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कहानी-कविता: October 2010
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कहानी-कविता. Tuesday, October 12, 2010. थोड़ी सी जगह. थोड़ी सी जगह. ठीक पौने बारह बस का समय था और वह बज चुकी थी। बस, बसस्टॉप छोड़ चुकी थी और श्रुति बस अड्डे के बाहर ही बस रूकवा कर अंदर चढ़ गई।. नॉन स्टॉप बस में ठसाठस सवारियां भरी हुई थी। कहीं तिल धरने को जगह नहीं थी। ‘उफ! कपासन तक का लम्बा सफर क्या खड़े खड़े तय करना पड़ेगा? 8216;‘आप कहां से आ रही है? 8216;‘अच्छा, आप वहां कहां रहती है? 8216;‘आप कहां जा रहे हैं? 8216;‘क्या आप चावण्ड से आ रहे हैं? वृद्ध निरंतर उसकी उपेक्ष&...8216;‘अच्छा तो ...8216;‘अच्...उसकी...
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कहानी-कविता: January 2010
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कहानी-कविता. Friday, January 22, 2010. 8216;तुम चुप रहो! यदि महिला आरक्षण की बात नहीं होती तो उसका नाम कौन लेता? 8216;‘जठे परधान वणवां वास्ते होड़-होड़ी में आदमियां’रा माथा फूटी जावता, वठे अणी पद ने आरक्षित करी’न सरकार बब्बूड़ी’री तकदीर खोल दीदी’’।. उसे पार्टी, राजनिति से क्या लेना देना? कल बब्बूड़ी फार्म भरने जायेगी।. 8216;‘इधर आ बब्बूड़ी’’. उसने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि शर्मा गयी।. हार जीत का फैसला तो यहीं मतदाता करते है।. 8216;‘तू चुप रह! 8216;चुनाव के लिए कल फार्म भर...8216;‘हां! यों·&...8216;‘ब&...
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कहानी-कविता: October 2014
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कहानी-कविता. Wednesday, October 29, 2014. भाभी की सेवानिवृति का अवसर जो है।. 8216;‘रात के ग्यारह बज रहे है, अब सो भी जाओ।’’ दिवाकर ने जम्हाई लेते विभा की ओर देखकर कहा- कल का ही दिन बचा है। बहुत कुछ तैयारी अभी बाकी है।. 8216;‘हो जायेगा। क्यों चिंता कर रहे हो भैया? 8217;’ दिवाकर ने विभा की ओर मुखातिब होकर पूछा।. जरा दिखाओ तो सही।’’. देखा न भैया, मैं न कहती थी भाभी के काम का जवाब नहीं। वाह! 8216;‘कैसी लगी? 8217;’ विभा ने पूछाा।. क्यूं भैया? 8216;‘बताओ तो कौन है? 8216;‘बचपन से ही इन्ह...समय पंख लगì...
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कहानी-कविता: June 2012
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कहानी-कविता. Saturday, June 23, 2012. हस्ती इनकी. बीच रास्ते में चलते. कई बार आ घेरती है रेवड़. रेवड़, जिसकी भेड़चाल. देखकर मन विमोहित सा. हो उठता है. सिर झुका कर. एक के पीछे एक लग. अनुसरण करते जाना. क्या यही हैं. इनकी करूण गाथा? रेवड़, जो लिए चलती है. एक कुत्ता, अपने संग. जो चैकसी करता है. रखवाली भी कभी कभी. मार्गदर्शन लेना. वो भी एक कूकर से. क्या नहीं है. भीरूता इनकी? रेवड़, जो धरती पर. भूचाल बन बढ़ती जाती. तनिक टूटी या बिखरी तो. फिर आ जुड़ती. चुम्बक जैसी खींच कर. हां, यही है. कर लिए गये. Is licensed u...
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कहानी-कविता: September 2009
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कहानी-कविता. Tuesday, September 22, 2009. आरोह - अवरोह. मैंने झुककर देखा, क्या वह सो चुकी है? 8216;हां ’शायद’ मैं उठने के लिए हिली तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया- ‘कहां जा रही हो? आपकी तबीयत ज्यादा खराब हो जायेगी तब? वह हंसकर कहती, ‘‘अब मर भी जाऊं तो कोई दुख नहीं, तुम आ गई हो न अब घर संभालने। अब मैं चैन से मर सकती हूं।’’. 8216;‘आप हमेशा मरने की बात क्यूं करती है? 8216;‘पगली हो तुम! 8216;‘तुम क्या सोचते हो? मुझे खाने की इच्छा नहीं होती? और मैं? 8217;’ उनकी आंखे भावना श&#...Saturday, September 19, 2009.
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कहानी-कविता: October 2009
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कहानी-कविता. Monday, October 19, 2009. 8216;‘मकान ढ़ूंढने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई? अभी नई-नई बस्ती बसी है।’’ उसके हाथ से सामान लेते हुए अतुल की पत्नी वृन्दा ने पूछा।. 8216;‘नहीं’’ चारों ओर नजरें घुमाकर वो मुस्कुरा उठी।. मां किससे बात कर रही है, कौन आया है? एक एककर वृन्दा के तीनों बच्चे यह देखने चले आये।. 8216;‘छोड़ न! मुझे गिरायेगी। फिर मेहमान की ओर उन्मुख होकर बोली -. मम्मी मेरी बेल्ट कहां है. तुम्हारे टिफिन में क्या रखूं? परांठा आचार या सैण्डविच. देखूं कहां.उफ! चुप ··, वृन्द...ये क्या...बाहर ओट&#...
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कहानी-कविता: November 2011
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कहानी-कविता. Saturday, November 26, 2011. आदमी का अहसास. जिन्दगी की किताब पर. रोज होते है. हास परिहास. नित नये रूप में. छपते है. चाय के पानी की तरह. खौलते है गैैस पर. फ्र्रिज में रखे. दूध का ठण्डापन. जमने न देता. डिब्बे में बंद. चीनी की मिठास. जागता है फिर गर्म अहसास. मुंह के सामने. लगी प्याली की तरह. गर्म धुंए से. लौटता है फिर. आदमी का विश्वास. प्रस्तुतकर्ता. Thursday, November 24, 2011. तेरे रूप कितने. तेरे रूप कितने. ऐसा क्यों कहती हो? वो कौन? कौन रामेश्वर? अपनी भी बनाई? हो मम्मीज...लगाव कठ&#...
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कहानी-कविता: September 2008
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कहानी-कविता. Friday, September 5, 2008. शायद अगले स्टेशन पर कुछ और लोग चढ़ जाय कूपे में और यह उपर की दोनों बर्थ भर जाय. मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी. सच! उस समय के हरि स्मरण ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया. क्या कर लेगा अगर उसे सोना जेवरात चाहिये तो क्या है मेरे पास? यह सब और जान बख्श दे. मानो इसे रूपया पैसा या जेवरात नहीं चाहिये तो? यह कोई किल्लर हुआ तो? मुझे क्यूं मारेगा कोई? पर क्यों? तुम्हें क्या काम है इससे? मन ने ही घुड़का था मुझे. कहां जाना चाहता है? क्या करता है? वह तो उठकर खड़ा ह...मै&...
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कहानी-कविता: May 2010
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कहानी-कविता. Friday, May 28, 2010. जिन्दगी यहां. हर कदम से ताल मिला ले. ऐसी भी आसान नहीं है जिन्दगी यहां. पल पल मरकर भी. जीते है लोग. ऐसी भी लाचार नहीं है जिन्दगी यहां. नफे नुक्सान का हिसाब न मांगे. ऐसी भी बेजुबां नहीं है जिन्दगी यहां. अरे हंसने वालो. सिसक सिसक कर दम तोड़ती. है जिन्दगी यहां. अपनी राते काली कर. महफिल रोशन करती है जिन्दगी यहां. मां बहन बेटी बीबी नहीं. सिर्फ औरत बनकर. बिस्तर की सलवटे. बनती है जिन्दगी यहां. प्रस्तुतकर्ता. Saturday, May 8, 2010. प्रस्तुतकर्ता. नहला धुलाकर. पुचकार क...फिर...