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उधेड़-बुन: Anatomy of an NRI
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उधेड़-बुन. Showing posts with label Anatomy of an NRI. Showing posts with label Anatomy of an NRI. Wednesday, March 27, 2013. न holiday है न holy day है. न holiday है न holy day है. बस ठंडा-ठंडा Wednesday है. होली तो हमारी कब की हो ली. पिछले weekend ही खेल ली होली. चन्द्र-तिथि में क्या रक्खा है? चढ़ते सूरज को सबने मथा है. हम भी इसके पीछे आए थे घर से. लोक-लाज सब ताक पे धर के. कि एक दिन हम आराम करेंगे. धन बहुतेरा तब तक जोड़ ही लेंगे. लेकिन वो दिन अब कब आएगा यारो? न holiday है न holy day है. Links to this post.
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उधेड़-बुन: November 2013
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उधेड़-बुन. Wednesday, November 27, 2013. गणित शुभकामनाओं का. आजकल सब कुछ नपा-तुला मिलता है. चाय में चीनी से लेकर शुभकामनाओं तक. नये साल की हुई तो एक साल की मिलती है. और जन्मदिन की? बस एक दिन! मात्र एक दिन! फ़क़त एक दिन! सिर्फ़ एक दिन! और सब के सब. उसी 24 घंटे की अवधि में. लगे रहते हैं. ताबड़तोड़ 'विश' करने में. गलती से भी. बंदे का. जन्मदिन के पहले वाला दिन. या जन्मदिन के बाद वाला दिन. सुखमय न हो जाए. फ़ेसबूक को आप. चाहे कितना ही बुरा-भला कह लो. पर एक बात तो है. कि इसकी मार्फ़त. 27 नवम्बर 2013. Links to this post.
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उधेड़-बुन: February 2014
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उधेड़-बुन. Thursday, February 20, 2014. एक दिन जड़ें उभर आएगी. सीमेंट बिछाते वक़्त. किसने सोचा था कि. जड़ें उभर आएगी. सीमेंट बिखर जाएगी. पथ में रोड़े अटकाएगी. सीमेंट बिछाते वक़्त. किसने सोचा था कि. जड़ें उभर आएगी. सीमेंट बिखर जाएगी. पथिक को कुछ क्षण के लिए रोक लेगी. दूर की ही नहीं, पास की भी. उपर की ही नहीं, नीचे की भी. दुनिया से अवगत कराएगी. ठोकर तो लगेगी. एक नया अनुभव होगा. एक याद बनेगी. जहन में एक तस्वीर खींचेगी. और चाहे कुछ हो न हो. एक कविता तो ज़रूर बनेगी. घर से निकलते वक़्त. 20 फ़रवरी 2014. 2 पाठक...
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उधेड़-बुन: July 2014
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उधेड़-बुन. Monday, July 28, 2014. दूध तो सांप पीते हैं. पहले दारू-सिगरेट पीना बुरा माना जाता था. आजकल दूध पीने पर भी रोक है. कभी-कभी तो लगता है कि. ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं एक 'जोक' है. कोई भी चैन से नहीं रहने देता है. एक जीवन और हज़ार झंझट. यह मत करो, वह मत करो. दूध मत पियो. तेल मत खाओ. और तो और अपना जन्मदिन भी नहीं मना सकते. मना लें तो 'केक' नहीं ला सकते. केक' ले भी आए तो फोटो नहीं खींच सकते. वर्ना हज़ार ताने सुनने पड़ेंगे. आपके 'केक' की वजह से देखिए. ज़मीन तक थन लटक रहे हैं. सिएटल । 513-341-6798. कोई App-...
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उधेड़-बुन: March 2015
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उधेड़-बुन. Friday, March 6, 2015. बर्फ़ भी है, बहार भी. बर्फ़ भी है, बहार भी. शीत भी है, श्रृंगार भी. सृष्टि के आधार में. फूल भी है, खार भी. जैसा बोओ, वैसा काटो. इसने किया विनाश बहुत. इसे छोड़, उसे बोयें. मानव ने किए प्रयास बहुत. सृष्टि के हैं नियम गहरे. इनसे न कभी कोई उबरे. फूल उगाए, शूल भी उगे. घर बनाए, धूल भी उड़े. जब-जब कोई शिशु जन्मे. शिशु हँसे, शिशु रोए. खाए-पीए, डायपर भरे. अभी जगे, अभी सोए. यह सृष्टि है कोई सिनेमा नहीं. कि हीरो अलग, विलेन अलग. दीपक जले, दीपक बुझे. 6 मार्च 2015. Links to this post.
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उधेड़-बुन: September 2014
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उधेड़-बुन. Thursday, September 25, 2014. मंगल के दिन मंगलयान मंगल गया. मंगल के दिन मंगलयान मंगल गया. देखते ही देखते. सीधे प्रसारण को देख के. जितने भी थे. देसी-विदेसी. अड़ोसी-पड़ोसी. विरोधी-अवरोधी). सब के सब का मन गल गया. गलना ही था. गल ही कुछ ऐसी थी. पर अपना तो भेजा फिर गया. और इनका भेजा तो फिर आएगा भी नहीं). ये क्या बात हुई. नमो के मंतर में मदर गूज़ कहाँ से आ गई? मंगलयान सा सुंदर नाम था चुना. उस में मॉम कहाँ से आ गई? माना कि. सारे वैज्ञानिक. और आखिर गर्व भी किस बात का? 25 सितम्बर 2014. Links to this post.
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उधेड़-बुन: April 2014
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उधेड़-बुन. Saturday, April 26, 2014. जीवन में अंसुवन की कमी नहीं है. जीवन में अंसुवन की कमी नहीं है. एच-वन को एच-वन से मिलती तृप्ति नहीं है. बी-वन हो, एल-वन हो या कोई भी वन हो. हरे पत्ते की बेल जब तक झुकती नहीं है. ग्रीन-कार्ड की बेल जब तक बजती नहीं है. पाकर के डॉलर भी. आँख लगती नहीं है. एच-वन सोचे कि ग्रीन-कार्ड सुखी है. ग्रीन-कार्ड सोचे कि सिटिज़न सुखी है. और सिटिज़न सोचे कि बचपन सही था. न चिंता थी, फ़िक्र थी,. न कुछ भी कहीं था. तीस साल की बेटी है. और बेटा जो पढ़ने गया तो. 26 अप्रैल 2014. Links to this post.
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उधेड़-बुन: October 2013
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उधेड़-बुन. Thursday, October 31, 2013. बड़े पत्ते गिर गए. बड़े पत्ते गिर गए. छोटे-छोटे रह गए. सूरज भी चला गया. तारे सारे रह गए. रोशनी न खास है. छाँव भी घनी न है. फिर भी रोशनी और छाँव का. आभास तो दे रहे. हर किसी के अवसान में. किसी न किसी का उत्थान है. इक ढल गया. इक उग गया. इक मिट गया. इक बन गया. इक डूब गया. इक उठ गया. इक छुप गया. इक खिल गया. इक खो गया. इक मिल गया. इक सो गया. इक जग गया. हर किसी के अवसान में. किसी न किसी का उत्थान है. काल के कगार पे. न शून्यता. न अभाव है. 31 अक्टूबर 2013. Links to this post.
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उधेड़-बुन: बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
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उधेड़-बुन. Wednesday, June 18, 2008. बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे. बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे. नए हैं तेवर और नए ही रंग हैं मेरे. शुद्ध भाषा के शीशमहल में न कैद रख सकोगे मुझको. मैं तुम्हे आगाह कर देता हूँ कि संग संग हैं मेरे. ये तेरी-मेरी भाषा का साम्प्रदायिक तर्क तर्क दो. जैसे सुंदर हैं तुम्हारे वैसे ही सुंदर अंग हैं मेरे. कहीं संकीर्णता का जंग खोखला न कर दे साहित्य को. इसलिए हर महफ़िल में छिड़ते हैं हर रोज़ जंग मेरे. 18 जून 2008. संग (उर्दू) - stone. संग (हिंदी) - with. Poems: sorted by topics.