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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: November 2007
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Tuesday, November 27, 2007. चेंबूर, विद्या बालन का घर और सुबह की गुफ्तगू. इधर मेरा मोबाइल ग़ुम हो गया, तो सारे नंबर भी चले गये। उसमें विद्या बालन. आप कैसे हैं? 8221; और एक बार फिर विद्या से टूटी हुई बातचीत का सिलसिला शुरू हो पाया। मैं उन दिनों सुरेंद्र राजन जी. काम करते वक्त बहुत मज़ा आया। दादा ( प्रदीप सरकार. आप परिणीता से पहली बार कैसे परिचित हुईं? नॉवेल पढ़के या. आपने बिमल रॉय. की परिणीता कब देखी? दो-तीन महीने पहले. कभी-कभी ऐसा भी तो होत...अपनी ज़ि...का. और म...से...
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: June 2008
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Saturday, June 21, 2008. रैंप पर अंतिम औरत का इतिहास. ऑडिटोरियम. विकिपीडिया से मैं थोड़ा और दुरुस्त हुआ कि कैटवॉक. दरअसल कपड़ों की नुमाइश का इवेंट होता है। 21 जून, शनिवार की शाम को मैं इसलिए भी सीरीफोर्ट ऑडिटोरियम चला गया, क्योंकि मदन झा. के दरभंगा कॉरस्पॉन्डेंट थे या इंडियन नेशन. पटना में आ गये थे, ये याद नहीं। क़रीब 12 साल पहले का वाक़या है।. अलवर की राजकुमारियों के साथ रैंप पर चल रहे थे।. जस्सी रंधावा. कारोल ग्रैसिया. राहुल देव. आर्यन वैद्य. नयी दिशा. ग़रीब ह...मीर...
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: May 2008
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Tuesday, May 13, 2008. भगवती के साथ एक दोपहर. होटल इंटरकांटीनेंटल. क्या ये उतना ही सच है, जितना दिख रहा है? आज़ाद भारत में खुशहाल साम्यवाद की ये तस्वीर वैसी ही है, जैसी दिख रही है? क्या भगवती और सचिन तेंदुलकर इस मुल्क के बराबर के नागरिक हैं? बदनसीब भारत की उमर ऐसे ही ढली हुई नज़र आती है।. सुलभ ने जो संबल दिया है, उससे ज़िंदगी अब राजी-खुशी कटेगी।. Labels: कभी कभी की मुलाक़ात. यहां वहां जहां तहां. Subscribe to: Posts (Atom). भगवती के साथ एक दोपहर. कल्पना.
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: January 2009
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Friday, January 30, 2009. हालांकि अब भी लोग काम कर रहे हैं! वहां जहां जीवित लोग काम करते हैं. मुर्दा चुप्पी सी लगती है जबकि ऐसा नहीं कि लोगों ने बातें करनी बंद कर दी हैं. उनके सामने अब भी रखी जाती हैं चाय की प्यालियां. और वे उसे उठा कर पास पास हो लेते हैं. एक दूसरे की ओर चेहरा करके. देखते हैं ऐसे जैसे अब तक देखे गये चेहरे आज आखिरी बार देख रहे हों. ये अनुपस्थिति तो यूं भी रहती आयी है. लेकिन हालात बताने के लिए. Labels: कविता की कोशिश. Subscribe to: Posts (Atom). श्री ग...स्&...
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: December 2007
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Friday, December 28, 2007. बेटी है ठुमरी उम्मीदों की टेक. श्रावणी. के लिए. छोटी सी चादर रजाई सा भार. फाहे सी बेटी हवा पर सवार. मां की, बुआ की हथेली कहार. रे हैया रे हैया. रे डोला रे डोला. चावल के चलते सुहागन है सूप. जाड़े की संगत में दुपहर की धूप. सरसों की मालिश में खिला खिला रूप. रे हैया रे हैया. रे डोला रे डोला. छोटे-से घर में है बालकनी एक. बेटी है ठुमरी उम्मीदों की टेक. चादर को देती है पांवों से फेंक. रे हैया रे हैया. रे डोला रे डोला. Saturday, December 22, 2007. कभी ...
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: September 2008
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Monday, September 8, 2008. तुम सुन सकोगे न अपनी आवाज़? बड़े भाई अविनाश को।. काग़ज़ के पीछे भी हाथ की लिखाई है,. माफ करेंगे, तुमसे अपनापन का बोध होता है न, लेकिन कह नहीं सकता इसलिए लिख रहा हूं।. कविता का शीर्षक है - कामरेड! तुम सुन सकोगे न अपनी आवाज़. पुते हुए चेहरों में. बिस्तर की सलवटों को. कैमरा से खींचते या दिखाते,. गर्मागर्म ख़बरों को परोसते. व्यूवर्स बटोरते. जो करवटों में बीतेंगी? गेट्स व अंबानी की मटकती चालों पर. कहीं ऐसा न हो. Subscribe to: Posts (Atom). चंद कव...
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: August 2008
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Friday, August 29, 2008. चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं. मुशायरे. उस मुशायरे का जिक्र एक आर्टिकल में मैंने किया था, जो हंस. सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं. सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं. सुना है रब्त है उस को खराब हालों से. सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं. सुना है दर्द की गाहक है चश्मे नाज़ुक उसकी. सो हम भी उसकी गली से गुज़रके देखते हैं. सुना है उस को भी है शेरो शायरी से शगफ. सुना है चश्मे तसव्वु...पलंग ज़ावे उस की कमर ...सुना है उ...कि फí...
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन...: May 2007
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दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन. Tuesday, May 29, 2007. वो एक अलग ही घर था. शहर था शहर नहीं था : 3. एक दोस्त. Labels: उपन्यास की तर्ज पर. Sunday, May 27, 2007. चुप चेहरों के शहर में डरावने किस्से. शहर था शहर नहीं था : 2. शहर में. मैं सुबह उठता हूं। मुस्कुराता हूं। और अपने पुराने शहर को याद करता हूं।. Labels: उपन्यास की तर्ज पर. शहर था शहर नहीं था. हर टोले में. शीर्षक राजकमल चौधरी. के उपन्यास से साभार). Labels: उपन्यास की तर्ज पर. Monday, May 14, 2007. लाल बहादुर ओझा. Sunday, May 13, 2007. सुरे...
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आस्था का ब्लॉग: फिर से अंचार
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Saturday, December 8, 2007. फिर से अंचार. Labels: आस्था. Subscribe to: Post Comments (Atom). आस्था का ब्लॉग. छत पर फोटो सेशन. फिर से अंचार. मेरा फोटू लो. मुंह में अंचार. सबसे आगे हम. मेरी मम्मी. पांच दिसंबर 2007. मेरी छोटी बहन है. बिंदास पापा. जाड़े की एक शाम. इधर से उधर. श्रावणी की क्यारी.