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अमृत - भजन - गंगा: मालिक के दरबार में
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अमृत - भजन - गंगा. श्री नाथ जी महाराज के मुखारविंद से श्री अमृत रूपी पावन भजन गंगा का पान करने का भरसक प्रयास करने का प्रयत्न किया है श्री रतिनाथजी महाराज के आशीर्वाद स्वरुप. Sunday 9 May 2010. मालिक के दरबार में. जय श्री नाथजी महाराज. Subscribe to: Post Comments (Atom). जय श्री नाथजी महाराज. जय श्री नाथजी महाराज. प्रभु - चित्रावली. संत कबीर. ज्ञान - भण्डार. आरती संग्रह. अमृत - भजन - गंगा. निंद्रा बेच दूँ कोई ले तो. अन्त बुढ़ापा आया सरगो रे. वन्दे देव उमापते. View my complete profile.
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संत कबीर: कबीर दोहावली / पृष्ठ ६
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संत कबीर. Wednesday, December 30, 2009. कबीर दोहावली / पृष्ठ ६. जाका गुरु है गीरही, गिरही चेला होय ।. कीच-कीच के धोवते, दाग न छूटे कोय ॥ 501 ॥. गुरु मिला तब जानिये, मिटै मोह तन ताप ।. हरष शोष व्यापे नहीं, तब गुरु आपे आप ॥ 502 ॥. यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।. सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान ॥ 503 ॥. बँधे को बँधा मिला, छूटै कौन उपाय ।. कर सेवा निरबन्ध की पल में लेय छुड़ाय ॥ 504 ॥. गुरु बिचारा क्या करे, ह्रदय भया कठोर ।. देश-देशान्तर मैं फिरू...जा देखै सुख उपजै...कबीर गुर&...माट...
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आरती संग्रह: अथ देव्या: कवचम्
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आरती संग्रह. श्री आरती-संग्रह. 2404;।श्रीहरि:।।. नम्र निवेदन. आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये? मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।. सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।. 8216;पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।’. नीराजनं च य: पश्येद् देवदेवस्य चक्रिण:।. सप्तजन्मनि विप्र: स्यादन्ते च परमं पदम्।।. विष्णु धर्मोत्तर में आया है-. आरती के पाँच अंग होते हैं-. द्वितीयं सोदकाब्जेन तृती...चूताश्चत्थादिपत्...पंचमं प्रणì...8216;प्रथ...
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आरती संग्रह: श्रीहनुमानचालीसा
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आरती संग्रह. श्री आरती-संग्रह. 2404;।श्रीहरि:।।. नम्र निवेदन. आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये? मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।. सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।. 8216;पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।’. नीराजनं च य: पश्येद् देवदेवस्य चक्रिण:।. सप्तजन्मनि विप्र: स्यादन्ते च परमं पदम्।।. विष्णु धर्मोत्तर में आया है-. आरती के पाँच अंग होते हैं-. द्वितीयं सोदकाब्जेन तृती...चूताश्चत्थादिपत्...पंचमं प्रणì...8216;प्रथ...
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ज्ञान - भण्डार: चेतना
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ज्ञान - भण्डार. कबीरा मन पँछी भया, भये ते बाहर जाय । जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ॥. Thursday, January 21, 2010. 8226; १ चेतना का स्थान. 8226; २ चेतना और चरित्र. 8226; ३ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चेतना. 8226; ४ चेतना के स्तर. 8226; ५ चेतना का विकास. 8226; ६ वाह्य सूत्र. चेतना का स्थान. चेतना और चरित्र. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चेतना. चेतना के स्तर. चेतना का विकास. जय श्री नाथजी महाराज. Subscribe to: Post Comments (Atom). जय श्री नाथजी महाराज. जय श्री नाथजी महाराज. संत कबीर. आरती संग्रह.
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जय श्री नाथजी महाराज: केवट - कथा
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जय श्री नाथजी महाराज. जय श्री नाथ जी महाराज की जय. परम पूज्य संत श्री भानीनाथ जी महाराज, चूरु. परम पूज्य संत श्री अमृतनाथ जी महाराज, फ़तेहपुर. परम पूज्य संत श्री नवानाथ जी महाराज, बऊ. शेखावाटी. परम पूज्य संत श्री भोलानाथ जी महाराज, बऊ. शेखावाटी. महाराज,. शेखावाटी. Monday, January 11, 2010. केवट - कथा. केवट भगवान राम के मर्म को कैसे जानता था? मांगी नाव न केवट आना।. कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना॥. पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उरराई चहौं।. हे नाथ! हे कृपालु! जय श्री नाथजी महाराज. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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संत कबीर: कबीर दोहावली / पृष्ठ ७
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संत कबीर. Wednesday, December 30, 2009. कबीर दोहावली / पृष्ठ ७. निबैंरी निहकामता, स्वामी सेती नेह ।. विषया सो न्यारा रहे, साधुन का मत येह ॥ 601 ॥. मानपमान न चित धरै, औरन को सनमान ।. जो कोर्ठ आशा करै, उपदेशै तेहि ज्ञान ॥ 602 ॥. और देव नहिं चित्त बसै, मन गुरु चरण बसाय ।. स्वल्पाहार भोजन करूँ, तृष्णा दूर पराय ॥ 603 ॥. जौन चाल संसार की जौ साधु को नाहिं ।. डिंभ चाल करनी करे, साधु कहो मत ताहिं ॥ 604 ॥. इन्द्रिय मन निग्रह करन, हिरदा कोमल होय ।. भीतर और न बसावई, ऊपर और न होय ॥ 613 ॥. साधु सती औ...तीनो...
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संत कबीर: रसखान के पद
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संत कबीर. Tuesday, April 27, 2010. रसखान के पद. गोकुल गांव के ग्वारन. मानुष हौं तो वहीं रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।. जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥. पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन।. जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिलि कालिंदी-कूल-कदम्ब की डारन॥. राजतिहूं पुरकौ तजि डारौं. या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुरकौ तजि डारौं।. सिर सुन्दर चोटी. रसखान का यह पद उनके भजन संग्रह से उद्धृत है।. जु वही मन भायौ. ताहि अहीरकी छोहर...अजय कुमार. हिंद...कृप...
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ज्ञान - भण्डार: गुरु
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ज्ञान - भण्डार. कबीरा मन पँछी भया, भये ते बाहर जाय । जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ॥. Wednesday, January 20, 2010. जय श्री नाथजी महाराज. Subscribe to: Post Comments (Atom). जय श्री नाथजी महाराज. जय श्री नाथजी महाराज. प्रभु - चित्रावली. संत कबीर. आरती संग्रह. ज्ञान - भण्डार - गृह. ज्ञान - भण्डार. दर्शन का इतिहास. भारतीय दर्शन. हिन्दू मापन प्रणाली. सनातन धर्म के संस्कार / रीति-रिवाज.
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अमृत - भजन - गंगा: वन्दे देव उमापते
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अमृत - भजन - गंगा. श्री नाथ जी महाराज के मुखारविंद से श्री अमृत रूपी पावन भजन गंगा का पान करने का भरसक प्रयास करने का प्रयत्न किया है श्री रतिनाथजी महाराज के आशीर्वाद स्वरुप. Tuesday 8 June 2010. वन्दे देव उमापते. जय श्री नाथजी महाराज. Subscribe to: Post Comments (Atom). जय श्री नाथजी महाराज. जय श्री नाथजी महाराज. प्रभु - चित्रावली. संत कबीर. ज्ञान - भण्डार. आरती संग्रह. अमृत - भजन - गंगा. निंद्रा बेच दूँ कोई ले तो. अन्त बुढ़ापा आया सरगो रे. वन्दे देव उमापते. View my complete profile.