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जज़्बात: छत्तीस का आकड़ा है ….
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Wednesday, May 23, 2012. छत्तीस का आकड़ा है …. छत्तीस का आकड़ा है. क़दमों में पर पड़ा है. आंसुओं को छुपा लेगा. जी का बहुत कड़ा है. उंगलियां उठें तो कैसे? कद उनका बहुत बड़ा है. लहुलुहान तो होगा ही. पत्थरों से वह लड़ा है. कब का मर चुका है. वह जो सामने खड़ा है. खाद बना पाया खुद को. महीनों तक जब सड़ा है. कल सर उठाएगा बीज. आज धरती में जो गड़ा है. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण). May 23, 2012 at 9:07 PM. May 23, 2012 at 9:47 PM. May 23, 2012 at 10:01 PM.
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खुशबु तेरी | Gaurav Sangtani
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ग रव स गत न. क छ ख व ब ब खर स ………. Laquo; ज दग य चल. आज ब छड ह …. ग लज़ र. July 13, 2009 by Gaurav Sangtani. महक महक स एहस स ह …. एक अरस ह आ त झक द ख ह ए…. पर त हर लम ह म र प स ह …. 8211; ग रव स गत न. Posted in ख व ब. On July 13, 2009 at 6:40 am. Khushboo kuchh aisi hi hoti hai mahboob ki……………bahut sundar. On July 13, 2009 at 8:04 am. व ह, ज बह त स न दर शब द ह. प र म अ ध ह त ह – व ज ञ न क श ध. On July 13, 2009 at 10:19 am. Waah ye ehsaas -o-khusbu ka tarana bahut sunder hai. On July 13, 2009 at 12:53 pm.
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जज़्बात: अभिशप्त दायरा …..
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Monday, April 2, 2012. अभिशप्त दायरा …. कभी हतप्रभ. तो कभी हताश. ढूढता है वह. अपना आकाश. यूं तो वह. अत्यंत सहनशील है. पथप्रदर्शकों (? द्वारा बताए मार्ग पर. निरंतर गतिशील है,. कोल्हू के बैल सा. वृत्ताकार मार्ग के. मार्ग-दोष से बेखबर. चलता ही जा रहा है. या शायद. बेबस और लाचार. खुद को. छलता ही जा रहा है. कदाचित उसे पता ही नहीं है. उसके श्रम का परिणाम. आश्रित है,. वेग और विस्थापन पर. कितना भी चले वह. उनके बताए रास्ते पर. निश्चित ही. जब भी वह. जब भी वह. इस ज...
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www.freespaceofindia: एक कहानी
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शनिवार, 23 मई 2009. एक कहानी. एक कहानी मैं लिखती हू , एक कहानी तू भी लिख! बादल बादल मैं लिखती हू ,पानी पानी तू भी लिख. बीत गई जो अपनी यादें,उन यादों को भी तू लिख! एक निशानी मैं लिखती हू, एक निशानी तू भी लिख. इस कलम में डाल के स्याही, लिख दे जो मन में आए! नई कहानी मैं लिखती हू ,एक पुरानी तू भी लिख. जीवन की इस भाग दौड़ में, क्या खोया तुमने हमने? एक जवानी मैं लिखती हू, एक जवानी तू भी लिख. प्रस्तुतकर्ता Reecha Sharma. 51 टिप्पणियां:. ने कहा…. Bahutbahut hi achchhi kavita hai. 23 मई 2009 को 7:58 am. हर व...
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जज़्बात: इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है ….
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Tuesday, May 8, 2012. इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है …. खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है. इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है. चूहों ने कुतर डाले हैं कान आदमी के. शायद इस शहर में चूहेदानी नहीं है. चहलकदमी भी है, सरगोशियाँ भी हैं. मंज़र मगर फिर भी तूफानी नहीं है. आये दिन लुट जाती है अस्मत यहाँ. कौन कहता है यह राजधानी नहीं है. अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो. बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया. प्रस्तुतकर्ता. बहुत सुंदर. हर शेर लाजवाब. May 8, 2012 at 10:57 PM.
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कलम « रज़िया "राज़"
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र ज़ क अपन कव त ऎ. स मग र पर ज ए. द श भक त रस. अगस त 2, 2009. ह बड उसम ज दम. चल पड उसक कदम. द ख क य करत कलम. कभ ह त ह नरम. कभ ह त ह गरम. द ख क य करत कलम. छ ड द त ह शरम. ख ल द त ह भरम. द ख क य करत कलम. कभ द त ह ज़ख़म. कभ द त ह मरहम. द ख क य करत कलम. कभ ल त ह वहम. कभ ल त ह रहम. द ख क य करत कलम. कभ बनत ह नज़म. कभ बनत ह कसम. द ख क य करत कलम. ल ख नन ह उसक धरम. चलन ह उसक करम. द ख क य करत कलम. यह प रव ष ट सम ज रस. म प स ट क गई थ ब कम र क कर पर म ल क. क य क स रह! 16 ट प पण य. ज ल ई 14, 2011 क 5:02 अपर ह न पर. आपस एक...
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aajtak yahantak: बोले तू कौनसी बोली ? ५
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रविवार, 21 जून 2009. बोले तू कौनसी बोली? कई किस्से ऐसे हैं, जो मै कभी लिख नही पाउंगी! कहना कुछ चाह रही थी, और कहा कुछ! वो भी भरी महफिल मे! सुनने वाले तो पेट पकड़ के हँस रहे थे, और मुझे लग रहा था, कि, ज़मीं मे गड़ जाऊँ! तो ऐसी बातों को छोड़ के आगे बढ़ती हूँ! मैंने कहा," फिर एक बार पढो."! उसने दोबारा वैसे ही पढा. मैंने वही बात दोहराई! पता है, लेकिन तुम्हारा उच्चारण ग़लत है! मैंने बिना किताब देखे ही उसे बताया. होही नही सकता! उसने बहस करनी शुरू कर दी! कमाल है? उधर से फिर एक सवाल हुआ! क्या कहा? ना बा...अच्...
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प्रहर « रज़िया "राज़"
https://razia786.wordpress.com/2008/09/09/प्रहर
र ज़ क अपन कव त ऎ. स मग र पर ज ए. द श भक त रस. स तम बर 9, 2008. अ ध र ह भ ग प रहर ह चल ह. पर द क उसक ख़बर ह चल ह. स ह न सम ह ह स ह य म ज़र. य म ठ स ह न सहर ह चल ह. कट र त क क छ ख़य ल म अब य. ज इठल त क स लहर ह चल ह. ज नद य स म लन क च हत ह उसक. उछलत मचलत नहर ह चल ह. स ह न -स र गत क अपन म ब ध. य त तल ज ख ल ह ए पर चल ह. ह क़ दरत क पहल म जन नत क ख शब. ब ख़र क जगत म असर ह चल ह. म र बस म ह त पकडल नज़ र. अब त उमर ह चल ह. यह प रव ष ट प रक त रस. म प स ट क गई थ ब कम र क कर पर म ल क. इरश द न कर →. शरद त ल ग. બહ જ સ દર પ ક ત.
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दिल ने कहा........: आधुनिक नारी
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Saturday, 7 March 2009. आधुनिक नारी. बाहर से टिप-टाप. भीतर से थकी-हारी. 2404;सभ्य, सुशिक्षित, सुकुमारी. फिर भी उपेक्षा की मारी. 2404;समझती है जीवन में. बहुत कुछ पाया है. नहीं जानती-ये सब. छल है, माया है।. घर और बाहर. दोनों मेंजूझती रहती है।. अपनी वेदना मगर. किसी से नहीं कहती है. 2404;संघर्षों के चक्रव्यूह. जाने कहाँ से चले आते हैं? विश्वासों के सम्बल. हर बार टूट जाते हैं. किन्तु उसकी जीवन शक्ति. फिर उसे जिला जाती है. 2404;संघर्षों के चक्रव्यूह से. नारी का जीवन. कल भी वही था-. 2404;आज भी वह. निæ...
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