितनी तय हुई मालूम नही. रास्ते में मै कही ठहरा नही जिस्म पर. और वो भी. रूह से पहले तक. दिखायी नही दी एक बार भी. अचानक से हुआ कि छू लूं. जैसे ही दिखी पर. अदृश्य हो गयी हाथ बढाते ही. तब लगा मैं. लिबास साथ लिये आ गया था. लौटना पड़ा मुझे. रूह में नंगे जाना होता है. Tuesday, February 08, 2011. Labels: अदृश्य. Saturday, February 5, 2011. और ये नया साल भी. तुम तक पहु&#23...रूह...

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: September 2010

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Wednesday, September 29, 2010. और ज्यादा समय तुम्हारे पास. साँसें और ज्यादा तुम्हारे फेफड़ों में. रक्त से और लाल. धमनियां तुम्हारी. आग और पानी बराबर-बराबर. अकम्पित जीवन. और पाँव रखने से पहले. रौशनी गिरे. मिटटी, बारिशें और खुश्बुएं. रहें सदा अंकुरित. तुम्हारे भीतर. और एक बड़ा कद. और ज्यादा समय हो. इस जन्म दिन के बाद. तुम्हारे पास. Wednesday, September 29, 2010. मिट्टी. Sunday, September 19, 2010. कंधें बचे रहें. किसी भी तरह. Sunday, September 19, 2010. त&#2366...

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: September 2011

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Saturday, September 24, 2011. वक़्त रिअर ग्लास की तरह है. वक़्त मोड़ देता है. कभी कान उमेठकर हौले से. कभी बाहें मदोड़ कर झटके से. और कभी इस तरह कि. बस चौंकने भर का मौका होता है. वो मोड़ता है तो. मुड़े बिना मैं नहीं और वो भी नहीं. कोई और हो तो हो. इसका पता नहीं. जब आग लगी थी. और जब जलने का मजा था. हमारा मोम पिघल कर मिलने लगा था. वक़्त ने हमें नाक से पकड़ा. और मोड़ कर हमारी पीठ एक दूसरे की तरफ कर दी. हम किधर गए. और यूँ लगता है कि. Saturday, September 24, 2011.

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: March 2012

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Wednesday, March 28, 2012. कौन किसके माथे? रोजमर्रा की भागदौड़ में गिरते गए. और दोष मढ़ते गए गड्ढों के माथे. पता ही नहीं चलता अब सपनो का. जरूरतें जागती हैं सारी रात नींद के माथे. रहने दिया आखिर में बिना कुछ कहे. देर तक मगर हथेली रही आवाज के माथे. अब ये कहना मुश्किल बहुत है. गोली कौन दागेगा किसके माथे. उस समंदर पे बोझ कितना गहरा होगा. पानी वो नदी छोड़ गयी जिसके माथे. हर शाम वो एक तन्हाई लगा जाता है. Wednesday, March 28, 2012. Friday, March 2, 2012. पाल ल...

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: July 2010

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Sunday, July 25, 2010. खाल उतारने की प्रक्रिया जारी है! ये अच्छा है. कि इस कविता में जिन्हें आना था. उनमे से कुछ तो अभी व्यस्त हैं. एक मरे बैल की खाल उतारने में. कुछ अपनी छाती से. भूख पिला रही हैं अपने बच्चों को. और कुछ इस इंतज़ार में हैं. कि उनके देह हों तो वे उन्हें बेंच सके. और इसलिए ये संभव है. कि कविता अब वीभत्स होने से बच जाए. जहाँ खाल उतारने की प्रक्रिया जारी है. वहां किसी उत्सव की आशा में. ढेर सारे बच्चे. पीछे नहीं हटते. संजुक्त र&#2...चुन-च&#23...

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: April 2010

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Monday, April 26, 2010. दिल भात की पतीली का ढक्कन हो गया है. मैं जानती हूँ. तुमने देख ली होगी. मेरे होंठों पे वो कांपती हुई कशिश. और उनपे बार-बार जीभ फेर कर. भिंगाने की मेरी विवशता. और भांप ली होगी वो कमजोरी भी. जिसकी वजह से कोई. किसी की बांहों में निढाल हो जाता है. उस कुछ देर की मुलाक़ात में. अब बताऊँ भी तो. सदा गतिमान होने का दंभ भरने वाला. ये वक़्त क्या मान लेगा. कि वो ठहर गया था. रख दिए थे. मेरे रोम में. खुदा जानता है. मेरे लिए तो. Monday, April 26, 2010.

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: December 2010

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Thursday, December 30, 2010. कि प्रेम तुम्हारी आँखों में डूब गया हो सकता है. जब से प्रेम और कविताओं के बारे में. यह कहा जाने लगा है कि. वे अब महज वस्तुएं हैं. मैं बाजार में पड़े उत्पादों से. आँख मिलाने से कतराता हूँ. मेरे लिए प्रेम, कवितायें हैं. उनका अभाव कचोटती हुई कवितायें हैं. और प्रेम के पश्चात. अस्तित्व में आया प्रेम का अभाव. और भी ज्यादा कचोटती हुई कविता. और कभी जब तुम्हें भेजने के लिए. तुम्हारी आँखें,. बेहद डरावना होगा. Thursday, December 30, 2010.

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अन न द क अन ष ग. शमश र स स झ. कल क स घर ष सम ज क स घर ष स एकदम क ई अलग च ज नह ह सकत. यह भ शमश र ह स थ द त ह –. क पढ़ ल न च ह ए उनक ब म ब उतन ह हल क -हव द र, धरत -आक श क क मल र ग स भर , भ तर व स ह आग-व स ह व स तव क और सम च ज वन-र ग स रच ह , ज स शमश र क यह ह अपन नव यतम स ग रह `स य ह त ल. क न म स ह म न व र न ड गव ल शमश र क स म रन कर ल त ह और फ र अन दर आल क धन व क समर प त एक कव त क प क त ` एक ब दल ज दरअसल एक नम द ढ़ थ. और `जन न द लन. उसक क य हक़-ह क़ क ह? और इन सबस बढ़कर यह क हम ख़ द क य ठ क वह `जन नह ह? अ धक रल न.

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