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स्याह...

रविवार, दिसंबर 18, 2011. उर्वशी- पंचम अंक. पंचम अंक आरम्भ. अहमपि तव सूनावद्य विन्यस्य राज्यम्. विचरित्मृग्यूथान्याश्रयिष्ये वनानि. विक्रमोर्वशीयम्. क्रन्दंस देशदेशेषु बभ्राम नृपति: स्वयं. देवीभागवत. अवेत्य शापदोषं तं सोअथ गत्वा पुरुरवा. हरेराराधनं चक्रे ततो बदरिकाश्रमे. कथासरित्सागर. स्थान- पुरुरवा का राजप्रसाद. महामात्य. देव क्षमा हो कुतुक, महामय के विशाल नयनॉ में,. देख रहा हूँ, आज नई चिंता कुछ घुमड़ रही है. सभा सन्न है, कौन विपद हम पर आने वाली है? पुरुरवा. सभी सभासद. पुरुरवा. महामात्य. जिससे...

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रविवार, दिसंबर 18, 2011. उर्वशी- पंचम अंक. पंचम अंक आरम्भ. अहमपि तव सूनावद्य विन्यस्य राज्यम्. विचरित्मृग्यूथान्याश्रयिष्ये वनानि. विक्रमोर्वशीयम्. क्रन्दंस देशदेशेषु बभ्राम नृपति: स्वयं. देवीभागवत. अवेत्य शापदोषं तं सोअथ गत्वा पुरुरवा. हरेराराधनं चक्रे ततो बदरिकाश्रमे. कथासरित्सागर. स्थान- पुरुरवा का राजप्रसाद. महामात्य. देव क्षमा हो कुतुक, महामय के विशाल नयनॉ में,. देख रहा हूँ, आज नई चिंता कुछ घुमड़ रही है. सभा सन्न है, कौन विपद हम पर आने वाली है? पुरुरवा. सभी सभासद. पुरुरवा. महामात्य. जिसस&#2375...
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रविवार, दिसंबर 18, 2011. उर्वशी- पंचम अंक. पंचम अंक आरम्भ. अहमपि तव सूनावद्य विन्यस्य राज्यम्. विचरित्मृग्यूथान्याश्रयिष्ये वनानि. विक्रमोर्वशीयम्. क्रन्दंस देशदेशेषु बभ्राम नृपति: स्वयं. देवीभागवत. अवेत्य शापदोषं तं सोअथ गत्वा पुरुरवा. हरेराराधनं चक्रे ततो बदरिकाश्रमे. कथासरित्सागर. स्थान- पुरुरवा का राजप्रसाद. महामात्य. देव क्षमा हो कुतुक, महामय के विशाल नयनॉ में,. देख रहा हूँ, आज नई चिंता कुछ घुमड़ रही है. सभा सन्न है, कौन विपद हम पर आने वाली है? पुरुरवा. सभी सभासद. पुरुरवा. महामात्य. जिसस&#2375...

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स्याह...: Mar 7, 2010

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रविवार, मार्च 07, 2010. तुमने मुझसे बेवफ़ाई की. हम दोनों के बीच. ऐसा कोई रिश्ता ना था. तेरे शानों पर. कोई छत ना थी. मेरे ज़िम्मे. कोई आंगन ना था।. मेरा कोई वादा. तेरी ज़ंजीर बनने ना पाया. किसी इक़रार ने. मेरी कलाई को नहीं थामा।. हवाओं की तरह. तू पूरी तरह आज़ाद था. रास्ते भी थे. तेरी मर्ज़ी के मुताबित. देखा जाये तो. मैं अपनी तन्हाई से खुश था।. तूने रास्ता बदला. तो कुछ ऐसा लगा. मुझको कि जैसे. तुमने मुझसे बेवफ़ाई की।।. प्रस्तुतकर्ता सौरभ कुणाल. 0 टिप्पणियाँ. लेबल: सौरभ कुणाल. नई पोस्ट. बशीर बद्र.

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स्याह...: Feb 21, 2010

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रविवार, फ़रवरी 21, 2010. चेहरा मेरा था निगाहें उस की. चेहरा मेरा था निगाहें उस की. ख़ामुशी में भी वो बातें उस की. मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं. शेर कहती हुई आँखें उस की. शोख़ लम्हों का पता देने लगीं. तेज़ होती हुई साँसें उस की. ऐसे मौसम भी गुज़ारे हम ने. सुबहें जब अपनी थीं शामें उस की. ध्यान में उस के ये आलम था कभी. आँख महताब की यादें उस की. फ़ैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा. आँधियाँ मेरी बहारें उस की. नीन्द इस सोच से टूटी अक्सर. किस तरह कटती हैं रातें उस की. 0 टिप्पणियाँ. चिड़िया. मैं कच्च&#...और अपने न...

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स्याह...: Jun 30, 2011

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गुरुवार, जून 30, 2011. सआदत हसन मंटो की कहानी : खोल दो. अमृतसर से स्पेशल ट्रेन दोपहर दो बजे चली और आठ घंटों के बाद मुगलपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। अनेक जख्मी हुए और कुछ इधर-उधर भटक गए।. क्या वह उसके साथ ही गाड़ी में सवार थी? सबने एक जवाब होकर कहा, चल जाएगा, चल जाएगा। और लारी चला दी। सिराजुद्दीन ने एक बार फिर उन नौजवानों की कामय...प्रस्तुतकर्ता सौरभ कुणाल. 0 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. मंटो की कहानी "खोल दो". प्रस्तुतकर्ता सौरभ कुणाल. 0 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. अमीर खुसरो. जानकी...ज्ञ...

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स्याह...: Mar 8, 2010

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सोमवार, मार्च 08, 2010. कमरे को नई आबो-हवा क्यों नहीं देते. कमरे को नई आबो-हवा क्यों नहीं देते. इन बूढ़े कलेंडरों को हटा क्यों नहीं देते. इक शख़्स गुलेलों को यहाँ बेच रहा है. ये राज़ परिन्दों को बता क्यों नहीं देते. अलमारी में रख आओ गए वक़्त की एलबम. जो बीत गया उसको भुला क्यों नहीं देते. ऐ तेज़ हवा, तू भला समझेगी कहाँ तक. हम तुझको चराग़ों का पता क्यों नहीं देते. पोशाक मेरी आपसे शफ़्फ़ाक है ज़्यादा. मत पूछ कि हम घर का पता क्यों नहीं देते. 0 टिप्पणियाँ. ज़लज़लो! 0 टिप्पणियाँ. मेरे भगवान! मेरे द...ये ...

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स्याह...: Feb 22, 2010

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सोमवार, फ़रवरी 22, 2010. जीवन साथी से. धूप में बारिश होते देख के. हैरत करने वाले. शायद तूने मेरी हँसी को. कभी नहीं देखा. प्रस्तुतकर्ता सौरभ कुणाल. 0 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: परवीन शाकिर. वर्किंग वूमन. सब कहते हैं. कैसे गुरुर की बात हुई है. मैं अपनी हरियाली को खुद अपने लहू से सींच रही हूँ. मेरे सारे पत्तों की शादाबी. मेरे अपनी नेक कमाई है. मेरे एक शिगुफ़े पर भी. मैं जब चाहूँ खिल सकती हूँ. मेरे सारा रूप मिरी अपनी दरयाफ्त है. एक तनवर पेड़ हूँ अब मैं. 0 टिप्पणियाँ. बुलावा. हर रोशनी...प्र...

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 20 April 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. मंगलवार, 20 अप्रैल 2010. गज़ल - अरविन्द 'असर'. फिल्मी धुन पर भजन सोचिए. कैसे लागे लगन सोचिए. गंगाजल है प्रदूषित बहुत. कैसे हो आचमन सोचिए. काँटों की तो है फितरत मगर. फूल से भी चुभन सोचिए. पाँव उठते नहीं बोझ से. आप मेरी थकन सोचिए. और जितने थे सब बच गए. बस जली है दुल्हन सोचिए. २६८/४६/६६-डी, खजुहा,. तकिया चाँद अली शाह,. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. 16 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). Looks like - or.

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 05 February 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010. रमेश नारायण सक्सेना 'गुलशन ' बरेलवी. हद्दे-निगाह धूप सी बिखरी हुई लगी. तेरे बगैर एक सज़ा ज़िन्दगी लगी. सोचा था मैं ने हंस के गुजर जाऊँगा मगर. चलने पे राह जीस्त की काँटों भरी लगी. दुनिया हसीं है, इस की हर इक शय हसीं मगर. दिल को भली लगी तो तेरी सादगी लगी. उसका वजूद हो गया महसूस जिस घड़ी. घर की हर एक चीज़ महकती हुई लगी. कहते हैं लोग बेवफा उसको मगर मुझे. कदमों तले जमीन सरकती हुई लगी. 9 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or. म&#23...

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 13 August 2010

http://sahityahindka.blogspot.com/2010_08_13_archive.html

साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. शुक्रवार, 13 अगस्त 2010. मैं ज़र्द पत्तों से. ज़िन्दगी का सबक़ न सीखूं तो क्या करूं अब? ये मेरी फ़िक्री सलाहियत का इक इम्तेहां नहीं तो ये और क्या है? ये ज़र्द पत्ते जो रास्ते में ज़मीं के तन पर पड़े हुए हैं,. ये ज़र्द पत्ते,. कभी शजर के जवां बदन पर सजे हुए थे, टंके हुए थे,. जवां उमंगों से, हसरतों से भरे हुए थे,. हवा के बहते हुए समन्दर में खेलते थे,. शुआ-ए-उम्मीद फड़क के इनकी. ये ज़र्द पत्ते. संजय मिश्रा 'शौक़'. 16 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or.

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 12 December 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. रविवार, 12 दिसंबर 2010. ग़ज़ल ; 'नवाब' शाहाबादी. हम भी जीने का कुछ मजा लेते. दो घड़ी काश मुस्कुरा लेते. अपना होता बहुत बुलंद इकबाल. हम गरीबों की जो दुआ लेते. जौके-रिंदी को हौसला देता. जाम बढ़कर अगर उठा लेते. रास आता चमन का जो माहौल. आशियाँ फिर कहीं बना लेते. सबके होंटों पे बददुआए थीं. किससे फिर जा के हम दुआ लेते. कुलफतें सारी दूर हो जाती. पास अपने जो तुम बुला लेते. गम जो उनका 'नवाब' गर मिलता. नवाब' शाहाबादी. लखनऊ Mb. 9831221614. नई पोस्ट.

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 16 September 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. गुरुवार, 16 सितंबर 2010. घनाक्षरी : अरविन्द कुमार झा ,लखनऊ. मुख रोटी जैसा गोल केश रंगे तारकोल,. मांग लगे जैसे बीच रोड पे दरार है . बिंदिया है चाँद तो मुंहासे हैं सितारे बने,. फिर भी निहारे आईना वो बार-बार है. लहसुन की कली से दाँत दिखें हँसे जब,. इसी मुस्कान पे तो मिलता उधार है. घुंघराली लट लटके है यूं ललाट पर,. जैसे टेलीफोन के रिसीवर का तार है. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. 8 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. Looks like - or.

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 05 April 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. सोमवार, 5 अप्रैल 2010. गीत -शरद मिश्र 'सिन्धु'. मातृभूमि कातर नयनों से पल पल किसे निहारती. देशवासियों! बढ़ो कि देखो ,धरती तुम्हे पुकारती. जाति-पाति की राजनीति ने काटा-छाँटा बहुत सुनो. मानवता के द्वय कपोल पर मारा चांटा बहुत सुनो. यादव, कुर्मी, हरिजन, पंडित और मुराई, लोधी हों ,. ठाकुर, लाला ,बनिया हो या किसी जाति के जो भी हों,. रहें प्रेम से सब मिलकर भारत माता मनुहारती . आज प्रकृति भारत माता का मंदिर...8 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or. विज&...

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 27 June 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. रविवार, 27 जून 2010. आह चाचा! वाह चाचा! खरोंच को भी बतलाते हैं घाव चाचा का,. बढ़ा दिया है भतीजों ने भाव चाचा का . दिखाई देता नहीं उम्र का असर उन पर,. है मेन्टेन अभी रखरखाव चाचा का. चचा तराजू नहीं डोलची के बैंगन हैं,. न जाने होगा किधर, कब झुकाव चाचा का. भतीजों को तो चचा जेब में धरे हैं मगर,. चची पे पड़ता नहीं है प्रभाव चाचा का. ये राज़ कोई भतीजा न जान पायेगा,. कहां पडेगा अब अगला पड़ाव चाचा का. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. लेबल: चाचा. नई पोस्ट.

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 23 September 2010

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. गुरुवार, 23 सितंबर 2010. मुहब्बतों का सुरूर. मैं अपनी आँखें न बंद कर लूं तो क्या करूं अब. जहां भी देखो, जिधर भी देखो. वहीं हैं दैरो-हरम के झगड़े. जिसे भी देखो वो अपने मज़हब को सबसे ऊंचा बता रहा है. वो दूसरों के गुनाह हमको गिना रहा है, सुना रहा है. उसे ख़बर ही नहीं है शायद. हर एक मज़हब के रास्ते की है एक मन्ज़िल. वो सबका मालिक जो एक है पर. न जाने उसके हैं नाम कितने,. सब उसकी महिमा को जानते हैं. मगर ये ऐसा खुला हुआ सच. ख़ुदा-ए-बरतर. मुहब्बत...सदस&#2381...

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साहित्य हिन्दुस्तानी: 04 February 2011

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011. कुण्डलियाँ : अरविन्द कुमार झा. मना लो तुम भी होली. होली में बढ़ती सदा इन चीजों की मांग. कपडे खोया साथ में दारू, गांजा, भांग. दारू, गांजा,भांग,छान मस्ती में सब जन. दीखते नहीं सटीक, सज्जनों के भी लच्छन. खूब मनाते मौज जहां बन जाती टोली. करके नया जुगाड़ ,मनालो तुम भी होली. कहो इनको टामी जी. टामी जी को हम रहे,इसीलिए दुत्कार. कुता मत कह यार, कहो इनको टामी जी. प्रस्तुतकर्ता alka mishra. 22 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Looks like - or.

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साहित्य हिन्दुस्तानी: Fwd: niwedan

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साहित्य हिन्दुस्तानी. पूरे देश के साहित्यकारों का मंच. गुरुवार, 28 मई 2009. कविता  :  अलका मिश्रा. जिन्दगी जीने की. कला सिखाना . भूल गये मुझे. मेरे बुजुर्ग ! 160;    मैंने देखा . 160;    लोगो ने बिछाए फूल . 160;    मेरी राहों में,. 160;    प्रफुल्लित थी मैं! 160;    पहला कदम रखते ही . 160;    फूलों के नीचे . 160;    दहकते शोले मिले,. 160;    कदम वापस खींचना . 160;    मेरे स्वाभिमान को गंवारा नहीं था. 160;    इस कदम ने. 160;     दे दी ऎसी शक्ति . लगता है. और मैं. हार जाउंगी अब! किन्तु. अच्छा ल...मैन...

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Shaa'iri

Kulliyaat e shaa'iri. Ek mohabbat aur wo bhi naakaam mohabbat. Ek mohobbat aur wo bhi naakaam mohobbat,. Lekin isse kaam chalaaya ja sakta hai,. Dil par paani peene aati hai.n umeede.n,. Is chashme me zahr milayaa ja sakta hai. This entry was posted in Abbaas Taabish. July 21, 2014. Sher… Aslam Badayuni. Kisi se tum nahin kamtar to tumse koun kamtar hai. Agar tum sard gulshan ho to ahqar bhi sanobar hai. This entry was posted in Aslam Badayuni. March 13, 2014. Yahi mat samajhnaa tumhi.n zindagi ho. This ...

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Syaaahi ... a hint to your style

Fashion Media Stylist from London college of fashion. A graduate with major in Design Management. I was always inclined to vent out my creative instincts. Art and design being my forte and my insatiable quest to attain something more challenging lead to enrolling for specialization and thus made a significant stride by completing fashion designing and two year M.B.A in Design management from International Institute of . Treat yourself to a day with a Personal Stylist in London and . New Mum, new style.

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~GREAT DAMSEL~

A walk t0 cOmplete the j0urney 0f life with iman and islam". Sunday, January 2, 2011. Erti harga sebuah perjuangan! Posted by miss ida. PERJUANGAN ini menuntut PENGORBANAN darimu [9:121]". Perjuangan itu gerun dan mengerikan,. Hebat dan dasyat menggerunkan hati,. Bagi mukmin disini nilai dan harganya,. Bagi mukmin disini nilai dan harganya.[ REPEAT]. PERJUANGAN itu bagai sampan di laut,. Di atas lapang tiada perlindungan,. Dibawa air melambung dan menggunung,. Menongkah gelombang yg datang melanda. Berca...