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पुनर्पाठ Review: हिन्दी उपन्यासों के नायक किताबें क्यों नहीं पढ़ते ?
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पुनर्पाठ Review. Thursday, September 16, 2010. हिन्दी उपन्यासों के नायक किताबें क्यों नहीं पढ़ते? सुरेन्द्र स्निग्ध. का उपन्यास ‘छाड़न’. प्रशंसा से उद्बुद्ध माहौल में हाथ लगा। कई ख्यात हस्तियां तारीफ के पुल बांध चुकी थीं। मित्रों में पंकज कुमार चौधरी. ने इस पुस्तक को पढ़ने के लिए प्ररित किया। उनका ख्याल था कि रेणु. के ‘मैला आंचल’. के बाद यह अपने तरह का पहला उपन्यास है। पूर्णिया. टी. एस. एलिएट. पृष्ठ 92)। एकाध जगह तो ‘मजदूरिन औरतें’. और सोहन शर्मा. पृष्ठ 104)। सोहन शर्मा. पृष्ठ 92)।. सामाजि...बहुत ह...
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पुनर्पाठ Review: ये परंपरागत साधु नहीं हैं
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पुनर्पाठ Review. Friday, October 8, 2010. ये परंपरागत साधु नहीं हैं. का कहानी-संग्रह ‘निरुत्तर ’ पढ़ा जिसमें मुझे कहानी कहने की कला के दर्शन हुए. हाल की 'हंस ' में प्रकाशित सृंजय. की कहानी ‘माप ’ ( हंस. में छपे पत्र के बाद इसकी मौलिकता संदिग्ध है) एवं भालचन्द्र. जब दिल्ली वापस जाने लगे तो हरिओम. कुछ खास नहीं सर! अब पूजा पाठ करने पर भी मुल्लों को मिरची लगती है.’ (पृष्ठ ११९ ). रामविलास. राजूरंजन प्रसाद. Labels: कहानी. October 9, 2010 at 12:25 PM. Sar ye Lekhak ki samiksha hai kya? January 30, 2011 at 6:00 AM.
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कथायात्रा: April 2009
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. मंगलवार, अप्रैल 28, 2009. बदलेराम/बलराम अग्रवाल. चड़-भरे गड्ढों. के जाल के कारण कार को और-आगे लेजाना सम्भव नहीं था। गाँव से करीब दो किलोमीटर पहले ही ड्राइवर को कार के साथ. छोड़कर मैं और बदलेराम अन्य कार्यकर्ताओं के साथ पैदल ही उस ओर चल दिए।. सुनो, इस गाँव की मुख्य-समस्या क्या है? सबसे आगे चल रहा बदलेराम सवाल सुनकर एकाएक रुक गया। मेरी ओर वापस घूमकर बोला,. बिना बिजली के कैसे चलेगा वह? यह भी।. वह दो-टूक बोला।. क्…क्…कौन बदलेराम? वही…जिस साले...तुम सब भी...छत पर बच&...
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कथायात्रा: February 2011
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. सोमवार, फ़रवरी 28, 2011. खनक/बलराम अग्रवाल. चित्र:आदित्य अग्रवाल. बत्ती बुझाकर जैसे ही वह बिस्तर पर लेटता. उसे घुँघरुओं के खनकने की आवाज सुनाई देने लगती। महीनों से यह सिलसिला चल रहा था। शुरू-शुरू में तो उस आवाज को उसने मन का वहम ही माना. लेकिन बाद में. घुँघरुओं की आवाज हर रात लगातार सुनाई देने लगी. तो उसने अपना ध्यान उस पर केन्द्रित करना शुरू किया। नहीं. हिम्मत करके. उसने आखिर पूछ ही लिया. कौन है. यश-लक्ष्मी! यश-लक्ष्मी! यश चाहिए. सभी की छोड़ो. बलि दी...सदस्...
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कथायात्रा: June 2010
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. बुधवार, जून 09, 2010. निवारण/बलराम अग्रवाल. राजनीतिक-. श का दौर था। संकट-निवारण के उद्देश्य से पिता ने हवन का आयोजन किया। उसमें अपने कुल-दे. ता की प्रतिमा को उसने हवन-स्थल पर स्थापित किया। और, प्रतिमा के एकदम बाईं ओर उसके बेटों ने ए. क विचित्र-सा मॉडल लाकर रख दिया।. यह क्या है? पिता ने पूछा।. बचपन में सं. गठन के महत्व को समझाने के लिए आपने एक बार लकड़ियों. के एक गट्ठर का प्रयोग किया था पिताजी।. बड़े पुत्र ने उसे बताया,. को अपना लिया।. अंत में मæ...कुछ ब...
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यादें: पटनावाला माट्सा
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यादें. मेरा कलम तो अमानत है. मेरे लोगों की. मेरा कलम तो अदालत. मेरे ज़मीर की है. Saturday, November 20, 2010. पटनावाला माट्सा. झक झक सफ़ेद होते. प्रायः. प्रत्येक. प्रार्थना. प्रत्येक. बारीकी. कानों. विद्यालय. वास्ते. फलियां. खेसारी. 8211; कभी. चीजों. मूल्यवान. किताबों. 8211; साथ. कहानियाँ. सुनाते. कहानियां. 8211; महाभारत. होतीं. कहानियों. रोमांचित. कहानियाँ. व्यक्तित्व. कहानियों. बुढ़ापे. दिनों. विद्यालय. लुंगी. दिनों. विशिष्टता. उन्होंने. इंदिरा. गाँधी. संख्या. लोगों. विरुद्ध. बंध्याकरण.
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यादें: October 2010
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यादें. मेरा कलम तो अमानत है. मेरे लोगों की. मेरा कलम तो अदालत. मेरे ज़मीर की है. Saturday, October 30, 2010. मेरे गुरुजन-याद बाकी है जिनकी. जबतक मैं पहली कक्षा में रहा, एक ही शिक्षक से वास्ता रहा- और वे थे शिवन पाठक. राजू रंजन प्रसाद. Labels: मेरे गुरुजन. Subscribe to: Posts (Atom). मित्र ब्लॉग. एक वृक्ष का शोकगीत और विषाद की कुछ कविताएँ - राकेश रोहित. सुनो, दाना मांझी सुनो. कारवॉं. सच-झूठ-ईश्वर - लघुकथा. पुनर्पाठ Review. हम किताब कैसे पढ़ें. राजू रंजन प्रसाद. View my complete profile.
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यादें: यह ‘प्रतीक पारिश्रमिक’ का दौर है
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यादें. मेरा कलम तो अमानत है. मेरे लोगों की. मेरा कलम तो अदालत. मेरे ज़मीर की है. Saturday, September 25, 2010. यह ‘प्रतीक पारिश्रमिक’ का दौर है. साहित्य में एक नया दौर शुरू हुआ है। यह दौर पारिश्रमिक का नहीं, ‘प्रतीक पारिश्रमिक’ का है। हंस. भाई राजूरंजन जी. नमस्कार,. 8216;हंस’. अक्तू. ‘03 अंक में प्रकाशित आपकी रचना का प्रतीक पारिश्रमिक. 8216; हंस’. वीना उनियाल. और राजेन्द्र यादव. के संपादक का जनतांत्रिक हक था? राजू रंजन प्रसाद. September 28, 2010 at 11:50 PM. Bahut sahi baat likhi hai aapne.
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कथायात्रा: February 2009
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2009. यही होना है आखिरकार/बलराम अग्रवाल. मेरी तलाश आखिर कामयाब साबित हुई। मुझे पूरा यकीन था कि महाप्रलय में सब-कुछ लील जाने के बावजूद ऊपरवाले ने मेरे लिए कम से कम एक औरत जरूर बचा रखी होगी।. औरत की आँखों में आँखें डालकर वह बोला।. वह बात को बीच में ही काटकर बोली. दरअसल इंसान नहीं. और क्या. ईश्वर कल्पना नहीं यथार्थ है…।. यहाँ से लेकर दू्…ऽ…र उस छोर तक देख।. लेकिन…! कोई लेकिन-वेकिन नहीं…. देखो, इस इकलौते ठिकान...अगर बच गए तो यकीन म&#...लेक...
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पुनर्पाठ Review: कविता मरसिया नहीं होती
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पुनर्पाठ Review. Wednesday, May 25, 2011. कविता मरसिया नहीं होती. 8216;गंगा-तट ’. की चर्चा धूमिल भी न होने पाई थी कि ज्ञानेन्द्र पति. का संग्रह ‘संशयात्मा ’. पाठकों के बीच आ धमका। ज्ञानेन्द्र पति. प्रेमचंद. मुक्तिबोध. ने जैसाकि लिखा है, किताब की समीक्षा करना आग से खेलना है। ज्ञानेन्द्र पति. इनकी शब्द और बिम्ब-योजना तक पर इनके कुलीन मन की छाया आ घिरती है-. 8216;दस कोस दूर शहर से आनेवाला सर्कस का प्रकाश-बुलौआ. तो कब का मर चुका है. मानव-शिशु की आंखों की तरह. कि जिनसे. 8216;वह सीमा. इसीलिए बड...को ...
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