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नवनीत शर्मा: ....खुश्बुओं का डेरा है।
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, March 25, 2009. खुश्बुओं का डेरा है।. उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है।. हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है।. सच के क़स्बे का जो अँधेरा है,. झूठ के शहर का सवेरा है।. मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का,. तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है।. दूर होकर भी पास है कितना,. जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।. जो तुझे तुझ से छीनने आया,. March 25, 2009 at 7:17 AM. Waah behtarin lajawab gazal. बहुत ख...
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नवनीत शर्मा: तीन नई कविताएँ
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Sunday, February 3, 2013. तीन नई कविताएँ. अंबर जब कविता लिखता है. हर तबका नहीं सुनता. जब कविता लिखता है अंबर. पर सुनती हैं कच्चे घरों की स्लेटपोश छतें. सर्द मौसम में अंबर की भीगी हुई कविता. और मिलाती हैं सुर/. सुनते हैं इसे. फुटपाथ पर कंबल में लिपटे जिस्म. दांत किटकिटाते. और कुछ ऐसा कहते हुए. जो भाषा के लायक नहीं होता. एक असर यह भी. कंबल ओढ़. आती रहेगी. शाम को ल...लौट...
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प्रकाश बादल: अनुराग के प्रयासों से पूरा हुआ धर्मशाला स्टेडियम का सपना
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रविवार, 3 फ़रवरी 2013. अनुराग के प्रयासों से पूरा हुआ धर्मशाला स्टेडियम का सपना. अनुराग ठाकुर. धर्मशाला क्रिकेट स्टेडिम का मनमोहक दृष्य. लोग उल्लास से भरे हुए मैच का आनन्द ले रहे थे और मेरा ध्यान इस. इसीलिए बहुत से विद्वान सपना देखने पर ज़ोर देते हैं, परंतु सपना देखना आम आदमी के बस की बात भी नहीं।. धर्मशाला स्टेडियम में विजेता भारतीय टीम का फ़ोटो. यही वक्त था कि अनुराग ने हिमाचल क्रिकेट स्टेडियम. 25000 दर्शकों के बैठने. की क्षमता वाले, धौलाधार की. स्थापित कर रही है।. Posted by Prakash badal. पत्रक...
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प्रकाश बादल: गुरुकुल सम्मान समारोह में रजनीश पर पढ़ा गया संक्षिप्त पर्चा
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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013. गुरुकुल सम्मान समारोह में रजनीश पर पढ़ा गया संक्षिप्त पर्चा. गुरुकुल सम्मान ग्रहण करते पत्रकार रजनीश. आदि आदि. इन सभी बातों में अधिक दिलचस्पी न लेते हुए सीधी बात की जाए तो ज़्यादा बेहतर रहेगा. अनेक पत्थर. कुछ छोटे-कुछ बड़े. लुढ़क कर आए इस नदी में. कुछ धारा के साथ बह गए. न जाने कहां चले गए. कुछ धारा से पार न पा सके. किनारों में इधर-उधर बिखर गए. कुछ धारा में डूबकर. अपने में ही खो गए. और कुछ धारा के विरुद्ध. पैर जमा कर खड़े हो गए. नदी में हलचल. Posted by Prakash badal. इस ब्ल&...
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ईशिता आर गिरीश: कविता
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ईशिता आर गिरीश. Saturday, November 22, 2008. यूं ही नहीं मिल जाते हैं स्वप्न. ज़िन्दगी यूं ही . तोहफों से नहीं नवाज़ेगी,. हर मोड़. यूं ही नहीं मिल जाएंगे स्वप्न।. मायूसियों की चादर ओढ़,. ख़ुद पर दया करते,. क्या फेर पाओगे किस्मत का पहिया? बेचारगी की चोगे में,. मिलेगा आसमान? घुटनों पर सिर रखने वाले,. और जी डाल संपूर्ण जीवन,. कण्टकों से भरा संपूर्ण जीवन।. Atyant sundar kavita hai. Dhanyvad evam sadhuvaad is prernaspad krati ke liye. November 22, 2008 at 7:57 AM. November 22, 2008 at 10:54 AM.
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ईशिता आर गिरीश: दो लड़कियां
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ईशिता आर गिरीश. Thursday, November 27, 2008. दो लड़कियां. चीड़ के पेड़ से पीठ टिकाए,. कॉलेज् जाने वाली लड़की,. फुट पाथ पर बैठी,. मैंहदी लगाने वाली,. राजस्थानी बालिका वधू की,. रंग बिरंगी पोशाक को. टकटकी लगाए देख रही है।. कॉलेज जाने वाली लड़की की. दाँईं बाज़ू में सिमटी किताबें. हथेली पर,. अभी-अभी लगवाई,. गीली- हरी मैंहदी. दोनो हाथों में, दो-दो सुनहरे सपने।. मेंहदी लगाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की की,. हल्के रंग की पोशाक. रह-रह कर, चाव से,. नज़र भर देख लेती. बड़े सपने.
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प्रकाश बादल: शिमला पहुँची उड़नतश्तरी
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रविवार, 10 मई 2009. शिमला पहुँची उड़नतश्तरी. सर्रर्रर्रर्रर्रर करती आई. उड़नतश्तरी. और दिल में उतर गई। समीर भाई के. काव्य संग्रह "बिखरे मोती" ने मेरे दिल की कई तहों को खंगाला, कुरेदा,. और मेरी स्मृतियाँ बरसों पुरानी दास्तानें कहने लगीं! प्रकाश बादल. तो आवाज़ आई 'जबलपुर से सर! मैं मन ही मन मुस्कुराया और खुशी से बोला अरे वाह! समीर भाई का व्यक्तित्व ही ऐसा है। आज मैं सिर्फ ". की बात करना चाहता हूँ।. सिर्फ प्रेम- रस की कविताओं को लेकर ही नह...मोती ". रातों. गुनगुनाती. कविता लिखने क...मैं।. विदे...
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नवनीत शर्मा: December 2008
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, December 24, 2008. हरतरफ तू है. एक शेर की पंक्ति 'इंतज़ार और करो अगले जनम तक मेरा', को सुन कर कही गई नज़्म एक मुस्लसल नज़्म. जैसे सौदाई को बेवजह सुकूं मिलता है. मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह. अपनी नाकामी-ए-ख्वासहिश पे पशेमां होकर. फर्ज़ के गांव में जज़्बात का मकां होकर. कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही. अब तेरी याद को आंखो म&#...हम नहीं ज़ख...सोचतì...
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ईशिता आर गिरीश: November 2008
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ईशिता आर गिरीश. Thursday, November 27, 2008. दो लड़कियां. चीड़ के पेड़ से पीठ टिकाए,. कॉलेज् जाने वाली लड़की,. फुट पाथ पर बैठी,. मैंहदी लगाने वाली,. राजस्थानी बालिका वधू की,. रंग बिरंगी पोशाक को. टकटकी लगाए देख रही है।. कॉलेज जाने वाली लड़की की. दाँईं बाज़ू में सिमटी किताबें. हथेली पर,. अभी-अभी लगवाई,. गीली- हरी मैंहदी. दोनो हाथों में, दो-दो सुनहरे सपने।. मेंहदी लगाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की,. कॉलेज जाने वाली लड़की की,. हल्के रंग की पोशाक. रह-रह कर, चाव से,. नज़र भर देख लेती. बड़े सपने. मैने...स्व...