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शरद कोकास: 1989 की कवितायें - सितारे
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. गुरुवार, सितंबर 20, 2012. 1989 की कवितायें - सितारे. 57 सितारे. अन्धेरी रातों में. दिशा ज्ञान के लिये. सितारों का मोहताज़ होना. अब ज़रूरी नहीं. चमकते सितारे. रोशनी का भ्रम लिये. सत्ता के आलोक में टिमटिमाते. एक दूसरे का सहारा लेकर. अपने अपने स्थान पर. संतुलन बनाने के फेर में हैं. हर सितारा. अपने ही प्रकाश से. आलोकित होने का दम्भ लिये. उनकी मुठ्ठी में बन्द. शरद कोकास. राजनीति. शरद कोकास. सत्ता संतुलन. सितारे. शरद कोक&#...
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शरद कोकास: 04/27/09
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. सोमवार, अप्रैल 27, 2009. WHY SHOULD WE READ POETRY हम कविता क्यों पढ़ें? वैसे भी कविता से हमारा सामना ज़िंदगी में कहाँ होता है? प्रसिद्ध कवि लीलाधर मन्डलोई. कवि नवीन सागर. का कि/रात को जगा के नीन्द से दी उन्होनें यह खबर विष्णु खरे. बाँका तिरछा. से साभार). कविता यह काम कैसे करती इस पर बात अगली बार. आपका॥ शरद कोकास. 3 मई 2009 को कवि शरद बिल्लोरे. को मेरे साथ अवश्य याद करें. शीर्षक AALEKH. SHARAD KOKAS शरद कोकास. मेर...
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शरद कोकास: 06/30/09
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. मंगलवार, जून 30, 2009. नरेश चंद्रकर के पाँवों में चक्के लगे है. बचे घर तक. पहुँचने का रास्ता,जल. और युवती. नरेश चंद्रकर. घुमक्कड़ किस्म के कवि हैं. आसाम, हैदराबाद,हिमाचल. प्रदेश,जाने कहाँ कहाँ रह चुके हैं. में बड़. में हैं. वे भटकते हुए भी कविता खोज लाते हैं. उनके दो. कविता संग्रह हैं. बातचीत की उड़ती धूल में. बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी. यह कविता उनके इस. बिम्ब के माध्यम से. न घने काले केश. नग्न नर्म पैर. सदस्यता...
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शरद कोकास: 1989 की कवितायें - धुएँ के खिलाफ
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. शुक्रवार, सितंबर 21, 2012. 1989 की कवितायें - धुएँ के खिलाफ. 58 धुएँ के खिलाफ. अगली शताब्दि की हरकतों से. पैदा होने वाली नाजायज़ घुटन में. सपने बाहर निकल आयेंगे. परम्परिक फ्रेम तोड़कर. कुचली दातून के साथ. उगली जायेंगी बातें. मानव का स्थान लेने वाले. यंत्र मानवों की. सुपर कम्प्यूटरों की. विज्ञान के नये मॉडलों. ग्रहों पर प्लॉट खरीदने की. अतिक्रमण कर देगा. आधुनिकता का दैत्य. नई तकनीक की मशीन पर. शरद कोकास. यह दरअसल सत्त...
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शरद कोकास: 1989 की कवितायें - यह भय व्यर्थ नहीं है
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. मंगलवार, अगस्त 28, 2012. 1989 की कवितायें - यह भय व्यर्थ नहीं है. 55 यह भय व्यर्थ नहीं है. कितना आसान है. किसी ऐसे शहर के बारे में सोचना. जो दफन हो गया हो. पूरा का पूरा ज़मीन के भीतर. पुराणों के शेषनाग के हिलने से सही. या डूब गया हो गले तक. बाढ़ के पानी में. इन्द्र के प्रकोप से ही सही. या भाग रहा हो आधी रात को. साँस लेने के लिये. चिमनी से निकलने वाले. लिखा हुआ मिल जायेगा. जिससे हम. कल ऐसा ही कुछ. शरद कोकास. बुधवì...
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शरद कोकास: 07/21/09
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. मंगलवार, जुलाई 21, 2009. इस सूर्य ग्रहण पर शर्म तो आ रही है. यह बताते हुए कि उन दिनो जब मै कविता का क ख ग नहीं जानता था मैने यह कविता लि. थी सूर्यग्रहण. पर और 16 फरवरी 1980 को सूर्यग्रहण के दिन यह प्रकाशित भी हुई थी नागपुर के नवभारत. कानों. बातें. नौनिहालों. रैलियाँ. प्रजातंत्र. विकल्पहीनता. स्थितियाँ. दुखिया. अन्धों. पायेगा. सूर्यग्रहण. शरद कोकास. चित्र गूगल से साभार ). SHARAD KOKAS शरद कोकास. द्वारा समय. किता...यह एक पन&...
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शरद कोकास: 1989 की कवितायें - अभिलेख
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. मंगलवार, अगस्त 07, 2012. 1989 की कवितायें - अभिलेख. 1989 में लिखी युवा आक्रोश की एक और कविता. 54 अभिलेख. हम नहीं देख सकते. हमारे माथे पर खुदा अभिलेख. नोंचकर फेंक आये हैं हम. अपनी आँखें. इच्छाओं की अन्धी खोह में. हम कोशिश में हैं. हथेलियों को आँख बनाने की. हमारे माथे पर नहीं लिखा है. कि हम अपराधी हैं. उन अपराधों के. जो हमने किये ही नहीं. कि जीना अपराध है. फिर भी. हाथों में छाले. और पेट में. परम्परिक दर्शन. असल मेæ...
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शरद कोकास: 05/03/09
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कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ. शरद कोकास और मित्रों की कवितायें. रविवार, मई 03, 2009. 3 मई 2009 शरद बिल्लोरे की पुण्यतिथि. लीलाधर मंडलोई. दिल का किस्सा. शरद बिल्लोरे. मरनेवाले. शरद बिल्लोरे की पुण्यतिथि पर उन्हें. कर रहे हैं उनके मित्र शरद कोकास. १९७३- ७४ की बात है. Regional College OF Education Bhopal में शरद बिल्लोरे. बी.ए. आनर्स का छात्र था और मै. बी.एस.सी. आनर्स का .श्री लीलाधर मंडलोई. पंजवानी. संतोष जोशी. विजय बुट्टन्. और जानी पाल. आपका- शरद कोकास. शीर्षक SMARAN. हर साल इतन&#...
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लिखो यहां वहां: February 2014
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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Friday, February 28, 2014. मध दा ने कर दी है दिन की शुरूआत. विजय गौड़. भूल जाता हूं मैं/ यह सारी बातें. अवतरित हो जाता है दुखहरन मास्टर भीतर तक. खड़ा होता हूं जब/ पांच अलग-अलग कक्षाओं के. सत्तर-अस्सी बच्चों के सामने।. हो गई है दिन की शुरूआत/बाजार सजने लगी है. सामने मध दा ने भी खड़ा कर दिया है. अपना साग-पात का ठेला. तरतीब से सजाए/ताजी-ताजी सब्जियां. 2404;।।।।।।।. 2404;।।।।।।।।. ब्ास के चलने से पहले तक. मूल्य : 125/-. विजय गौड़. नीलकण...