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काव्ययुग: ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 17 अगस्त 2015. ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. रो रही है बाँझ धरती, मेह बरसो रे. प्रात ऊसर, साँझ परती, मेह बरसो रे. सूर्य की सारी बही में धूपिया अक्षर. अब दुपहरी है अखरती, मेह बरसो रे. नागफनियाँ हैं सिपाही, खींच लें आँचल. लाजवंती आज डरती, मेह बरसो रे. राजधानी भी दिखाती रेत का दर्पण. हिरनिया ले प्यास मरती, मेह बरसो रे. रावणों की वाटिका में भूमिजा सीता. शीश अपने आग धरती, मेह बरसो रे. आपने बंजर बनाई जो धरा. सँभल परीक्षित! श्वेत ट...ये ...
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काव्ययुग: पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 10 अगस्त 2015. पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जीने की आपाधापी में. कितने कमल खिले जीवन में. जिनको हमने नहीं चुना. जीने की. आपाधापी में भूला हमने. ऊँचा ही ऊँचा. तो हरदम झूला हमने. तालों की. जीवन की. सच्चाई पर. पत्ते जो भी लिखे गए थे,. उनको हमने नहीं गुना. मौसम आए मौसम बीते. हम नहिं चेते. अपने छूटे देस बिराना. सपने रीते. सपनों की. आवाजों में. रेलों और. जहाज़ों में. अपना मन ही नहीं सुना. कोयलिया बोली. लगता है. फँसता है. लगता है. रंग&#...
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काव्ययुग: July 2015
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 27 जुलाई 2015. गोपालदास 'नीरज' के दोहे. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जग का रंग अनूप. वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य. किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।. जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान. उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।. जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र. माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।. दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ. उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।. बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।. गोपालदास "नीरज". 1 टिप्पणी:. तुम्ह&#...तुम...
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काव्ययुग: पुस्तक चर्चा: कवि महेंद्रभटनागर का चाँद-खगेंद्र ठाकुर
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 3 अगस्त 2015. पुस्तक चर्चा: कवि महेंद्रभटनागर का चाँद-खगेंद्र ठाकुर. कुछ और जीना चाहता हूँ. 8216;चाँद, मेरे प्यार! पहली रचना है ‘राग-संवेदन’, जिसमें कवि एक सामान्य सत्य की तरह जीवन का यह सत्य व्यक्त करता है —. सब भूल जाते हैं. केवल / याद रहते हैं. आत्मीयता से सिक्त. कुछ क्षण राग के! आज जब देखा तुम्हें. कुछ और जीना चाहता हूँ! विष और पीना चाहता हूँ! कुछ और जीना चाहता हूँ! याद आता है. तुम्हारा रूठना! शेष जीवन. जी सकूँ सुख से. गौरैया हो. उड़ जाओगी! इस प्रसंग ...इसे...
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काव्ययुग: गोपालदास 'नीरज' के दोहे
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 27 जुलाई 2015. गोपालदास 'नीरज' के दोहे. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जग का रंग अनूप. वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य. किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।. जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान. उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।. जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र. माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।. दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ. उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।. बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।. गोपालदास "नीरज". लेबल: दोहे. इस प्रस्...
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काव्ययुग: श्रीकांत वर्मा की कविताएँ
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 3 अगस्त 2015. श्रीकांत वर्मा की कविताएँ. विनोद शाही की कलाकृति. हस्तिनापुर का रिवाज. मै फिर कहता हूं. धर्म नहीं रहेगा तो कुछ नहीं रहेगा. मगर मेरी कोई नहीं सुनता. हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं. तब सुनो या मत सुनो. हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार. हस्तिनापुर में/ तुम्हारा. एक शत्रु पल रहा है विचार. और याद रक्खो. आजकल महामारी की तरह फैल जाता है. प्रजापति. इस भयानक समय. में कैसे लिखूं. और कैसे नहीं लिखूं? घृणा नहीं प्रेम करो-. मुकुटहीन. इस नग्न शरीर पर. ३ -सरजू...
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काव्ययुग: डा. कुंअर बेचैन की ग़ज़लें
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 20 जुलाई 2015. डा. कुंअर बेचैन की ग़ज़लें. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो,. बस एक तुम पे नज़र है हमारे साथ रहो।. हम आज ऐसे किसी ज़िंदगी के मोड़ पे हैं,. न कोई राह न घर है हमारे साथ रहो।. तुम्हें ही छाँव समझकर हम आ गए हैं इधर,. तुम्हारी गोद में सर है हमारे साथ रहो।. ये नाव दिल की अभी डूब ही न जाए कहीं. हरेक सांस भंवर है हमारे साथ रहो।. ज़माना जिसको मुहब्बत का नाम देता रहा,. क्यों मुझे यार बनाने प&...मैं किसी फूल क&...मुझको अंग...नन्हí...
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काव्ययुग: August 2015
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काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 31 अगस्त 2015. दिविक रमेश की कविताएं. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. गुलाम देश का मजदूर गीत. खुली आँखों में आकाश से). एक और दिन बीता. बीत क्या. जीता है पहाड़-सा. सो जाएँगे. टूटी देह की. यह फूटी बीन-सी. कोई और बजाए. तो बजा ले. हम क्या गाएँ? सो जाएँगे. कल फिर चढ़ना है. कल फिर जीना है. जाने कैसा हो पहाड़? फिर उतरेंगे. बस यूँ ही. अपने तो. दिन बीतेंगे।. सच में तो. ज़िन्दगी भर हम. अपना या औरों का. पहाड़ ही ढोते हैं।. रहते हैं।. सुना है. सुना है. कुछ तो. कमाना।. हम तो बस. भí...