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कभी तो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰: June 2009
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कभी तो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰. कभी तो नाप लेंगे दूरियां ये आसमानों की, परिन्दों का यकीं कायम तो रहने दो उडानों में. शनिवार, जून 20, 2009. नवगीत की पाठशाला में. मेरा नवगीत पढें-. Http:/ navgeetkipathshala.blogspot.com/2009/06/blog-post 05.html. Posted by संजीव गौतम. Links to this post. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुल घुमंतु. मेरा भारत महान, तिरंगा मेरी शान. अपने बारे में. संजीव गौतम. मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. सुबीर संवाद सेवा. 4 घंटे पहले. 2 सप्ताह पहले. 3 माह पहले. आज हम बात क...
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कभी तो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
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कभी तो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰. कभी तो नाप लेंगे दूरियां ये आसमानों की, परिन्दों का यकीं कायम तो रहने दो उडानों में. बुधवार, मई 13, 2009. नवगीत की पाठशाला में मेरा नवगीत पढें. Http:/ navgeetkipathshala.blogspot.com/2009/05/blog-post.html. Posted by संजीव गौतम. 3 टिप्पणियां:. ने कहा…. ये मेरा पुराना वाला आगरा का मित्र है क्या? जो ऑनलाईन कवि सम्मेलनों में मेरे साथ होता था? बताओ जरा? 13 मई, 2009 08:07. गौतम राजरिशी. ने कहा…. 26 मई, 2009 22:43. गौतम राजरिशी. ने कहा…. 28 मई, 2009 21:53. नई पोस्ट. 3 माह पहले. ग़ज़ल क&...
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कभी तो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰: May 2009
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कभी तो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰. कभी तो नाप लेंगे दूरियां ये आसमानों की, परिन्दों का यकीं कायम तो रहने दो उडानों में. शनिवार, मई 30, 2009. वही हालात हैं बदला हुआ कुछ भी नहीं है. वही चेहरे वही किस्से नया कुछ भी नहीं है. पुराने लोग हैं कुछ जो नज़र आते हैं वरना,. नयी तहज़ीब में तहज़ीब सा कुछ भी नहीं है. बहुत बेचैन होता हूँ मैं जब भी सोचता हूँ,. यहाँ इस मुल्क़ में अब मुल्क़ सा कुछ भी नहीं है. अगर सोचो तो बेशक दूरियाँ ही दूरियाँ हैं,. Posted by संजीव गौतम. Links to this post. बुधवार, मई 13, 2009. Links to this post. मे...
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अजेय की कविताएं: September 2010
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अजेय की कविताएं. Saturday, 18 September 2010. हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'असिक्नी' आपकी नज़र. तकरीबन तीन साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद असिक्नी का दूसरा अंक. प्रकाशित हो गया है. *असिक्नी *. कर रहें हैं।. अंक पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें. स्पिति के प्रथम आधुनिक हिन्दी कवि मोहन सिंह. की रपट। परमानन्द. संस्मरण। विजेन्द्र. की किताब आधी रात. के रंग पर बलदेव कृष्ण घरसंगी. का विवरणात्मक लेख। लाहुली समाज के विगत ...ज्ञानप्रकाश विवेक. मुरारी शर्मा. और सरोज परमार. सहित गनी. हिम&#...
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अजेय की कविताएं: कुछ बातें काम की
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अजेय की कविताएं. Monday, 26 April 2010. कुछ बातें काम की. भाई की क्षणिकाएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। अजेय भाई, आप इतने नाराज़ हो जाओगे सोचा न था! खैर आपकी याद में आपकी ही कुछ कविताएँ:-. चार क्षणिकाएँ. सुनो,. आज ईश्वर काम पर है. तुम भी लग जाओ. आज प्रार्थना नहीं सुनी जाएगी।. उसके दो हाथों में. चार काम दे दिए. बदतमीज़,. लातों से दरवाज़ा खोलता है! आँखें आशंकित थीं. हाथों ने कर दिखाया।. काम की जगह पर. सब कूड़ा बिखरा था. बस काम चमक रहा था. आग सा।. 26 April 2010 at 19:59.
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नवनीत शर्मा: ....खुश्बुओं का डेरा है।
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, March 25, 2009. खुश्बुओं का डेरा है।. उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है।. हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है।. सच के क़स्बे का जो अँधेरा है,. झूठ के शहर का सवेरा है।. मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का,. तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है।. दूर होकर भी पास है कितना,. जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।. जो तुझे तुझ से छीनने आया,. March 25, 2009 at 7:17 AM. Waah behtarin lajawab gazal. बहुत ख...
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नवनीत शर्मा: तीन नई कविताएँ
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Sunday, February 3, 2013. तीन नई कविताएँ. अंबर जब कविता लिखता है. हर तबका नहीं सुनता. जब कविता लिखता है अंबर. पर सुनती हैं कच्चे घरों की स्लेटपोश छतें. सर्द मौसम में अंबर की भीगी हुई कविता. और मिलाती हैं सुर/. सुनते हैं इसे. फुटपाथ पर कंबल में लिपटे जिस्म. दांत किटकिटाते. और कुछ ऐसा कहते हुए. जो भाषा के लायक नहीं होता. एक असर यह भी. कंबल ओढ़. आती रहेगी. शाम को ल...लौट...
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जन-गण-मन: February 2012
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द्विजेन्द्र द्विज का ग़जल संग्रह. Sunday, February 19, 2012. पहाड़ी कवि की पुकार- ‘जन-गण-मन’. द्विजेंद्र द्विज के “जन- गण - मन”. पर प्रख्यात समीक्षक श्री चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद. पहाड़ी कवि की पुकार- ‘जन-गण-मन’. 8220;ये मनोरंजन नहीं करती. क्योंकि ये ग़ज़लें व्यथाएँ हैं". 8220; जो हुस्नो-इश्क़ की वादी से जा सके आगे. ख़याले-शायरी को वो उड़ान दीजिएगा । ". 8216;मत बातें दरबारी कर. सीधी चोट करारी कर’. 8220;मन ख़ाली हैं. लब जन-गण-मन’’. निर्वासित है. क्यों जन-गण-मन". राजनीति का एक और शस...यदि कुछ स...8220;जम&#...
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जन-गण-मन: June 2010
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द्विजेन्द्र द्विज का ग़जल संग्रह. Sunday, June 27, 2010. ख़ुद तो ग़मों के ही रहे हैं आसमाँ पहाड़. ख़ुद तो ग़मों के ही रहे हैं आसमाँ पहाड़. लेकिन ज़मीन पर हैं बहुत मेहरबाँ पहाड़. हैं तो बुलन्द हौसलों के तर्जुमाँ पहाड़. पर बेबसी के भी बने हैं कारवाँ पहाड़. थी मौसमों की मार तो बेशक बडी शदीद. अब तक बने रहे हैं मगर सख़्त-जाँ पहाड़. सीने सुलग के हो रहे होंगे धुआँ-धुआँ. ज्वालामुखी तभी तो हुए बेज़बाँ पहाड़. पत्थर-सलेट में लुटा कर अस्थियाँ तमाम. Labels: जन-गण-मन की पहली ग़ज़ल. Tuesday, June 22, 2010. चंद ख&...
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आज की ग़ज़ल: 08/29/13
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Thursday, August 29, 2013. सुरेन्द्र चतुर्वेदी जी की एक ग़ज़ल. तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ. हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ. कई थे लोग किनारों से देखने वाले. मगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआ. हमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपने. उन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआ. रहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों में. यही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआ. लगी जो आग तो सोचा उदास जंगल ने. हवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआ. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom). अब तक का सफ़र. पुरुष...पूर...