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रचना डायरी: संस्मरण - "ककउआ होटल" अर्थात् दर्द एक कस्बे की कविता का
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. मंगलवार, 25 सितंबर 2012. संस्मरण - "ककउआ होटल" अर्थात् दर्द एक कस्बे की कविता का. अमीरों की हवस सोने की दूकानों में फिरती है,. ग़रीबी कान छिदवाती है, तिनके डाल लेती है।. पत्थर को तोड़ के शीशा बना दिया. लोगों ने उस को तोड़ के भाला बना दिया. सोच देखिये शायर की! यह बात बोलने पर तो सारा कुनबा ही हमारे ही उपर आ गया! पद्मनाभ गौतम. अलांग, अरूणाचल प्रदेश. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. उत्तर...
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पुरवाई: August 2014
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बुधवार, 27 अगस्त 2014. उमा शंकर मिश्र की कहानी : खुला आसमान. खुला आसमान. परिन्दें. आशियाना. परिन्दे. 2404; उड़ान. मंजिले. सुक्खु. था ।. कर्त्तव्यों. प्रत्येक. व्यक्ति. अधिकारों. राष्ट्र. चिन्ता. राष्ट्र. प्रत्येक. व्यक्ति. राजनीतिक. भाषणों. वक्तव्यों. चिन्ता. पंचायतों. है।गाँव. पंचायते. हैं ।लेकिन. राष्ट्र. है।पंचायती. हैं।. सदस्यों. द्वारा. दुरूपयोग. विधायकी. गांवो. थे।सुक्खु. थे। उन्हें. जायेगा।और. पड़ेगा।दिन. मुखिया. प्रचारकों. जाए।शासन. बलियों. हाथों. दिखाने. पार्टियां. है।देखिए. मैंने. याद कर...
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पुरवाई: October 2014
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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014. हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं-. पाण्डे. 31 अक्टूबर. राष्ट्रीय. अंकों. 100 वीं. पगडंडियों. पाण्डे. कविताओं. प्रकाशित. उत्तराखण्ड. पाण्डे. की कविताएं-. सभ्यताएँ. मिलतीं. सभ्यताओं. ढूँढऩे. बिल्कुल. गाँधी. लोगों. जोड़े. छातियों. जोड़ियों. मिलें. भागतीं. स्त्रियों. भागतीं. पुकारों. संग्रहालय. मिलेगा. मिलेगा. मुड़ते. बर्बरों. फाँसी. मंशाओं. फाँसी. मंशाओं. भूमिका. 2-सहेलियाँ. सहेलियाँ. चीज़ें. पहुँचती. बंगलुरु. विश्वविद्यालय. दिव्या. शिल्पी. उन्हें. आँखें. दरवाज़ा. कलेण्डर...पाण...
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पुरवाई: September 2014
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रविवार, 28 सितंबर 2014. प्रभात की आयी है बहार : डॉ.सुनील जाधव. डॉ.सुनील जाधव. बिराजते. बगुलों. पंक्ति. तालियाँ. निलगिरी. उल्हासते. गुनगुनाते. पंच्छी. जोड़ियों. सिद्धी. शुद्धता. घंटियाँ. मुस्कुरा. पक्षियों. प्रकृति. खुशियों. हाथों. व्यक्ति. स्वीकार. देखों. नांदेड. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. 3 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: डॉ.सुनील जाधव. रविवार, 14 सितंबर 2014. आरसी चौहान. लगन,निष्...इस सæ...
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रचना डायरी: March 2013
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. रविवार, 10 मार्च 2013. कथाक्रम" जनवरी-मार्च 2013 अंक मे प्रकाशित दो कविताएँ. Http:/ kathakram.in/jan-mar13/Poetry.pdf. सर्दियों की आहट सुनते ही. बुनना शुरू कर देती है. वह मेरा स्वेटर हर साल,. लपेट कर उंगलियों में. सूरज की गुनगुनी किरनें,. एक उल्टा-दो सीधा. या ऐसा ही कुछ. बुदबुदाते हुए,. हजार कामों में. फंसी-उलझी. बुन पाती है रोज इसे. बस थोड़ा ही,. आहिस्ता-आहिस्ता. उसकी उंगलियाँ. बिखेरना शुरू ही करती हैं. अपना जादू. कि सूरज बदल लेता है. अपना पाला. पसीना और. कुल ...
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रचना डायरी: May 2015
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शुक्रवार, 1 मई 2015. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. माया एन्जेलो , मूल नाम - मार्गरेट एनी जॉन्सन- 1928.2014 अमेरिकी-अफ्रीकी कवयित्री को अश्वेत स्त्री-पुरूषों की आवाज के रूप में जाना गया. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. उत्तर पूर&#...कुछ...
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रचना डायरी: पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शुक्रवार, 1 मई 2015. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. माया एन्जेलो , मूल नाम - मार्गरेट एनी जॉन्सन- 1928.2014 अमेरिकी-अफ्रीकी कवयित्री को अश्वेत स्त्री-पुरूषों की आवाज के रूप में जाना गया. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. उत्तर पूर&...कुछ...
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रचना डायरी: तमाशा लोगों का है
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शनिवार, 28 सितंबर 2013. तमाशा लोगों का है. डिब्रूगढ़ मे मदारी का खेल देख कर. एक तरफ होता था नेवला. एक तरफ सांप. और मदारी की हांक. करेगा नेवला सांप के टुकड़े सात. खाएगा एक छै ले जाएगा साथ. कभी नहीं छूटा रस्सी से नेवला. और पिटारी से सांप. ललच कर आते गए लोग,. ठगा कर जाते गए लोग. खेल का दारोमदार था. इस एक बात पर. उब कर बदलते रहें तमाशाई,. जारी रहे खेल अल्फाज़ का,. तमाशा साँप और नेवले का नहीं. तमाशा था अल्फाज़ का. अब न सांप है न नेवला. पद्मनाभ गौतम. नई पोस्ट. जी भर क...
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रचना डायरी: कुछ विषम सा - गजल संग्रह
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. बुधवार, 3 अक्तूबर 2012. कुछ विषम सा - गजल संग्रह. 2004 मे प्रकाशित संग्रह "कुछ विषम सा" की गज़लें . शांति के आलाप मे रणनाद कैसा. संधि ध्वज के शीर्ष पर उन्माद कैसा. भस्म हो यदि होलिका विस्मय नहीं है. पर स्वतः जल जाए वह प्रहलाद कैसा. लो पिघल कर बह चली जलधार खारी. अश्रुओं को हर्ष क्या अवसाद कैसा. खो चुकी ध्वनि लौट कर आनी नहीं है. वीतरागी शब्द का प्रतिसाद कैसा. सूर्य अणु विस्फोट प्रतिक्षण कर रहा पर. सोच समझ नादानी क्यूँ. घर के रस्ते पर लगती. नृत्य, नर्त...गीत थक कर...