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ज़िन्दगीनामा

ज़िन्दगीनामा. Sunday, August 16, 2015. जाने के बाद. जाने के बाद. वो खाली कमरा. याद करता है तुम्हें।. जहाँ सांसें महकती हैं तुम्हारी. बातें अब भी बतियाती हैं तुम्हारी. नाराज़गियां खटकती हैं तुम्हारी. परेशानियां परेशां हैं तुम्हारी. मुस्कुराहटें मुस्काती हैं तुम्हारी।. छोड़ गए…. जाना ही था तुम्हें।. कमरा खाली…. मैं अकेली……. आँखें भरी भरी. और दिल भारी. प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. नाराज़गियाँ. परेशानियां. बातें. मुस्कुराहटें. सांसें. Saturday, August 15, 2015. आज बस इतना करना. Labels: आज़ादी. सच वही हì...

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ज़िन्दगीनामा. Sunday, August 16, 2015. जाने के बाद. जाने के बाद. वो खाली कमरा. याद करता है तुम्हें।. जहाँ सांसें महकती हैं तुम्हारी. बातें अब भी बतियाती हैं तुम्हारी. नाराज़गियां खटकती हैं तुम्हारी. परेशानियां परेशां हैं तुम्हारी. मुस्कुराहटें मुस्काती हैं तुम्हारी।. छोड़ गए…. जाना ही था तुम्हें।. कमरा खाली…. मैं अकेली……. आँखें भरी भरी. और दिल भारी. प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. नाराज़गियाँ. परेशानियां. बातें. मुस्कुराहटें. सांसें. Saturday, August 15, 2015. आज बस इतना करना. Labels: आज़ादी. सच वही ह&#236...
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ज़िन्दगीनामा | zindaginaamaa.blogspot.com Reviews

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ज़िन्दगीनामा. Sunday, August 16, 2015. जाने के बाद. जाने के बाद. वो खाली कमरा. याद करता है तुम्हें।. जहाँ सांसें महकती हैं तुम्हारी. बातें अब भी बतियाती हैं तुम्हारी. नाराज़गियां खटकती हैं तुम्हारी. परेशानियां परेशां हैं तुम्हारी. मुस्कुराहटें मुस्काती हैं तुम्हारी।. छोड़ गए…. जाना ही था तुम्हें।. कमरा खाली…. मैं अकेली……. आँखें भरी भरी. और दिल भारी. प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. नाराज़गियाँ. परेशानियां. बातें. मुस्कुराहटें. सांसें. Saturday, August 15, 2015. आज बस इतना करना. Labels: आज़ादी. सच वही ह&#236...

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ज़िन्दगीनामा: May 2013

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ज़िन्दगीनामा. Monday, May 27, 2013. तुम नाराज़ हो. तुम नाराज़ हो. जब तक चाहो. नाराज़ हो लेना. बस मेरी एक बात सुनना. चुप मत होना. नाराज़ हो. नाराज़गी जताओ. कहो सुनो. कुछ बोलो. जी भर चिल्लाओ. चीख लो . जो मन में है. उसे कह जाओ. अंदर ही अंदर मत घुटना. चुप मत होना . मुझे सब है मंजूर. पर चुप्पी गवारा नहीं. तुम बोलते रहते हो. एक सुकून सा रहता है. जीवन रस बहता रहता है. जीवन जीना भारी . बस ,जैसे. मरने की तैयारी. ज़िंदगी तेरी चुप्पी से हारी . Labels: गवारा. चिल्लाना. चुप्पी. नाराज़. नाराज़गी. Sunday, May 12, 2013.

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ज़िन्दगीनामा: May 2014

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ज़िन्दगीनामा. Wednesday, May 7, 2014. हम दोनों ही खुश हैं. तुम बेहद उदास हो जाती हो. मेरी उदासी को लेकर. मैं होती उदास. तुम्हारी इस उदासी पर. और यों. हम दोनों ही खुश हैं. प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. Labels: उदासी. Subscribe to: Posts (Atom). मेरी राह के हमसफ़र . वक्त.न कभी रुका है न रुकेगा. मैं . View my complete profile. माज़ी के कुछ पन्ने . हम दोनों ही खुश हैं. चोरी करना बुरी बात. हिन्दी में लिखिए. विजेट आपके ब्लॉग पर. विजेट आपके ब्लॉग पर. एक नज़र इनपर भी. मेरी भावनायें. स्वप्न मेरे. कभी कभी! बिखर&#...

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ज़िन्दगीनामा: October 2013

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ज़िन्दगीनामा. Friday, October 25, 2013. इंतज़ार में हूँ. आजकल मेरा समय काटे नहीं कटता है. सारा दिन तुम्हारे ख्यालों में खोया रहता है. समस्त बातों का केंद्रबिंदु हो गए हो तुम. सारे विचार तुम तक जाकर लौट आते हैं. मेरे सारे सपने तुम में ही ठौर पाते हैं. तुम और तुम्हारे एहसास से लिपटी रहती हूँ. अपने इस हाल पर विस्मित रहती हूँ . यहाँ,मेरा यह हाल है . पता नहीं तुम वहाँ क्या करते हो? क्या कभी तुम्हें मेरा ख्याल आता है. क्या तुम मुझे अपने पास पाते हो. पर,तुम तो फिर तुम हो न. तुम कुछ कहो. इंतज़ार. मैं . हिन...

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ज़िन्दगीनामा: August 2015

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ज़िन्दगीनामा. Monday, August 31, 2015. तू मुझसे रूठा. तेरा साथ छूटा. ज़िन्दगी वीरान. ख़ुशी न मुस्कान. कहीं से कोई ख़बर आती नहीं. तुम तक कोई डगर जाती नहीं. तेरे सिवा . न कोई था न कोई और है. कहूँ क्या. नाउम्मीदी का एक दौर है. तेरी बातें तेरी यादें. ढाँढस बंधाती हैं. मेरी आस का चिराग़. दिन रात जलाती हैं. कहीं कोई तो चिंगारी. है अब तक बाकी. जो सुलगती और जलाती है. नाउम्मीदी के इस दौर में भी. उम्मीद मरने नहीं पाती है. प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. नाउम्मीदी. मुस्कान. Sunday, August 30, 2015. पर इस बात को. बिन ...

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ज़िन्दगीनामा: February 2014

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ज़िन्दगीनामा. Friday, February 14, 2014. ऐसा नहीं हो सकता क्या. सुनो न. मैंने मान लिया. बहुत खराब हूँ मैं. तुम्हें परेशान करता हूँ. दुःख भी देता रहता हूँ. पर इस सब के बाद भी. यकीं जानो . तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. ऐसा नहीं हो सकता क्या. कि मेरी सारी कमियाँ. सब गलतियां. तुम बुहार दो. छिपा दो . उस कालीन के नीचे. जिस पर लिखा है. आई लव यू . प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. Labels: कमियाँ. गलतियां. Tuesday, February 11, 2014. बसंत का मौसम. बिछड़ जाना. पर जो नहीं बदला. और वो गीला सा सावन. गुजरते साल. मैं . एक ऐस&#23...

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एक गुलाबी चश्मा – ए पंखुरी पपीहा

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स मग र पर ज ए. प ह प ह ब ल र …. एक ग ल ब चश म. अपन अन तह न सव ल क जन गल स. जब कभ ब हर न कल ग त म स न. द ख ग खय ल क दलदल म फ़न स. क तन प छ छ ड आय ह ख श क. इतन ब रन ग नह ह द न य त म ह र. ज तन त म समझत आय ह स न. वक़ त त फ़ न स उड गम क द छ न ट. त म ह र चश म क फ़ र म पर आ बस गय थ. कम बख त जम गय ह घर जव ई बन कर. व द करक उन ह एक ग ल ब चश म ल ल. हस न द न य क रन ग न आन ख स द ख. पर प रक श त क य गय. अप र ल 2, 2012. अप र ल 3, 2012. 13 व च र “एक ग ल ब चश म ” पर. अप र ल 4, 2012 क 11:27 अपर ह न. आपक ब ल ग बह त अच छ लग.

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तेरी याद ..........: Akelapan...

http://teriyaaad.blogspot.com/2011/03/akelapan.html

तेरी याद . कुछ और भी हैं मेरी ज़िन्दगी की तसवीरें , मैं वो नहीं हूँ , जो मेरे दोस्तों ने समझा है . Friday, 11 March 2011. Bheed mein rah kar bhi koi akela rahta hai,. Lakhon ke beech bhi koi tanha rahta hai,. Yeh zaruri toh nahin kee har milne waale se dil lage,. Chand baatein karne lene se nahin koi apna hota hai. Ohut Masroof Lamhoun Me. Kabhi Ek Pal Ko Soncho Toh. Koi Kitna Akela Hai. Kisi Ki Zindagi Tum Ho. Kisi Ki Har Khushi Tum Ho. Kisi Ki Kwahish Ho Tum. Kabhi Ek Pal Ko Soncho Toh. उस पत्थर ...

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मुख़्तसर : बीते लम्हों की खनक

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. शुक्रवार, 28 अगस्त 2015. बीते लम्हों की खनक. प्रस्तुतकर्ता. अभिषेक शुक्ल. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. बीते लम्हों की खनक. पतझड़ में बनकर हरियाली, फूलो. एक फरेबी इंतजार की जद में . सुनो, तुम कहतीं थी न कि मै तुम्हारे लिए कव...कलम की तिरछी झाड़ू से. पौं फटी जब   दूर उस क&#...मैजिक बुक. कवित&#236...

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मुख़्तसर : वह गोताखोर बनना चाहती थी

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. शुक्रवार, 31 जुलाई 2015. वह गोताखोर बनना चाहती थी. मुझे बताया था किसी ने. कि बचपन से ही वह गोताखोर बनना चाहती थी. बिल्कुल जलपरी सी दीखती थी वह. गहरे उतर जाने का हुनर तो उसे बखूबी आता था. समन्दर में उतरने से पहले. वह सोख लेती थी अपने हिस्से का समूचा आसमान. और निकल पड़ती थी एक अंतहीन यात्रा पर. वह जमा किया करती सुनहरी मछलियाँ,. और कुछ चमकते हुए सफ़ेद मोती. आज उदास है समन्दर. नई पोस्ट. आयु क&#2...

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मुख़्तसर : May 2013

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. शुक्रवार, 31 मई 2013. तुम्हारी दिलचस्पी. शब्दों में है. बेतरतीब उछाले गये शब्दों में. तुम खोजते रहे हो. अनिश्चित क्रम में लगे. ताश के पत्ते. तुम्हे आकर्षित करते रहे हैं. तुम मान बैठते हो. उन्हें अपनी नियति. फेंटे जाने की औपचारिकता के बाद,. छिटक कर बिखर गयीं. कुछ तस्वीरों के कोलाज. तुम्हारी कुल जमा. जिन्दगी होती है,. और तुम भूल जाते हो. जमावट के बीचोंबीच. पर्याप्त है. नई पोस्ट. वक्त क&#2368...

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मुख़्तसर : ईश्वर आज खतरे में है...

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. मंगलवार, 26 नवंबर 2013. ईश्वर आज खतरे में है. तुम लिखती रही हो जीवन ही,. तुम उधेड़ रही हो परतें,. उस रहस्य की ,. तुम समझ रही हो ,. उसकी कुटिल कलाओं को,. तुम स्वीकारने लगी हो ,. उसके आयोजन में,. हर एक दाँव को ,. तुम मुस्कुरा देती हो ,. उसके बन्धन ढ़ीले पड़ जाते हैं ,. देखोगे तुम,. वो हार जायेगा एकदिन ,. ईश्वर आज खतरे में है,. बालमन की क्रीड़ाओं देखकर. अभिषेक शुक्ल. नई पोस्ट. वक्त की ब...सुन...

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मुख़्तसर : August 2015

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. शुक्रवार, 28 अगस्त 2015. बीते लम्हों की खनक. प्रस्तुतकर्ता. अभिषेक शुक्ल. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. गुरुवार, 27 अगस्त 2015. विदाई से पहले). मुझे याद है. तुम्हारी मौजू़दगी. खारिज़ करती रही है. जोड़ के सभी सिद्धान्तों को. तुम्हारा,हमारा,सबका होना. जबकि हम एक थे. तुम्हारे साथ. नई पोस्ट. बीते ...तीन...

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मुख़्तसर : एक कविता तुम्हारी गुलाबी देह के पन्नों पर

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. सोमवार, 11 मार्च 2013. एक कविता तुम्हारी गुलाबी देह के पन्नों पर. सुनो,. तुम कहतीं थी न. कि मै तुम्हारे लिए कवितायें नहीं लिखता. क्या तुम्हे याद नहीं. तुम्हारे सोलहवें जन्मदिन की. वह धूसर शाम. जब क्षितिज की आड़ में. तुम्हारी अधखुली पलकों पर उगे साँवले सूरज को. चूम लिया था मैंने. काँपते, तप्त होठों से. तब लिखा था मैंने अपना पहला छंद. और उस दिन जब मेरे बहुत कहने पर. नई पोस्ट. आयु के प&...वक्...

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मुख़्तसर : July 2015

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मुख़्तसर. कलम की तिरछी झाड़ू से बुहारें हैं मैंने कुछ कण कविताओं के.तुम सहेज लेना इन्हें मन की चंचल तश्तरी पर. शुक्रवार, 31 जुलाई 2015. वह गोताखोर बनना चाहती थी. मुझे बताया था किसी ने. कि बचपन से ही वह गोताखोर बनना चाहती थी. बिल्कुल जलपरी सी दीखती थी वह. गहरे उतर जाने का हुनर तो उसे बखूबी आता था. समन्दर में उतरने से पहले. वह सोख लेती थी अपने हिस्से का समूचा आसमान. और निकल पड़ती थी एक अंतहीन यात्रा पर. वह जमा किया करती सुनहरी मछलियाँ,. और कुछ चमकते हुए सफ़ेद मोती. आज उदास है समन्दर. नई पोस्ट. आयु क&#2...

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शनिवार, 12 दिसंबर 2015. An open latter to the Mr. President. राष्ट्रपति जी , जन्मदिन की बधाई. आप स्वस्थ रहें . बेबाक रहें . सौम्य तो आप हैं ही । मेरे जैसे युवाओं को इस तरह ही अपनी गतिविधियों से प्रभावित करते रहें ।. शुक्रिया . 111215 - शिवांगी. President pranav mukhajee with the daughter of india Geeta. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. सोमवार, 16 नवंबर 2015. बाप का मारना . भाई और बाप को खलता है. माँ और बहन . पित&#2381...

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ज़िन्दगीनामा. Sunday, August 16, 2015. जाने के बाद. जाने के बाद. वो खाली कमरा. याद करता है तुम्हें।. जहाँ सांसें महकती हैं तुम्हारी. बातें अब भी बतियाती हैं तुम्हारी. नाराज़गियां खटकती हैं तुम्हारी. परेशानियां परेशां हैं तुम्हारी. मुस्कुराहटें मुस्काती हैं तुम्हारी।. छोड़ गए…. जाना ही था तुम्हें।. कमरा खाली…. मैं अकेली……. आँखें भरी भरी. और दिल भारी. प्रस्तुतकर्त्री- निधि टंडन. नाराज़गियाँ. परेशानियां. बातें. मुस्कुराहटें. सांसें. Saturday, August 15, 2015. आज बस इतना करना. Labels: आज़ादी. सच वही ह&#236...

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