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बिहार प्रगतिशील लेखक संघ: February 2015
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गुरुवार. मुक्तिबोध के बाद गुम हुई ऊर्जा की तलाश है विमल कुमार की कविता…. मुक्तिबोध के बाद की हिन्दी कविता में जो ओज. जो ऊर्जा. जो संभावना दिखाई देती है. बिहार प्रगतिशील लेखक संघ. द्वारा आयोजित दिल्ली से पधारे कवि विमल कुमार की प्रतिरोधी कविताओं के. पाठ के समय दिया। यह काव्य-पाठ कवि रैदास. खगेन्द्र ठाकुर ने की तथा संचालन कवि शहंशाह आलम ने किया।. इस अवसर पर कवि विमल कुमार ने अपनी बीसियों कविता का पाठ किया।. बूढ़ी स्त्री के लिए अपील. पानी का दुखड़ा. मुक्ति का इंतजार. डिजिटल इंडिया. गणेश जी बा...काव...
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जनगाथा: April 2015
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समकालीन लघुकथा के विचार एवं रचना-पक्ष की अव्यावसायिक ब्लॉग पत्रिका. Wednesday 22 April 2015. कथाकार पृथ्वीराज अरोड़ा से मुलाकात. बेटी तो बेटी होती है. कथा नहीं. जैसी कथ्य. सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत लघुकथाओं का संग्रह. तीन न तेरह. हर लघुकथा. प्रेमी के खजाने में होना चाहिए। उसके लेखक. अविराम साहित्यिकी. के लघुकथा विशेषांक. का संपादन करने के क्रम में उनसे. मेरी लघुकथा यात्रा. हम यानी अशोक भाटिया. मित्रों-परिचितों को पहचानते हैं. यह देखकर अपार दु:ख हुआ। भाभी जी...बुनियाद. समझदार पुत्र...क्या...
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बिहार प्रगतिशील लेखक संघ: संपन्न हुआ बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का पन्द्रहवाँ राज्य सम्मलेन
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संपन्न हुआ बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का पन्द्रहवाँ राज्य सम्मलेन. राजनीति को मनुष्य के पक्ष में काम करने की जरुरत है. डॉ. विभूति नारायण राय. पूर्व कुलपति). इतिहास को विज्ञान की कसौटी पर लिखा जाना चाहिए. प्रो. अली जावेद. प्रलेस महासचिव). साहित्य का श्रोत जनता ही है. डॉ. खगेन्द्र ठाकुर. वरिष्ठ आलोचक). राजेन्द्र राजन. महासचिव बिहार प्रलेस). के लखीसराय में संपन्न. हुआ बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का. दो दिवसीय राज्य. वर्धा.). ने कि हम. बड़े सपने देखना. दिवस भी आज ही है. प्रलेस के राष्...कहा की इति...इस बì...
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कथायात्रा: April 2009
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. मंगलवार, अप्रैल 28, 2009. बदलेराम/बलराम अग्रवाल. चड़-भरे गड्ढों. के जाल के कारण कार को और-आगे लेजाना सम्भव नहीं था। गाँव से करीब दो किलोमीटर पहले ही ड्राइवर को कार के साथ. छोड़कर मैं और बदलेराम अन्य कार्यकर्ताओं के साथ पैदल ही उस ओर चल दिए।. सुनो, इस गाँव की मुख्य-समस्या क्या है? सबसे आगे चल रहा बदलेराम सवाल सुनकर एकाएक रुक गया। मेरी ओर वापस घूमकर बोला,. बिना बिजली के कैसे चलेगा वह? यह भी।. वह दो-टूक बोला।. क्…क्…कौन बदलेराम? वही…जिस साले...तुम सब भी...छत पर बच&...
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कथायात्रा: February 2011
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. सोमवार, फ़रवरी 28, 2011. खनक/बलराम अग्रवाल. चित्र:आदित्य अग्रवाल. बत्ती बुझाकर जैसे ही वह बिस्तर पर लेटता. उसे घुँघरुओं के खनकने की आवाज सुनाई देने लगती। महीनों से यह सिलसिला चल रहा था। शुरू-शुरू में तो उस आवाज को उसने मन का वहम ही माना. लेकिन बाद में. घुँघरुओं की आवाज हर रात लगातार सुनाई देने लगी. तो उसने अपना ध्यान उस पर केन्द्रित करना शुरू किया। नहीं. हिम्मत करके. उसने आखिर पूछ ही लिया. कौन है. यश-लक्ष्मी! यश-लक्ष्मी! यश चाहिए. सभी की छोड़ो. बलि दी...सदस्...
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कथायात्रा: June 2010
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कथायात्रा. बलराम अग्रवाल की कथा-रचनाएँ. बुधवार, जून 09, 2010. निवारण/बलराम अग्रवाल. राजनीतिक-. श का दौर था। संकट-निवारण के उद्देश्य से पिता ने हवन का आयोजन किया। उसमें अपने कुल-दे. ता की प्रतिमा को उसने हवन-स्थल पर स्थापित किया। और, प्रतिमा के एकदम बाईं ओर उसके बेटों ने ए. क विचित्र-सा मॉडल लाकर रख दिया।. यह क्या है? पिता ने पूछा।. बचपन में सं. गठन के महत्व को समझाने के लिए आपने एक बार लकड़ियों. के एक गट्ठर का प्रयोग किया था पिताजी।. बड़े पुत्र ने उसे बताया,. को अपना लिया।. अंत में मæ...कुछ ब...
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यादें: पटनावाला माट्सा
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यादें. मेरा कलम तो अमानत है. मेरे लोगों की. मेरा कलम तो अदालत. मेरे ज़मीर की है. Saturday, November 20, 2010. पटनावाला माट्सा. झक झक सफ़ेद होते. प्रायः. प्रत्येक. प्रार्थना. प्रत्येक. बारीकी. कानों. विद्यालय. वास्ते. फलियां. खेसारी. 8211; कभी. चीजों. मूल्यवान. किताबों. 8211; साथ. कहानियाँ. सुनाते. कहानियां. 8211; महाभारत. होतीं. कहानियों. रोमांचित. कहानियाँ. व्यक्तित्व. कहानियों. बुढ़ापे. दिनों. विद्यालय. लुंगी. दिनों. विशिष्टता. उन्होंने. इंदिरा. गाँधी. संख्या. लोगों. विरुद्ध. बंध्याकरण.
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यादें: October 2010
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यादें. मेरा कलम तो अमानत है. मेरे लोगों की. मेरा कलम तो अदालत. मेरे ज़मीर की है. Saturday, October 30, 2010. मेरे गुरुजन-याद बाकी है जिनकी. जबतक मैं पहली कक्षा में रहा, एक ही शिक्षक से वास्ता रहा- और वे थे शिवन पाठक. राजू रंजन प्रसाद. Labels: मेरे गुरुजन. Subscribe to: Posts (Atom). मित्र ब्लॉग. एक वृक्ष का शोकगीत और विषाद की कुछ कविताएँ - राकेश रोहित. सुनो, दाना मांझी सुनो. कारवॉं. सच-झूठ-ईश्वर - लघुकथा. पुनर्पाठ Review. हम किताब कैसे पढ़ें. राजू रंजन प्रसाद. View my complete profile.
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यादें: यह ‘प्रतीक पारिश्रमिक’ का दौर है
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यादें. मेरा कलम तो अमानत है. मेरे लोगों की. मेरा कलम तो अदालत. मेरे ज़मीर की है. Saturday, September 25, 2010. यह ‘प्रतीक पारिश्रमिक’ का दौर है. साहित्य में एक नया दौर शुरू हुआ है। यह दौर पारिश्रमिक का नहीं, ‘प्रतीक पारिश्रमिक’ का है। हंस. भाई राजूरंजन जी. नमस्कार,. 8216;हंस’. अक्तू. ‘03 अंक में प्रकाशित आपकी रचना का प्रतीक पारिश्रमिक. 8216; हंस’. वीना उनियाल. और राजेन्द्र यादव. के संपादक का जनतांत्रिक हक था? राजू रंजन प्रसाद. September 28, 2010 at 11:50 PM. Bahut sahi baat likhi hai aapne.
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मत-मतांतर: January 2010
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बात अगर यहीं खत्म हो जाती तो बात और थी. Wednesday, January 20, 2010. थोड़ी "आस्था" मार्क्सवाद में भी तो हो! क्या नीरज जैसे ‘क्रांतिकारी’ छात्र-नेता का हृदय-परिवर्तन बुद्ध की तरह केवल एक घटना से हुआ? क्या मार्क्सवाद इसकी अनुमति देता है, येचुरी जी? क्या धर्म और भगवान की घुट्टी का ही अब एकमात्र और आसरा बचा रह गया है? राजू रंजन प्रसाद. Links to this post. Labels: आस्था. मार्क्सवाद. Saturday, January 9, 2010. कौन हैं वे लोग? थोड़ा आप भी सोचें।. उनकी कविता का ऐंगल बदल गया? Links to this post. मूल पत्र. से ...