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समस्या पूर्ति मंच: October 2011
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This Blog is merged with. सोमवार, 31 अक्तूबर 2011. विज्ञान के आगे चले ये हो कसौटी काव्य की. साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन. आ सामने तेरे, कसौटी स्वर्ण भी चढ़ता नहीं. चाँदी करे अनुरोध, मुझको, सामने जाना नहीं. हिमखण्ड, हर हीरा हुआ, हत-प्राण, हीरक-हार है. जब राह भूले तू, वही दिन, हाट का त्यौहार. हर कल्पना की भावना बन, तू सदा सजती रहे. संगीत गर तू ही हमारे - गीत का बनती रहे. मेरा मानकर, सँग - सँग सदा चलती रहे. विज्ञान के आगे चले, ये हो कसौटी. काव्य की ४. जय माँ शारदे! इसे ईमेल करें. दीप अवलि. हरिगी...
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साहित्यम्: 01/10/13 - 01/11/13
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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. राजस्थानी-गजल. हिमाचली-गजल. पंजाबी-गजल. गुजराती-गजल. भोजपुरी-गजल. अपनी हद पर ही कमोबेश क़दम रखते हैं - नवीन. नया काम]. अपनी हद पर ही कमोबेश क़दम रखते हैं. हम समन्दर हैं किनारों का भरम रखते हैं. उन से किस तर्ह निभे आप ही कहिये साहब. वो तो जब देखो तराज़ू पे क़लम रखते हैं. अब हमें तैश नहीं बल्कि तरस आता है. जब हथेली पे नज़रबाज़ रक़म रखते हैं. एक भी मन का मरज़ हम से मिटाया न गया. सितमगर है. जंजीरें. 2122 1122 1122 2.
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साहित्यम्: पुस्तक समीक्षा - ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर (‘सज्जन’ धर्मेन्द्र) - ज़हीर कुरैश
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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. राजस्थानी-गजल. हिमाचली-गजल. पंजाबी-गजल. गुजराती-गजल. भोजपुरी-गजल. पुस्तक समीक्षा - ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर (‘सज्जन’ धर्मेन्द्र) - ज़हीर कुरैशी. अंजुमन प्रकाशन. इलाहाबाद के साहित्य सुलभ संस्करण की आठ काव्य पुस्तकों के लोकापर्ण के अवसर पर दिनांक. डॉ अख़्तर नज़्मी का एक शे’र है. बात करती हैं किताबें. पढ़ने वाला कौन है।. ऐसे बाजारवादी समय में. अंजुमन प्रकाशन. इलाहाबाद की. 8 पुस्तकों के...जो बच्च&#...लेक...
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साहित्यम्: 01/04/14 - 01/05/14
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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. राजस्थानी-गजल. हिमाचली-गजल. पंजाबी-गजल. गुजराती-गजल. भोजपुरी-गजल. वर्ष 1 अङ्क 4 मई 2014. सम्पादकीय. प्रणाम।. परसेण्टाइल. वाले बच्चे भी पढ़ते हुये मिल जाएँ तो आश्चर्य नहीं। क्या सोचते होंगे ये बच्चे - ऐसी स्थिति में? क्या हम उन्हें अराजक नहीं बना रहे? 3] अच्छे काम-धन्धे से लगें - अच्छा काम-धन्धा! कौन सा काम-धन्धा अच्छा रह गया है भाई? विद्वत्जन! आपका अपना. नवीन सी. चतुर्वेदी. Click on the Links]. हम भले और ...
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साहित्यम्: 01/08/13 - 01/09/13
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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. राजस्थानी-गजल. हिमाचली-गजल. पंजाबी-गजल. गुजराती-गजल. भोजपुरी-गजल. अगर अपना समझते हो तो फिर नखरे दिखाओ मत - नवीन. अगर अपना समझते हो तो फिर नखरे दिखाओ मत. ये कलियुग है. इसे द्वापर समझ कर भाव खाओ मत. हम इनसाँ हैं. मुसीबत में - बहुत कुछ भूल जाते हैं. अगर इस दिल में रहना है तो फिर ये दिल दुखाओ मत. न ख़ुद मिलते हो. ना मिलने की सूरत ही बनाते हो. दुःखभंजन. मुआफ़ी चाहता हूँ. 1222 1222 1222 1222. Links to this post.
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साहित्यम्: 01/11/13 - 01/12/13
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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. राजस्थानी-गजल. हिमाचली-गजल. पंजाबी-गजल. गुजराती-गजल. भोजपुरी-गजल. घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते - नवीन. घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते. दब कें रहनौ परौ दद्दा जो हते. बिन दिनन खूब ई मस्ती लूटी. हम सबन्ह के लिएँ बच्चा जो हते. आप के बिन कछू नीकौ न लगे. टोंट से लगतु एँ सीसा जो हते. चन्द बदरन नें हमें ढाँक. और का करते चँदरमा. जो हते. पैठ पाए न महल के. आप के बिन ज़रा अच्छा न लगे. पैठ पाए न महल के. Links to this post.
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साहित्यम्: 01/07/14 - 01/08/14
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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. राजस्थानी-गजल. हिमाचली-गजल. पंजाबी-गजल. गुजराती-गजल. भोजपुरी-गजल. साहित्यम् - वर्ष 1 - अङ्क 6 - जुलाई-अगस्त' 2014. सम्पादकीय. सो फौरन ही सवाल किया. भाई साहब आप ने अङ्क पढ़ा. अरे जनाब मैं तो इन्तज़ार में रहता हूँ कि कब साहित्यम आये और मैं उसे पढ़ूँ।. शुक्रिया। आप को साहित्यम में क्या अच्छा लगा. हर काम अच्छा है साब। कविता. ग़ज़ल या व्यंग्य सब कुछ। चुट्कुले [. और वर्ग-पहेली [. हाँ-हाँ. आशा करते है...व्यं...
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समस्या पूर्ति मंच: November 2011
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This Blog is merged with. रविवार, 27 नवंबर 2011. हरिगीतिका - समापन पोस्ट - रसधार छंदों की बहा दें, बस यही अनुरोध है. सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन. अम्बरीष श्रीवास्तव. अम्बरीष श्रीवास्तव. मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है।. सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है।।. अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है।. रसधार छंदों की बहा दें, बस यही अनुरोध. है।१।. यह आधुनिक परिवेश, इसमें, हम सभी पर भार है।. है।२।. तब तो कसौटी. पर कसें हम, आज अपने आप को।३।. अपनी बात -. ब्लॉग क...मंच...
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समस्या पूर्ति मंच: January 2011
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This Blog is merged with. शनिवार, 29 जनवरी 2011. पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - मयंक अवस्थी जी [६] और रवि कांत पाण्डेजी [७]. सम्माननीय साहित्य रसिको. पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं. भाई श्री मयंक अवस्थी जी:-. निर्निमेष तुमको निहारती. विरह –निशा तुमको पुकारती. मेरी प्रणय –कथा है कोरी. तुम चन्दा, मैं एक चकोरी १. खत भी तुमको भिजवाया पर. शलभ, वर्तिका तक आया पर. कब सुनते हो शून्य कथायें. महाअशन में ये समिधायें २. इस आयोजन को गति प्रदì...पहले समस्...शनि...
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समस्या पूर्ति मंच: February 2011
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This Blog is merged with. शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011. दूसरी समस्या पूर्ति - दोहा - पूर्णिमा जी और निर्मला जी [1-2]. सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन. अनुभूति. अभिव्यक्ति. एवं नवगीत की. पाठशाला. यानि पूर्णिमा वर्मन. जोश, जश्न, पिचकारियाँ, अंबर उड़ा गुलाल. हुरियारों की भीड़ में, जमने लगा धमाल 1. शहर रंग से भर गया, चेहरों पर उल्लास. गली गली में टोलियाँ, बाँटें हास हुलास 2. हवा हवा केसर उड़ा, टेसू बरसा देह. ढोलक से मिलने लगे, चौताले के बोल. होली के त्यौहार. रंग लगाऊँ आज क्या, द&...पर, सखियाँ...होल...