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पतझड़ | The Fall of Leaves...: शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक्षक दिवस पर विशेष
http://diary.sushilkumar.net/2009/09/blog-post_05.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक. New Dimensions to Blog patjhad- [The fall of lea. पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार. पतझड़ The Fall of Leaves. अगर आपका व...
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार
http://diary.sushilkumar.net/2009/09/blog-post_03.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक. New Dimensions to Blog patjhad- [The fall of lea. पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार. पतझड़ The Fall of Leaves. ४) दो और ल...
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: New Dimensions to Blog 'patjhad'- [The fall of leaves] - Sushil Kumar.
http://diary.sushilkumar.net/2009/09/new-dimensions-to-blog-patjhad-fall-of.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक. New Dimensions to Blog patjhad- [The fall of lea. पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार. पतझड़ The Fall of Leaves. N the Link - Bar a ...
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: पतझड़ का नया कलेवर शीघ्र ही ...
http://diary.sushilkumar.net/2009/09/blog-post.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक. New Dimensions to Blog patjhad- [The fall of lea. पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार. पतझड़ The Fall of Leaves. Black and white (1).
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: May 2009
http://diary.sushilkumar.net/2009_05_01_archive.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! कड़ी- [४] अजन्मी कविता की कोख़ से जन्मी कविता: एक स. पतझड़ The Fall of Leaves. अपनी पसंद. मुख्यपृष्ठ. सभी पृष्ठ. स्मृति-दीर्घा. अक्षर जब शब्द बनते हैं. Subscribe to: Posts (Atom).
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: September 2009
http://diary.sushilkumar.net/2009_09_01_archive.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक. New Dimensions to Blog patjhad- [The fall of lea. पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार. पतझड़ The Fall of Leaves. Black and white (1).
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: January 2009
http://diary.sushilkumar.net/2009_01_01_archive.html
यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! कड़ी - [3] कवि विजेन्द्र जी आज तिहत्तर की वय के ह. पतझड़ The Fall of Leaves. अपनी पसंद. मुख्यपृष्ठ. सभी पृष्ठ. स्मृति-दीर्घा. अक्षर जब शब्द बनते हैं. Subscribe to: Posts (Atom).