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तुलसी रमण

तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Sunday, October 4, 2009. बर्फ के फ़ाहों की तरह. नहीं उतरी. एक भी पँखुड़ी. देवदार ने नहीं गाया. सयाले का कोई गीत. नहीं मंडराये आकाश में. लाल-पीली चिड़ियों के समूह. शहर की बगलों में. चुपचाप घुस आया जाड़ा. आता सूरज. चला जाता. पौष की कटार पर. सोया पड़ा शहर. पाले की परतों में. सुलग रही आग. बर्फ़ के फाहों की तरह. ऊष्मा लेकर आओ. सामने के टीले से. गाना कोई गीत लंबा. पिघल जाएंगी. पाळे की परतें. Saturday, December 6, 2008.

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Sunday, October 4, 2009. बर्फ के फ़ाहों की तरह. नहीं उतरी. एक भी पँखुड़ी. देवदार ने नहीं गाया. सयाले का कोई गीत. नहीं मंडराये आकाश में. लाल-पीली चिड़ियों के समूह. शहर की बगलों में. चुपचाप घुस आया जाड़ा. आता सूरज. चला जाता. पौष की कटार पर. सोया पड़ा शहर. पाले की परतों में. सुलग रही आग. बर्फ़ के फाहों की तरह. ऊष्मा लेकर आओ. सामने के टीले से. गाना कोई गीत लंबा. पिघल जाएंगी. पाळे की परतें. Saturday, December 6, 2008.
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तुलसी रमण | tulsiraman.blogspot.com Reviews

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Sunday, October 4, 2009. बर्फ के फ़ाहों की तरह. नहीं उतरी. एक भी पँखुड़ी. देवदार ने नहीं गाया. सयाले का कोई गीत. नहीं मंडराये आकाश में. लाल-पीली चिड़ियों के समूह. शहर की बगलों में. चुपचाप घुस आया जाड़ा. आता सूरज. चला जाता. पौष की कटार पर. सोया पड़ा शहर. पाले की परतों में. सुलग रही आग. बर्फ़ के फाहों की तरह. ऊष्मा लेकर आओ. सामने के टीले से. गाना कोई गीत लंबा. पिघल जाएंगी. पाळे की परतें. Saturday, December 6, 2008.

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तुलसी रमण: भेड़

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Friday, December 5, 2008. बुज़ुर्गों का कहना है. जब भेड़ मूंडनी हो. उससे पूछा नहीं जाता. दो-चार हरी पत्तियाँ. रोटी का एक ग्रास. या चंद दाने दिखाकर. एक सछल, शरारती पुचकार के साथ,. करीब बुला लिया जाता है उसे. और वह निरीह. सहज चली आती है. सुविधाजनक ढंग से. कैंची चलाकर. ऊन उतार लो उसकी. और फिर से. एक अर्से के लिये. ऊबड़-खाबड़ गहन निर्जन में. नंगा कर छोड़ दो. जहाँ रहते हैं. असंख्य भेड़िये और. भेड़ की ऊन से. कविता...जनसत&#238...

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तुलसी रमण: October 2009

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Sunday, October 4, 2009. बर्फ के फ़ाहों की तरह. नहीं उतरी. एक भी पँखुड़ी. देवदार ने नहीं गाया. सयाले का कोई गीत. नहीं मंडराये आकाश में. लाल-पीली चिड़ियों के समूह. शहर की बगलों में. चुपचाप घुस आया जाड़ा. आता सूरज. चला जाता. पौष की कटार पर. सोया पड़ा शहर. पाले की परतों में. सुलग रही आग. बर्फ़ के फाहों की तरह. ऊष्मा लेकर आओ. सामने के टीले से. गाना कोई गीत लंबा. पिघल जाएंगी. पाळे की परतें. Subscribe to: Posts (Atom).

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तुलसी रमण: बर्फ के फ़ाहों की तरह

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Sunday, October 4, 2009. बर्फ के फ़ाहों की तरह. नहीं उतरी. एक भी पँखुड़ी. देवदार ने नहीं गाया. सयाले का कोई गीत. नहीं मंडराये आकाश में. लाल-पीली चिड़ियों के समूह. शहर की बगलों में. चुपचाप घुस आया जाड़ा. आता सूरज. चला जाता. पौष की कटार पर. सोया पड़ा शहर. पाले की परतों में. सुलग रही आग. बर्फ़ के फाहों की तरह. ऊष्मा लेकर आओ. सामने के टीले से. गाना कोई गीत लंबा. पिघल जाएंगी. पाळे की परतें. December 28, 2009 at 9:05 AM.

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तुलसी रमण: December 2008

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Saturday, December 6, 2008. लाहौल-पुराण. मैने राजा गेपंग से मांगी :. पहनने के लिए भेड़ और. खाने के लिए भेड़. स्वाद के लिए. जौ के सत्तू. और मस्ती के लिए. छंग का गिलास. उसने कहा : तथास्तु! राजा गेपंग से मैने मांगी :. दवा के लिए कुठ की जड़. चूल्हे के मुँह के लिए. चंगमा की टहनी. काग़ज़ के लिए. भोजपत्र का पेड़. उसने सहर्ष कहा :. तथास्तु! मैने लाहौल के. शीर्ष लोक-देवता से. अंत में मैने. भयंकर हिमपात से. और फिर से. कवि,...

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तुलसी रमण: लाहौल-पुराण

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तुलसी रमण. हिन्दी के सुपरिचित कवि,कथाकार,समीक्षक, ‘विपाशा’ पत्रिका के संपादक और स्तंभ लेखक।. Saturday, December 6, 2008. लाहौल-पुराण. मैने राजा गेपंग से मांगी :. पहनने के लिए भेड़ और. खाने के लिए भेड़. स्वाद के लिए. जौ के सत्तू. और मस्ती के लिए. छंग का गिलास. उसने कहा : तथास्तु! राजा गेपंग से मैने मांगी :. दवा के लिए कुठ की जड़. चूल्हे के मुँह के लिए. चंगमा की टहनी. काग़ज़ के लिए. भोजपत्र का पेड़. उसने सहर्ष कहा :. तथास्तु! मैने लाहौल के. शीर्ष लोक-देवता से. अंत में मैने. भयंकर हिमपात से. आपका लेख ...इसक&#2375...

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नवनीत शर्मा: तीन नई कविताएँ

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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Sunday, February 3, 2013. तीन नई कविताएँ. अंबर जब कविता लिखता है. हर तबका नहीं सुनता. जब कविता लिखता है अंबर. पर सुनती हैं कच्‍चे घरों की स्‍लेटपोश छतें. सर्द मौसम में अंबर की भीगी हुई कविता. और मिलाती हैं सुर/. सुनते हैं इसे. फुटपाथ पर कंबल में लिपटे जिस्‍म. दांत किटकिटाते. और कुछ ऐसा कहते हुए. जो भाषा के लायक नहीं होता. एक असर यह भी. कंबल ओढ़. आती रहेगी. शाम को ल...लौट...

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नवनीत शर्मा: ....खुश्बुओं का डेरा है।

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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, March 25, 2009. खुश्बुओं का डेरा है।. उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है।. हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है।. सच के क़स्बे का जो अँधेरा है,. झूठ के शहर का सवेरा है।. मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का,. तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है।. दूर होकर भी पास है कितना,. जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।. जो तुझे तुझ से छीनने आया,. March 25, 2009 at 7:17 AM. Waah behtarin lajawab gazal. बहुत ख...

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ईशिता आर गिरीश: November 2008

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ईशिता आर गिरीश. Thursday, November 27, 2008. दो लड़कियां. चीड़ के पेड़ से पीठ टिकाए,. कॉलेज् जाने वाली लड़की,. फुट पाथ पर बैठी,. मैंहदी लगाने वाली,. राजस्थानी बालिका वधू की,. रंग बिरंगी पोशाक को. टकटकी लगाए देख रही है।. कॉलेज जाने वाली लड़की की. दाँईं बाज़ू में सिमटी किताबें. हथेली पर,. अभी-अभी लगवाई,. गीली- हरी मैंहदी. दोनो हाथों में, दो-दो सुनहरे सपने।. मेंहदी लगाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की की,. हल्के रंग की पोशाक. रह-रह कर, चाव से,. नज़र भर देख लेती. बड़े सपने. मैने...स्व...

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ईशिता आर गिरीश: कविता

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ईशिता आर गिरीश. Saturday, November 22, 2008. यूं ही नहीं मिल जाते हैं स्वप्न. ज़िन्दगी यूं ही . तोहफों से नहीं नवाज़ेगी,. हर मोड़. यूं ही नहीं मिल जाएंगे स्वप्न।. मायूसियों की चादर ओढ़,. ख़ुद पर दया करते,. क्या फेर पाओगे किस्मत का पहिया? बेचारगी की चोगे में,. मिलेगा आसमान? घुटनों पर सिर रखने वाले,. और जी डाल संपूर्ण जीवन,. कण्टकों से भरा संपूर्ण जीवन।. Atyant sundar kavita hai. Dhanyvad evam sadhuvaad is prernaspad krati ke liye. November 22, 2008 at 7:57 AM. November 22, 2008 at 10:54 AM.

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ईशिता आर गिरीश: दो लड़कियां

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ईशिता आर गिरीश. Thursday, November 27, 2008. दो लड़कियां. चीड़ के पेड़ से पीठ टिकाए,. कॉलेज् जाने वाली लड़की,. फुट पाथ पर बैठी,. मैंहदी लगाने वाली,. राजस्थानी बालिका वधू की,. रंग बिरंगी पोशाक को. टकटकी लगाए देख रही है।. कॉलेज जाने वाली लड़की की. दाँईं बाज़ू में सिमटी किताबें. हथेली पर,. अभी-अभी लगवाई,. गीली- हरी मैंहदी. दोनो हाथों में, दो-दो सुनहरे सपने।. मेंहदी लगाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की की,. हल्के रंग की पोशाक. रह-रह कर, चाव से,. नज़र भर देख लेती. बड़े सपने.

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नवनीत शर्मा: December 2008

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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, December 24, 2008. हरतरफ तू है. एक शेर की पंक्ति 'इंतज़ार और करो अगले जनम तक मेरा', को सुन कर कही गई नज़्म एक मुस्लसल नज़्म. जैसे सौदाई को बेवजह सुकूं मिलता है. मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह. अपनी नाकामी-ए-ख्वासहिश पे पशेमां होकर. फर्ज़ के गांव में जज़्बात का मकां होकर. कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही. अब तेरी याद को आंखो म&#...हम नहीं ज़ख&#23...सोचत&#236...

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नवनीत शर्मा: February 2013

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ईशिता आर गिरीश: सत्ताधारी भगवान

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ईशिता आर गिरीश. Tuesday, January 13, 2009. सत्ताधारी भगवान. कितनी कितनी बार,. झूठ बोल गया भगवान! और निर्गुण नहीं रहा।. तो फिर हक है मुझे भी,. कि उसे धमकाऊॅ,. और करूं थोड़ा ब्लैकमेल भी! शायद डर जाए! पर वह चतुर सयाना,. फिर भी कभी न कभी. अपनी सत्ता का करेगा ही दुरपयोग।. अपने ‘अन्याय’ को ‘मेरी करनी ’ कह कर. चाल चल ही जाएगा.।. एलोपैथी के डॉक्टर की तरह. रोग का कारण निवारण न कह पाने पर,. उसे अनुवंशिक कह देने की सी चाल।. भगवान न हुआ समाज हो गया). मैं सड़क जना,. ले ही लेगा मुझ से. अपराध पर अपराध।.

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ईशिता आर गिरीश

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ईशिता आर गिरीश. Wednesday, November 19, 2008. छिपकलियां. सफेद धुली दीवार पर. बैठी है छिपकली. घात लगाए. सफेद धुली पोशाकों में भी. कुछ छिपकलियां. घात लगाए,. मौकों की तालाश में. सैंकड़ों पतंगे. हर दिन होते शहीद. शहीद हो जाती हैं. खुद भी ये छिपकलियां. क्योंकि. सफेद धुली पोशाकों में. घात लगाती. ये सिर्फ मौके तालाश करती हैं. पतंगों और छिपकलियों में. भेद नहीं रखती. सफेद धुली दीवार पर बैठी. छिपकली से. अलग हो जाती है।. Labels: ईशिता की कविता/19/11/2008. विजय ठाकुर. November 20, 2008 at 6:13 AM.

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