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आकल्प: January 2010
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मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।. Sunday, January 3, 2010. बदकिस्मती. मै कभी सोचता था,. कि ख्वाब और मंज़िले एक सी होती है,. जब मिलती है,. तो दोनो के दरमियाँ फासले मिट जाते है,. आज समझ पाता हू,. अलहदा है दोनों,. वैसे ही, जैसे स्वर्ग और जन्नत।. ट्रेन और हवाईजहाज,. एक गरीब और एक अमीर।. दोनों के बीच दूरियाँ अलग. पर शरारते एक सी,. फितरते अलग,. पर बुजदिली एक सी।. रहगुज़र एक. पर बदकिस्मती महफूज़ सी. कौन किसका दर्द पढ़ेगा. Subscribe to: Posts (Atom).
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आकल्प: ना जाने क्यों मुक्तिबोध बहुत याद आ रहे है...
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मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।. Friday, October 14, 2011. ना जाने क्यों मुक्तिबोध बहुत याद आ रहे है. उसने मानों मेरी बेवकूफी पर हंसी का ठहाका मारा, कहा, " भारत के हर बड़े नगर में एक-एक अमेरिका है! तुमने लाल ओंठोवाली चमकदार, गोरी- सुनहरी औरतें नहीं देखी, उनके कीमती कपडे नहीं देखे! नफ़ीस किस्म की वेश्यावृत्ति नहीं देखी! सेमिनार नहीं देखे! क्या यह झूठ है? देखा नहीं! Am so happy to discover this blog, Chinmay. October 15, 2011 at 8:38 AM. रिल...
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..इन्तेखाब..: मौसी (2)
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इन्तेखाब. एहसास-ए-इन्तेखाब. जुबां से नहीं. आँखों से.दिल से. Friday, December 26, 2008. मौसी (2). घर के तिनके को जोड़ने का दर्द मौसी की आँखों में उभर आया. और फिर मौसी चुपचाप फिर आने का कह कर निकल गयी.मैं उन्हें ओझल होते तक जाता देखता रहा! कृतिकार : रूपेश सिंघारे. Subscribe to: Post Comments (Atom). विजेट आपके ब्लॉग पर. Indore MP India, Aliso Viejo Orange County California USA, India. View my complete profile. मौसी (2). मौसी (1). ख्वाब (२ ). चिंगारी. ख्वाबगाह. Get Your Own Visitor Globe!
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..इन्तेखाब..: कहाँ से लाऊं ??
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इन्तेखाब. एहसास-ए-इन्तेखाब. जुबां से नहीं. आँखों से.दिल से. Friday, February 4, 2011. कहाँ से लाऊं? बिलखती रोती कराहती हुयी सी इस दुनिया में. तुम ही बताओ खुशियों भरे ज़ज्बात कहाँ से लाऊं? जा बज़ा भूख और इफ़्लास की सूरत में क़ज़ा फिरती है. हँसना चाहता हूँ मगर हंसने के हालात कहाँ से लाऊं? सूना सूना सा लगता है ज़माना सारा. रोशन रोशन से वो दिन रात कहाँ से लाऊं? बयान करता है कोई दिल के नेह कानो में. कृतिकार : रूपेश सिंघारे. Subscribe to: Post Comments (Atom). विजेट आपके ब्लॉग पर. View my complete profile.
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..इन्तेखाब..: June 2008
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इन्तेखाब. एहसास-ए-इन्तेखाब. जुबां से नहीं. आँखों से.दिल से. Monday, June 30, 2008. खुश आमदीद. कुछ हर्फों. और कुछ लफ्जों से. मैंने बुना था एक ताना बाना! और ज़ज्बातों की रौ में,. लिखा था एक फ़साना! मेरे अक्स का एक नशा है -. जो तेरे बदन का बोसा है! खुश आमदीद है तेरा. मेरे इस ताने बाने में -. सबसे पहला तेरा आगाज़ हुआ. तेरी झुकी पलकों में॥. अपने अक्स के नशे का एहसास हुआ ! कृतिकार : रूपेश सिंघारे. लघ्जिशों की तमन्ना है ये. ख़यालों की बरसात. सम्हल कर रहना हमदम मेरे. कभी कभी ये बरसात. विस्तार. बचपन कि तरह! इस ज&#...
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आकल्प: June 2007
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मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।. Friday, June 1, 2007. ज़िंदगी. ज़िंदगी. वक़्त ने थाम लिए क़दम यूँ. क्यों करूँ मैं किसी की बंदगी. बंद है फ़लसफ़े किताब मे. कुछ नही रहा सीवाए ज़िंदगी. नाराज़गी है तो बस ईमान प्र. चाह कर भी तुझको मैं ना पा सका. उधार हैं कुछ मननते खुदा प्र. बेआबरु ना हो सका ए ज़िंदगी. चाँद आज रास्ते मे रुक गया. कुछ दर्द था उस सर्द सी आवाज़ मे. बेवजह क्यों बज रही शहनाईयाँ. सो गई है रात तेरी गोद मे. Subscribe to: Posts (Atom).
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आकल्प: October 2008
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मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।. Sunday, October 12, 2008. आकार" मेरी पहली लघुफिल्म. Tuesday, October 7, 2008. रेत पर कतरे. खोया था क्या पाने को. चंचल मन के भरमाने को. रेत के कतरे बीन रहा. पुख्ता दीवार बनने को. फूलो का सत सूख गया. होंठ भी है मुरझाने को. गाँव-गाँव में भटका तू क्यों. अपनी धाक ज़माने को. सड़क अभी तक बाकी है. बहुत दूर तक जाने को. कुँआ अभी भी सूखा है. तेरी प्यास बुझाने को. अपनी मर्ज़ी से जीना. जब तक है परदा तेरी. Monday, October 6, 2008.
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आकल्प: April 2014
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मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।. Monday, April 7, 2014. अब समय कौन बताएगा? मुझे याद है. अब न तो वो घर है, ना नीम का पेड़, ना खपरैल की छत, ना वो धूप के टुकड़े. दादी भी नहीं हैं. अब समय कौन बताएगा? Subscribe to: Posts (Atom). यहाँ मेरे दोस्त बनें. गुस्ताख़. जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं. कबाड़खाना. सेनेका की सीखें - 4. I'm Vikash and this is my world! सोतड़ू. मनोज बाजपेयी ब्लॉग. उमरानाला पोस्ट. The Light by a Lonely Path. Raviratlami Ka Hindi Blog.
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आकल्प: September 2008
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मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।. Tuesday, September 23, 2008. एक बजरंगी का दर्द. तितलियों पर नज़र गडाये. बैठे है सब. सबसे रंगीन परों पर अटकी है मेरी आँखे. वह हर फूल पैर जा बैठती है. जलन से कुलबुलाता हु मैं. मुझ पर आकर क्यों नही बैठती है वह? मेरी जड़े है सबसे गहरी. सबसे ज्यादा सत है मेरे फूलों में. दूर-दूर तक फैली है महक मेरी. फ़िर शिकवा क्यों? शायद वो जानती है मेरी मनोस्थिति. उसे आना ही है मेरे पास. वह कुलबुलाएगी. मचलेगी जाने. कोई अंत. जिसमí...
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..इन्तेखाब..: भागम-भाग
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इन्तेखाब. एहसास-ए-इन्तेखाब. जुबां से नहीं. आँखों से.दिल से. Friday, February 4, 2011. कमरे के कोने से. धूप का एक छोटा सा टुकड़ा -. अब भी कह रहा है :. अभी दिन ढला नही है. फिसल गए जो लम्हे. दुआओं कि गिरिफ्त से. उन्हें ढूंढ लाने की कवायद है. लम्हों की खोज मे. कभी वक्त से आगे कभी. ख़यालों के पीछे. बस भागम-भाग चल रही है! January 30, 2008. कृतिकार : रूपेश सिंघारे. Subscribe to: Post Comments (Atom). विजेट आपके ब्लॉग पर. Indore MP India, Aliso Viejo Orange County California USA, India. View my complete profile.