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उर्दू से हिंदी: June 2014
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उर्दू से हिंदी. सोमवार, 23 जून 2014. जनाब सरवर की एक ग़ज़ल :इक रिवायत के सिवा कुछ न था. इक रिवायत के सिवा कुछ न था तक़्दीर के पास. क़िब्ला-रू हो गये हम यूँ बुत-ए-तदबीर के पास! क्या हदीस-ए-ग़म-ए-दिल,कौन सा क़ुरान-ए-वफ़ा? एक तावील नहीं साहेब-ए-तफ़्सीर के पास! दिल के आईने में क्या जाने नज़र क्या आया? मुद्दतों बैठे रहे हम तिरी तस्वीर के पास! अश्क-ए-नौउमीदी-ओ-हसरत ही मुक़द्दर ठहरा. एक तोहफ़ा था यही हर्फ़-ए-गुलूगीर के पास! गोशा-ए-सब्र-ओ-सुकूं? न दीवार न दर! तू ने ऐ जान-ए-ग़ज़ल! क़िब्ला-रू. ग़म की नई बात. आनन्द पाठक. सदस्...
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उर्दू से हिंदी: July 2013
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उर्दू से हिंदी. मंगलवार, 2 जुलाई 2013. जनाब "सरवर" की एक ग़ज़ल : हम हुए गर्दिश-ए-दौरां. हम हुए गर्दिश-ए-दौरां से परेशां क्या क्या! क्या था अफ़्साना-ए-जां और थे उन्वां क्या क्या! हर नफ़स इक नया अफ़्साना सुना कर गुज़रा. दिल पे फिर बीत गयी शाम-ए-ग़रीबां क्या क्या! तेरे आवारा कहाँ जायें किसे अपना कहें? तुझ से उम्मीद थी ऐ शहर-ए-निगारां क्या क्या! बन्दगी हुस्न की जब से हुई मेराज-ए-इश्क़. फ़ासिले और बढ़े मंज़िल-ए- गुमकर्दा के. धूप और छाँव का वो खेल! अयाज़न बिल्लाह. हैफ़ "सरवर"! आनन्द पाठक. नई पोस्ट. जनाब ...
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उर्दू से हिंदी: चन्द माहिया : क़िस्त 21
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उर्दू से हिंदी. रविवार, 31 मई 2015. चन्द माहिया : क़िस्त 21. दिल हो जाता है गुम. जब चल देती हो. ज़ुल्फ़ें बिखरा कर तुम. जब तुम ही नहीं होगे. फिर कैसी मंज़िल. फिर किसका पता दोगे? पर्दा वो उठा लेंगे. उस दिन हम अपनी. हस्ती को मिटा देंगे. चादर न धुली होगी. जाने से पहले. मुठ्ठी भी खुली होगी. तोते सी नज़र पलटी. ये भी हुनर उनका. एहसान फ़रामोशी. आनन्द.पाठक. प्रस्तुतकर्ता. आनन्द पाठक. कोई टिप्पणी नहीं:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. गीत ग़ज़ल संग्रह. ब्लाग वार्ता. Download a free hit counter.
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उर्दू से हिंदी: May 2014
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उर्दू से हिंदी. गुरुवार, 22 मई 2014. जनाब सरवर की एक ग़ज़ल : लरज़ रहा है दिल. लरज़ रहा है दिल-ए-सौगवार आँखों में. खटक रही है शब-ए-इन्तिज़ार आँखों में! ज़रा न फ़र्क़ ख़ुदी और बेख़ुदी में रहा. न जाने क्या था तिरी मयगुसार आँखों में. यह दर्द-ए-दिल नहीं,है बाज़गस्त-ए-महरुमी. ये अश्क-ए-ग़म नहीं, है ज़िक्र-ए-यार आँखों में. सुरूर-ए-ज़ीस्त से खाली नहीं ख़िज़ां हर्गिज़. मगर है शर्त रची हो बहार आँखों में. ज़रा ज़रा से मिरे राज़ खोल देता है. मक़ाम-ए-शौक़ की सरमस्तियां, अरे तौबा! लरज़ रहा है. काँप रहा है. सरमस्तियां. आनन्द पाठक. वफ़ा ...
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अल्लम्...गल्लम्....बैठ निठ्ठ्लम्...: लघु कथा 13 : मान-सम्मान
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अल्लम्.गल्लम्.बैठ निठ्ठ्लम्. बुधवार, 18 मार्च 2015. लघु कथा 13 : मान-सम्मान. नन्हें! नन्हें ने छॊटे भाई से बात की- " छोटू! पिता जी को अगर दो महीने के लिए अपने पास रख.लेता तो.". बात पूरी होने से पहले ही छोटू बोल उठा-" भईया! इस जीने से तो मर जाना बेहतर- -भईया! थक हार कर नन्हे एम्बुलेन्स’ खोजने निकल गया कि कोई उधारी में एम्बुलेन्स मिल जाता तो. तमाम उम्र इसी एहतियात में गुज़री. कि आशियाँ किसी शाख-ए-चमन पे बार न हो. बार =भार]. नन्हें ने सबको खबर कर दिया . नन्हें! पूरे शहर में कितन...जो ’मर ’ ...लघु कथ...
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अल्लम्...गल्लम्....बैठ निठ्ठ्लम्...: October 2009
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अल्लम्.गल्लम्.बैठ निठ्ठ्लम्. रविवार, 4 अक्तूबर 2009. एक व्यंग्य: अनावरण एक(गांधी) मूर्ति का. जो पहनते नहीं वो तो ’कैबिनेट ’ में घुसे हैं और हम हैं कि सीधी करते-करते सड़क पर आ गए।’. यही दर्द ,यही टीस लिए मंच पर बैठे हुए नेता जी भाषण हेतु उठे। माइक के सामने आए।ठक-ठक कर टेस्ट किया ।आवाज़ बरोबर निकलेगी तो? धोखा तो नही देगी? देवियों और सज्जनों! मनोगत इस सभा के बाद गारंटी नहीं). तो भाईयो और बहनो! ज़िन्दाबाद! नथुआ-हत्या काण्ड किसने कराया? बोलिए भारतमाता की जय! भीड़ ने पुन: जयघोष क&...तुरन्त दि...ससुरì...
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अल्लम्...गल्लम्....बैठ निठ्ठ्लम्...: छ्पाना एक हिन्दी पुस्तक का.....क़िस्त 1
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अल्लम्.गल्लम्.बैठ निठ्ठ्लम्. मंगलवार, 16 दिसंबर 2014. छ्पाना एक हिन्दी पुस्तक का.क़िस्त 1. 2404; हालाँकि कुछ लेखक बड़े घाँघ होते हैं। दिन के उजाले में कहते हैं -"अरे मैं! अभी धन्धे का टैम है". मैं भिखारी नहीं ,लेखक हूं"- मैने अपना परिचय दिया. हिन्दी में लिखते हो? व्यंग्य लिखते हो-तो एक ही बात है". आगे बढ़ो नी बाबा". आत्माराम एन्ड सन्स" अगली गली में रहते हैं- वहीं जाओ न बाबा! ज़रा इन भाई साहब को ! अयं। तेरा जोड़ीदार किधर है रे? क्या सोच कर लिखा था कि सरदार [प...अरे वो कालिया! और यह 100-200 किता...मै ...
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उर्दू से हिंदी: February 2013
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उर्दू से हिंदी. सोमवार, 4 फ़रवरी 2013. उर्दू बह्र पर एक बातचीत -7 बह्र-ए-कामिल. उर्दू बह्र पर एक बातचीत -7. बह्र-ए-कामिल [1 1 2 1 2]. Disclaimer clause : -वही -[भाग -1 का]. बक़ौल डा0 कुँअर बेचैन ."’. न तुझे मिले ,न मुझे मिले. किसी याद के नए क़ाफ़िले. अब इसकी तक़्तीअ कर के भी देख लेते हैं. न तुझे मिले ,न मुझे मिले. किसी याद के नए क़ाफ़िले. हालांकि डा0 साहब ने इस की तक़्तीअ यूँ की है. 1 12 12 / 1 12 12. न तुझे मिले /,न मुझे मिले. एक बात और. को’ ’ मु तफ़ा इलुन. पिछले अक़्सात (क...हिन्दी म&...वो 2-हर&#...
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उर्दू से हिंदी: August 2014
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उर्दू से हिंदी. शनिवार, 30 अगस्त 2014. उर्दू बहर पर एक बातचीत : क़िस्त 09. Disclaimer clause - वही जो मज़मून क़िस्त 1- में था]. पिछले क़िस्त -8 में मैने उर्दू शायरी में मुस्तमिल [इस्तेमाल में] 19- बहूर [ ब0ब0 बह्र] का ज़िक़्र किया था और उनके नाम और वज़न पर बातचीत की थी ।. पर देख सकते हैं. 1- फ़ ऊ लुन =. 1 2 2 = बह्र मुतक़ारिब की बुनियादी और सालिम रुक्न है. 2-फ़ा इ लुन. 2 1 2 = बह्र मुतदारिक की बुनियादी और सालिम रुक्न है. 3-मफ़ा ई लुन. 4- फ़ा इला तुन= 2 1 2 2. तो फिर? देखिये कैसे? हिन्दी छन्द ...क्लास...बहर बज़...
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उर्दू से हिंदी: April 2015
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उर्दू से हिंदी. शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015. एक ग़ज़ल ; हुस्न उनका जल्वागर था. हुस्न उनका जल्वागर था, नूर था. मैं कहाँ था ,बस वही थे, तूर था. होश में आया न आया ,क्या पता. बाद उसके उम्र भर , मख़्मूर था. एक परदा रोशनी का सामने. पास आकर भी मैं कितना दूर था. एक लम्हे की सज़ा एक उम्र थी. वो तुम्हारा कौन सा दस्तूर था. अहल-ए-दुनिया का तमाशा देखने. क्या यही मेरे लिए मंज़ूर था? खाक में मिलना था वक़्त-ए-आखिरी. किस लिए इन्सां यहाँ मग़रूर था? राह-ए-उल्फ़त में हज़ारों मिट गये. शब्दार्थ. आनन्द.पाठक-. आनन्द पाठक. जहाँ ...ब्ल...
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