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June 2015 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Tuesday, 30 June 2015. कथाकार शिवमूर्ति से सुशील सिद्धार्थ की बातचीत. स्त्री. जुड़ा. शिवमूर्ति. सिद्धार्थ. संस्मरणात्मक. शुरूआती. जि़न्दगी. है।अभाव. असुरक्षा. स्थानीय. सामन्ती. स्वाभाविक. है। .फिर. उबरें।. उद्देश्य. कठिनाइयों. जीवनगुजारने. लोगों. इन्हीं. परिस्थितियों. नहींआती. हैं।. परिस्थितियों. मैंने. दर्जीगीरी. तरीकाअपनाया. लोगों. होंगे।. परिस्थितियों. सेतुलना. जिन्दगी. मैंने. व्यक्तिगत. क्यों. स्त्...
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October 2014 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 26 October 2014. तीन कवि : तीन कवितायेँ - 10. पर तीन कवि : तीन कविताओं की श्रृंखला के 10वें अंक में. इस हफ्ते प्रस्तुत हैं. अनामिका. संध्या सिंह. शैलजा पाठक. की कवितायेँ :. अयाचित /. अनामिका. मेरे भंडार में. एक बोरा. पिछला जनम. सात कार्टन. रख गई थी मेरी माँ।. चूहे बहुत चटोरे थे. घुनों को पता ही नहीं था. कुनबा सीमित रखने का नुस्खा. सबों ने मिल-बाँटकर. और अतीत आधा. बाक़ी जो बचा. मसलन कि आग. कान से...
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December 2014 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 28 December 2014. मधुकर अष्ठाना का आलेख - लोकप्रिय छन्द दोहा. लोकप्रिय छन्द दोहा. मधुकर अष्ठाना. 8220;कागा नैन निकासि कै, पिया पास लै जाय. पहिले दरस दिखाइ कै, पीछे लीजो खाय. कागा सब तन खाइयो, चुनि-चुनि खइयो मास. दो नैना मत खाइयो, पीउ दरस की आस. यह तन जारौ छार कै, कहौं कि पवन उड़ाव. पुनि तेहि मारग उड़ि परै, कंत धरै जहँ पाँव”. 3 3 2 3 2 = 13 मात्रा. 4 4 3 2 = 13 मात्रा. 3 3 2 3 = 11 मात्रा. भ्रामर ...8220;कच&#...
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कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय की 8 कवितायेँ | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 26 October 2014. कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय की 8 कवितायेँ. 8217; मेरे लिए कविता लिखना सांस लेने जैसा है. वसुंधरा पाण्डेय. हो जाए पत्थर. तो कोई क्या करे. मैंने पूछा. 8216; प्यार में. पिघल जाते हैं. पत्थर भी. उसने टोका. उसे मालूम ना था. मिट्टी. हवा पानी में खिलते हैं. लावे में उबल. आम्रपाली. वह प्राणों सी प्रिय. उमगता यौवन. उफनती इच्छाएं लिए. बड़ी हो रही थी. हो सकती हैं क्या. इतनी गंध. तभी तो. तेरा ...अब तí...
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July 2015 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Monday, 27 July 2015. अपर्णा अनेकवर्णा की कहानी 'गंध'. अपर्णा अनेकवर्णा. सपनों की गंध नहीं होती. या होती हो शायद. पहली बार. तो क्या बाघ का सपना देखा था. चलो तुम्हें सबसे मिलवाता हूँ. क्या उसके जाने की इतनी ख़ुशी थी उन्हें. ये क्या बात हुयी भला! एक दूसरे के फिगर. बच्चे. स्मार्ट शौपिंग सेंस. लोकल भाषा. बेखयाली में सच बोल गया. उसका मन पार्टी मे...गृहस्वामिनी ने उसे उब...पूरी शाम. आपकी मिसिस ...धीरे...
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February 2015 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Wednesday, 18 February 2015. मनोहर बिल्लौरे की तीन कवितायेँ. 3 कवितायेँ : मनोहर बिल्लौरे. सिक्के. टकसालें. उन्हें. नहीं घड़तीं. पडे़ रहते. कौनों-अंतरों. अकेले-दुकेले. उपेक्षित. बेगाने. उन्हें खूब. ही उन पर. बढ़ जाती. आँखों की रोशनी. कुछ और होने लगती थी. हथेलियों में खुजली गुदगुदी. हाथ लगते ही कुदकने लगते थे. खुशी से हमारे पैर. टनका-खनकाकर खरापन. पहचानने-परखने का समय था वह. रखा जाता है इन...किफायत क&...इनका...
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May 2015 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Tuesday, 12 May 2015. बीते दिनों पढ़ी गयीं कुछ पसंदीदा कवितायेँ – राहुल देव. अस्ति-नास्ति संवाद / रणजीत. किस अभागे को अरे इस धूप में दफ़्ना रहे हो. और इसकी मौत पर क्यों ख़ुशी से चिल्ला रहे हो. कौन है ऐसा बिचारा, दो बता? मर गया ईश्वर, नहीं तुमको पता? मर गया ईश्वर? ईश्वर कि जिसने स्वयं अपने हाथ से धरती बसाई. चाँद औ’ सूरज बनाए. औ’ उनकी लम्बी छाँहों में. कंथे से मैदान बिछाए -. क्या वही अब मर गया? पिता मर गय...सौ ...
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सुशांत सुप्रिय : 5 कवितायेँ | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 9 August 2015. सुशांत सुप्रिय : 5 कवितायेँ. हे राम! उनके चेहरों पर लिखी थी. उनकी आँखों में लिखे थे. उनके मन में लिखा था. उनकी काया पर दिखता था. कुप्रभाव. मदारी बोला -. यह सूर्योदय है. हालाँकि वहाँ कोई सवेरा नहीं था. मदारी बोला -. यह भरी दुपहरी है. हालाँकि वहाँ घुप्प अँधेरा भरा था. सम्मोहन मुदित भीड़ के साथ. यही करता है. ऐसी हालत में. हर नृशंस हत्या-कांड. भीड़ के लिए. ईश्वर से. ईश्वर से. की गंध. की ग&...
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तीन कवि : तीन कविताएं - 4 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 24 August 2014. तीन कवि : तीन कविताएं - 4. युवा कवयित्री अंजू शर्मा. एवं एकदम नया और युवतर स्वर शुचिता श्रीवास्तव. की कवितायेँ :. उसके मन में उतरना. सुमन केशरी. उसके मन में उतरना. मानो कुएँ में उतरना था. सीलन भरी. अंधेरी सुरंग में. उसने बड़े निर्विकार ढंग से. अंग से वस्त्र हटा. सलाखों के दाग दिखाए. वैसे ही जैसे कोई. किसी अजनान चित्रकार के. चित्र दिखाता है. बयान करते हुए-. स्तब्ध देख. सीलन भरे. कंध...
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तीन कवि : तीन कवितायेँ - 3 | स्पर्श
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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Friday, 15 August 2014. तीन कवि : तीन कवितायेँ - 3. आलोक धन्वा. युवा कवि. राकेश रोहित. और एकदम नया युवतर स्वर. करीम पठान. की नवीनतम कवितायेँ :. गोली दागो पोस्टर / आलोक धन्वा. यह उन्नीस सौ बहत्तर की बीस अप्रैल है या. किसी पेशेवर हत्यारे का दायाँ हाथ या किसी जासूस. का चमडे का दस्ताना या किसी हमलावर की दूरबीन पर. टिका हुआ धब्बा है. जहाँ मैं लिख रहा हूँ. यह बहुत पुरानी जगह है. एक गेंद की तरह. क्या मै...एक घास भर...
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