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गीतकार की कलम

गीतकार की कलम. Monday, February 16, 2015. इसलिए आओ हृदय में. नयन ने दिन रात दीपक इक प्रतीक्षा के जलाये. होंठ ने तव नाम सरगम में पिरो कर गीत गाये. साधना के मंत्र रह रह कर तुम्हें उच्चारते है. इसलिए आओ हृदय में, प्यास प्यासी रह न जाए. ज़िंदगी के कक्ष में बढ़ती हुई एकाकियत की. आँधियों में घिर रहा है पूर्ण यह अस्तित्व मेरा. रूप की खिलती हुई जब धूप का सान्निध्य पाउन. सहज ही मिट जाएगा बढता हुआ गहरा अन्धेरा. हर अलक्षित कल्पना के बंधनों को काट आओ. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, February 9, 2015. द...

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गीतकार की कलम. Monday, February 16, 2015. इसलिए आओ हृदय में. नयन ने दिन रात दीपक इक प्रतीक्षा के जलाये. होंठ ने तव नाम सरगम में पिरो कर गीत गाये. साधना के मंत्र रह रह कर तुम्हें उच्चारते है. इसलिए आओ हृदय में, प्यास प्यासी रह न जाए. ज़िंदगी के कक्ष में बढ़ती हुई एकाकियत की. आँधियों में घिर रहा है पूर्ण यह अस्तित्व मेरा. रूप की खिलती हुई जब धूप का सान्निध्य पाउन. सहज ही मिट जाएगा बढता हुआ गहरा अन्धेरा. हर अलक्षित कल्पना के बंधनों को काट आओ. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, February 9, 2015. द&#23...
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गीतकार की कलम. Monday, February 16, 2015. इसलिए आओ हृदय में. नयन ने दिन रात दीपक इक प्रतीक्षा के जलाये. होंठ ने तव नाम सरगम में पिरो कर गीत गाये. साधना के मंत्र रह रह कर तुम्हें उच्चारते है. इसलिए आओ हृदय में, प्यास प्यासी रह न जाए. ज़िंदगी के कक्ष में बढ़ती हुई एकाकियत की. आँधियों में घिर रहा है पूर्ण यह अस्तित्व मेरा. रूप की खिलती हुई जब धूप का सान्निध्य पाउन. सहज ही मिट जाएगा बढता हुआ गहरा अन्धेरा. हर अलक्षित कल्पना के बंधनों को काट आओ. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, February 9, 2015. द&#23...

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गीतकार की कलम: March 2013

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गीतकार की कलम. Monday, March 4, 2013. बोल हैं कि वेद की ऋचाएं. शब्द शब्द होंठ पर चढ़ा लगे भोजपत्र पर लिखी कथाएं हैं. स्वर में जब ढला तो प्रश्न ये उठा,बोल हैं कि वेद की ऋचाएं हैं. सांस में मलय वनों की गंध ले बांसुरी की तान जैसे गात पर. सात रंग की उठाये तूलिका रेख खींचता है भागु हाथ पर. देवलोक के सलिल प्रवाह सा रूप व्योम भूमि पे दमक रहा. यों लगे की कांति सूर्य मांग कर शीश पर चढ़े हुए चमक रहा. कल्पना उतर रही है देह धर,पुष्प-धन्व और साथ शर लिए. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom).

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गीतकार की कलम: May 2014

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गीतकार की कलम. Monday, May 19, 2014. वात्सल्य का कम्बल. हृदय के प्रथम स्पंदन से नभों के सातवें तट तक. लपेटा ज़िंदगी ने हर घड़ी वात्सल्य का कम्बल. ठिठुरती ठण्ड मे बनता रहा है स्रोत ऊष्मा का. बरसते मेंह में छाता बना है शीश पर तन कर. मरुस्थल के तपे. पथ पर चले हैं पांव जब दो डग. घिरा है उस घड़ी नभ पर उमड़ती बदलियाँ. सुधी के दूर तक फैले हुये विस्तार में अपने. परस की गंध को बुनता रहा हर इक घड़ी हर पल. सदा अनुराग भरता हो शहद भीगा हुआ चन्दन. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom).

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गीतकार की कलम: August 2013

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गीतकार की कलम. Monday, August 19, 2013. फिर से धूप धरा पर उतरी. फिर से धूप धरा पर उतरी. बादल का घूँघट उतार कर खोल गगन के वातायन को. फ़ेंक मेघ का काला कम्बल,. तोड़ मौसमी अनुशासन को. तपन घड़ें में भर कर रख दी. फ़िर से धूप धरा पर उतरी. उफ़नी हुई नदी के गुस्से को थोड़ा थोड़ा सहला कर. वृक्ष विहीना गिरि के तन को सोनहरा इक शाल उढ़ा कर. हिम शिखरों की ओर ताकते हुये तनिक मन में अकुलाकर. छनी हवा से हो गई उजरी. फ़िर से धूप धरा पर उतरी. प्राची में लहरा कर चुनरी. सच्चाई की लेकर पुटरी. Links to this post. निर&#23...

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गीतकार की कलम: September 2013

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गीतकार की कलम. Wednesday, September 25, 2013. हम युग के साहित्यकार हैं. आओ हम से परिचय कर लो, हम युग के साहित्यकार हैं. विकीपीडिया लेकर चलते हैं हम अपने बायें हाथ में. उसमें से कट पेस्ट किया करते हैं हम झट बात बात में. हमसे ज्यादा बड़ा लिखाड़ू, नहीं ढूँढ़ने पर मिल पाये. पूरा उपन्यास लिख देते हैं हम चढ़ती हुई रात में. गीतकार तो हैं ही, हम ही इकलौते संगीतकार हैं. विषय वस्तु हो चाहे कोई, हम अपनी हैं टाँग अड़ाते. भाषा और व्याकरण आकर हमको करते नमस्कार हैं. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. या किस&#23...या ...

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गीतकार की कलम: June 2013

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गीतकार की कलम. Sunday, June 9, 2013. प्राण ही शब्दित हुये हैं. व्याकरण से बिंध अधर के. रह गये जब स्वर बिखर के. प्राण ही शब्दित हुये हैं उस घड़ी इक गीतिका में. उंगलियों के सामने आ टिक रहें जब भावनायें. छट्पटायें पंथ में गिर ठीकरों सी कामनायें. व्यूह में आक्षेप के तीखे शरों की घिर झड़ी में. दग्ध पायल सोचती हों किस तरह से झनझनायें. गुम दिशा में हों सवेरे. खिलखिलाते हों अँधेरे. प्राण ही शब्दित हुये हैं उस घड़ी इक दीपिका में. रात की गहराई पी कर. आस के अवशेष सी कर. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. ठीक व&...

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मैं समय हूँ ...: 03/23/09

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मैं समय हूँ . जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ . आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा. आज केवल आज अपने दर्द पी लें. हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें. कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी. उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी. देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा. आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा. Monday, March 23, 2009. डा ’मणि. Links to this post.

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मैं समय हूँ . जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ . आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा. आज केवल आज अपने दर्द पी लें. हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें. कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी. उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी. देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा. आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा. Friday, March 27, 2009. डा ’मणि. Links to this post.

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मैं समय हूँ . जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ . आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा. आज केवल आज अपने दर्द पी लें. हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें. कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी. उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी. देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा. आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा. Sunday, February 21, 2010. डा उदय मणि. नाम ;. लगभग ढ&#...

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प्रकाश बादल: शिमला पहुँची उड़नतश्तरी

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रविवार, 10 मई 2009. शिमला पहुँची उड़नतश्तरी. सर्रर्रर्रर्रर्रर करती आई. उड़नतश्तरी. और दिल में उतर गई। समीर भाई के. काव्य संग्रह "बिखरे मोती" ने मेरे दिल की कई तहों को खंगाला, कुरेदा,. और मेरी स्मृतियाँ बरसों पुरानी दास्तानें कहने लगीं! प्रकाश बादल. तो आवाज़ आई 'जबलपुर से सर! मैं मन ही मन मुस्कुराया और खुशी से बोला अरे वाह! समीर भाई का व्यक्तित्व ही ऐसा है। आज मैं सिर्फ ". की बात करना चाहता हूँ।. सिर्फ प्रेम- रस की कविताओं को लेकर ही नह&#2...मोती ". रातों. गुनगुनाती. कविता लिखने क...मैं।. विद&#2375...

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मैं समय हूँ ...: 03/24/09

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मैं समय हूँ . जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ . आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा. आज केवल आज अपने दर्द पी लें. हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें. कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी. उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी. देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा. आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा. Tuesday, March 24, 2009. डा ’मणि. Links to this post.

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मैं समय हूँ . जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ . आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा. आज केवल आज अपने दर्द पी लें. हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें. कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी. उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी. देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा. आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा. Thursday, April 2, 2009. डा ’मणि. Links to this post.

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मैं समय हूँ . जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ . आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा. रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा. आज केवल आज अपने दर्द पी लें. हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें. कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी. उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी. देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा. आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा. Saturday, August 29, 2009. डा ’मणि. Links to this post.

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गीत कलश

काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये. Monday, August 10, 2015. तुम पर निर्भर. मैंने तो शब्दों में अपने मन के भाव पिरोये सारे. तुम पर निर्भर, तुम जो चाहो वो ही इनका अर्थ निकालो. लिखता हूँ मैं शब्द हवा के झीलों में ठहरे पानी के. और पलों के जिनमें पाखी उड़ने को अपने पर तोले. तुम सोचो तो संभव वे पल होलें किसी प्रतीक्षा वाले. तुम चाहो तो हवा कुन्तलों की झीलें नयनों कि होलें. मैं अपने खींचे वृत्तों में रह जा. ता हूँ होकर बंदी. राकेश खंडेलवाल. Links to this post. Monday, August 03, 2015.

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कुछ रचनाये अंकिता पंवार की. मुखपृष्ठ. साहित्य-'नारी दस्तखत'. ब्लाग तड़ाग. Friday, 1 June 2012. साँझ: साँझ,जून २०१२-सामग्री. साँझ: साँझ,जून २०१२-सामग्री. Saturday, 5 May 2012. आज का सच. किसी भी शब्द के. सबके लिये भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं. मैं तुमसे पूछना चाहती हूँ- प्रेम क्या है? शब्दों को दो-तीन बार दोहरा देना ही. यही सोचते हो तुम. सुनने व समझने का. वक्त ही कहां है तुम्हारे पास. तुम हो चुके हो शामिल उन लोगों में. जीवन का एक संवेदनात्मक पक्ष भी है. Thursday, 3 May 2012. साँझ, मई २०१२. जब कुछ ल&#237...

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