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हर सिंगारहर सिंगार. Friday, 2 December 2011. पसीना बरसे सुरजका ". यह सूरज -. विशाल नभमे. दिन भर,. पूरब से पश्चिम तक. थक जाता है. बादलके रुमाल से. पसीना अपना. पोछ रहा है. फिर निचोड़ देता है पानी. रुमाल ;. बरस जाता है पानी. जल मीठा बनाकर. हरियाली रंगा देता है. प्रसन्नता से. लहलहा उठाती है धरा. पसीने की कमाई. पसीने से भींगे रुमाल. शरद मे झटककर. सुखाये. रख देता है उनको. दिन के उजाले में. संगमरी चांदनी की. माया में. राते बीता कर. हों जाता है. शीतल ,. और तब हवाओं में. बिखर बिखर जाती है. पराग - राज. यह नारी. चलती ...
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