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गीत-ग़ज़ल: 03/17/15
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गीत-ग़ज़ल. मंगलवार, 17 मार्च 2015. होली में मन रँग बैठी है. व्यस्तता की वजह से होली पर लिखा गीत होली के मौके पर पोस्ट नहीं कर पाई . आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है. एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है. सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है. दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है. हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे. ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 3 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. 1 दिन पहले. विदा...दूर...
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गीत-ग़ज़ल: 02/01/15
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गीत-ग़ज़ल. रविवार, 1 फ़रवरी 2015. ज़िन्दगी का निशाँ. ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो. के तन्हा सफ़र कटता नहीं. दम घुटता है के. साहिल का पता मिलता नहीं. जगमगाते हुए इश्क के मन्जर. रूह को ऐसा भी घर मिलता नहीं. तुम जो आओ तो गुजर हो जाए. मेरे घर में मेरा पता मिलता नहीं. लू है या सर्द तन्हाई है. एक पत्ता भी कहीं हिलता नहीं. ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो. बुझे दिल में चराग जलता नहीं. तुम्हीं तो छोड़ गई हो यहाँ मुझको. ज़िन्दगी का निशाँ मिलता नहीं. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 2 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. 12 घंटे पहले. एक ग़ज़ल : सपन...
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गीत-ग़ज़ल: 11/15/14
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गीत-ग़ज़ल. शनिवार, 15 नवंबर 2014. वक़्त की नफ़ासत. है अदब भी फासले के दूसरा नाम. होती है यूँ भी इबादत कभी-कभी. जंजीरों की तरह रोक लेतीं हैं जो. दीवारें भी बोलतीं हैं राहों की इबारत कभी-कभी. चुप हो के भले बैठे दिखते हैं जो. करते हैं वो भी बगावत कभी-कभी. है आसाँ नहीं हवाओं का रुख मोड़ना. करता है ज़मीर ही खिलाफत कभी-कभी. लिखता है भला कौन ज़ुदाई के नगमे. चुभती है ये भी हरारत कभी-कभी. चलता रहता है आदमी बिना सोचे-समझे. अटका तो समझ आती है वक़्त की नफ़ासत कभी-कभी. 3 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. वक़्त की नफ़ासत. गीत गì...
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गीत-ग़ज़ल: 06/02/15
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गीत-ग़ज़ल. मंगलवार, 2 जून 2015. हाल अपना क्यूँ सुनाएँ. लम्हों ने कीं ख़ताएँ. सदियों ने पाईं सजाएँ. सहर सी खिलीं फिज़ाएँ. मरघट सी सूनीं खिज़ाएँ. लफ़्ज़ों में क्या बताएँ. हाल अपना क्यूँ सुनाएँ. फूलों को जो दिखाएँ. काँटों पे चल बताएँ. ज़िन्दगी की हैं अदाएँ. सहरां में फूल खिलाएँ. बर्फ सी ठण्डी शिलाएँ. चिन्गारी किस को दिखाएँ. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 2 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). सफर के सजदे में. लोड हो रहा है. . . 12 घंटे पहले. आईआईटीयन च&...
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गीत-ग़ज़ल: 05/12/15
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गीत-ग़ज़ल. मंगलवार, 12 मई 2015. बगावत भी नहीं. उठते हैं दुआओं में जब हाथ मेरे. लब हिलते ही नहीं. टूटा है भरोसा मेरा. अल्फ़ाज़ निकलते ही नहीं. पड़ गये छाले हैं. चला जाता ही नहीं. है कैसा सफर ये. सूलियाँ दिखती ही नहीं. और जाऊँ भी किधर. रूह का शहर मिलता ही नहीं. नहीं बनना है तमाशा मुझको. साबुत हूँ , आँख में पानी भी नहीं. एक धीमा सा जहर उतरा है. मेरी रगों में , बगावत भी नहीं. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 0 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सफर के सजदे में. 1 दिन पहले. आईआईट...
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गीत-ग़ज़ल: 11/30/14
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गीत-ग़ज़ल. रविवार, 30 नवंबर 2014. ऐसे हमको दो पर मौला. सपने ओढूँ ,सपने बिछाऊँ. मगर हकीकत से जी न चुराऊँ. कुछ ऐसी करनी कर मौला. मेरी ज़िन्दगी में भी ,कोई रँग तो भर मौला. कितना खोया , कितना पाया. लाख सँभाला ,कहाँ टिक पाया. चला-चली का मेला है बेशक. मेरे हिस्से में भी , कोई रहमत तो कर मौला. किसी ने दस्तर-खान बिछाया. किसी ने पँखों को सहलाया. लाख ज़ुदा हों अपनी राहें. कोई फ़लक तो हमको मिला दे. ऐसे हमको दो पर मौला. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 1 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. नई पोस्ट. 1 दिन पहले. एक ग़ज़ल : सपन...
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गीत-ग़ज़ल: 01/21/15
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गीत-ग़ज़ल. बुधवार, 21 जनवरी 2015. शहर-दर-शहर गुजरे. न बुलाओ हमें उस शहर में किताबों की तरह. बयाँ हो जायेंगे हम जनाज़ों की तरह. मुमकिन है खुशबुएँ जी उट्ठें. किताबों में मिले सूखे गुलाबों की तरह. जाने किस-किस के गले लग आयें. हाथ से छूट गये ख़्वाबों की तरह. यादों के गलियारे कहाँ जीने देते. चुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह. डूब जायेंगे हम आँसुओं में देखो. न उधेड़ो हमें परतों में प्याजों की तरह. चलना पड़ता है सहर होने तलक. शहर-दर-शहर गुजरे मलालों की तरह. 11 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Dcember notes part 2.
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गीत-ग़ज़ल: 01/12/15
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गीत-ग़ज़ल. सोमवार, 12 जनवरी 2015. सदियों को दो आराम. जाओगे कहाँ कोई सत्कर्म करने तुम. चेहरे पे खिला दो किसी के तुम कोई मुस्कान. लो हो गया भजन , लो हो गया भजन. घर में हों गर माँ-बाप दादा-दादी से बुजुर्ग. तन-मन से करो सेवा ,अपना जनम सफल. खिल जायेगा उनकी दुआओं का चमन. लो हो गया भजन , लो हो गया भजन. बन कर के किसी पेड़ से , तुम सह लो सारी घाम. पथिकों को दो छाया , सदियों को दो आराम. हर ठूँठ पर फूल उगाने का हो जतन. लो हो गया भजन , लो हो गया भजन. लो हो गया भजन , लो हो गया भजन. नई पोस्ट. 1 दिन पहले. 3 सप्त&#...
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गीत-ग़ज़ल: 11/06/14
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गीत-ग़ज़ल. गुरुवार, 6 नवंबर 2014. दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा. A few lines for my loving daughter . अपने क़दमों से तूने नापी दुनिया. दिल बड़ा मुझे करना पड़ा. तेरी उड़ानों में है आगे बढ़ने का मज़ा. दिल कड़ा मुझे करना पड़ा. सूरज वही , चन्दा भी वही ,. तुझसे जुदा ,घूँट ये भी मुझे भरना पड़ा. सुनूंगी ,महसूस भी करुँगी तुझे. झप्पी जादू की से महरूम मुझे होना पड़ा. शाम होते ही आते लौट परिन्दे घर. नीड़ यादों से रौशन मुझे करना पड़ा. तेरी आहट से सज जाता था इन्तिज़ार भी. 4 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. 1 दिन पहले. 4 सप्त&#...
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गीत-ग़ज़ल: 10/11/14
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गीत-ग़ज़ल. शनिवार, 11 अक्तूबर 2014. व्रत है या ये कोई पर्व है. आसमाँ में चन्दा ,झिलमिल तारों की छाया. रात के अन्तिम पहर में जग कर. बैठ सुहागन सर्घी करती. अन्न दही फल मेवा मिष्ठान और नारियल. शगुनों भरी है थाली. करवा-चौथ का व्रत है साजन. अपने प्रिय की है वो प्रेयसि. नस-नस में रँग भरती. निर्जल व्रत है , सोलह श्रृंगार कर. सज-धज कर और थाली सजा कर. सारी सुहागनें बैठ कथा हैं सुनतीं. चाँद की पूजा करने के बाद ही. मुँह में ग्रास वो रखतीं. आशीर्वाद बड़ों से लेकर ,. चलो पकड़ कर हाथ सजनवा. नई पोस्ट. विदाई स...दूर...
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