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औघट घाट: Jun 30, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Tuesday, June 30, 2009. एक दिन शाम को. तालाब का किनारा. धुँए सी सफ़ेद. कतारों में हरिकेन. सुलग रहे है. रोटी की महक. और मेरे सिगरेट के कश. वक्त को जिंदगी में बदल दिया है. में जिंदगी की सबसे हसींन साँस ले रहा हूँ. मानो वक्त को उँगलियों पर लपेट लिया हो मैने. गाँव की लड़कियां अब औरते हो गई है. कुछ अभी भी मेरी आंखों में पिघल रही है. मेरा दोस्त मुर्गा सेक रहा है. और में जिंदगी चख रहा हूँ. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. Subscribe to: Posts (Atom). कित...
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औघट घाट: Dec 15, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Tuesday, December 15, 2009. क्या आपको गुस्सा आयेगा? प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: मीडिया. Subscribe to: Posts (Atom). साल दर साल. क्या आपको गुस्सा आयेगा? अनंत प्रकाश. अनिश्चित. अश्वथामा. आधे - आधे हम दोनो. आनंद आश्रम. उस्ताद बिस्मिल्ला खान. एक दिन शाम को. कभी यूं भी तो हो. कलंकित लोगों के शिव. कहाँ हो तुम. काफ्का. कामू और बोर्खेज. किश्तों के सहारे. कीड़ें. कोन्याक. गिरिजादेवी. चाय के दो कप. दिल्ली. देव आनन्द. वह मूरखत&#...
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औघट घाट: Mar 5, 2010
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Friday, March 5, 2010. यंहा ख्वाब भी टांगो पर चलते है. बड़ी लम्बी-सी मछली की तरह लेटी हुई पानी में ये नगरी. कि सर पानी में और पाँव जमीं पर हैं. समन्दर छोड़ती है, न समन्दर में उतरती है. ये नगरी बम्बई की. जुराबें लम्बे-लम्बे साहिलों की, पिंडलियों तक खींच रक्खी है. समन्दर खेलता रहता है पैरों से लिपट कर. हमेशा छींकता है, शाम होती है तो 'टाईड' में।. यहीं देखा है साहिल पर. समन्दर ओक में भर के. जजीरा बम्बई का. पहन कर सारे जेवर आसम&#...कभी स...
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औघट घाट: Jun 13, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Saturday, June 13, 2009. अनिश्चित. मैं अनिश्चित हूँ. तुम भी. वो भी. अनिश्चित . प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: अनिश्चित. Subscribe to: Posts (Atom). साल दर साल. अनिश्चित. अनंत प्रकाश. अनिश्चित. अश्वथामा. आधे - आधे हम दोनो. आनंद आश्रम. उस्ताद बिस्मिल्ला खान. एक दिन शाम को. कभी यूं भी तो हो. कलंकित लोगों के शिव. कहाँ हो तुम. काफ्का. कामू और बोर्खेज. किश्तों के सहारे. कीड़ें. कोन्याक. गिरिजादेवी. चाय के दो कप. देव आनन्द. वह मí...
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औघट घाट: Aug 13, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Thursday, August 13, 2009. अनंत प्रकाश की ओर. सुबह - सुबह सड़क पर. जब धूल की तरह उड़ती है यादें. तो मन कहता है कि चले आओ . शाम को जब अपने घर की. खिड़कियों से देखता हूँ. चिड़ियों को चह - चहाते. तो मन कहता है कि चले आओ . रात को सोने से पहले. सुनता हूँ जब खामोशी के सन्नाटे. तो मन कहता है कि चले आओ . चले आओ क्योंकि. मै जीवन के उस अंधेरे घर मै खड़ा हूँ. जहाँ से तुम्हारे पास नही आ सकता. ना तुम मुझे देख सकती हो. उस अनंत प्रकाश की और. Subscribe to: Posts (Atom).
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औघट घाट: Aug 18, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Tuesday, August 18, 2009. एब्सट्रैक्ट कमीने. आर्ट" देख रहा हो।. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: कमीने. Subscribe to: Posts (Atom). साल दर साल. एब्सट्रैक्ट कमीने. अनंत प्रकाश. अनिश्चित. अश्वथामा. आधे - आधे हम दोनो. आनंद आश्रम. उस्ताद बिस्मिल्ला खान. एक दिन शाम को. कभी यूं भी तो हो. कलंकित लोगों के शिव. कहाँ हो तुम. काफ्का. कामू और बोर्खेज. किश्तों के सहारे. कीड़ें. कोन्याक. गिरिजादेवी. चाय के दो कप. दिल्ली. वह मूरखत...
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औघट घाट: Oct 3, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Saturday, October 3, 2009. तारीखें और हॉस्पिटल. तारीखें और हॉस्पिटल. जिंदगी- मौत के बीच. कुछ किलो मीटर. आवाजें- सन्नाटा. साँस. बे- साँस. और इन सब के बीच का अंतर. कहीं कुछ था तो बस. दीवारों पर गोल घूमता हुआ वक्त. वक्त जो चुभता रहा बार-बार. कलाइयों में सुइयां बनकर. सर पर कांच की सफ़ेद बोतलें. झूलती रहीं रात भर. बोतल से टपकती जिंदगी. नली से गुज़रती रही रात भर. कमरे में खिलखिलाते सफ़ेद साए. पलंग पर छटपटाती आवाजें. शाम अंधिया गई है. Subscribe to: Posts (Atom).
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औघट घाट: Jul 3, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Friday, July 3, 2009. बाबा ब्लॉगनाथ की जय हो. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: ब्लॉग. Subscribe to: Posts (Atom). साल दर साल. बाबा ब्लॉगनाथ की जय हो. अनंत प्रकाश. अनिश्चित. अश्वथामा. आधे - आधे हम दोनो. आनंद आश्रम. उस्ताद बिस्मिल्ला खान. एक दिन शाम को. कभी यूं भी तो हो. कलंकित लोगों के शिव. कहाँ हो तुम. काफ्का. कामू और बोर्खेज. किश्तों के सहारे. कीड़ें. कोन्याक. गिरिजादेवी. चाय के दो कप. तस्वीरें. दिल्ली. देव आनन्द. वह मूर...
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औघट घाट: Jul 16, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Thursday, July 16, 2009. अमंगल में मंगल बिस्मिल्लाह. बिस्मिल्लाह ने एक बार कहा था कि यहीं रियाज करते-करते भगवान बालाजी उनके सामने आए और सिर पर हाथ फेर कर कहा कि 'जाओ खूब मजे करो'. क्या ऐसा बिस्िमल्लाह 15 अगस्त 1947 की आजादी की सुबह बनकर लाल किले पर शहनाई नहीं बजा रहा है? प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: उस्ताद बिस्मिल्ला खान. Subscribe to: Posts (Atom). साल दर साल. अनंत प्रकाश. अनिश्चित. अश्वथामा. आनंद आश्रम. अखाड&#...
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औघट घाट: May 18, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Monday, May 18, 2009. मेरी प्यारी ओफेलिया. हो या न हो. सवाल बस यही है. क्या सही है घुटते रहना. अपनी ही सोच में. और सह लेना हर उस बात को. जो किस्मत ने तय की है. न कोई आंसू न कोई शिकायत. बस एक चुप्पी. जो किसी को कुछ जानने न दे. कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से. या फ़िर सही अंत जीवन का. जिसमे मर्जी अपनी हो. सिर्फ़ अपनी. मगर सवाल तो यह है मेरी प्यारी ओफेलिया. की यह सवाल है क्या? प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: पीर पराई. किताब&...8220;हम च...