sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: June 2010
http://sushilapuri.blogspot.com/2010_06_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Sunday, June 20, 2010. थिरकती हूँ मै अहर्निश. एक धुन है. जो लिपिहीन होकर. गूँजती रहती है निरंतर. अपनी व्याप्ति मे विलक्षण. उसकी लय पर. थिरकती हूँ मै अहर्निश ,. एक धुन है. जो छंदहीन होकर. आरोहों अवरोहों से परे. अपनी त्वरा मे तत्पर. विहगगान सी. टेरती रहती है भीतर ,. एक धुन है. जो नामहीन होकर. सुरों से निर्लिप्त. सरगमों मे डूबी. स्वरों के व्याकरण से दूर. रचती रहती है मधुर स्वर ,. एक धुन है. जो डोरहीन होकर. गगन को नापती. Subscribe to: Posts (Atom).
sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: December 2010
http://sushilapuri.blogspot.com/2010_12_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Saturday, December 25, 2010. रात में छूट गया हारमोनियम. मेरे प्रिय रचनाकार की मेरी प्रिय कविता - -. मै हारमोनियम रात के भीतर बजा रहा था. गाना जो था वह अँधेरे में इतनी दूर तक जाता था. कि मै देख नहीं पाता था ,. फिर एक पतली-सी दरार मुझे दिखी. मै उसमें घुस गया. और अँधेरे की दो परतों के बीच नींद में डूबे पानी जैसा. दूर तक दौड़ने लगा ,. सोती जा रही थी. वह मैं था ,. अँधेरे में छुपा हुआ ,. मै क्या करता? और वह बज रहा था. Monday, December 13, 2010. वे...
sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: July 2010
http://sushilapuri.blogspot.com/2010_07_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Saturday, July 31, 2010. वह पूछता है . वह पूछता है-. तुम इतना क्यूँ याद आती हो '. और सिवाय इसके कि. यही सवाल मै उससे करूँ. कुछ नहीं बचता है कहने को ।. Posted by सुशीला पुरी. Saturday, July 17, 2010. तुम्हारी बारिश में. चाहती हूँ नहाना. सिर से पाँव तक. तुम्हारी बारिश में,. तुम्हारे शब्दों की परतों में. चाहती हूँ फैल जाना. शबनमी छुअन बनकर. उलीच देना है मुझे. उनके बीच समंदर,. उमड़-घुमड़ कर आए हैं. बो रहीं रोमांच. हवा की देह पर.
sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: April 2012
http://sushilapuri.blogspot.com/2012_04_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Sunday, April 22, 2012. तुमने पूछा था. क्या बचपन से तुम. इसी तरह रोती रही हो! और सोचने लगी मै. उस समय के बारे में. बिना रोये हुआ करते थे. रोने की जगह. हंसना होता था तब;. बात- बेबात बस. हँसते जाते पागलों की तरह. और हमारी हंसी में. शामिल हो जाती थी. पूरी दुनिया,. हँसने की जगह तब. रोना नहीं बना था शायद. उन दिनों हमारी हंसी में. चाँद ,सूरज ,नदी, पहाड़. सभी शामिल थे ;. घरों के भीतर की जगह भी. तब हँसती रहती थी. आँगन से आकाश तक. कभी भी. अभिव्...
sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: August 2010
http://sushilapuri.blogspot.com/2010_08_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Friday, August 20, 2010. समुद्र पर हो रही है बारिश. क्या करे समुद्र. क्या करे इतने सारे नमक का. कितनी नदियाँ आयीं और कहाँ खो गई. क्या पता. कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं. इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं. फिर भी संसार की सारी नदियाँ. धरती का सारा नमक लिए. उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही हैं. तो क्या करे. कैसे पुकारे. मीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को. प्यासों को क्या मुँह दिखाये. कहाँ जाकर डूब मरे. नमक किसे नही चाहिए. मुझे पता है. Subscribe to: Posts (Atom).
sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: July 2011
http://sushilapuri.blogspot.com/2011_07_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Thursday, July 21, 2011. जब पहली बार मिले थे हम. थर -थर काँपती. लिपियों के बीच. मिले थे हम,. तुमने मुझे. मेरे नाम से पुकारा था. बिल्कुल धीमे. लगभग फुसफुसाकर. और उन्ही दुबली लिपियों से. रचा था हमने महाकाव्य ,. भाषा के मौन घर में. छुप गए थे हम. डरे हुये परिंदों की तरह. चहचहाना भूलकर. बस देखना ही शेष था,. अगल बगल बैठे थे. पर दूर कहीं खोये थे. एक दूसरे के सपनों में ,. सपनों के भीतर. आत्मा की आँच थी. ताप रहे थे जिसे. भीग गए थे हम.
adityarun.blogspot.com
अ आ: February 2011
http://adityarun.blogspot.com/2011_02_01_archive.html
यानी सीखने की शुरुआत. Friday, February 25, 2011. कविता के कुछ पते. मेरी कविता के कुछ पतेः. कवितायें अनुनाद. पर । चार कवितायें. समय संकल्प. पर। पांच कविताएं. पर। कुछ और कवितायें सुनहरी. पर पढ़ सकते हैं।. मेरी कविता. Tuesday, February 8, 2011. भगवत रावत का देश राग. जिस देश में भगवत रहते हैं. अरुण आदित्य. गहिरी नदी अगम बहै धरवा,. खेवन-हार के पडिग़ा फन्दा।. घर की वस्तु नजर नहि आवत,. दियना बारिके ढूँढ़त अन्धा. चुपचाप शांति से देखो यह दृश्य. वह निस्तेज नहीं हो रहा. ढल रहा है. इस पृथ्वी को...मैदान...बोल...
sushilapuri.blogspot.com
सुशीला पुरी: January 2011
http://sushilapuri.blogspot.com/2011_01_01_archive.html
सुशीला पुरी. न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही . Tuesday, January 25, 2011. आवाज़ की बूँद. स्वर्गीय पंडित भीमसेन जोशी जी के अद्भुत सुरों को समर्पित अपनी एक कविता . खुशी के आदिम उद्घोष सी. गूँजती है तुम्हारी आवाज़. मेघ बनकर फूँकती है. मन मे मल्हार. बूँदों सी झरती है देह पर. नेह ही नेह ,. रक्तकोशिकाओं के पाँवों में. बंध जाते हैं रुनझुन घुंघरू. अनगिन छंदों में गूँथकर आह्लाद. हवाएँ कर देती हैं अभिषेक. और वापस लौट आती है. हंसी , साँसों की ,. खण्डहरों के खोह. Subscribe to: Posts (Atom).