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गुरुवार, 1 मार्च 2018. रंग पर्व. आसमान में भरे हैं रंग. धूसर ही सही लेकिन मिटटी का भी एक रंग है. रंग हरा जब होता है खेतों का , दुनिया में होता है जीवन. पानी को कहते हैं बेरंग लेकिन वह कर लेता है समाहित सब रंगों को. हवा का रंग मन के रंगों से खाता है मेल. और हाँ. रंग दुःख का भी होता है और सुख का भी. ये रंग जब खुश होते हैं, होता है रंगों का पर्व. क्योंकि होता है आशा, उत्साह और उल्लास का भीएक रंग, लाल।. गुरुवार, मार्च 01, 2018. 2 टिप्‍पणियां:. Links to this post. एक पैर का जूता. Links to this post. देश...

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गुरुवार, 1 मार्च 2018. रंग पर्व. आसमान में भरे हैं रंग. धूसर ही सही लेकिन मिटटी का भी एक रंग है. रंग हरा जब होता है खेतों का , दुनिया में होता है जीवन. पानी को कहते हैं बेरंग लेकिन वह कर लेता है समाहित सब रंगों को. हवा का रंग मन के रंगों से खाता है मेल. और हाँ. रंग दुःख का भी होता है और सुख का भी. ये रंग जब खुश होते हैं, होता है रंगों का पर्व. क्योंकि होता है आशा, उत्साह और उल्लास का भीएक रंग, लाल।. गुरुवार, मार्च 01, 2018. 2 टिप्‍पणियां:. Links to this post. एक पैर का जूता. Links to this post. देश...
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गुरुवार, 1 मार्च 2018. रंग पर्व. आसमान में भरे हैं रंग. धूसर ही सही लेकिन मिटटी का भी एक रंग है. रंग हरा जब होता है खेतों का , दुनिया में होता है जीवन. पानी को कहते हैं बेरंग लेकिन वह कर लेता है समाहित सब रंगों को. हवा का रंग मन के रंगों से खाता है मेल. और हाँ. रंग दुःख का भी होता है और सुख का भी. ये रंग जब खुश होते हैं, होता है रंगों का पर्व. क्योंकि होता है आशा, उत्साह और उल्लास का भीएक रंग, लाल।. गुरुवार, मार्च 01, 2018. 2 टिप्‍पणियां:. Links to this post. एक पैर का जूता. Links to this post. देश...

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सरोकार: April 2015

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बुधवार, 29 अप्रैल 2015. एक था गरीब किसान'. बाबूजी को. कहाँ याद होगा कि. कब पैदा हुए थे. हाँ दद्दा बताते थे कि. जब अंग्रेजों के जाने के बाद. कलकत्ता में हुए थे दंगे. गाँधी जी बैठे थे. पैदा हुए थे बाबूजी. उसी दौरान. कहते हैं. बड़ा कठिन समय था वह. देश में. ना सड़कें थी. ना बिजली. किसानो की हालत. और भी बुरी थी. तभी तो. जब बाबूजी कहते थे. दद्दा को. सुनाने कहानी. दद्दा की हर कहानी शुरू होती थी. एक था गरीब किसान'. समय बीता. बाबूजी हुए जवान. उसी गरीबी में. देश कर रही है. तरक्की करते रहे. ठीक उसी तरह. 4 टिप...

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सरोकार: August 2014

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शुक्रवार, 29 अगस्त 2014. तुम्हे सोचते हुए. मुझे याद आती है. जो पकाती है रोटी,. सुलगाती है बोरसी. अकेले होती है. बुझ जाने के बाद. शुक्रवार, अगस्त 29, 2014. 7 टिप्‍पणियां:. Links to this post. गुरुवार, 28 अगस्त 2014. कच्ची सड़क. कच्ची सड़को को छोड़. जब चढ़ता हूँ. पक्की सड़क पर. पीछे छूट जाती है. मेरी पहचान. मेरी भाषा. मेरा स्वाभिमान! कच्ची सड़क में बसी. मिटटी की गंध से. परिचय है वर्षो का. कंक्रीट की गंध. बासी लगती है. और अपरिचित भी. अपरिचितों के देश में. व्यर्थ मेरा श्रम. कच्ची सड़क! Links to this post. वात...

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सरोकार: October 2012

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सोमवार, 8 अक्तूबर 2012. माँ और भादो. इस बरस भी. भादो नहीं बरसा. हथिया नक्षत्र. सूना ही रहा. नहीं बढाई बादलो ने. अपनी सूंढ़. और तालाब की मछलियाँ. नहीं खींच ले गया. न जाने माँ की. कैसी कैसी चिंताएं हैं. जो इस शोर में. दब कर रह जाती हैं. और इस बीच सरकार. एक दिन में ले लेती है. कई जरुरी निर्णय. जिसमे भादो के नहीं बरसने का. जिक्र नहीं होता. हथिया जो. नहीं बरसा है. कैसे जमेगा धान के पौधे में गर्भ. धान के पौधे जो नहीं. गम्हरायेंगे. कैसे लकदक लकदक फूटेंगे. उस नहीं फ़िक्र कि. बन सकता है. Links to this post. सदस&#...

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सरोकार: November 2012

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सोमवार, 12 नवंबर 2012. माँ और दीपावली. माँ के लिए. दिवाली आ जाता है. हफ्ता भर पहले ही. घर के कोने कोने तक. पहुच जाती है माँ. जहाँ होती है. चूहों का बसेरा. अँधेरा. माँ दिवाली कर आती है. घर के अँधेरे कोनो में. सबसे आखिर में. माँ निकलती है. अपनी सबसे पुरानी पन्नी. जिसमे कई गत्तो के नीचे. पड़ी होती है. कुछ पुरानी कढाई,. कुछ जंग लगी सुइयां. कुछ अधूरे चित्र. जिन्हें इस बरस पूरा करने को सोचती है. यह सिलसिला. दशको पुराना है. होती हैं. इन्ही गत्तों के बीच. कुछ सपने. दिवाली पर. माँ के लिए. Links to this post. 22 ट&...

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सरोकार: April 2013

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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013. आज मजदूर दिवस है. माल रोड, शिमला. गोरखा युद्ध से लौटे. अपने सेनापति के लिए. ब्रिटिश साम्राज्य का. उपहार था शिमला. जिसे कालांतर में बनाई गई. गुलाम भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी. कहा जाता है. कालों को अनुमति नहीं थी. माल रोड तक पहुचने की. और गुलामी का प्रतीक. माल रोड शिमला में. अब भी पाए जाते हैं कुली. जो अपनी झुकी हुई पीठ पर. लादते हैं अपने से दूना वज़न तक. जीवन रेखा हैं ये. इस शहर की. लाते हैं उठा. माल रोड की चमक दमक. और किनारे पडी. ये कुली. ये कुली. जब भी आता है. 8216;जय सि...

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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-09

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चलो यूँ ही सही. Friday, May 14, 2010. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे- अहमद फराज. ऐसे चुप हैं, कि यह मंजिल की कड़ी हो जैसे. तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे. अपने ही साए से हर गाम लरज जाता हूँ. रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे. कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे. तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर. यह गिरह अब के मेरे दिल में पड़ी हो जैसे. मंजिलेँ दूर भी है, मंजिलेँ नजदीक भी है. Sunday, May 9, 2010. उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर. Subscribe to: Posts (Atom).

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चलो यूँ ही सही...: 2010-04-18

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चलो यूँ ही सही. Saturday, April 24, 2010. सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना. मंज़र-ए-इश्क का फूलना फलना. ये दरिया-ए-मय है या फिर कोई दवाखाना. देर शब् तेरी जुम्बिश की आखिरी वो खलिश. हमने खोया था तुझे अब तेरा पाना. रूह को भी गम है तेरे फिराक का. कैडे हयात में इक आस्तां है सागर-ओ-मीना. तुम थे तो एक शहर थी हयात में. अब एक दलील हूँ उस्सक बूटों का बना. इश्क एक दरिया-ए-ज़ख्म है या बाज़ीचा-ए-अत्फाल. Labels: अनुपम कर्ण. Monday, April 19, 2010. आये बनकर उल्लास अभी. आबाद रहे र&#236...हम स&#238...

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"प्रेम ही सत्य है": भूला बिसरा ब्लॉग़ - बुनो कहानी 2

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प्रेम ही सत्य है". नारी-मन के प्रतिपल बदलते भाव जिसमें जीवन के सभी रस हैं। " मीनाक्षी. Tuesday, September 30, 2014. भूला बिसरा ब्लॉग़ - बुनो कहानी 2. अपराध बोध : अध्याय 1 : भयानक रातें. द्वारा तरुण. उसकी माँ ने जवाब दिया, "हाँ, बेटा पता नही इसको क्या हो गया है? इस कथा का दूसरा भाग. लिखा है मीनाक्षी ने। अवश्य पढ़ें।]. Labels: "अपराध बोध". अगर कोई और तैयार हो तो ठीक वरना मैं भी इच्छुक हूँ।. May 20, 2006 1:02 am. मैं भी इच्छुक हूँ।. October 11, 2006 8:18 pm. मीनाक्षी. September 23, 2007 2:24 am. दिन&#23...

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चलो यूँ ही सही...: 2010-06-06

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चलो यूँ ही सही. Thursday, June 10, 2010. रफ्ता-रफ्ता द्वार से यूँ ही गुजर जाती है रात -अश्वघोष. रफ्ता-रफ्ता द्वार से यूँ ही गुजर जाती है रात. मैने देखा झील पर जाकर बिखर जाती है रात. मैं मिलूंगा कल सुबह इस रात से जाकर जरूर. जानता हूँ , बन संवरकर कब , किधर जाती है रात. हर कदम पर तीरगी है , हर तरफ एक शोर है. हर सुबह एकाध रहबर कत्ल कर जाती है रात. जैसे बिल्ली चुपके चुपके सीढ़ियाँ उतरे कहीं. Subscribe to: Posts (Atom). Pakistan: The Making of a Rogue Nation. View my complete profile. अनुपम कर्ण. पर उसके...

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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-02

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चलो यूँ ही सही. Saturday, May 8, 2010. फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने- पूनम कौसर. उनको देखा तो पलट आए जमाने कितने . फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने. मशवरा मेरी वसीयत का मुझे देते हैं. हो गए हैं, मेरे मासूम सियाने कितने. मेरे बचपन की वो बस्ती भी अजब बस्ती थी. दोश्त बन जाते थे इक पल में बेगाने कितने. उनकी तस्वीर तो रख दी है हटाकर लेकिन. फिर भी कहती है यह दीवार फसाने कितने. कितनी सुनसान है कौसर अब इन आँखो की गली. मेरा नया घर. मेरे नये घर में. पत्नी बच्चे और मैं. Wife, children and I. उसकी आख&#2...

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गीत-ग़ज़ल: 03/17/15

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गीत-ग़ज़ल. मंगलवार, 17 मार्च 2015. होली में मन रँग बैठी है. व्यस्तता की वजह से होली पर लिखा गीत होली के मौके पर पोस्ट नहीं कर पाई . आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है. एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है. सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है. दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है. हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे. ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न. प्रस्तुतकर्ता शारदा अरोरा. 3 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. 1 दिन पहले. विदा...दूर...

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इंतिहा: July 2012

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इंतिहा. ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं. रविवार, 15 जुलाई 2012. जो प्रेमी के नाम सी. ज़बान पर चढ़ जाती है. हम उँगलियों से आसमान को टटोलते रहते हैं. कि इस दफ़ा बरसे तो पूरा आसमान पी जाएँ. और जब टूटके गिरते हैं कांच के मोती. समूचा आसमान जैसे त्वचा में निचुड़ आता है. दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA. 2 टिप्‍पणियां:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. कुछ मैं! अपना सबका. कड़क चाय. उड़न तश्तरी . ऋण म&#237...

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इंतिहा. ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं. सोमवार, 7 जनवरी 2013. मुझे तब तक प्यार करना जब तक. मेरे बदन की सारी झुर्रियों को नाम से न बुलाने लगो तुम. जब तक मेरी लटों में तुम्हारी उँगलियाँ अटकती हों. जब तक कि मेरी आँख के शीशे में देख पाते हो तुम ज़िक्र अपना. जब तक तुम मेरी साँसों में अपनी दास्ताँ पाते हो. जब तक मेरे होठों पर तुम्हारे नाम के कई महकते गुलाब खिलें. जब तक तुम मेरी आवाज़ से उठकर मेरी आह को पढ़ने लगो. दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA. 4 टिप्‍पणियां:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. 1 रंग सब ...

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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-16

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चलो यूँ ही सही. Friday, May 21, 2010. बरखा की भोर - डॉ. देवव्रत जोशी. बनपाँखी बूँदोँ का शोर :. बरखा की भोर।. सूरज दिखाई नहीं देता साफ. अधजागा लेटा हूँ ओढकर लिहाफ. नाच रहे हैं अब तक आँखों में सपनों के भोर ।. मेघोँ की पँखुरियोँ में बंदी किरणोँ के छन्द धरती से उठकर फैली है आकाशोँ में माटी की गंध. स्नानवती दिशाएं समेट रहीं. आँचल के छोर ।. बनपाँखी बूँदोँ का शोर :. बरखा की भोर।. और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए. और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए ,. कम से कम उसकी तरफ आँख उठाए रखिए. Thursday, May 20, 2010. चा...

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Friday, November 6, 2009. Sachin's Innings of 175 Vs. Australia at Hyderabad. It was a privilege to watch Sachin's Innings of 175 Vs. Australia at Hyderabad yesterday (5th Nov 2009). Though India did not win, Sachin reached a milestone of 17,000 runs and also scripted his 45th ODI century. Can you believe the next batsmen are Ricky Ponting and Sanath Jayasuriya way behind at 28 centuries each. A difference of 17 centuries - woh! Saturday, December 8, 2007. Tendulkar still teaching lessons. It was a misca...

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