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सुबोध सृजन

सुबोध सृजन. कविता की अंतरजाल पत्रिका. शनिवार, 15 अगस्त 2015. त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएं. अवधेश मिश्र की कलाकृति. माँ के अनगिन रूप (गीत). जग में परिलक्षित होते हैं. माँ के अनगिन रूप।. माँ जीवन की भोर सुहानी. माँ जाड़े की धूप ।।. लाड़ प्यार से माँ. बच्चों की झोली भर देती ,. झाड़-फूंक करके. सारी बाधाएं हर लेती ,. पा सानिध्य प्यास मिट जाती. माँ वह सुख का कूप।. माँ जीवन का मधुर गीत,. माँ गंगा सी निर्मल,. आशाओं के द्वार खोलता. माता का आँचल,. समय समय पर ढल जाती माँ. पांच हाइकु. कोसते रहे. सम्मान/प&...विक...

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सुबोध सृजन. कविता की अंतरजाल पत्रिका. शनिवार, 15 अगस्त 2015. त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएं. अवधेश मिश्र की कलाकृति. माँ के अनगिन रूप (गीत). जग में परिलक्षित होते हैं. माँ के अनगिन रूप।. माँ जीवन की भोर सुहानी. माँ जाड़े की धूप ।।. लाड़ प्यार से माँ. बच्चों की झोली भर देती ,. झाड़-फूंक करके. सारी बाधाएं हर लेती ,. पा सानिध्य प्यास मिट जाती. माँ वह सुख का कूप।. माँ जीवन का मधुर गीत,. माँ गंगा सी निर्मल,. आशाओं के द्वार खोलता. माता का आँचल,. समय समय पर ढल जाती माँ. पांच हाइकु. कोसते रहे. सम्मान/प&...विक...
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KEYWORDS
1 जीवन भर
2 पांच
3 ई मेल trilokthakurela@gmail com
4 subodh srivastava
5 ईमेल ashutoshdwivedi1982@gmail com
6 लेबल ग़ज़ल
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जीवन भर,पांच,ई मेल trilokthakurela@gmail com,subodh srivastava,ईमेल ashutoshdwivedi1982@gmail com,लेबल ग़ज़ल,गहराई पर,अचानक,दर्द,उलाहना,अंधापन,दर्द सहकर,कई कई बार,परन्तु,कसम खाई,अकेले,अपना,साधन समझ,मगर आज,असमानता,nutanganj,समर्थक,google followers,ईमेल,लेबल
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सुबोध सृजन. कविता की अंतरजाल पत्रिका. शनिवार, 15 अगस्त 2015. त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएं. अवधेश मिश्र की कलाकृति. माँ के अनगिन रूप (गीत). जग में परिलक्षित होते हैं. माँ के अनगिन रूप।. माँ जीवन की भोर सुहानी. माँ जाड़े की धूप ।।. लाड़ प्यार से माँ. बच्चों की झोली भर देती ,. झाड़-फूंक करके. सारी बाधाएं हर लेती ,. पा सानिध्य प्यास मिट जाती. माँ वह सुख का कूप।. माँ जीवन का मधुर गीत,. माँ गंगा सी निर्मल,. आशाओं के द्वार खोलता. माता का आँचल,. समय समय पर ढल जाती माँ. पांच हाइकु. कोसते रहे. सम्मान/प&...विक...

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सुबोध सृजन: February 2015

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सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015. शैलेन्द्र शर्मा के गीत. विनोद शाही की कलाकृति. सुनो कहानी. प्रेक्षा रानी सुनो कहानी. आने वाले कल की. होगी हर तस्वीर भयावाह. बस्ती की जंगल की. वन सिमटेंगे उपवन में. उपवन कल क्यारी में. मिला करेगी प्राणवायु. कालाबाज़ारी में. अज़ायबघरों में दिखा करेगी. लकडी संदल की. सेतु और तटबंध रहेगे. नदी नही होगी. तन-मन से सब रोगीहोंगे. भोगी क्या जोगी. खून से बढकर बेशक ज्यादा. कीमत होगी जल की. धड तो होगा मानुस का. परखनली-शिशु का. खांस&#237...रात...

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सुबोध सृजन: June 2014

http://www.subodh-srivastava.blogspot.com/2014_06_01_archive.html

सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. सोमवार, 30 जून 2014. आशा पाण्डे ओझा की कविताएं. राजनीति. जिस देश की राजनीति. जनता की सिसकियों की थाप. अनसुनी कर. भोग-विलास संग. नाजायज सबंध बना. रंगरेलियाँ मना रही हो. जिस देश की राजनीति. उस सत्ता की कोख से. नाजायज अंधेरों का जन्मना. कैसे रोक सकता है भला कोई. विधवा के जीवन सा ठहर जाता है. उस देश का विकास. सम्पूर्ण पोषण के अभाव में. विकृत अपाहिज हो जाते हैं संस्कार. आंतक की औलाद. घूमने लगती है गली-गली. इस तरह क्षण-क्षण खंड-खंड. वो देश. माने भ&#23...उसक&#2375...

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सुबोध सृजन: January 2015

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सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. बुधवार, 28 जनवरी 2015. आशा पाण्डेय ओझा की कविताएं. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. आखिर क्यों उफन जाती हैं नदियां. आखिर क्यों बिफ़र जाती है औरत. रोकी जायेगी जब क्षमता उनकी. उजाड़ कर प्राक्रतिक प्रेमवृक्ष. बोये जायेंगे वासनाओं के जंगल. काट कर किनारे विश्वास पहाड़ के. खुरच-खुरच निकाली जायेगी. मिट्टी जब नर्म अहसासों की. पाटे जायेंगे कोमल भावों के जलस्रोत. रोकेंगे पग -पग पर. बेवजह बन्धनों के बाँध. जान जायेगी जब वो. तमाम साजिशें. मेरी देह की. कोई, कोई. अपनत्व ...

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सुबोध सृजन: December 2014

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सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. मंगलवार, 30 दिसंबर 2014. दस्तक: दो कविताएं - नरेश अग्रवाल. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. कविता  . कविता का  सृजन. भावनाओं का उदद्वेलन. विचारों का सम्पादन. शब्दों का रसवादन. कहीं बलवती भावनाएं. कहीं विचारों की अठखेलियाँ. कहीं त्वरित होती संवेदनाएं. कहीं शब्दों की पहेलियाँ. कहीं आत्मा की अभिव्यक्ति. कहीं मन की विरक्ति. कहीं चित मे उतरता संतोष. कहीं प्यार या आसक्ति. कहीं व्याकुल मन की वेदना. कहीं निरंतर बहती धार. गिरती पत्थर पर छन छन. या फटे ट&#23...उन प&#230...

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सुबोध सृजन: April 2014

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सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014. आधुनिक साहित्य' पत्रिका के अप्रैल-जून-2014 अंक में सुबोध श्रीवास्तव की कविताएं. आधुनिक साहित्य' पत्रिका के अप्रैल-जून-2014 अंक में सुबोध श्रीवास्तव की कविताए. Http:/ hellohindi.com/data/documents/Aadhunik-Sahitya-April-June-2014.pdf. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. विनोद शाह&#23...चित&#2381...

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काव्ययुग: ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 17 अगस्त 2015. ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. रो रही है बाँझ धरती, मेह बरसो रे. प्रात ऊसर, साँझ परती, मेह बरसो रे. सूर्य की सारी बही में धूपिया अक्षर. अब दुपहरी है अखरती, मेह बरसो रे. नागफनियाँ हैं सिपाही, खींच लें आँचल. लाजवंती आज डरती, मेह बरसो रे. राजधानी भी दिखाती रेत का दर्पण. हिरनिया ले प्यास मरती, मेह बरसो रे. रावणों की वाटिका में भूमिजा सीता. शीश अपने आग धरती, मेह बरसो रे. आपने बंजर बनाई जो धरा. सँभल परीक्षित! श्वेत ट&#2...ये ...

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काव्ययुग: पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 10 अगस्त 2015. पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जीने की आपाधापी में. कितने कमल खिले जीवन में. जिनको हमने नहीं चुना. जीने की. आपाधापी में भूला हमने. ऊँचा ही ऊँचा. तो हरदम झूला हमने. तालों की. जीवन की. सच्चाई पर. पत्ते जो भी लिखे गए थे,. उनको हमने नहीं गुना. मौसम आए मौसम बीते. हम नहिं चेते. अपने छूटे देस बिराना. सपने रीते. सपनों की. आवाजों में. रेलों और. जहाज़ों में. अपना मन ही नहीं सुना. कोयलिया बोली. लगता है. फँसता है. लगता है. रंग&#...

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काव्ययुग: July 2015

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 27 जुलाई 2015. गोपालदास 'नीरज' के दोहे. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जग का रंग अनूप. वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य. किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।. जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान. उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।. जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र. माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।. दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ. उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।. बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।. गोपालदास "नीरज". 1 टिप्पणी:. तुम्ह&#...तुम...

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काव्ययुग: पुस्तक चर्चा: कवि महेंद्रभटनागर का चाँद-खगेंद्र ठाकुर

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 3 अगस्त 2015. पुस्तक चर्चा: कवि महेंद्रभटनागर का चाँद-खगेंद्र ठाकुर. कुछ और जीना चाहता हूँ. 8216;चाँद, मेरे प्यार! पहली रचना है ‘राग-संवेदन’, जिसमें कवि एक सामान्य सत्य की तरह जीवन का यह सत्य व्यक्त करता है —. सब भूल जाते हैं. केवल / याद रहते हैं. आत्मीयता से सिक्त. कुछ क्षण राग के! आज जब देखा तुम्हें. कुछ और जीना चाहता हूँ! विष और पीना चाहता हूँ! कुछ और जीना चाहता हूँ! याद आता है. तुम्हारा रूठना! शेष जीवन. जी सकूँ सुख से. गौरैया हो. उड़ जाओगी! इस प्रसंग ...इसे...

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काव्ययुग: गोपालदास 'नीरज' के दोहे

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 27 जुलाई 2015. गोपालदास 'नीरज' के दोहे. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जग का रंग अनूप. वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य. किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।. जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान. उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।. जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र. माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।. दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ. उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।. बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।. गोपालदास "नीरज". लेबल: दोहे. इस प्रस&#2381...

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काव्ययुग: श्रीकांत वर्मा की कविताएँ

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 3 अगस्त 2015. श्रीकांत वर्मा की कविताएँ. विनोद शाही की कलाकृति. हस्तिनापुर का रिवाज. मै फिर कहता हूं. धर्म नहीं रहेगा तो कुछ नहीं रहेगा. मगर मेरी कोई नहीं सुनता. हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं. तब सुनो या मत सुनो. हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार. हस्तिनापुर में/ तुम्हारा. एक शत्रु पल रहा है विचार. और याद रक्खो. आजकल महामारी की तरह फैल जाता है. प्रजापति. इस भयानक समय. में कैसे लिखूं. और कैसे नहीं लिखूं? घृणा नहीं प्रेम करो-. मुकुटहीन. इस नग्न शरीर पर. ३ -सरज&#2370...

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काव्ययुग: डा. कुंअर बेचैन की ग़ज़लें

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 20 जुलाई 2015. डा. कुंअर बेचैन की ग़ज़लें. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो,. बस एक तुम पे नज़र है हमारे साथ रहो।. हम आज ऐसे किसी ज़िंदगी के मोड़ पे हैं,. न कोई राह न घर है हमारे साथ रहो।. तुम्हें ही छाँव समझकर हम आ गए हैं इधर,. तुम्हारी गोद में सर है हमारे साथ रहो।. ये नाव दिल की अभी डूब ही न जाए कहीं. हरेक सांस भंवर है हमारे साथ रहो।. ज़माना जिसको मुहब्बत का नाम देता रहा,. क्यों मुझे यार बनाने प&...मैं किसी फूल क&...मुझको अंग...नन्ह&#237...

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काव्ययुग: August 2015

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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 31 अगस्त 2015. दिविक रमेश की कविताएं. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. गुलाम देश का मजदूर गीत. खुली आँखों में आकाश से). एक और दिन बीता. बीत क्या. जीता है पहाड़-सा. सो जाएँगे. टूटी देह की. यह फूटी बीन-सी. कोई और बजाए. तो बजा ले. हम क्या गाएँ? सो जाएँगे. कल फिर चढ़ना है. कल फिर जीना है. जाने कैसा हो पहाड़? फिर उतरेंगे. बस यूँ ही. अपने तो. दिन बीतेंगे।. सच में तो. ज़िन्दगी भर हम. अपना या औरों का. पहाड़ ही ढोते हैं।. रहते हैं।. सुना है. सुना है. कुछ तो. कमाना।. हम तो बस. भ&#237...

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Wednesday, May 6, 2015. Nation Building Strategy for Bharat. भारत वासियों के आचरण पर ऋग्वेद का उपदेश ;. Nation Building RV5.27. राजा के आचरण, गौ और शिक्षा का राष्ट्र निर्माण मे महत्व. 6 त्रैवृष्ण्याष्ययरुण:,पौरुकुत्सस्त्रसदस्यु:, भारतोश्वमेधश्च राजान: ।. अग्नि:, 6 इन्द्राग्नी। त्रिष्टुप्, 4-6 अनुष्टुप्।. 2 त्र्यरुण:= वह तीन जो मन शरीर व आत्मा के सुखों को प्राप्त कराते हैं. दस्युओं को दूर करने वाला. 4 राजान भारतो अश्वमेध: ;. COWS’ role in Vision for Nation. Current and Future planning should be based on e...

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I'm Subodh Manikoth, an entrepreneur and a web developer. When I decided to start a personal website, it was with a purpose in mind; not merely to spout a bunch of loosely woven words with no coherent meaning. The purpose of this website is to give me a place to log things I don't want to forget, and to share these. Google Nexus 7 ‘best-selling tablet’. Posted by Subodh Manikoth. London, Oct 16. Microsoft unveils Xbox Music. Posted by Subodh Manikoth. San Francisco, Oct 16. Posted by Subodh Manikoth.