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शीर्षक..: Saturday, September 04, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. शनिवार, सितंबर 04, 2010. अष्टभुजा शुक्ल की कवितायेँ. अष्टभुजा शुक्ल'. हिंदी के वरिष्ठ और चर्चित कवि हैं. पिछले दिनों फेसबुक की एक चर्चा में मुझ से पूछा गया कि ये 'अष्टभुजा शुक्ल'. कौन हैं? केदार सम्मान 2009 के लिए बधाई. की लिंक को क्लिक कर के वसुधा के विशेष पृष्ठ पर जा सकते हैं. अष्टभुजा शुक्ल. सतयुग, कविता और एक रुपया. और कभी कभी सब कुछ. हकीकत यह है कि एक रूपया. एक का तीन वसूलते हैं. लोग घर से कि इतनी तेज ...कि दुर्घट...न एक रूपय...
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शीर्षक..: Friday, April 30, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010. सपने के पीछे ज़िद. की टीम से मेरे परिचय के साथ कुछेक रंगमंच की गतिविधियों के समानांतर मेरे लिए शीर्षक. की योजना एक सपने की तरह मेरे सामने आयी. हस्तलिखित शीर्षक. कुल मिला कर एक सपना ज़िंदगी की और ज़रुरतों के बीच दब गया. 1993 के बाद शीर्षक. के सपने ने फिर अंगड़ाई ली है. प्रस्तुतकर्ता. पहली प्रतिक्रिया :. 10 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. नई पोस्ट. Read in your own script.
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शीर्षक..: Friday, November 19, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. शुक्रवार, नवंबर 19, 2010. किलों को जीतने की जगह ध्वस्त कर देने की उम्मीद भरी कविता. आज यहाँ ' शीर्षक'. में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना. की ताज़ा कवितायें . काफी अरसा हुआ नरेश सक्सेना. की एक कविता पढ़ी थी, 'सीढ़ी'. मुझे एक सीढ़ी की तलाश है. सीढ़ी दीवार पर चढ़ने के लिए नहीं. बल्कि नींव में उतरने के लिए. मैं क़िले को जीतना नहीं. उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूँ।. नरेश सक्सेना की. नयी कविताओं. के मंच पर हम 'वसुधा'. वसुधा के अंक". तो फिर. कवित...
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शीर्षक..: कविता में किताबों की बातें..
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010. कविता में किताबों की बातें. दी कविता के दो बड़े नाम इस बार एक साथ. चंद्रकांत देवताले. और कुमार अम्बुज. के अंकों के बारे में और जानने के लिए. दायीं तरफ के कॉलम में. वसुधा के अंक" की लिंक को. क्लिक करके. आप अन्य प्रकाशित सामग्री की. जानकारी ले. सकते हैं. सम्पादकीय पढ़ सकते हैं और 'वसुधा' से संपर्क कर सकते हैं. कुमार अंबुज. अँधेरे में से अपने हक की रोशनी. चन्द्रकांत देवताले. इन पर मस्तकों के...अब किताब&...इनमे...
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शीर्षक..: Thursday, October 07, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010. कविता में किताबों की बातें. दी कविता के दो बड़े नाम इस बार एक साथ. चंद्रकांत देवताले. और कुमार अम्बुज. के अंकों के बारे में और जानने के लिए. दायीं तरफ के कॉलम में. वसुधा के अंक" की लिंक को. क्लिक करके. आप अन्य प्रकाशित सामग्री की. जानकारी ले. सकते हैं. सम्पादकीय पढ़ सकते हैं और 'वसुधा' से संपर्क कर सकते हैं. कुमार अंबुज. अँधेरे में से अपने हक की रोशनी. चन्द्रकांत देवताले. इन पर मस्तकों के...अब किताब&...इनमे...
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शीर्षक..: Thursday, October 21, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010. ताज़े फूल की तीखी खुश्बू सी कविता. के अंकों के बारे में और जानने के लिए. दायीं तरफ के कॉलम. वसुधा के अंक" की लिंक को. क्लिक करके. आप अन्य प्रकाशित सामग्री की. जानकारी ले. सकते हैं. सम्पादकीय पढ़ सकते हैं और 'वसुधा' से संपर्क कर सकते हैं. चित्र सौजन्य : kriyayoga.com (google photos). आदिवासी जीवन की कविताएँ : आशीष त्रिपाठी. कवि (खासतौर पर जबकि वह बिल्कुल नया ह...अनुज की कविताओं...जंगल के स्...जहा...
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शीर्षक..: Monday, April 26, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. सोमवार, अप्रैल 26, 2010. पहला ख़त. सोते में चीख़ता है सुल्तान आजकल. टूट पड़ा आँगन में आसमान आजकल।. साँसों में उठ रहा है तूफान आजकल।. कबूतर ने जने हैं कई नन्हें कबूतर,. डर-डर के बाज भरता है उड़ान आजकल।. फ़क़ीर के कदमों में है रफ़्तार कुछ अधिक,. सोते में चीख़ता है सुल्तान आजकल।. पड़ोसी का घर खंगालते खंजर लिए हुए,. तकिए के नीचे छिप गया शैतान आजकल।. प्रस्तुतकर्ता. पहली प्रतिक्रिया :. 8 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. हिं ...मु ...
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शीर्षक..: Friday, May 28, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. शुक्रवार, मई 28, 2010. कुछ सूफियाना सा. इस बार कुछ शेर हैं, जिन से बात शुरू करता हूँ. तू सुन के मेरी इल्तिज़ा क्या करेगा. जो पहले से सोचा हुआ था, करेगा. आइना तुम भी हो, आइना मैं भी हूं. देखूं तो आती है लौट कर रोशनी. मौला ऐसा सलीका हमें बख्श दे. हम लुटाते रहें उम्र भर रोशनी. शेर हमारे साथी योगेन्द्र मिश्र. की ग़ज़ल से हैं. योगेन्द्र,. दम-ब-दम रोशनी, दर-ब-दर रोशनी. तब कहीं बन सकी हमसफर रोशनी. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. भाषा, भ&#...తెల...
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शीर्षक..: Tuesday, May 11, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. मंगलवार, मई 11, 2010. एक रंग जो ठहरा हुआ सा बस लगता है. दिनों. इंतज़ार. जुम्मा. 2 पोस्ट. लिखीं. योजनायें. उत्साहित. निकालने. रचनात्मकता. ज्यादा. ठूंसा. ठांसी. व्यवस्थित. सुचिंतित. दुनिया. प्रिंट. दुर्घटना. दुहरायी. अंकों. जोड़ना. चाहेंगे. मैंने. यूनिकोड. टाइपिंग. योजनाओं. लोगों. योजनाकार. साझेदार. विस्तृत. हिन्दी. द्विवेदी. नईदुनिया. Http:/ meetheemirchee.blogspot.com/. व्यंग्य. मुस्कान. खिल-खिल गूंजने. व्यंग्य. लोगों. को वहा...
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शीर्षक..: Monday, August 30, 2010
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साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है. रंग और उजास. सोमवार, अगस्त 30, 2010. नई कोशिश. उस समय हम कैसे चूक गए. या कि उस की बात के बदले एक निशाना हम ने भी क्यों न साध लिया. मैंने पहले भी लिखा है कि 'शीर्षक'. मेरे लिए इस से कुछ आगे और बेहतर का संकल्प है. कमला प्रसाद जी से बात-चीत के बहाने मुझे एक बेहतर विकल्प समझ में आता है कि मैं 'वसुधा'. प्रगतिशील वसुधा'. का अंक-85. प्रस्तुतकर्ता. पहली प्रतिक्रिया :. 1 टिप्पणी:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. नई पोस्ट. हिं...मु ...
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