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किस्सा-कहानी

किस्सा-कहानी. रविवार, 6 नवंबर 2011. विरुद्ध. अपने दूसरे ब्लॉग ". अपनी बात. दिनों. चेहरों. वर्षों. चिंतित. रिश्ता. मांगने. शब्दों. वैवाहिक. रिश्ता. विजातीय. उन्होंने. सम्बन्धित. जानकारियां. व्यवस्थित. सोफ़ों. क्रॉकरी. जिन्हें. इस्तेमाल. निकाले. उत्साहित. लिखेंगे. सिखाया. म्यूज़. डिग्री. रियाज़. तानपूरा. इलाहाबाद. उन्होंने. औपचारिकता. प्रतिष्ठा. मुताबिक. फेंकूं. खिलखिलाऊं. मुस्कुराते. आमंत्रित. आमंत्रित. साड़ी. पार्टी. इन्तज़ाम. परिचितों. दा को. हूं। सच. शशि दा. उन्होंने. रागमाला. लोगों. 2404; हॉल. और ज...

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किस्सा-कहानी. रविवार, 6 नवंबर 2011. विरुद्ध. अपने दूसरे ब्लॉग . अपनी बात. दिनों. चेहरों. वर्षों. चिंतित. रिश्ता. मांगने. शब्दों. वैवाहिक. रिश्ता. विजातीय. उन्होंने. सम्बन्धित. जानकारियां. व्यवस्थित. सोफ़ों. क्रॉकरी. जिन्हें. इस्तेमाल. निकाले. उत्साहित. लिखेंगे. सिखाया. म्यूज़. डिग्री. रियाज़. तानपूरा. इलाहाबाद. उन्होंने. औपचारिकता. प्रतिष्ठा. मुताबिक. फेंकूं. खिलखिलाऊं. मुस्कुराते. आमंत्रित. आमंत्रित. साड़ी. पार्टी. इन्तज़ाम. परिचितों. दा को. हूं। सच. शशि दा. उन्होंने. रागमाला. लोगों. 2404; हॉल. और ज&#2...
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KEYWORDS
1 बहुत
2 पापा
3 ठहाके
4 सुनाई
5 थकान
6 बावजूद
7 भाभी
8 किचन
9 व्यस्त
10 दिखाई
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बहुत,पापा,ठहाके,सुनाई,थकान,बावजूद,भाभी,किचन,व्यस्त,दिखाई,सबके,खुशी,देखने,लायक़,कहूं,मेरा,बेहद,हल्का,पिछले,मेरे,विवाह,लेकर,इतने,परेशान,उनकी,हालत,देखते,मुझे,लगता,कैसे,कहीं,जाये,अन्यथा,शादी,मेरी,इच्छा,सुनील,झोली,बदले,सारी,लताड़,अपमानजनक,दिया,पीछे,परिपक्व
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किस्सा-कहानी | wwwvandanaadubey5.blogspot.com Reviews

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किस्सा-कहानी. रविवार, 6 नवंबर 2011. विरुद्ध. अपने दूसरे ब्लॉग ". अपनी बात. दिनों. चेहरों. वर्षों. चिंतित. रिश्ता. मांगने. शब्दों. वैवाहिक. रिश्ता. विजातीय. उन्होंने. सम्बन्धित. जानकारियां. व्यवस्थित. सोफ़ों. क्रॉकरी. जिन्हें. इस्तेमाल. निकाले. उत्साहित. लिखेंगे. सिखाया. म्यूज़. डिग्री. रियाज़. तानपूरा. इलाहाबाद. उन्होंने. औपचारिकता. प्रतिष्ठा. मुताबिक. फेंकूं. खिलखिलाऊं. मुस्कुराते. आमंत्रित. आमंत्रित. साड़ी. पार्टी. इन्तज़ाम. परिचितों. दा को. हूं। सच. शशि दा. उन्होंने. रागमाला. लोगों. 2404; हॉल. और ज&#2...

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किस्सा-कहानी: September 2011

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किस्सा-कहानी. मंगलवार, 13 सितंबर 2011. मेरी पसंद. न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ. जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ. न तो मैं किसी का हबीब हूँ न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ. जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ. मेरा रंग-रूप बिगड़ गया मेरा यार मुझ से बिछड़ गया. जो चमन फ़िज़ाँ में उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ. 0 बहादुर शाह ज़फ़र. प्रस्तुतकर्ता. वन्दना अवस्थी दुबे. 18 टिप्‍पणियां:. लेबल: ग़ज़ल. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. चंद शेर.

2

किस्सा-कहानी: September 2010

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किस्सा-कहानी. मंगलवार, 21 सितंबर 2010. मेरी पसंद. दुष्यंत कुमार. मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,. यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।. सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,. क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।. इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,. हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।. पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,. बात इतनी है कि कोई पुल बना है. रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,. आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।. हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,. दोस्तों! प्रस्तुतकर्ता. हिन्दी गज़ल. नई पोस्ट. चंद शेर.

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किस्सा-कहानी: December 2010

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किस्सा-कहानी. मंगलवार, 21 दिसंबर 2010. मेरी पसंद. और बसन्त फिर आ रहा है. शाकुन्तल का एक पन्ना. मेरी अलमारी से निकलकर. हवा में फरफरा रहा है. फरफरा रहा है कि मैं उठूँ. और आस-पास फैली हुई चीज़ों के कानों में. कह दूँ 'ना'. एक दृढ़. और छोटी-सी 'ना'. जो सारी आवाज़ों के विरुद्ध. मेरी छाती में सुरक्षित है. मैं उठता हूँ. दरवाज़े तक जाता हूँ. शहर को देखता हूँ. हिलाता हूँ हाथ. और ज़ोर से चिल्लाता हूँ –. ना.ना.ना. मैं हैरान हूँ. मैंने कितने बरस गँवा दिये. पटरी से चलते हुए. केदारनाथ सिंह. लेबल: कविता.

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किस्सा-कहानी: August 2011

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किस्सा-कहानी. मंगलवार, 16 अगस्त 2011. करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. नमस्ते अम्मां जी". अरे कमला! खुद को समेटती हुई कमला, सुधा जी की बग़ल से होती हुई सामने आई और पूरे श्रद्धाभाव से उनकी चरण-वंदना की. आज इस तरफ़ कैसे? मामी के हियां आई थी, उनकी बिटिया का गौना रहा. हम तो पहलेई सोच लिये थे कि लौटते बखत आपसे मिलनई है. ". अरे यहां बैठो न! अरे नीचे कहां? सुधा जी ने भी निश्चिंत निश्वास छोड़ा. अरे रे रे. फिर चोट-वोट तो नहीं लगी? कैसे गिर गये? अब का बताई अम्मां जी.". उतने से नाश्त&#237...बची हुई म...रमा...

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किस्सा-कहानी: October 2010

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किस्सा-कहानी. रविवार, 17 अक्तूबर 2010. सब जानती है शैव्या. माननीय मुख्य अतिथि महोदय, गुणीजन, सुधिजन, राज्य शासन द्वारा दिया गया यह सर्वोच्च सम्मान , केवल. शैव्या जी का सम्मान नहीं, वरन मेरा, आपका, हम सबका सम्मान है, पूरे क्षेत्र का सम्मान है. पूरी नारी जाति का. पन्द्रह साल पहले जब इस अखबार के दफ़्तर में कदम रखा था उसने, तब माथुर ने ही फ़िकरा कसा था-. अच्छा. तो अब लड़कियां भी पत्रकारिता करेंगीं? पता नहीं क्या होगा? शैव्या के बैठते ही माथुर ने ट&#...ये क्या? माथुर की बुदबुद&#2...इतना अपमान त&#2...स्क...

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किस्सा-कहानी. बुधवार, 29 मई 2013. सब तुम्हारे कारण हुआ पापा. How will you calculate the atomic mass of chlorine? नहीं जानते? A bus starting from rest moves with a uniform acceleration of 0.1ms-2 for 2 minutes , find the speed acquired , and the distance travelled.". जल्दी सॉल्व करो इसे.". क्या हुआ? नहीं बनता? न कैमिस्ट्री न फिजिक्स! ज़रुरत से ज्यादा तेज़ आवाज़ हो गयी थी अविनाश की. पढता रहता है? अविनाश भी कहाँ डांटना चाहता है? औसत बुद्धि का था अविनाश. बह&#2369...राहत की सांस ल&#236...सब नौकरी ...मन क&#236...

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किस्सा-कहानी. रविवार, 6 नवंबर 2011. विरुद्ध. अपने दूसरे ब्लॉग ". अपनी बात. दिनों. चेहरों. वर्षों. चिंतित. रिश्ता. मांगने. शब्दों. वैवाहिक. रिश्ता. विजातीय. उन्होंने. सम्बन्धित. जानकारियां. व्यवस्थित. सोफ़ों. क्रॉकरी. जिन्हें. इस्तेमाल. निकाले. उत्साहित. लिखेंगे. सिखाया. म्यूज़. डिग्री. रियाज़. तानपूरा. इलाहाबाद. उन्होंने. औपचारिकता. प्रतिष्ठा. मुताबिक. फेंकूं. खिलखिलाऊं. मुस्कुराते. आमंत्रित. आमंत्रित. साड़ी. पार्टी. इन्तज़ाम. परिचितों. दा को. हूं। सच. शशि दा. उन्होंने. रागमाला. लोगों. 2404; हॉल. और ज&#2...

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अपनी बात...

अपनी बात. शुक्रवार, 19 जून 2015. तमाम रंग समेटे है- कसाब.गांधी@यरवदा.in. गांधी॒. किताबों. अन्तर्जाल. शीर्षकों. राष्ट्रीय. अन्तर्राष्ट्रीय. पुरस्कारों. सम्मानित. प्रकाशित. संग्रह में कुल ग्यारह कहानियां संग्रहीत हैं. पहली कहानी है. गांधी॒. इस कहानी की अलग ही गढन है. कहानी में कसाब और गांधी. जो कि दोनों ही समान कैदी हैं. किस तरह अपने. अपने काल विशेष की घटनाओं और उनके तमाम पहलुओं पर चर्चा करते हैं. पढना कौतुक से भर देता है. 8220; मुख्यमंत्री नाराज़ थे. 8230;” कहानी. 34 पेज़ की कहानी. 8220; चिरई. बाल&#23...

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Poesías

Viernes, 28 de noviembre de 2014. La caída de la hoja. 161;”Te quiero”! Tú me dijiste,. Y en la mitad del camino. La cara tú me volviste…. Y la desgracia me vino. Yo quedé en soledad:. 161;Envuelta en mil pensamientos…! Mi corazón ya no siento. Y arrastro mucho pesar. Cuando se asoma la noche. Y de mí se apodera,. Es miedo lo que yo tengo…. 161;terror tengo a que tú vuelvas! Ya no quiero ser tu nena…,. Ni que te acuerdes de mí;. Y olvidas que yo existí. Te he querido sin medidas…. 161;Donde tú quieras!