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वातायन: November 2012
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. शुक्रवार, 2 नवंबर 2012. वातायन-नवंबर,२०१२. हम और हमारा समय. विकास के रथ में भ्रष्टाचार का पहिया. रूपसिंह चन्देल. सभी एक-मत हैं– एक जुट हैं. ऎसा पहली बार हो रहा है और इसलिए पहली बार. हो रहा है क्योंकि किसी व्यक्ति ने. एक साथ सभी को बेनकाब कर आम जनता को उनके असली चेहरे दिखाए हैं. 2404; अपने एक इंटरव्यू में. डेड लाइन. प्रेम प्रकाश. पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव. एसपी. आनन्द. गन में गेंद से खेलनेवाला. और जो भी सब्ज़ी बनती. हो सकता है. ताया की प&#...पहोवì...
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वातायन: December 2013
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. मंगलवार, 3 दिसंबर 2013. वातायन-दिसम्बर,२०१३. हम और हमारा समय. लड़कियां और सामन्ती सोच. रूपसिंह चन्देल. से जुड़े वे तथ्य. थे जिन्हें तलवार दम्पति ने छुपाए या पुलिस को उनके संबन्ध में भटकाने का प्रयास किए. विद्वान जज ने दोनों को उम्रकैद. की सजा के छब्बीस आधार. कारणों से जो त्यधिक व्यस्त रहते थे…सूत्रों के. प्राण शर्मा की तीन लघु कथाएँ. अहिंसावादी. लिए उसके आगे कर देना चाहिए।. बिच्छु है। मार गिराइये। `. मुझ अहिंसावादी को क...बिच्छु अकस्म...मारता ह&#...सोन...
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वातायन: December 2014
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. गुरुवार, 11 दिसंबर 2014. वातायन-दिसम्बर,२०१४. अपनी बात. मित्रो,. स्वर्ण मंदिर). वाह अंबरसर! वाह-वाह वाघा! रूपसिंह चन्देल. 1977 के अक्टूबर माह की बात है. एक मित्र से यशपाल का. झूठा सच. प्राप्त हुआ. विभाजन की त्रासदी ने मेरे अंदर हलचल मचा दी. उस उपन्यास के पात्र आज भी मेरे अंदर जीवित हैं. यद्यपि उसके बाद मैंने भीष्म साहनी का. वाह कैंप. भी परन्तु. झूठा सच. से इन दोनों की तुलना नहीं की. जा सकती. झूठा सच. को विश्व के. है. वह. लेकिन मेरा. आभिप्राय. लेकि...हुआ...
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वातायन: August 2014
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. शनिवार, 30 अगस्त 2014. वातायन-सितम्बर,२०१४. हम और हमारा समय. आत्मीय,जीवन्त,खुद्दार और अति संवेदनशील व्यक्ति. रूपसिंह चन्देल. सम्पादकों, लेखक मित्रो, और उन पाठकों को जो मेरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते थे. रचनात्मक कारणों से होता. विशेषांक तो बहु-चर्चित रहे. क़मर भाई ने. एक बार का वाकया याद आ रहा है. ही अच्छा. आपकी चेहरा कहानी सण्डे मेल प्रकाशित देखी. लेकिन दो लोगों की उन्होंने. चाहकर भी साक्षात्कार. नहीं कर पाया. लेकि...अकस्मात प्र&#...पां...आज सí...
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वातायन: April 2014
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. सोमवार, 28 अप्रैल 2014. वातायन-मई,२०१४. हम और हमारा समय. क्या कर सकती है भीड़! रूपसिंह चन्देल. लेकिन कब तक? वे भूल गए हैं कि इसी भीड़ ने एक दिन रूस के जार का तख्त पलट दिया था…और उसके साथ क्या हुआ था- -! अशोक बाजपेई). किताबें हमें बनाती हैं, किताबें हमें गढ़ती हैं. अंजना बख्शी. आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक. मैं रसूल हमज़ातोव को धन्यवाद देती थी…. एक इंसानी आत्मा,. कैसे सीख पाए. समझ नहीं पाती. जब भी उमड़ती है. यादे...उन लम...
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वातायन: September 2013
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. सोमवार, 30 सितंबर 2013. वातायन-अक्टूबर,२०१३. हम और हमारा समय. राजनीति और अपराधों का बढ़ता ग्राफ. रूपसिंह चन्देल. की पृष्ठभूमि में राजनीतिज्ञ ही होते हैं. चाहे १९८४. जी की दस गज़लें. काँटों. न्यौते. कामयाबी. क्यों. ख्वाहिशों. मालामाल. दोस्तों. प्यारे. गुनगुनी. डालियाँ. नन्हीं. कलियों. किसीकी. बिठलाया. बेरुखी. नाराजगी. किसीके. बच्चों. खुशियों. ढिंढोरा. पिटवाया. दिखलाया. दोस्तो. ज्यों. प्यारा. मारिये. दोस्तो. दुनिया. क्यों. दोस्तो. छिपाता. बच्चों. उन्हो...
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वातायन: June 2014
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. रविवार, 29 जून 2014. वातायन-जुलाई,२०१४. हम और हमारा समय. अनुवाद भी रचनात्मक कर्म है. रूपसिंह चन्देल. डॉ. काशीनाथ सिंह की पुस्तक ’आलोचना भी रचना है’. अनुवाद दो भाषाओं के मध्य सेतु का कार्य करता है. अमृत राय द्वारा अनूदित ’स्पार्टकस’. का अनुवाद ’आदि विद्रोही’. 8217;कॉल ऑफ दि वाइल्ड’ का अनुवाद. 8217;जंगल की पुकार’. जुड़ते हैं. मेरे मित्रो में सूरज प्रकाश. की एन फ्रैंक की डायरी और चार्ल चैप्लिन. मेरा यह. इस बार वातायन में प्रस&#...उन्होंने ...मैंनí...काग...
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वातायन: February 2013
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. रविवार, 10 फ़रवरी 2013. वातायन-फरवरी,२०१३. मेरी अपनी बात. रूपसिंह चन्देल. इस बार ’वातायन’ में मेरे स्थायी स्तंभ. 8217;हम और हमारा समय’. में प्रस्तुत है चर्चित लेखिका और समाज सेविका शालिनी माथुर का आलेख. 8217;मृतात्माओं का जुलूस’. 8217;रचना समय’. में प्रकाशित किए थे, जिनकी अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई थी. इस संदर्भ में मेरे एक मित्र का कहना है कि. आपका क्या विचार है? औरत के नज़रिये से. मृतात्माओं का जुलूस. शालिनी माथुर. कोलकता के एक कì...व्या...
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वातायन: February 2015
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015. वातायन-मार्च,२०१५. मित्रो,. प्राण शर्मा की ग़ज़लें. वो सबके दिल लुभाता है कभी हमने नहीं देखा. कि कौवा सुर में गाता है कभी हमने नहीं देखा. ये सच है झोंपड़े सबको गिराते देखा है लेकिन. महल कोई गिराता है कभी हमने नहीं देखा. जवानी सबको भाती है चलो हम मान लेते हैं. बुढ़ापा सबको भाता है कभी हमने नहीं देखा. जो करता है सभी की निंदा यारो उससे मिलने को. सब्र करने की कोई हद होती है ऐ साहिबो. उसकी खुशियों में...आग अपने आशियाने...दर्द कितन...उंग...