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नुक्कड़: Dec 13, 2010
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नुक्कड़. मंत्रसिक्त हवाओं में नई राहो की तलाश. Posted By Geetashree On 2:49 AM. गीताश्री. तो सुख-दुख, आकांक्षा. और हार,उदासी और उत्साह,. वर्तमान भविष्य के अनुभव को धीमा कर देना. और हर दो तस्वीरों के बीच. नई राहें और नए शार्टकट ढूंढना,मेरे जीवन में सिगरेटों का यही मुख्य उद्देश्य था,. जब ये संभावनाएं नहीं रहती,. आदमी खुद को नंगा जैसा महसूस करने लगता है,. कमजोर और असहाय।. ओरहान पामुक. सिगरेट छोडऩे के बाद पामुक का अनुभव ये था।. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile.
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katra katra zindgi: स्लमडॉग को आठ ऑस्कर
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Monday, February 23, 2009. स्लमडॉग को आठ ऑस्कर. पशुपति शर्मा. March 9, 2009 at 3:10 PM. Subscribe to: Post Comments (Atom). Kabhi Na Honge Juda. Amitabh family in Caan. स्लमडॉग को आठ ऑस्कर. Believe in making world better to live in. View my complete profile.
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katra katra zindgi
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Wednesday, August 19, 2009. Expulsion of Jaswant singh from BJP exposed the party that it is not different from others. Otherwise there would be one rule for every leader. Adwani ji talks on jinnah, party applies other rule; Jaswant singh write about jinnah, another rule is applied. what a party with difference? Kalyan Singh rightly raises a question where is BJP now? Subscribe to: Post Comments (Atom). Kabhi Na Honge Juda. Amitabh family in Caan. After a long time I am back on my blog, as i had .
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katra katra zindgi: हम क्या कुछ नहीं कर सकते
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Sunday, June 1, 2008. हम क्या कुछ नहीं कर सकते. 1 जून, 2008. भईया अंधेरा अभी तक कायम है।. यह सारा माल मुलायम है।।. जय हो समाजवाद की।. अब हर कोई पढेगा, यूपी ऐसे ही बढेगा।. June 1, 2008 at 11:04 AM. Subscribe to: Post Comments (Atom). Kabhi Na Honge Juda. Amitabh family in Caan. एक और आरुषि. हम क्या कुछ नहीं कर सकते. Believe in making world better to live in. View my complete profile.
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नुक्कड़: May 4, 2011
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नुक्कड़. ओ किटी.रहोगी याद. Posted By Geetashree On 12:15 AM. गीताश्री. 8216;मैकलुस्कीगंज? एंग्लो इंडियनों का यह गांव आखिर है क्यों? यही एक सवाल है जो संपूर्ण मैकलुस्कीगंज को संतप्त करता रहा है।’. चलो, अच्छा ही है,एक संतप्त नस्ल अपनी समाप्ति पर है. मैकलुस्कीगंज उपन्यास का अंश). क्या आप कभी मैकलुस्की गंज गए हैं? क्या जंगली हवा की सीढियों के संग वाकई गुम हो जाएगा यह अनूठा गांव? विदा ओ किटी मेमसाब. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). नुक्कड़ के पास. नदिया बहती जाये. View my complete profile.
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रूप-अरूप: तृप्ति है बादलों से
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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Friday, August 14, 2015. तृप्ति है बादलों से. तुम जानते हो. यूं बीच रास्ते छोड़. आगे बढ़ जाओगे. आंखों में सावन भरकर. मैं प्यासी धरती सी. वहीं पड़ी रहूंगी, बूंदों के इंतजार में. सूखती है अवनि, फटता है उसका सीना. तृप्ति मिलती है उन्हीं बादलों से. जो बार-बार रूठकर, तरसाकर. चले जाते हैं. बहुत इंतजार के बाद, फिर लौटने को. रश्मि शर्मा. बेहतरीन अभिव्यक्ति. Friday, August 14, 2015 5:20:00 PM. Subscribe to: Post Comments (Atom). मुरझ&...
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रूप-अरूप: धरा पर बसंत ऋतु आई
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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Saturday, February 16, 2013. धरा पर बसंत ऋतु आई. मुरझाई सी अमराई में. है गुनगुन. भौरों की आहट. खिले बौर अमिया में. मंजरी की सुगंध छाई. धूप ने पकड़ा. प्रकृति का धानी आंचल. देख सुहानी रूत. फूली सरसों, पीली सरसों. इतराती है जौ की बालियां. गया शिशिर. धूप खिली,झूमीं वल्लरियां. फुनगी पर सेमल की. निखरी हर कलियां. महुआ की डाल पर. अकुलाया है मन. चिरैया की पांख पर. स्मृति का मदमाता. केसरिया बसंत. ठूंठ से फूटती. निहार रंजन. आपकी प...
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रूप-अरूप: इश्क की नदी ........
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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Thursday, July 9, 2015. इश्क की नदी . रेशे-रेशे में है टूटन. कुछ नहीं बाकी. पहाड़ी नदी. तट तोड़ बैठेगी. बादलों में घुल गया. जह़र का नीला रंग. बदन भी है नीला-नीला. रहस्यमयी सारी का़यनात. झुका है नीला आसमान. जमीं खिलखिला रही. दो पाटों के जीन में कसी. इश्क की नदी. बेपनाह छटपटा रही ।. रश्मि शर्मा. Subscribe to: Post Comments (Atom). नदी को सोचने दो. एकल काव्य संग्रह. रूप का काफिला. हमारी बारी. धरा पर बसंत ऋतु आई. मुरझाई सी...हा&...
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रूप-अरूप: एक शाम......
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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Thursday, July 30, 2015. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे. मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे'. रश्मि शर्मा. Friday, July 31, 2015 6:28:00 AM. Subscribe to: Post Comments (Atom). नदी को सोचने दो. एकल काव्य संग्रह. रूप का काफिला. हमारी बारी. सुप्रभात मित्रों.) ). धरा पर बसंत ऋतु आई. मुरझाई सी अमराई में है गुनगुन भौरों की आहट खिले बौर ...मैं झरना हूं. हां. मैं झरना हूं कहीं र...चीड़ देवदार से घि&#...दुर्गयाना...फिर आए&#...चंब...