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हिसालू-काफल: October 2007
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हिसालू-काफल. अक्तूबर 28, 2007. निठल्ला चिंतन. लेकिन पिछले कुछ अरसे से मन में एक उचाट भाव जैसे जम के बैठने लगा है। क्या जीवन की तल्खियां सचमुच में इतनी रूमानी होती हैं? फिर से वीरेनदा के ही शब्दों में ही " हमने यह कैसा समाज रच डाला है"? प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 16 टिप्पणियां:. लेबल: यूं ही बस बैठे-बैठे. अक्तूबर 15, 2007. सर्दियों की आहट. सर्दियां. प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 9 टिप्पणियां:. लेबल: मौसम का शब्दचित्र. पुरानी डायरी. प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 5 टिप्पणियां:. अक्तूबर 13, 2007. हाल मे...
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हिसालू-काफल: दूर छिपे उन दिनों का सपना
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हिसालू-काफल. जून 03, 2011. दूर छिपे उन दिनों का सपना. आज लगभग दस सालों बाद लिखी गई कवितानुमा कोई चीज़). अखबार के पहले पन्ने पर रोते-बिलखते लोग. बम फटने से मरे लोगों के परिजन. बसे रहते हैं दिन भर मन में कहीं. अंधेरी डरी रात में खुली आतंकित आंखों में. धीरे से उतरता है एक सपना. दूर अनंत में छिपे दिनों का. जिनमें हमेशा घर लौटेंगे हंसते हुए पिता. बच्चों के लिए दूर तक पसरा होगा मां का आंचल. गीत होंगे बहुत सारे और खूब रंग भी. किलकारियां. हां.हां.हरे पेड़. नहीं होंगी तो बम. दीपा पाठक. ने कहा…. आज के यथì...
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हिसालू-काफल: September 2010
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हिसालू-काफल. सितंबर 29, 2010. घर की बातें! मैंने बिना हकलाए या झेंपे उसे अपने नंबर बताए और फिर हमने थोड़ी देर ऐसी ही कुछ और बातें की और मैं वापस आ गई। "चमत्कार! इतना आसान था इस फोबिया से बाहर निकलना…! कुछ और या अम्मा की parenting skills! प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 8 टिप्पणियां:. लेबल: अम्मा-पापा और पेरेंटिंग. सितंबर 26, 2010. राग और जोश. यह लंबा किस्सा है जानने के लिए किताब पढ़नी पढ़ेगी।. प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 4 टिप्पणियां:. लेबल: किताब जो अच्छी लगी. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. अब तक लिखा.
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हिसालू-काफल: June 2011
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हिसालू-काफल. जून 03, 2011. दूर छिपे उन दिनों का सपना. आज लगभग दस सालों बाद लिखी गई कवितानुमा कोई चीज़). अखबार के पहले पन्ने पर रोते-बिलखते लोग. बम फटने से मरे लोगों के परिजन. बसे रहते हैं दिन भर मन में कहीं. अंधेरी डरी रात में खुली आतंकित आंखों में. धीरे से उतरता है एक सपना. दूर अनंत में छिपे दिनों का. जिनमें हमेशा घर लौटेंगे हंसते हुए पिता. बच्चों के लिए दूर तक पसरा होगा मां का आंचल. गीत होंगे बहुत सारे और खूब रंग भी. किलकारियां. हां.हां.हरे पेड़. नहीं होंगी तो बम. दीपा पाठक. नई पोस्ट. मेरा प...
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हिसालू-काफल: May 2011
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हिसालू-काफल. मई 02, 2011. उसकी शादी दो साल पहले हुई थी तब से वह अपने ससुराल मथुरा में रहती है। मुझे इस गांव में रहते हुए अब सात साल से ज़्यादा अरसा हो गया है. जिसके लिए अगले दिन शाम को उसके घर जाना था लेकिन अंधेरे में अकेले कैसे लौटूंगी. अरे बोज़्यू (पहाड़ में भाभी के लिए संबोधन). डर क्यों रहे हो. मैं छोड़ दूंगी आपको घर। मैंने पहली बार उस लड़की को देखा था. मैंने कहा. 8230; कहां रहती हो. वापस लौटते हुए जब मैं नीमा से बात करने लगी तब म&#...एक लड़की की स्वाभाविक इच...ईजा है. बड़ा भाई ह...नहीं...
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हिसालू-काफल: March 2009
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हिसालू-काफल. मार्च 13, 2009. ये रंग होली के नहीं हैं…. मेरे ब्लॉग पर आने वाले सभी परिचित, अपरिचित मित्रों को होली मुबारक। इस होली में रंग न केवल तन को बल्कि मन और सपनों को भी रंगें।. प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 12 टिप्पणियां:. लेबल: होली. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). बच्चों का कमरा. वन्या और अरण्य. सोनापानी. अब मैं यहां रहती हूं. अब तक लिखा. अम्मा-पापा और पेरेंटिंग. उपभोक्तावाद. एक पहल अच्छी सी. कविता जैसा कुछ. किताब जो अच्छी लगी. किताबें. दीपा पाठक.
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हिसालू-काफल: May 2008
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हिसालू-काफल. मई 10, 2008. और यह रहा दूसरा हिस्सा). समय चुपचाप चहलकदमी करता रहता है. पल-छिन का हिसाब-किताब करते हुए. कभी न रुक सकने की नियति ढोता, बेबस. समय करता है कल्पना घङियों की कैद से मुक्ति की. बाबरा है समय, जाने क्या-क्या सोचता है. लेकिन सोचो तो अगर समय निकल ही जाए. घङियों की कैद से, तो क्या होगा. तब उन बेचारों पर तो बङी बुरी बीतेगी. जो बेहतर कल के सपनों के साथ. जैसे-तैसे काट रहे हैं आज का कठिन दिन. लेकिन उनकी बन आएगी. ऐसे तो उलट-पुलट जाएगा सब कुछ. सोचता है समय. चहलकदमी करते हुए. मई 04, 2008. ब...
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हिसालू-काफल: छप चुका है सब!!
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हिसालू-काफल. अक्तूबर 20, 2010. छप चुका है सब! उसी फटती डायरी से अलग हुए एक और पन्ने पर लिखी कुछ पंक्तियां). लिखा जा चुका है सब पर,. धरती, आकाश और इन दोनों के बीच. मौजूद हर चीज़ पर. जिंदा आदमी से जुड़ी-अनजुड़ी. हर चीज़ पर. सुख इतना सारा मन के अंदर का. सब फैल चुका कागज़ पर. सुख बसंत सा और न जाने कितनी. सुखद उपमाओं वाला,. और दुख तो जैसे. अनवरत बहती नदी कागज़ पर. मरते, बीमार, असहाय, सहमें. लोगों का दुःख भी उनके जाने बिना ही. दुबका है किताबों में. अपने हर संभव कोण में. प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. किताब&...समय क...
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हिसालू-काफल: March 2008
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हिसालू-काफल. मार्च 20, 2008. आयो नवल बसंत, सखि ऋतुराज कहायो. ये फोटो युगमंच वाले प्रदीपदा ने भेजी है ब्लाग पर लगाने के लिए। धन्यवाद प्रदीप दा।). प्रस्तुतकर्ता. दीपा पाठक. 6 टिप्पणियां:. लेबल: होली. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). बच्चों का कमरा. वन्या और अरण्य. सोनापानी. अब मैं यहां रहती हूं. अब तक लिखा. अम्मा-पापा और पेरेंटिंग. उपभोक्तावाद. एक पहल अच्छी सी. कविता जैसा कुछ. किताब जो अच्छी लगी. किताबें. कुछ चेहरे मेरे आसपास. कुछ भी नहीं. बारिश और खाना.