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गीत कलश

काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, August 10, 2015. तुम पर निर्भर. मैंने तो शब्दों में अपने मन के भाव पिरोये सारे. तुम पर निर्भर, तुम जो चाहो वो ही इनका अर्थ निकालो. लिखता हूँ मैं शब्द हवा के झीलों में ठहरे पानी के. और पलों के जिनमें पाखी उड़ने को अपने पर तोले. तुम सोचो तो संभव वे पल होलें किसी प्रतीक्षा वाले. तुम चाहो तो हवा कुन्तलों की झीलें नयनों कि होलें. मैं अपने खींचे वृत्तों में रह जा. ता हूँ होकर बंदी. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, August 03, 2015.

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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, August 10, 2015. तुम पर निर्भर. मैंने तो शब्दों में अपने मन के भाव पिरोये सारे. तुम पर निर्भर, तुम जो चाहो वो ही इनका अर्थ निकालो. लिखता हूँ मैं शब्द हवा के झीलों में ठहरे पानी के. और पलों के जिनमें पाखी उड़ने को अपने पर तोले. तुम सोचो तो संभव वे पल होलें किसी प्रतीक्षा वाले. तुम चाहो तो हवा कुन्तलों की झीलें नयनों कि होलें. मैं अपने खींचे वृत्तों में रह जा. ता हूँ होकर बंदी. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, August 03, 2015.
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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, August 10, 2015. तुम पर निर्भर. मैंने तो शब्दों में अपने मन के भाव पिरोये सारे. तुम पर निर्भर, तुम जो चाहो वो ही इनका अर्थ निकालो. लिखता हूँ मैं शब्द हवा के झीलों में ठहरे पानी के. और पलों के जिनमें पाखी उड़ने को अपने पर तोले. तुम सोचो तो संभव वे पल होलें किसी प्रतीक्षा वाले. तुम चाहो तो हवा कुन्तलों की झीलें नयनों कि होलें. मैं अपने खींचे वृत्तों में रह जा. ता हूँ होकर बंदी. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, August 03, 2015.

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गीत कलश: November 2014

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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, November 24, 2014. गंध में भीगे हुए हैं. ज़िंदगी की वाटिका में जो हुए सुरभित निशा दिन. वे सभी पल मित्रता की गंध में भीगे हुए हैं. कर समन्वय नित्य ही सौहार्द्र के स्वर्णिम क्षणों से. जोड़ते है तार अपने मुस्कुराती वीथियों से. बांधते हैं डोरियाँ नव सोच की बुन कर निरंतर. तोड कर सम्बन्ध जर्जर रूढिवाली रीतियों से. बन गए थाती संजोई जो नहीं अक्षुण्ण होती. शेष पर केवल चढ़ा अपनत्व का थोपा हुआ भ्रम. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. आओ हम-तुम...

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गीत कलश: May 2014

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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, May 26, 2014. सोचा रहा था गीत लिखूँ इक. सोचा रहा था गीत लिखूँ इक,मीत तुम्हारी सुन्दरता पर. चित्र नयन तक पर आते ही, आँखें रह जाती पथराई. लिखूं तुम्हारी सांसों से ले गंध महकते हैं चन्दन वन. लिखूं तुम्हारे केशों से ले छन्द गान करता है सावन. लिखूं तुम्हारी कटि की थिरकन से लेती हैं गति शिजिनियाँ. लिखूँ कथकली कुचीपुड़ी का उद्गम एक तुम्हारी चितवन. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Wednesday, May 21, 2014. इस प्रकृति ने...उपवनों म&...और भ&#230...

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गीत कलश: May 2015

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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, May 25, 2015. नैन बुनते रहे मोतियों की लड़ी. चांदनी ने छुआ था नहीं कल जिन्हें. आज भी धूप से होके वंचित रहे. पीर के ये निमिष थे तिमिर में उगे. तो अंधेरों में मन के ही संचित रहे. होंठ की सिसकियों को न सुर दे सके. सरगमों के हुए वस्त्र छोटे सभी. कंठ कोई सजाने में असफ़ल रहा. नैन बुनते रहे मोतियों की लड़ी. मंथनों में दिवस सिन्धु ने ला दिये. शंख प्रहरों के सारे गरल से भरे. रेत के ही घरोंदे बने थे सपन. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. यद्...

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गीत कलश: April 2015

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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, April 27, 2015. तुमको अंकित करना होगा. ओ अनुरागी! आज नया यह पटल खुला जीवन पुस्तक का. इस पर इक अध्याय स्वयं ही तुमको अंकित करना होगा. साक्षी है इतिहास समय की गति से होड़ लगा जो चलता. सिर्फ उसी के कदमों को ही तो दुलराया है राहों ने. और उसी के मस्तक पर अभिषेक हुआ है रक्त तिलक का. उसको सहज सहेजा स्वर्णिम पृष्ठों ने अपनी बाँहों में. अम्बर आकर चूमेगा पग, तुम मन से आवाज़ उठाओ. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, April 20, 2015. किन...

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गीत कलश: June 2015

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काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, June 29, 2015. लौट जाओ प्यार के संसार से. लौट जाओ प्यार के संसार से ओ वावरे मन. इस नगर में प्रीत के मानी बदलने लग गए हैं. टूट कर बिखरी हुई जन्मांतरी सम्बन्ध डोरी. हो चुकीं अनुबंध की कीमत लिखे कुछ कागज़ों सी. साक्ष्य में जो पीपलों कीथीं कभी सौगन्ध सँवरी. हो गई हैं पाखियों के टूट कर बिखरे परों सी. इस नगर की वीथियों में भीड़ बस क्रेताओं की है से. अर्थ वाले. शब्द के अब भाव लगने लग गए हैं. गीत गोविन्दम हुये. ना झूमता है. Links to this post.

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अनचिन्हार आखर. Maithili Gazhal and Sher-o- Shayri. मुखपृष्ठ. गजल शास्त्र आलेख. गजल सम्मान. छंद शास्त्र. अपने एना अपने मूँह. गजलक इस्कूल. गजलसँ संबंधित आडियो/वीडियो. समीक्षा/आलोचना/समालोचना खंड. अर्चा-चर्चा-परिचर्चा. गजलकार परिचय श्रृंखला. आन-लाइन मोशायरा. विश्व गजलकार परिचय श्रृंखला. मैथिली गजल पोथी डाउनलोड Maithili Gazhal Books download. Tuesday, 30 September 2014. भक्ति गजल. जय दुर्गा जय काली जय भगवति जय जय. अबियौ हाली हाली जय भगवति जय जय. पसरल भोरक लाली जय भगवति जय जय. भक्ति गजल. भेलै एहन ...की ...

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गीतकार की कलम. Monday, February 16, 2015. इसलिए आओ हृदय में. नयन ने दिन रात दीपक इक प्रतीक्षा के जलाये. होंठ ने तव नाम सरगम में पिरो कर गीत गाये. साधना के मंत्र रह रह कर तुम्हें उच्चारते है. इसलिए आओ हृदय में, प्यास प्यासी रह न जाए. ज़िंदगी के कक्ष में बढ़ती हुई एकाकियत की. आँधियों में घिर रहा है पूर्ण यह अस्तित्व मेरा. रूप की खिलती हुई जब धूप का सान्निध्य पाउन. सहज ही मिट जाएगा बढता हुआ गहरा अन्धेरा. हर अलक्षित कल्पना के बंधनों को काट आओ. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, February 9, 2015. द&#23...

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