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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-09
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चलो यूँ ही सही. Friday, May 14, 2010. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे- अहमद फराज. ऐसे चुप हैं, कि यह मंजिल की कड़ी हो जैसे. तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे. अपने ही साए से हर गाम लरज जाता हूँ. रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे. कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे. तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर. यह गिरह अब के मेरे दिल में पड़ी हो जैसे. मंजिलेँ दूर भी है, मंजिलेँ नजदीक भी है. Sunday, May 9, 2010. उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर. Subscribe to: Posts (Atom).
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चलो यूँ ही सही...: 2010-04-18
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चलो यूँ ही सही. Saturday, April 24, 2010. सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना. मंज़र-ए-इश्क का फूलना फलना. ये दरिया-ए-मय है या फिर कोई दवाखाना. देर शब् तेरी जुम्बिश की आखिरी वो खलिश. हमने खोया था तुझे अब तेरा पाना. रूह को भी गम है तेरे फिराक का. कैडे हयात में इक आस्तां है सागर-ओ-मीना. तुम थे तो एक शहर थी हयात में. अब एक दलील हूँ उस्सक बूटों का बना. इश्क एक दरिया-ए-ज़ख्म है या बाज़ीचा-ए-अत्फाल. Labels: अनुपम कर्ण. Monday, April 19, 2010. आये बनकर उल्लास अभी. आबाद रहे रì...हम सî...
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"प्रेम ही सत्य है": भूला बिसरा ब्लॉग़ - बुनो कहानी 2
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प्रेम ही सत्य है". नारी-मन के प्रतिपल बदलते भाव जिसमें जीवन के सभी रस हैं। " मीनाक्षी. Tuesday, September 30, 2014. भूला बिसरा ब्लॉग़ - बुनो कहानी 2. अपराध बोध : अध्याय 1 : भयानक रातें. द्वारा तरुण. उसकी माँ ने जवाब दिया, "हाँ, बेटा पता नही इसको क्या हो गया है? इस कथा का दूसरा भाग. लिखा है मीनाक्षी ने। अवश्य पढ़ें।]. Labels: "अपराध बोध". अगर कोई और तैयार हो तो ठीक वरना मैं भी इच्छुक हूँ।. May 20, 2006 1:02 am. मैं भी इच्छुक हूँ।. October 11, 2006 8:18 pm. मीनाक्षी. September 23, 2007 2:24 am. दिन...
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चलो यूँ ही सही...: 2010-06-06
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चलो यूँ ही सही. Thursday, June 10, 2010. रफ्ता-रफ्ता द्वार से यूँ ही गुजर जाती है रात -अश्वघोष. रफ्ता-रफ्ता द्वार से यूँ ही गुजर जाती है रात. मैने देखा झील पर जाकर बिखर जाती है रात. मैं मिलूंगा कल सुबह इस रात से जाकर जरूर. जानता हूँ , बन संवरकर कब , किधर जाती है रात. हर कदम पर तीरगी है , हर तरफ एक शोर है. हर सुबह एकाध रहबर कत्ल कर जाती है रात. जैसे बिल्ली चुपके चुपके सीढ़ियाँ उतरे कहीं. Subscribe to: Posts (Atom). Pakistan: The Making of a Rogue Nation. View my complete profile. अनुपम कर्ण. पर उसके...
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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-02
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चलो यूँ ही सही. Saturday, May 8, 2010. फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने- पूनम कौसर. उनको देखा तो पलट आए जमाने कितने . फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने. मशवरा मेरी वसीयत का मुझे देते हैं. हो गए हैं, मेरे मासूम सियाने कितने. मेरे बचपन की वो बस्ती भी अजब बस्ती थी. दोश्त बन जाते थे इक पल में बेगाने कितने. उनकी तस्वीर तो रख दी है हटाकर लेकिन. फिर भी कहती है यह दीवार फसाने कितने. कितनी सुनसान है कौसर अब इन आँखो की गली. मेरा नया घर. मेरे नये घर में. पत्नी बच्चे और मैं. Wife, children and I. उसकी आख...
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गीत-ग़ज़ल: 03/17/15
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गीत-ग़ज़ल. मंगलवार, 17 मार्च 2015. होली में मन रँग बैठी है. व्यस्तता की वजह से होली पर लिखा गीत होली के मौके पर पोस्ट नहीं कर पाई . आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है. एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है. सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है. दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है. हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे. ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 3 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. 1 दिन पहले. विदा...दूर...
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इंतिहा: July 2012
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इंतिहा. ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं. रविवार, 15 जुलाई 2012. जो प्रेमी के नाम सी. ज़बान पर चढ़ जाती है. हम उँगलियों से आसमान को टटोलते रहते हैं. कि इस दफ़ा बरसे तो पूरा आसमान पी जाएँ. और जब टूटके गिरते हैं कांच के मोती. समूचा आसमान जैसे त्वचा में निचुड़ आता है. दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA. 2 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. कुछ मैं! अपना सबका. कड़क चाय. उड़न तश्तरी . ऋण मí...
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इंतिहा: January 2013
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इंतिहा. ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं. सोमवार, 7 जनवरी 2013. मुझे तब तक प्यार करना जब तक. मेरे बदन की सारी झुर्रियों को नाम से न बुलाने लगो तुम. जब तक मेरी लटों में तुम्हारी उँगलियाँ अटकती हों. जब तक कि मेरी आँख के शीशे में देख पाते हो तुम ज़िक्र अपना. जब तक तुम मेरी साँसों में अपनी दास्ताँ पाते हो. जब तक मेरे होठों पर तुम्हारे नाम के कई महकते गुलाब खिलें. जब तक तुम मेरी आवाज़ से उठकर मेरी आह को पढ़ने लगो. दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA. 4 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. 1 रंग सब ...
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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-16
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चलो यूँ ही सही. Friday, May 21, 2010. बरखा की भोर - डॉ. देवव्रत जोशी. बनपाँखी बूँदोँ का शोर :. बरखा की भोर।. सूरज दिखाई नहीं देता साफ. अधजागा लेटा हूँ ओढकर लिहाफ. नाच रहे हैं अब तक आँखों में सपनों के भोर ।. मेघोँ की पँखुरियोँ में बंदी किरणोँ के छन्द धरती से उठकर फैली है आकाशोँ में माटी की गंध. स्नानवती दिशाएं समेट रहीं. आँचल के छोर ।. बनपाँखी बूँदोँ का शोर :. बरखा की भोर।. और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए. और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए ,. कम से कम उसकी तरफ आँख उठाए रखिए. Thursday, May 20, 2010. चा...