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जज़्बात: छत्तीस का आकड़ा है ….
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Wednesday, May 23, 2012. छत्तीस का आकड़ा है …. छत्तीस का आकड़ा है. क़दमों में पर पड़ा है. आंसुओं को छुपा लेगा. जी का बहुत कड़ा है. उंगलियां उठें तो कैसे? कद उनका बहुत बड़ा है. लहुलुहान तो होगा ही. पत्थरों से वह लड़ा है. कब का मर चुका है. वह जो सामने खड़ा है. खाद बना पाया खुद को. महीनों तक जब सड़ा है. कल सर उठाएगा बीज. आज धरती में जो गड़ा है. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण). May 23, 2012 at 9:07 PM. May 23, 2012 at 9:47 PM. May 23, 2012 at 10:01 PM.
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जज़्बात: अभिशप्त दायरा …..
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Monday, April 2, 2012. अभिशप्त दायरा …. कभी हतप्रभ. तो कभी हताश. ढूढता है वह. अपना आकाश. यूं तो वह. अत्यंत सहनशील है. पथप्रदर्शकों (? द्वारा बताए मार्ग पर. निरंतर गतिशील है,. कोल्हू के बैल सा. वृत्ताकार मार्ग के. मार्ग-दोष से बेखबर. चलता ही जा रहा है. या शायद. बेबस और लाचार. खुद को. छलता ही जा रहा है. कदाचित उसे पता ही नहीं है. उसके श्रम का परिणाम. आश्रित है,. वेग और विस्थापन पर. कितना भी चले वह. उनके बताए रास्ते पर. निश्चित ही. जब भी वह. जब भी वह. इस ज...
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प्रवाह: उस ख़त को पढ़ लेने के बाद ....
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निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है . मेरी ब्लॉग सूची. दाल में सब काला है …. यूरेका. और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा). पत्थरों के गाँव में ठहरने लगा है आईना …. मुखपृष्ठ. बुधवार, 1 जून 2011. उस ख़त को पढ़ लेने के बाद . Posted by M VERMA at 10:38 am. जेठ की दुपहरी में. आंचल लहराकर तुमने. एक छत लिखा है. मिल गया आज. मेरे नाम जो तुमने. ख़त लिखा है,. एहसासों के मुँह पर. उंगली रख मना कर दिया. कुछ बोलने से. डायरी में सहेज कर. ख़ुद को मना कर दिया. खत खोलने से. मुझे पता है. चले आये हैं. ने कहा…. जहाँ...Please vi...
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प्रवाह: लाईन सीधी हो गई ...
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निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है . मेरी ब्लॉग सूची. दाल में सब काला है …. यूरेका. और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा). पत्थरों के गाँव में ठहरने लगा है आईना …. मुखपृष्ठ. गुरुवार, 16 जून 2011. लाईन सीधी हो गई . Posted by M VERMA at 5:03 am. लाईन तो बिलकुल सीधी हो गई. Labels: लघुकथा. ने कहा…. वर्मा जी यह लघु कथा तो ऊपर से निकल गयी समझने की कोशिश करता हूँ टिप्पणी बाद में. 16 जून 2011 को 6:31 am. संगीता स्वरुप ( गीत ). ने कहा…. 16 जून 2011 को 8:19 am. रश्मि प्रभा. ने कहा…. ने कहा…. पर भी है! पुर&...
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प्रवाह: तीन स्थितियां तीन शब्द चित्र
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निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है . मेरी ब्लॉग सूची. Temporary Post Used For Theme Detection (5a9e12ca-2a98-4024-8f79-d55f012c9c0a - 3bfe001a-32de-4114-a6b4-4005b770f6d7). Temporary Post Used For Theme Detection (c81eb719-ece7-4a53-831d-37eb70a3a14c - 3bfe001a-32de-4114-a6b4-4005b770f6d7). यूरेका. और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा). मुखपृष्ठ. शनिवार, 7 अप्रैल 2012. तीन स्थितियां तीन शब्द चित्र. Posted by M VERMA at 10:21 pm. धूप में. भूखा-प्यासा. जलता रहा सूरज. फिर भी. पूरे दिन. उस कथन को. Girl Ill...
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प्रवाह: निज प्रकम्पित अधरों से कुछ कहो आज तुम
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निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है . मेरी ब्लॉग सूची. Temporary Post Used For Theme Detection (5a9e12ca-2a98-4024-8f79-d55f012c9c0a - 3bfe001a-32de-4114-a6b4-4005b770f6d7). Temporary Post Used For Theme Detection (c81eb719-ece7-4a53-831d-37eb70a3a14c - 3bfe001a-32de-4114-a6b4-4005b770f6d7). यूरेका. और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा). मुखपृष्ठ. शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010. निज प्रकम्पित अधरों से कुछ कहो आज तुम. Posted by M VERMA at 6:54 am. साक्षात मगर हो. दिवा-सपन सी. पूस-कपन सी. बहुत आकर्षक. 3 दि...
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जज़्बात: इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है ….
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Tuesday, May 8, 2012. इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है …. खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है. इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है. चूहों ने कुतर डाले हैं कान आदमी के. शायद इस शहर में चूहेदानी नहीं है. चहलकदमी भी है, सरगोशियाँ भी हैं. मंज़र मगर फिर भी तूफानी नहीं है. आये दिन लुट जाती है अस्मत यहाँ. कौन कहता है यह राजधानी नहीं है. अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो. बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया. प्रस्तुतकर्ता. बहुत सुंदर. हर शेर लाजवाब. May 8, 2012 at 10:57 PM.
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प्रवाह: अपना एक स्टाईल रक्खो
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निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है . मेरी ब्लॉग सूची. Temporary Post Used For Theme Detection (5a9e12ca-2a98-4024-8f79-d55f012c9c0a - 3bfe001a-32de-4114-a6b4-4005b770f6d7). Temporary Post Used For Theme Detection (c81eb719-ece7-4a53-831d-37eb70a3a14c - 3bfe001a-32de-4114-a6b4-4005b770f6d7). यूरेका. और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा). मुखपृष्ठ. गुरुवार, 25 नवंबर 2010. अपना एक स्टाईल रक्खो. Posted by M VERMA at 10:30 pm. अपना एक स्टाईल रक्खो. स्वप्निल कुमार 'आतिश'. ने कहा…. नई पोस्ट.
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प्रवाह: तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर --
http://verma8829.blogspot.com/2010/11/blog-post_28.html
निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है . मेरी ब्लॉग सूची. दाल में सब काला है …. यूरेका. और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा). पत्थरों के गाँव में ठहरने लगा है आईना …. मुखपृष्ठ. रविवार, 28 नवंबर 2010. तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर -. Posted by M VERMA at 7:52 am. तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर. तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर. ढूढ़ रहा मैं ठाँव तुम्हारा. ढूढ़ रहा मैं गाँव तुम्हारा. तुम रहस्यमयी, या फिर शायद कालजयी. तुम सिहरन हो, कपोत की हो धवल पर. ने कहा…. ने कहा…. देखिय...Http:/ ch...
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