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बुद्धू-बक्सा

बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 3 जून 2015. मोनिका कुमार की नई कविताएं. मोनिका कुमार. बुद्धू-बक्सा पर मोनिका कुमार का स्वागत. हम उनके और 'पाखी' पत्रिका के प्रति आभारी.]. खाली पीरियड, इतवार को दिखाता.पहिये को स्लो करता शनिवार. इधर तुरपाई उधड़ी नहीं. उधर साड़ी की चुन्नटें पांव में फंसी नहीं. किताबों के वजन से बस्ता फटा नहीं. यह मिल जाती है. या कहिए बस निकल आती है कहीं से भी. मैं ऐसे छोटे दिखने वाले. मैं नहीं कह सकती. तुरपाई उधड़ने. और बस्ते फटने. दवा की...अस्...

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 3 जून 2015. मोनिका कुमार की नई कविताएं. मोनिका कुमार. बुद्धू-बक्सा पर मोनिका कुमार का स्वागत. हम उनके और 'पाखी' पत्रिका के प्रति आभारी.]. खाली पीरियड, इतवार को दिखाता.पहिये को स्लो करता शनिवार. इधर तुरपाई उधड़ी नहीं. उधर साड़ी की चुन्नटें पांव में फंसी नहीं. किताबों के वजन से बस्ता फटा नहीं. यह मिल जाती है. या कहिए बस निकल आती है कहीं से भी. मैं ऐसे छोटे दिखने वाले. मैं नहीं कह सकती. तुरपाई उधड़ने. और बस्ते फटने. दवा की...अस्...
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बुद्धू-बक्सा | sidmoh.blogspot.com Reviews

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 3 जून 2015. मोनिका कुमार की नई कविताएं. मोनिका कुमार. बुद्धू-बक्सा पर मोनिका कुमार का स्वागत. हम उनके और 'पाखी' पत्रिका के प्रति आभारी.]. खाली पीरियड, इतवार को दिखाता.पहिये को स्लो करता शनिवार. इधर तुरपाई उधड़ी नहीं. उधर साड़ी की चुन्नटें पांव में फंसी नहीं. किताबों के वजन से बस्ता फटा नहीं. यह मिल जाती है. या कहिए बस निकल आती है कहीं से भी. मैं ऐसे छोटे दिखने वाले. मैं नहीं कह सकती. तुरपाई उधड़ने. और बस्ते फटने. दवा की...अस्...

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बुद्धू-बक्सा: January 2015

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 28 जनवरी 2015. अवकाश की आकांक्षा में जटिलताएं - अविनाश मिश्र. का बुद्धू-बक्सा. आभारी.]. Caricaturists - Foot Soldiers of Democracy. उसे सुंदर नहीं लगते. लेकिन समापन प्रत्येक समारोह की नियति है। उसने कहा. वांग कार वाय बेशक मास्टर हैं. दि ग्रैंडमास्टर. वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म. समारोह (इफ्फी). में मिला। वह केशव-सा लगा. एक साहित्यिक की डायरी. से निकलकर सीधे. फिल्में गुजारीं&#2404...पहला दिन. दूसरा दिन. अंतरराष&#238...फिल...

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बुद्धू-बक्सा: मोनिका कुमार की नई कविताएं

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 3 जून 2015. मोनिका कुमार की नई कविताएं. मोनिका कुमार. बुद्धू-बक्सा पर मोनिका कुमार का स्वागत. हम उनके और 'पाखी' पत्रिका के प्रति आभारी.]. खाली पीरियड, इतवार को दिखाता.पहिये को स्लो करता शनिवार. इधर तुरपाई उधड़ी नहीं. उधर साड़ी की चुन्नटें पांव में फंसी नहीं. किताबों के वजन से बस्ता फटा नहीं. यह मिल जाती है. या कहिए बस निकल आती है कहीं से भी. मैं ऐसे छोटे दिखने वाले. मैं नहीं कह सकती. तुरपाई उधड़ने. और बस्ते फटने. दवा की...अस्...

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बुद्धू-बक्सा: November 2014

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. शुक्रवार, 28 नवंबर 2014. पंकज चतुर्वेदी की कविताएं. पंकज चतुर्वेदी. ऐसी ही मार्मिक कहानियाँ और ऐसी ही व्यंग्य-वक्रता पंकज चतुर्वेदी की कविता को विलक्षण बनाती हैं.]. व्यंग्य का मर्म, मंगलेश डबराल. कला का समय. रामलीला में धनुष-यज्ञ के दिन. राम का अभिनय. राजकुमार का अभिनय है. मुकुट और राजसी वस्त्र पहने. गाँव का नवयुवक नरेश. विराजमान था रंगमंच पर. सीता से विवाह होते-होते. सुबह की धूप निकल आयी थी. राम था. और उनका यह कहा. बहुत है. पा&#23...

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बुद्धू-बक्सा: June 2014

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. सोमवार, 30 जून 2014. हिन्दी कहानी के युवा स्वर पर अविनाश मिश्र. इस कड़ी में अविनाश मिश्र. अविनाश का आभारी. पेंटिंग रॉथ्को की.]. भविष्य का आश्वस्तीकरण. अविनाश मिश्र. भिन्न होने के लिए भिन्न. रविंद्र आरोही. व्यापक संवेदन और दृष्टिसंपन्नता. 8217;, ‘अनभ्यास का नियम’ और ‘एगही सजनवा बिन ए राम! मनचाही शुरुआत और मनचाहे अंत. दुर्गेश सिंह. रोजमर्रा का समस्याग्रस्त समाज. पल्लवी प्रसाद. शिवेंद्र. 0 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. 8216;बधाई’. उनके क&...

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बुद्धू-बक्सा: लेखन अब सिर्फ एक कॅरियर है : योगेंद्र आहूजा से बातचीत

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 6 मई 2015. लेखन अब सिर्फ एक कॅरियर है : योगेंद्र आहूजा से बातचीत. इस साहित्य-समय के एक अप्रतिम हस्ताक्षर हैं, अलग से उनका कोई परिचय यहां दरकार नहीं है। ऐसा क्यों है, यह उनके जवाबों से जाना जा सकता है. अविनाश मिश्र. योगेंद्र आहूजा से अविनाश मिश्र की बातचीत. पहले तो यह कि क्या तुम साक्षात्कार लेना चाहते हो? 8217; फिल्म का गाना ‘ ए दिले नादां. 8217; सुना है? उसमें ‘ यह जमीं चुप है. 8217;, ‘ परिवार. 8217;, ‘ दीप जले. 8217;। य&#...

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June 2015 | स्पर्श

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Tuesday, 30 June 2015. कथाकार शिवमूर्ति से सुशील सिद्धार्थ की बातचीत. स्त्री. जुड़ा. शिवमूर्ति. सिद्धार्थ. संस्मरणात्मक. शुरूआती. जि़न्दगी. है।अभाव. असुरक्षा. स्थानीय. सामन्ती. स्वाभाविक. है। .फिर. उबरें।. उद्‌देश्य. कठिनाइयों. जीवनगुजारने. लोगों. इन्हीं. परिस्थितियों. नहींआती. हैं।. परिस्थितियों. मैंने. दर्जीगीरी. तरीकाअपनाया. लोगों. होंगे।. परिस्थितियों. सेतुलना. जिन्दगी. मैंने. व्यक्तिगत. क्यों. स्त&#2381...

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October 2014 | स्पर्श

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 26 October 2014. तीन कवि : तीन कवितायेँ - 10. पर तीन कवि : तीन कविताओं की श्रृंखला के 10वें अंक में. इस हफ्ते प्रस्तुत हैं. अनामिका. संध्या सिंह. शैलजा पाठक. की कवितायेँ :. अयाचित /. अनामिका. मेरे भंडार में. एक बोरा. पिछला जनम. सात कार्टन. रख गई थी मेरी माँ।. चूहे बहुत चटोरे थे. घुनों को पता ही नहीं था. कुनबा सीमित रखने का नुस्खा. सबों ने मिल-बाँटकर. और अतीत आधा. बाक़ी जो बचा. मसलन कि आग. कान स&#2375...

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December 2014 | स्पर्श

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 28 December 2014. मधुकर अष्ठाना का आलेख - लोकप्रिय छन्द दोहा. लोकप्रिय छन्द दोहा. मधुकर अष्ठाना. 8220;कागा नैन निकासि कै, पिया पास लै जाय. पहिले दरस दिखाइ कै, पीछे लीजो खाय. कागा सब तन खाइयो, चुनि-चुनि खइयो मास. दो नैना मत खाइयो, पीउ दरस की आस. यह तन जारौ छार कै, कहौं कि पवन उड़ाव. पुनि तेहि मारग उड़ि परै, कंत धरै जहँ पाँव”. 3 3 2 3 2 = 13 मात्रा. 4 4 3 2 = 13 मात्रा. 3 3 2 3 = 11 मात्रा. भ्रामर ...8220;कच&#...

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कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय की 8 कवितायेँ | स्पर्श

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 26 October 2014. कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय की 8 कवितायेँ. 8217; मेरे लिए कविता लिखना सांस लेने जैसा है. वसुंधरा पाण्डेय. हो जाए पत्थर. तो कोई क्या करे. मैंने पूछा. 8216; प्यार में. पिघल जाते हैं. पत्थर भी. उसने टोका. उसे मालूम ना था. मिट्टी. हवा पानी में खिलते हैं. लावे में उबल. आम्रपाली. वह प्राणों सी प्रिय. उमगता यौवन. उफनती इच्छाएं लिए. बड़ी हो रही थी. हो सकती हैं क्या. इतनी गंध. तभी तो. तेरा ...अब त&#237...

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July 2015 | स्पर्श

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Monday, 27 July 2015. अपर्णा अनेकवर्णा की कहानी 'गंध'. अपर्णा अनेकवर्णा. सपनों की गंध नहीं होती. या होती हो शायद. पहली बार. तो क्या बाघ का सपना देखा था. चलो तुम्हें सबसे मिलवाता हूँ. क्या उसके जाने की इतनी ख़ुशी थी उन्हें. ये क्या बात हुयी भला! एक दूसरे के फिगर. बच्चे. स्मार्ट शौपिंग सेंस. लोकल भाषा. बेखयाली में सच बोल गया. उसका मन पार्टी म&#2375...गृहस्वामिनी ने उसे उब&#23...पूरी शाम. आपकी मिसिस ...धीर&#2375...

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Wednesday, 18 February 2015. मनोहर बिल्लौरे की तीन कवितायेँ. 3 कवितायेँ : मनोहर बिल्लौरे. सिक्के. टकसालें. उन्हें. नहीं घड़तीं. पडे़ रहते. कौनों-अंतरों. अकेले-दुकेले. उपेक्षित. बेगाने. उन्हें खूब. ही उन पर. बढ़ जाती. आँखों की रोशनी. कुछ और होने लगती थी. हथेलियों में खुजली गुदगुदी. हाथ लगते ही कुदकने लगते थे. खुशी से हमारे पैर. टनका-खनकाकर खरापन. पहचानने-परखने का समय था वह. रखा जाता है इन&#2...किफायत क&...इनक&#2366...

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Tuesday, 12 May 2015. बीते दिनों पढ़ी गयीं कुछ पसंदीदा कवितायेँ – राहुल देव. अस्ति-नास्ति संवाद / रणजीत. किस अभागे को अरे इस धूप में दफ़्ना रहे हो. और इसकी मौत पर क्यों ख़ुशी से चिल्ला रहे हो. कौन है ऐसा बिचारा, दो बता? मर गया ईश्वर, नहीं तुमको पता? मर गया ईश्वर? ईश्वर कि जिसने स्वयं अपने हाथ से धरती बसाई. चाँद औ’ सूरज बनाए. औ’ उनकी लम्बी छाँहों में. कंथे से मैदान बिछाए -. क्या वही अब मर गया? पिता मर गय...सौ ...

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सुशांत सुप्रिय : 5 कवितायेँ | स्पर्श

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औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ! कामायनी. Sunday, 9 August 2015. सुशांत सुप्रिय : 5 कवितायेँ. हे राम! उनके चेहरों पर लिखी थी. उनकी आँखों में लिखे थे. उनके मन में लिखा था. उनकी काया पर दिखता था. कुप्रभाव. मदारी बोला -. यह सूर्योदय है. हालाँकि वहाँ कोई सवेरा नहीं था. मदारी बोला -. यह भरी दुपहरी है. हालाँकि वहाँ घुप्प अँधेरा भरा था. सम्मोहन मुदित भीड़ के साथ. यही करता है. ऐसी हालत में. हर नृशंस हत्या-कांड. भीड़ के लिए. ईश्वर से. ईश्वर से. की गंध. की ग&...

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तीन कवि : तीन कविताएं - 4 | स्पर्श

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तीन कवि : तीन कवितायेँ - 3 | स्पर्श

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Tuesday, March 01, 2005. Growing up on The Shankill Road, Belfast. The Shankill is a state of mind as well as a district of Belfast. For most people the Shankill is a tough, hard working and mainly loyalist community which came into being as a result of the growth of Industrial Belfast in the 19th Century, but the Shankill’s history goes much further back than that. Summer with us is but a brighter spring, as our winter only prolongs the. So our year has but two moods, a gay one and a sad one. Quiet deso...

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बुद्धू-बक्सा. फ़िल्म, संगीत और साहित्य पर मनमाने विचारों का पिटारा. बुधवार, 3 जून 2015. मोनिका कुमार की नई कविताएं. मोनिका कुमार. बुद्धू-बक्सा पर मोनिका कुमार का स्वागत. हम उनके और 'पाखी' पत्रिका के प्रति आभारी.]. खाली पीरियड, इतवार को दिखाता.पहिये को स्लो करता शनिवार. इधर तुरपाई उधड़ी नहीं. उधर साड़ी की चुन्नटें पांव में फंसी नहीं. किताबों के वजन से बस्ता फटा नहीं. यह मिल जाती है. या कहिए बस निकल आती है कहीं से भी. मैं ऐसे छोटे दिखने वाले. मैं नहीं कह सकती. तुरपाई उधड़ने. और बस्ते फटने. दवा की...अस्...

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