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kunwarji's: December 2014
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मंगलवार, 2 दिसंबर 2014. जिन्दगी तुझे ही तो ढूँढ रहे थे.(कुँवर जी). अनजानों में कही छिपा होता है. जाना-पहचाना सा कोई. कभी रास्ते बदल जाते है. तब जान पड़ता है. कभी राहे वो ही रहती है. नजरिये नहीं बदलते. और लोग बदल जाते है।. फिर कही दूर किसी मोड़ पर. पलटते है हम. ना जाने क्या सोच कर. साँस समेट कर धड़कन रोक कर. और पीछे से जिन्दगी छेड़ती है हमे. कहती है कि मै यहाँ तेरी राह तक रही. तू किसकी राह देखे।. मन के चोर को मन में छिपा. आँखों मिचका कर. कहते हम भी फिर. चलो चलते है।. कुँवर जी ,. लेबल: कविता. सात सा...
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kunwarji's: May 2014
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गुरुवार, 15 मई 2014. नतीजे.(कुँवर जी). 2351;ही रात अंतिम यही रात भारी. 2330;लो नतीजो के आने से पहले सो लिया जाये! प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. 1 टिप्पणी:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: एक विचार. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). लिखिए अपनी भाषा में. ये भी कुछ कह रहे है. सुनिए तो! महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar). Donald Trump and Nationalism Wave. Or freedom of crime?
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*** जयंत चौधरी - मृत्युंजय विचार ***: उम्र के इस पड़ाव पर, कुछ भूल चला हूँ..
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जयंत चौधरी - मृत्युंजय विचार * *. Friday, July 11, 2014. उम्र के इस पड़ाव पर, कुछ भूल चला हूँ. उम्र के इस पड़ाव पर, कुछ भूल चला हूँ. कुछ छोड़ चला हूँ, तो कुछ बाँध चला हूँ. मीठी सी जो यादें हैं उन्हें गाँठ रखा है,. कड़वी सी कुछ साँसों को मैं धो चला हूँ. नादान से बचपन को अबतक साथ रखा है,. जहरीले से विचारों को मैं गाड़ चला हूँ. नटखट से मेरे मन को बेलगाम रखा है,. बेबसी की बेड़ियों को मैं तोड़ चला हूँ. नए बुने सपनों को भी आखों में रखा है,. ४१ अच्छे साल.). Subscribe to: Post Comments (Atom). About Me - I Am Who I Am.
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*** जयंत चौधरी - मृत्युंजय विचार ***: January 2014
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जयंत चौधरी - मृत्युंजय विचार * *. Monday, January 13, 2014. नौका - नाविक. सागर की लहरों पर,. बढ़ती नौका में बैठे,. थपेड़ों से हिलते हुए,. कभी बाएं, तो कभी दाएं,. कभी मद्धम,. और कभी मंथर,. कहीं सुनहरे उजियारे में,. और कभी अंधियारे से घिर कर,. कभी मिली पुरवाई या फिर,. कहीं किसी तूफ़ान में फंसकर,. किन्तु आगे बढ़ते, हुए निरंतर,. किन्तु आगे बढ़ते रहे निरंतर,. आज मुझे,. आभास हुआ,. संसार है सागर,. और जीवन एक नौका।।।. एक नाविक. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). About Me - I Am Who I Am. बेकल उत...
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*** जयंत चौधरी - मृत्युंजय विचार ***: August 2010
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जयंत चौधरी - मृत्युंजय विचार * *. Saturday, August 28, 2010. मातृभाषा - 1. माननीय पाठकों,. आप सब को मेरा नत-मस्तक प्रणाम,. आज का विषय बहुत सामयिक है।. भाषा किसी भी प्राणी की मूलभूत आवश्यकता होती है।. इसी से हम और आप अपने भावों और विचारों को व्यक्त कर सकते हैं।. सबसे अहम् बात तो यह है कि, मानवों की प्रगति भाषा विकास के कारण ही संभव हो सकी है।. याने, मानव. पहुँचने. Links to this post. मातृभाषा -२. बिना भाषा के समाज का निर्माण हो ही नह&...उसके बिना समाज या समूह का न...जीवन में जितन&#...Links to this post.
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गुलमोहर: October 2012
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राजेश उत्साही. गुल्लक. यायावरी. सोमवार, 1 अक्तूबर 2012. गांधी का रास्ता. राजेश उत्साही. पहले हमने गांधी को पढ़ा. फिर हमने गांधी को गढ़ा. पहले हमने गांधी को मार दिया. फिर हमने गांधी को याद किया. गांधी जी कहते थे. तुम दुनिया में जैसा बदलाव देखना चाहते हो,. पहले वैसा बदलाव स्वयं में लाओ।. हम सब वही कर रहे हैं,जैसी दुनिया बनाना चाहते हैं. वैसे ही अपने को बदल रहे हैं।. हम गांधी के बताए रास्ते पर ही तो चल रहे हैं।. 0राजेश उत्साही. प्रस्तुतकर्ता. राजेश उत्साही. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. मन , एक बदमा...
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गुलमोहर: December 2013
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राजेश उत्साही. गुल्लक. यायावरी. गुरुवार, 12 दिसंबर 2013. परिचित-अपरिचित. जगहों में. लोग अपरिचितों की तरह बरतते हैं. टकराते हैं. जगहों पर. तो परिचितों की तरह मिलते हैं।. 0 राजेश उत्साही. प्रस्तुतकर्ता. राजेश उत्साही. 3 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: परिचित-अपरिचित. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). गुलमोहर के बहाने. मेरा पहला कविता संग्रह. थोड़ा-बहुत. यायावरी'. गुल्लक'. डॉ उर...
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भिनगढ़ी: स्वागत है
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Saturday, January 29, 2011. स्वागत है. ब्लॉग जगत के. विद्वतजनों. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग ‘भिनगढ़ी’. दुःख -. व्याधि. दिन में ही तो घटते हैं. जिंदगी. मुश्किल।. घायलों. रिश्ते. कम्भाक्तों. कहाँ।. गोलियां. मेरे कविता संग्रह 'उलझन' से. हरीश जोशी. दीपक बाबा. January 29, 2011 at 7:19 AM. हरकीरत ' हीर'. January 29, 2011 at 7:48 AM. हरीश जी स्वागत है आपका . अच्छी रचनायें हैं . इन्हें सुधार लें . अरुण चन्द्र रॉय. हरकीरत हीर. डैशब&...
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भिनगढ़ी
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Wednesday, February 23, 2011. अंत हुआ शीत का. लो आ गया बसंत. बिगड़ैल संत सा. छा गया बसंत. आर्किड के फूलों पर. तितलियों की हलचल. नाच रहे वृक्ष ओढ़. फूलों का ऑंचल. धूल से अबीर ले. पंखुडि़यों से गुलाल. धरा व आकाश में. उड़ा रहा बसंत. चल पड़ी बयार. छोड़ अपना घरबार,द्वार. खिड़की,किवाड़. हर किसी के. खटखटाने लगी. रंग बिरंगे में जेन्सम में. खासी किशोरियां. चर्च को तैयार. मधुर स्वर में. कोरस गाने लगीं. पवन ताल ठोक रहा,. जोशी ज...वसं...
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गुलमोहर: February 2013
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राजेश उत्साही. गुल्लक. यायावरी. बुधवार, 13 फ़रवरी 2013. हिंसा.और नहीं बस और नहीं. साथी चंद्रिका. के सौजन्य से, उनकी बिटिया नेहा. द्वारा किसी अन्य कृति को. देखकर बनाई गई की यह कृति. र्पित जिनके बिना यह. दुनिया बन ही नहीं सकती, चल ही नहीं स कती. मीठे बोलों में भी हिंसा है. तीखे बोलों में भी हिंसा है. चालू बोलों में भी हिंसा है. टालू बोलों में भी हिंसा है. समझने की जरूरत है कि. बोलने वालों की क्या मंशा है. भारी गहने तन पर हिंसा हैं. समझने की जरूरत है कि. कैसी ,. हिंसा. हिंसा. हिंसा. Twitter पर सा...