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कशिश: June 2011
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सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की. Monday, 27 June 2011. अब सब कुछ ओस की तरह लगता है,. सब नया,निर्मल,. अंकुरित होते पौधे जैसा. एक ठहराव सा है. ह्रदय के भँवर में उठने बाली,. भावनाओं की लहरें. अब असमर्थ हैं,. उम्मीद की दीवारों पर,. उस प्रतिध्वनि को उत्पन्न करने में,. जिसके शोर में भ्रमित होकर,. मैँ भटकता था इधर उधर. जो मन रूपी पक्षी,. उन्मुक्त हो,. उड़ता था अनंत आकाश में,. वो अब लिपटा पड़ा है अस्तित्वहीन डाल से. कल तक जो नकारता था हर अस्तित्व को,. आज वही,. ना पुर्नजन्म है. प्रेम का. मिलन के. वो वक&#...
कशिश: January 2013
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सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की. Friday, 25 January 2013. पुरानी डायरी से.(मई,2008). इस क़दर चाहा उसे दुश्मन ज़माना हो गया ,. जो सितारा था बुलंद,गर्दिशों में खो गया. किसको पूछें राह अब,किससे कहें हाल-ए-दिल,. जो शहर रोशन कभी था,आज वीरां हो गया. जिस ख़ुदा के सामने कसमें उठायीं प्यार की,. वो भी हिम्मत हार कर गुमशुदा सा हो गया. ऐ जहां के दुश्मनों,कोई ज़ख्म ताज़ा दो हमें,. उनकी खातिर ज़ख्म सहना अब पुराना हो गया. Links to this post. Thursday, 10 January 2013. क्या वक़्त है! हाँ माना,. Links to this post.
कशिश: October 2012
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सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की. Wednesday, 17 October 2012. ख़ामोशी. वो घिसटते कदमों से आ तो गया,. बन्द पलकों से देखता भी रहा. सिले लबों से कहा भी बहुत कुछ. मैं तिनका तिनका तोड़ता रहा,. वो लम्हा लम्हा गिनता रहा. वक्त ए रुखसती पर बड़ा बेसब्र लगा,. पर जाते कदम इक बार भी न पलटे. शायद एक और मुलाकात बाकी थी कहीं. Links to this post. Friday, 12 October 2012. इंतज़ार. हर लम्हा इंतजार करता है तेरा. तू आये तो , वो ठहरे. तुझसे कुछ पूछने को बेचैन. कि आयेगा तू इक दिन. तू ठीक तो है? आएगा ज़रूर. Links to this post.
कशिश: August 2011
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सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की. Thursday, 25 August 2011. तेरे बारे में. तेरे बारे में सबको बताऊँगा कैसे? ज़ख्म दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे? तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया,. मगर ये सच ज़माने को सुनाउँगा कैसे? तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,. वो जज़्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे? कह पाता, तो शायद पा ही लेता तुझे,. इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे? मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,. फिर आज उसे मिलकर रुलाऊँगा कैसे? Links to this post. Thursday, 18 August 2011. बढ़े चलो. सब नदारद .
कशिश: May 2013
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सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की. Sunday, 19 May 2013. क्या मज़ाक चल रहा है? क्या मज़ाक चल रहा है परिंदों के बीच,. आसमां को दौड़ का मैदान बना रखा है. बड़ी हसरत थी उसे टूटकर बरसने की,. मगर हौँसले ने उसे बेकरार बना रखा है. जो हँसता हुआ आया, उसे क़ातिल समझ बैठे,. याँ हर शख्स ने आहों से आस्तान सजा रखा है. मैँ घर गया तो माँ का आंचल न सूखेगा,. उन आँखों में बरसों से सब्र पला रखा है. वो इक रोज़ कुछ सोचकर फिर बदलेगा अपना फ़ैसला,. शहर में. फिर कहीं इंसानियत. हुई होगी,. Links to this post. View my complete profile.
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मन का कैनवस: December 2013
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". मंगलवार, 3 दिसंबर 2013. चुप्पियाँ. वो उदासियों के. तमाम रास्ते तय कर. खुशियों की दहलीज़ पर. चुप्पियाँ लिए बैठा था. इस बात से अनभिज्ञ. कि खिलखिलाहटों की कुंजियाँ. उसके शब्द थे . Posted by Tulika Sharma. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. आज फिर मेर&...एक मì...
मन का कैनवस: March 2012
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". गुरुवार, 29 मार्च 2012. मेरी आँखों के ख्वाब. कितने ही ख्वाबों को. यादों की जिल्द लगा. पलकों की कोरों पर. करीने से सहेजा है . जैसे अलमारी में. किताबें सजाता है कोई . कितने ही ख्वाबों को. ताकीद की गिरह से बाँध. मन के खूंटे से. बाँध दिया है कस के . जैसे पगहे में. गाय बांधता है कोई . कुछ सुर्ख-सियाह ख्वाब. Maturity date डालना. ऊसर न हो. Posted by T...
मन का कैनवस: July 2013
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". मंगलवार, 30 जुलाई 2013. रास्ते तो एक ही थे. फिर ये फ़ासले क्यूँ गढ़ लिए. कदम बढ़ा कर कभी कभी. फ़ासले पाट भी दिया करो. वरना अजनबीपन की नागफ़नी. उग जायेगी बीच में. हाथ बढ़ाना भी चाहोगे. तो चुभन होगी. बहुत मोड़ हैं न रास्ते में. नेह डोर से बंध कर रहना बस. वरना अगर मुड़ गए. जितना पहले दिया. Posted by Tulika Sharma. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. कुछ आध...
मन का कैनवस: April 2013
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". मंगलवार, 9 अप्रैल 2013. स्मृतियों में मानचित्र. उदासी के चौरस्ते पर. आस वाली सड़क की ओर. झिलमिलाता है तुम्हारा रंग. कि इस राह की बजरी ने भी. ओढ़ लिया है तुम्हारा इंतज़ार. शेष तीन रास्ते खींचते हैं. अनवरत अपनी ओर. ओढ़ा देते हैं नया आसमान. बिछा देते हैं नयी ज़मीन,. पाँव तले आ जाता है क्षितिज. इच्छाओं के आकाश पर. इस चौराहे तक. Posted by Tulika Sharma.
मन का कैनवस: December 2012
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". बुधवार, 5 दिसंबर 2012. खाली काग़ज़. सारी रात. शब्द बुने.अर्थ गढ़े. दिन के उजाले मे. कुछ मानी तलाशे. शाम की हथेली पर. बस खाली काग़ज़ रख दिया. क्या वो नज़र. पढ़ पाएगी ये अफ़साना? Posted by Tulika Sharma. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. शनिवार, 1 दिसंबर 2012. चटख और गहरे. रो...
मन का कैनवस: April 2012
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012. वजह जीने की. कुछ वजहें जीने की. आस पास बिखेर रखी हैं. दिखती हैं, सुनाई देतीं हैं. तो लगता है ज़िंदा हूँ मैं . सजा रखी हैं कुछ शोकेस में. सजावटी सामान की तरह. जैसे बेजान, बेवजह सी. खूबसूरत चीज़ें भी तो. होतीं हैं वजह जीने की . कुछ रखी हैं बुकशेल्फ़ में. अक्षर अक्षर महकती सी . इश्क़ एक बार पहन कर. Posted by Tulika Sharma.
मन का कैनवस: June 2012
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". मंगलवार, 5 जून 2012. रंगों का दरिया. लड़की कस के पकड़ लेती. उँगलियों में अपना ब्रश. सारे गहरे रंग समेट . ब्रश की नोक पर लगा लेती. हवा में हाथ उठाती. रंग छिड़कती .कोशिश करती. कुछ खींचने की .कुछ आंकने की . आड़ी तिरछी लकीरों में घुले रंग. कोई आकार लें.उससे पहले. लड़का अपने हाथ हवा में उठाता. सारे रंग समेट लेता. जबकि लड़के के हाथ. Posted by Tulika Sharma.
मन का कैनवस: May 2012
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". बुधवार, 23 मई 2012. यादों की फ्रिन्जेज़. बड़ी मुश्किल से शांत करती हूँ. सतह के पानी को . ऊपर से देख कर अंदाजा नहीं लगा सकते. कितने उलझे हुए हरे-नीले शैवाल है . कितने भंवर .कितने तूफान हैं भीतर. मेरी इस झील के किनारे. बहुत सी दरारें हैं. कीच सी जमी हैं यहाँ यादें. एक हंस रहता है वहीं. सुर्ख चोंच वाला. वही से बनती हैं . Posted by Tulika Sharma.
मन का कैनवस: July 2012
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". बुधवार, 25 जुलाई 2012. हथेली पर नागफनी. हथेलियों पर. जाने कब कैसे. गिर जाते हैं कुछ. सपनों के बीज. उगते हैं. बढ़ते हैं. जाने कहाँ से पा जाते हैं. खाद पानी. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी. शायद इसी की. तलाश में. बहुत गहरे हथेलियों में. बैठ जाती हैं जड़ें इनकी. वक़्त के झंझावात से. कुम्हलाये. ये सपनों के पौधे. सपनें,. बनने को शायद. कुछ आधì...
मन का कैनवस: March 2013
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मन का कैनवस. एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में . झरते हैं कुछ रंग .घुलती हैं कुछ भावनाएं .सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न .यही है .मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग ". शुक्रवार, 8 मार्च 2013. रेशमी चॉकलेट. दर्द की उंगली थामे. जब तुम उतर रहे होगे. निराशा की सीढियां. दो अदृश्य हाथ. तुम पर कस रहे होंगे. अपनी स्नेह डोर की गाँठ. कि जब भी थोड़ा ठिठको. तो खींच सके पूरे ज़ोर से. तुम्हें बाहर रोशनी की ओर . एक छींक भी तुम्हें. ये एहसास कराने को काफ़ी होगी. दुआ में कह रहा होगा. गॉड ब्लेस्स यू. उन होठों तक. रोपा...कुछ...
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Wednesday, December 05, 2012. ख्वाबो का मोल. दुनिया खरीदने में तमन्ना में मेले को चला था,. जेब थी खाली भला कैसे खरीदता वो चाइना मेड गुडिया,. किसी ने चुपके से कहा, बेच दो उन ख्वाबो को,. बेकार ही तो तेरी कभी नींद उड़ाते,. तो कभी चोराहे की ख़राब स्ट्रीट लाइट की तरह,. अपने बेकार होने का एहसास दिलाते,. बस क्या था बेच दिया उन ख्वाबो को,. खरीद लिया वो चमकते आँखों वाली गुडिया,. बस महीने की देरी में, वो चमक चली गयी,. और शायद हर वक्त यही सोचता हूँ,. Friday, August 24, 2012. Composed while drenching myself in rain.
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सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की. Tuesday, 13 September 2016. जमीं पे कर चुके कायम हदें,. चलो अब आसमां का रुख करें. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). लिखना भी इक जरिया है सुकून पाने का. View my complete profile. जमीं पे कर चुके कायम हदें,चलो अब आसमां का रुख करें. मेरे हमसफ़र. No part of this blog be reproduce or transmitted,in any form,or by any means. Awesome Inc. template. Template images by A330Pilot.
Heartout
Tuesday, May 26, 2009. Different day, different colour. I simply love summer. At 5/26/2009 10:57:00 PM. Links to this post. Tuesday, April 28, 2009. At 4/28/2009 12:45:00 PM. Links to this post. Wednesday, April 01, 2009. At 4/01/2009 02:14:00 PM. Links to this post. Friday, March 20, 2009. At 3/20/2009 06:39:00 PM. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). My closest feelings and views on matters that are close to my heart. Just another eccentric who thinks otherwise! View my complete profile.
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The dilemma arises for custom products for OEMs. It is difficult to envision an EOL dilemma for a projectized organization where the end result is a product. However, if the project stakeholder circle widens to include customers and end users, then defining End Of Life for a product becomes an issue. Software only products can continue to make modular releases that have backward compatibility with older versions. Links to this post. Links to this post. Does Dr. Eliyahu M. Goldratt. 0 (Step Zero) Articu...