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साहित्य हिन्दुस्तानी: 20 April 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. मंगलवार, 20 अप्रैल 2010. गज़ल - अरविन्द 'असर'. फिल्मी धुन पर भजन सोचिए. कैसे लागे लगन सोचिए. गंगाजल है प्रदूषित बहुत. कैसे हो आचमन सोचिए. काँटों की तो है फितरत मगर. फूल से भी चुभन सोचिए. पाँव उठते नहीं बोझ से. आप मेरी थकन सोचिए. और जितने थे सब बच गए. बस जली है दुल्हन सोचिए. २६८/४६/६६-डी, खजुहा,. तकिया चाँद अली शाह,. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. 16 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). Looks like - or.
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 05 February 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010. रमेश नारायण सक्सेना 'गुलशन ' बरेलवी. हद्दे-निगाह धूप सी बिखरी हुई लगी. तेरे बगैर एक सज़ा ज़िन्दगी लगी. सोचा था मैं ने हंस के गुजर जाऊँगा मगर. चलने पे राह जीस्त की काँटों भरी लगी. दुनिया हसीं है, इस की हर इक शय हसीं मगर. दिल को भली लगी तो तेरी सादगी लगी. उसका वजूद हो गया महसूस जिस घड़ी. घर की हर एक चीज़ महकती हुई लगी. कहते हैं लोग बेवफा उसको मगर मुझे. कदमों तले जमीन सरकती हुई लगी. 9 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or. म...
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 13 August 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. शुक्रवार, 13 अगस्त 2010. मैं ज़र्द पत्तों से. ज़िन्दगी का सबक़ न सीखूं तो क्या करूं अब? ये मेरी फ़िक्री सलाहियत का इक इम्तेहां नहीं तो ये और क्या है? ये ज़र्द पत्ते जो रास्ते में ज़मीं के तन पर पड़े हुए हैं,. ये ज़र्द पत्ते,. कभी शजर के जवां बदन पर सजे हुए थे, टंके हुए थे,. जवां उमंगों से, हसरतों से भरे हुए थे,. हवा के बहते हुए समन्दर में खेलते थे,. शुआ-ए-उम्मीद फड़क के इनकी. ये ज़र्द पत्ते. संजय मिश्रा 'शौक़'. 16 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or.
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 12 December 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. रविवार, 12 दिसंबर 2010. ग़ज़ल ; 'नवाब' शाहाबादी. हम भी जीने का कुछ मजा लेते. दो घड़ी काश मुस्कुरा लेते. अपना होता बहुत बुलंद इकबाल. हम गरीबों की जो दुआ लेते. जौके-रिंदी को हौसला देता. जाम बढ़कर अगर उठा लेते. रास आता चमन का जो माहौल. आशियाँ फिर कहीं बना लेते. सबके होंटों पे बददुआए थीं. किससे फिर जा के हम दुआ लेते. कुलफतें सारी दूर हो जाती. पास अपने जो तुम बुला लेते. गम जो उनका 'नवाब' गर मिलता. नवाब' शाहाबादी. लखनऊ Mb. 9831221614. नई पोस्ट.
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 16 September 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. गुरुवार, 16 सितंबर 2010. घनाक्षरी : अरविन्द कुमार झा ,लखनऊ. मुख रोटी जैसा गोल केश रंगे तारकोल,. मांग लगे जैसे बीच रोड पे दरार है . बिंदिया है चाँद तो मुंहासे हैं सितारे बने,. फिर भी निहारे आईना वो बार-बार है. लहसुन की कली से दाँत दिखें हँसे जब,. इसी मुस्कान पे तो मिलता उधार है. घुंघराली लट लटके है यूं ललाट पर,. जैसे टेलीफोन के रिसीवर का तार है. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. 8 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. Looks like - or.
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 05 April 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. सोमवार, 5 अप्रैल 2010. गीत -शरद मिश्र 'सिन्धु'. मातृभूमि कातर नयनों से पल पल किसे निहारती. देशवासियों! बढ़ो कि देखो ,धरती तुम्हे पुकारती. जाति-पाति की राजनीति ने काटा-छाँटा बहुत सुनो. मानवता के द्वय कपोल पर मारा चांटा बहुत सुनो. यादव, कुर्मी, हरिजन, पंडित और मुराई, लोधी हों ,. ठाकुर, लाला ,बनिया हो या किसी जाति के जो भी हों,. रहें प्रेम से सब मिलकर भारत माता मनुहारती . आज प्रकृति भारत माता का मंदिर...8 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or. विज&...
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 27 June 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. रविवार, 27 जून 2010. आह चाचा! वाह चाचा! खरोंच को भी बतलाते हैं घाव चाचा का,. बढ़ा दिया है भतीजों ने भाव चाचा का . दिखाई देता नहीं उम्र का असर उन पर,. है मेन्टेन अभी रखरखाव चाचा का. चचा तराजू नहीं डोलची के बैंगन हैं,. न जाने होगा किधर, कब झुकाव चाचा का. भतीजों को तो चचा जेब में धरे हैं मगर,. चची पे पड़ता नहीं है प्रभाव चाचा का. ये राज़ कोई भतीजा न जान पायेगा,. कहां पडेगा अब अगला पड़ाव चाचा का. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. लेबल: चाचा. नई पोस्ट.
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 23 September 2010
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. गुरुवार, 23 सितंबर 2010. मुहब्बतों का सुरूर. मैं अपनी आँखें न बंद कर लूं तो क्या करूं अब. जहां भी देखो, जिधर भी देखो. वहीं हैं दैरो-हरम के झगड़े. जिसे भी देखो वो अपने मज़हब को सबसे ऊंचा बता रहा है. वो दूसरों के गुनाह हमको गिना रहा है, सुना रहा है. उसे ख़बर ही नहीं है शायद. हर एक मज़हब के रास्ते की है एक मन्ज़िल. वो सबका मालिक जो एक है पर. न जाने उसके हैं नाम कितने,. सब उसकी महिमा को जानते हैं. मगर ये ऐसा खुला हुआ सच. ख़ुदा-ए-बरतर. मुहब्बत...सदस्...
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साहित्य हिन्दुस्तानी: 04 February 2011
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011. कुण्डलियाँ : अरविन्द कुमार झा. मना लो तुम भी होली. होली में बढ़ती सदा इन चीजों की मांग. कपडे खोया साथ में दारू, गांजा, भांग. दारू, गांजा,भांग,छान मस्ती में सब जन. दीखते नहीं सटीक, सज्जनों के भी लच्छन. खूब मनाते मौज जहां बन जाती टोली. करके नया जुगाड़ ,मनालो तुम भी होली. कहो इनको टामी जी. टामी जी को हम रहे,इसीलिए दुत्कार. कुता मत कह यार, कहो इनको टामी जी. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. 22 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or.
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साहित्य हिन्दुस्तानी: Fwd: niwedan
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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. गुरुवार, 28 मई 2009. कविता : अलका मिश्रा. जिन्दगी जीने की. कला सिखाना . भूल गये मुझे. मेरे बुजुर्ग ! 160; मैंने देखा . 160; लोगो ने बिछाए फूल . 160; मेरी राहों में,. 160; प्रफुल्लित थी मैं! 160; पहला कदम रखते ही . 160; फूलों के नीचे . 160; दहकते शोले मिले,. 160; कदम वापस खींचना . 160; मेरे स्वाभिमान को गंवारा नहीं था. 160; इस कदम ने. 160; दे दी ऎसी शक्ति . लगता है. और मैं. हार जाउंगी अब! किन्तु. अच्छा ल...मैन...