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Raj
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Friday, July 3, 2015. Subscribe to: Post Comments (Atom). View my complete profile. Baba Paan BERCHHA. Simple template. Powered by Blogger.
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Raj: लहजा ही जज्बाती है
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Friday, April 3, 2015. लहजा ही जज्बाती है. लहजा ही जज़्बाती. दिन-भर धूप हवाओं को भड़काती है. सोच-समझकर शाम को आंधी आती है. फूट-फूटकर उसकी ग़ज़लें रोती हैं. उस कम्बख़्त का लहजा ही जज़्बाती है. लोग समझते हैं तू अब भी मेरा है. अब भी मुझमें तेरी ख़ुशबू आती है. सूरज घर से करके वुज़ू निकलता है. और आधी दुनिया मस्जिद बन जाती है. गहन पड़े जो कभी, देखना दीवारें. धरती से चौड़ी सूरज की छाती है. एक कहानी उसके दम से ज़िन्दा है. चांदनी पहले मेरे घर में आती है. Subscribe to: Post Comments (Atom). View my complete profile.
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Raj: पाया तो क्या पाया
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Wednesday, June 24, 2015. पाया तो क्या पाया. आखिर पाया तो क्या पाया? Author:हरिशंकर परसाई Harishankar Parsai. जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा. जब थाप पड़ी, पग डोल उठा. औरों के स्वर में स्वर भर कर. अब तक गाया तो क्या गाया? सब लुटा विश्व को रंक हुआ. रीता तब मेरा अंक हुआ. दाता से फिर याचक बनकर. कण-कण पाया तो क्या पाया? जिस ओर उठी अंगुली जग की. उस ओर मुड़ी गति भी पग की. जग के अंचल से बंधा हुआ. खिंचता आया तो क्या आया? जो वर्तमान ने उगल दिया. उसको भविष्य ने निगल लिया. Labels:photos हिंदी hindi.
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Raj: इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
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Thursday, February 26, 2015. इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये. इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये. इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये. आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये. आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं. आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये. ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों. आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये. जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें. टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये. Subscribe to: Post Comments (Atom). View my complete profile.
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Raj: जरा सा कतरा
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Wednesday, June 24, 2015. जरा सा कतरा. ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है ग़ज़ल (काव्य). Author:वसीम बरेलवी Waseem Barelvi. ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है. समन्दरों ही के लहजे में बात करता है. ख़ुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते. कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है. शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं. किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है. ज़मीं की कैसी विक़ालत हो फिर नहीं चलती. जब आसमां से कोई फ़ैसला उतरता है. वसीम बरेलवी. Ghazal by Waseem Barelvi. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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Raj: ग़ज़ल
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Wednesday, June 24, 2015. वसीम बरेलवी की ग़ज़ल. Author:वसीम बरेलवी Waseem Barelvi. मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा. अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा. ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा. ढलेगा दिन तो हर इक अपना रास्ता लेगा. मैं बुझ. गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊंगा. कोई चराग नही हूँ जो फिर जला लेगा. कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए. जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा. हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता 'वसीम'. Labels:photos ग़ज़ल;. Subscribe to: Post Comments (Atom). View my complete profile.
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Raj: वक्त की किरचे
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Monday, March 2, 2015. वक्त की किरचे. वक़्त ने. मेरी बाँह थाम कर. मेरी हथेली पर. अश्क़ के. दो क़तरे बिखेर दिए।. मेरे सवाल पर बोला. ये अश्क़ नहीं. बिखरे ख़्वाब की किरचे हैं. संभाल कर रखो. तुम्हें ये याद दिलाएंगे. कि मुफ़लिस आँखों में ख़्वाब. सजाया नहीं करते. Subscribe to: Post Comments (Atom). View my complete profile. Baba Paan BERCHHA. Simple template. Powered by Blogger.
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Raj: About Me
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I am vedang jain. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. Baba Paan BERCHHA. Simple template. Powered by Blogger.