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प्रदक्षिणा: January 2013
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प्रदक्षिणा. Wednesday, January 9, 2013. देख लेना . अन्याय के विरोध में. आवाज उठाने से पहले. देख लेना -. कि तुम्हारी जाति क्या है . देख लेना -. कि जो अन्याय का शिकार हुआ. उसकी जाति क्या है . देख लेना -. कि वो जो मर-खप गये कभी के. तुम्हारे-हमारे पूर्वज. उनके कर्मों के. क्या है इतिहास . देख लेना -. उनके धर्म-कर्म. और देश-जाति की पहचान . समझना इस बात को -. कि अन्याय का. विरोध करने के अधिकार के लिए भी. पहले निपटाने होंगे आपको. मरे हुए लोगों के. इतने कटे हुए सिरों से . इतनी गुमनाम. कोई और नही. और आज भी. इस बच&...
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प्रदक्षिणा: April 2014
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प्रदक्षिणा. Saturday, April 19, 2014. एक अधिकार अपने साथ दस दायित्व भी लाता है . ब्लॉग के मोडरेटर लोग काहे बात के लिए होते है . खाली लेखकों से तमाम विषयों पर लेखन सामग्री जुटाने और अपने ब्लॉग पर चेंपने भर के लिए . भाषा और मात्राऔं की त्रुटियां तो कोई मायने ही न रखती हों जैसे. और पुनरावलोकन तो कभी कोई करता ही नहीं. बस मोडरेटर हो जाना और ब्लॉग में सामग्री लगाना भर उनकी अधिकार सीमा है . हेमा दीक्षित. Labels: चिंतन-माटी. रानी की कहानी . यहाँ जाने पर मुझे सुबह-सु...इस मंदिर के ठीक...यह रनिवास...कहते...
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प्रदक्षिणा: September 2013
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प्रदक्षिणा. Friday, September 13, 2013. खामखाँ के भाई लोग . डिस्क्लेमर :. यह पोस्ट मेरे अकुंठित मित्रों के लिए कतई नहीं है उनसे अनुरोध है कि वह पूर्ववत अपनी लय और मौज में रमे चलते रहें और मस्त रहें .). अरे यार यह भाई लोगों की समस्या (? कुंठा ) क्या है . अकाउंट मेरा . दीवार मेरी . अहवाल मेरे . और तस्वीरें भी मेरी . मैं रोज परिवर्तित करूँ . ना करूँ . तुम्हे क्या जी . तुम्हारा क्या जा रहा है . आखिर इन पर मधुमक्खियों की तरह टूट कर जमावड़ा लग&#...उगलना जरूरी है ना . मेरी मर्जी . नहीं तो . कविता . खामख&#...
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प्रदक्षिणा: April 2013
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प्रदक्षिणा. Monday, April 8, 2013. पाकिस्तानी फिल्म बोल . एक बेहद उदास करने और त्रास में डुबाने वाली फिल्म से गुजरने के बाद . काबिले गौर बात यह है कि यह स्त्रियां ना केवल मुस्लिम समाज वरन आस-पास नजर उठा कर देखने पर कहीं भी बहुत ही आसानी से मिल जायेंगी. कुछ भी सरल सहज और जीने लायक नहीं बचता है . 2368; भी उपाय के लिए रजामंद कर सके! हेमा दीक्षित. Labels: चिंतन-माटी. Monday, April 1, 2013. विवादों की. आदतों में शुमार है . सतहों पर तैरना . उथले पानी ढूँढ. वहीँ पर रहना . गहरे पैठ . Labels: कविता . सबद - भí...
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प्रदक्षिणा: February 2013
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प्रदक्षिणा. Monday, February 18, 2013. बहिष्कृत . उस पल की मिट्टी. मेरे जेहन में. उतनी ही और वैसी ही. ताज़ा और नम है. जैसे कि उस रोज. मेरी उँगलियों के. पोरों पर लिपट कर. उन्हें बेमतलब ही चूमते हुए थी. मैंने तुम्हे बताया था कि. मैं तुम्हारे प्रेम हूँ'. थामी हुई हथेलियों के. नीम बेहोश दबावों के मध्य. जाने कौन से और कैसे. हर्फ़ों में लिखा था तुमने. साथ का वचन पत्र. जिसकी दुनियाँ में. प्रेम की खारिज़ किस्मत. ताउम्र रोज़े पर थी . हेमा दीक्षित. Labels: कविता . Wednesday, February 13, 2013. लोग उसकी...प्र...
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प्रदक्षिणा: March 2013
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प्रदक्षिणा. Sunday, March 31, 2013. चंद लम्हे बिना किसी किरदार के . अपनी यायावरी की अटैची खींचते हुए अकेली यात्रा पर निकली एक विवाहित स्त्री इतना बड़ा अजूबा क्यों होती है . विवाहित स्त्रियों को घूमने के लिए बाहर निकलने के लिए एक साथी और कारण जरूरी क्यों है . यायावरी का फल भी निषिद्ध फल है चखना मना है . पूरा फल खा जाना तो महाअक्षम्य अपराध है . लगता है पति से बनती नही है . पति का कोई चक्कर होगा . कहीं तलाक का झमेला तो नहीं है . आदि-आदि-आदि . क्यों भई ! हेमा दीक्षित. Labels: चिंतन-माटी. Friday, March 29, 2013.
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प्रदक्षिणा: March 2014
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प्रदक्षिणा. Saturday, March 8, 2014. हिन्दी साहित्य में नव-विभाजन . अब सिर्फ दो काल होंगे फेसबुक से पहले वाला . और फेसबुक के साथ और बाद वाला . स्त्री दिवस पर एक घोषणा . यह हो चुका है इसे रोकना तुम्हारे बस की बात नहीं है. हेमा दीक्षित. Labels: चिंतन-माटी. Subscribe to: Posts (Atom). कविता . चिंतन-माटी. फेसबुक के अहवाल से . यायावरी के फूल . स्मृतियों की डिबिया. यात्री. हिन्दी साहित्य में नव-विभाजन . मिल ही गया. मेरे ख़ोज का छोर. मेरी बाँहों की. भाषा के अंदर. सारे कथ्य हैं. पार कहो या. उस पार कहो.
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प्रदक्षिणा: February 2014
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प्रदक्षिणा. Tuesday, February 11, 2014. आमी जाज़ोबर . हर शहर में घर सा मेरा एक ठिया होना चाहिए . आज, कल ,परसों या बरसों में -. जब कभी भी मैं पहुँच पाऊं मेरे इन्तजार में बैठा हुआ सा . मुझे होटल कभी रास नहीं आये . बेगाने , ठन्डे , हाथों वालें कमरें , बेजान रंगों झूठ बोलती तस्वीरों वाली दरों-दीवारें . कौन जाने फिर मुझे अजनबी शहर क्यों ऐसे इस तरह और इतना रास आते है . हाथों की दुनैय्या के नीचे से तेज धूप में चमचम...एक शहर के सपनो की आँख में उतरना . हेमा दीक्षित. Monday, February 3, 2014. इस थोथे...सिर...