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साझी धरती

साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. शनिवार, 15 अगस्त 2015. रख ले, भैये! यह आज़ादी. रख ले, भैये! यह आज़ादी तू ही रख ले. लूट-मार कर खाने वाली. सब का हक़्क़ दबाने वाली. सब का गला काटने वाली. हर आज़ादी. तू ही रख ले! लाल क़िले के ऊपर चढ़ जा. हाथ उठा कर. खुल कर चिल्ला. जितना झूठ बोल सकता है. ज़ोर-ज़ोर से बोल आज सब. तेरा दिन है! हमको ऐसी आज़ादी तो. नहीं चाहिए. आटा-दाल, सब्ज़ियां ग़ायब. हर ग़रीब की थाली ख़ाली. हर किसान के माथे पर. पड़ रही लकीरें. रख ले, भैये! लड़ कर, भिड़ कर. और वह भी.

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. शनिवार, 15 अगस्त 2015. रख ले, भैये! यह आज़ादी. रख ले, भैये! यह आज़ादी तू ही रख ले. लूट-मार कर खाने वाली. सब का हक़्क़ दबाने वाली. सब का गला काटने वाली. हर आज़ादी. तू ही रख ले! लाल क़िले के ऊपर चढ़ जा. हाथ उठा कर. खुल कर चिल्ला. जितना झूठ बोल सकता है. ज़ोर-ज़ोर से बोल आज सब. तेरा दिन है! हमको ऐसी आज़ादी तो. नहीं चाहिए. आटा-दाल, सब्ज़ियां ग़ायब. हर ग़रीब की थाली ख़ाली. हर किसान के माथे पर. पड़ रही लकीरें. रख ले, भैये! लड़ कर, भिड़ कर. और वह भी.
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साझी धरती | sureshswapnil2.blogspot.com Reviews

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. शनिवार, 15 अगस्त 2015. रख ले, भैये! यह आज़ादी. रख ले, भैये! यह आज़ादी तू ही रख ले. लूट-मार कर खाने वाली. सब का हक़्क़ दबाने वाली. सब का गला काटने वाली. हर आज़ादी. तू ही रख ले! लाल क़िले के ऊपर चढ़ जा. हाथ उठा कर. खुल कर चिल्ला. जितना झूठ बोल सकता है. ज़ोर-ज़ोर से बोल आज सब. तेरा दिन है! हमको ऐसी आज़ादी तो. नहीं चाहिए. आटा-दाल, सब्ज़ियां ग़ायब. हर ग़रीब की थाली ख़ाली. हर किसान के माथे पर. पड़ रही लकीरें. रख ले, भैये! लड़ कर, भिड़ कर. और वह भी.

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साझी धरती : 11/08/14

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. शनिवार, 8 नवंबर 2014. अलोकप्रिय हो जाना. बबूल हो जाना ही. श्रेष्ठ विकल्प है. लकड़हारों के देश में. तन की सुरक्षा. और मन में. अनधिकृत प्रवेश. रोकने के लिए . अस्मिता बनाए रखने के लिए. बेहतर है. अलोकप्रिय हो जाना! सुरेश स्वप्निल. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. कोई टिप्पणी नहीं:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. मुखपृष्ठ. 160; &#160...

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साझी धरती : 01/08/15

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. गुरुवार, 8 जनवरी 2015. विदूषक को मार डालो! विदूषक को मार डालो. वह सबसे बड़ा ख़तरा है. तुम्हारे धर्म के लिए. विदूषक को मारना ही होगा. वह आवाज़ उठाएगा. तुम्हारी निरंकुश सत्ता के विरुद्ध. विदूषक को कम मत आंकना. वही लाएगा तुम्हारा मृत्यु-संदेश. अपने नए-नए कारनामों से. इकट्ठा कर देगा. तुम्हारे सारे विरोधियों को. और फूंक देगा. विद्रोह का बिगुल. कोई चारा नहीं. विदूषक को. मार डालो. और सुरक्षित कर लो. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. जीवन-स&#2...

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साझी धरती : 11/20/14

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. गुरुवार, 20 नवंबर 2014. ईश्वर का अवतार! भ्रम कहां टूटते हैं. इस देश में? एक भ्रम टूटता लगता है. तो और सौ नए भ्रम. पैदा कर दिए जाते हैं. समाज के हर छोर से. प्रकट हो जाते हैं. भ्रमों के समर्थक. भीड़ बढ़ती चली जाती है. हर भगवा, हर हरे रंग के लिबास वालों के. इर्द-गिर्द! जो लोग बिना भ्रम के. जीना चाहते हैं. वे क़रार दिए जाते हैं. धर्म और राष्ट्र के शत्रु. यहां तक कि आतंकवादी भी! शासक-वर्ग चाहता है. और हम हैं. एक नया भ्रम. जीवन-स&#2...

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साझी धरती : 12/01/14

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. सोमवार, 1 दिसंबर 2014. जनता जानती है! किसी भ्रम में मत रहना. जहांपनाह! यह वह जनता नहीं है. जो स्मृति-दोष का शिकार थी. और भूल जाती थी हर बार. शासकों के अत्याचार. और भ्रष्टाचार. इसके पास. तुम्हारे सारे कुकर्मों का. हिसाब है! किसी और ही मिट्टी की बनी है. और जानती है. कैसे गिराए जाते हैं. सिंहासन. कैसे ठिकाने लगाई जा सकती है. सत्ताधारियों की बुद्धि. तुम्हें चेतावनी है यह. उस नाकारा जनता की. उसी आम आदमी की. सिंहासन तक. कोई ट&#23...

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साझी धरती : 05/02/15

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. शनिवार, 2 मई 2015. नमस्कार, मित्रों! Pid=9789384159115&icmpid=reco pp same book book 3&ppid=9789384159146. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. कोई टिप्पणी नहीं:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). हमारी वाणी का क्लिक बटन. मुखपृष्ठ. मेरी ब्लॉग सूची. साझा आसमान. 1 माह पहले. 160;  ...धरत&#23...

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साझा आसमान : 12/05/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. बुधवार, 5 दिसंबर 2012. हमराह-ए-हक़ परस्त. नासेह की तरह हुस्न-फ़रामोश नहीं हैं. ख़ुम भर के पी चुके हैं प' मदहोश नहीं हैं. ये: जाम-ए-हक़ीक़ी है ईनाम-ए-इबादत. वैसे हम आदतन शराबनोश नहीं हैं. हम काबुल-ओ-बग़दाद में येरूशलेम में. हमराह-ए-हक़ परस्त हैं ख़ामोश नहीं हैं. हम हैं तो कायनात-ए-इश्क़ है अभी क़ायम. सर हाथ पे रखते हैं दिल-फ़रोश नहीं हैं. हुस्न-ए-ख़ुदा के शहर में जलवे हैं आजकल. 5 दिसं . 2012). शब्दार्थ:. नई पोस्ट. 5 माह पहले. अर्...

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साझा आसमान : 10/31/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. बुधवार, 31 अक्तूबर 2012. बे-आसरा नहीं हूँ मैं. कुछ भी कह बेवफ़ा नहीं हूँ मैं. तेरी तरह ख़ुदा नहीं हूँ मैं. मेरी अपनी भी एक हस्ती है. वक़्त का सानिया नहीं हूँ मैं. नक्शे-पा ख़ुद ही मिटा देता हूँ. भीड़ का रास्ता नहीं हूँ मैं. जी रहा हूँ तो अपनी शर्तों पे. आसमाँ से बंधा नहीं हूँ मैं. मुस्कुराना मेरी सिफ़अत में है. दर्द का फ़लसफ़ा नहीं हूँ मैं. अपनी आँखों में झाँक कर बतला. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. नई पोस्ट. अर्श  पर&...हम ...

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साझा आसमान : 12/13/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. गुरुवार, 13 दिसंबर 2012. कहाँ चले बड़े मियां? कहाँ चले बड़े मियां. पहाड़ सी उमर लिए. बुझी हुई नज़र लिए. झुकी हुई कमर लिए. कहाँ चले बड़े मियां? कहाँ चले? कहाँ चले, रुको ज़रा. सुकून से बैठो यहाँ. कमर का ख़म मिटाओ तो. बयान-ए- ग़म सुनाओ तो. कहाँ चले के: उठ चुके हैं. दोस्त दरम्यान से. के: अब किसी की जेब में. न वक़्त है न दर्द है. न आरज़ू न हौसला. नक़द का बंदोबस्त. या उधार की जुगत नहीं. नवाबियाँ चली गईं. मगर ठसक वही रही! कबीर जय&#230...

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साझा आसमान : 12/17/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. सोमवार, 17 दिसंबर 2012. बाद-ए-सबा साथ रहे . दौर-ए-हिजरां में. इक उम्मीद-ए-वफ़ा साथ रहे. चंद दिलशाद हसीनों की दुआ साथ रहे. दिल न दे तू मुझे अपनी तस्बी: दे दे. तू कहीं हाथ छुड़ा ले तो ख़ुदा साथ रहे. यूँ तो ईमां है मेरा इश्क़-ए-बुताँ पे लेकिन. हद से गुज़रूं तो मुअज्ज़िन की सदा साथ रहे. ज़ख़्म दर ज़ख़्म हुआ जाता है संदल-संदल. है शब-ए-वस्ल-ए-सनम बाद-ए-सबा साथ रहे. सुरेश स्वप्निल. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. अर्श  प...हम ...

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साझा आसमान : 12/04/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. मंगलवार, 4 दिसंबर 2012. हवा ही ऐसी चली है. वो: जिन दिनों हमारे दिल के पास रहते थे. न जाने गुम कहाँ होश-ओ-हवास रहते थे. ख़ुदारा किसकी निगाहों में जा बसे हैं वो:. अभी-अभी तो मेरे दिल के पास रहते थे. उठाए फिरते हैं अपना सलीब काँधे पर. वो: घर कहाँ के जहाँ ग़म-शनास रहते थे. चमक रहे हैं आज जिनके घर में लाल-ओ-गुहर. सुना है उनके ख़ुदा बे-लिबास रहते थे. वगरन: हम तो बहुत कम उदास रहते थे. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. नई पोस्ट. कबीर ...

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साझा आसमान : 11/26/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. सोमवार, 26 नवंबर 2012. जुनूँ -ए -शौक़ की हद. दिलेर शख़्स है सबको गले लगाता है. न जाने इतनी अक़ीदत कहाँ से लाता है. उसे शहर की हर गली से इश्क़ है इतना. कि अपने घर का पता रोज़ भूल जाता है. हज़ार पेच-ओ-ख़म हैं जिगर से चश्म तलक. तलाश-ए -राह में हर अश्क छटपटाता है. तमाम कोशिशें करते हैं भूलने की मगर. पलट-पलट के गया वक़्त लौट आता है. वो: अब्र बन के समंदर पे छा रहा है अब. जुनूँ -ए -शौक़ की हद. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. कबीर जय&#230...

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साझा आसमान : 12/11/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. मंगलवार, 11 दिसंबर 2012. तू हिमाला हुआ है. अपनी बेताबियों से डरते हैं. उनकी ग़ुस्ताखियों से डरते हैं. बुत- ए- ग़ुरूर बन गए रहबर. और फिर बिजलियों से डरते हैं. रश्क़ किस-किस से कीजिए साहब. अपनी रुस्वाइयों से डरते हैं. रिज्क़ तक लुट रहा है राहों पे. ऐसी आज़ादियों से डरते हैं. दाल छोड़ें के: बेच दें बच्चे. लोग मंहगाइयों से डरते हैं. कब - कहाँ - कौन जला दे बस्ती. शहर दंगाइयों से डरते हैं. सुरेश स्वप्निल. नई पोस्ट. अर्श  पर...हम ...

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साझा आसमान : 11/21/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. बुधवार, 21 नवंबर 2012. मुर्शिदों के शहर में. मुर्शिदों के शहर में आए हैं. दिल तबर्रुख़ बना के लाए हैं. मोमिनों दाद तो दीजो हमको. वक़्त से क़ब्ल सफ़ लगाए हैं. रेशा- रेशा बसे हैं रग़-रग़ में. और कहते हैं हम पराए हैं. कोई तस्वीर खेंचियो इनकी. सौ बरस बाद मुस्कुराए हैं. हम हसीनों से दूर ही बेहतर. बात- बेबात दिल जलाए हैं. ऐ ख़ुदा माफ़ कीजियो हमको. बिन वुज़ू के हरम में आए हैं! सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. सफ़:पंक्ति. नई पोस्ट. अर्श&...

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साझा आसमान : 12/02/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. रविवार, 2 दिसंबर 2012. ख़ुदा न ख़्वास्ता . ख़ुदा न ख़्वास्ता अपनी पे आ गए होते. बवंडरों की तरह सब पे छा गए होते. तुम्हारा शुक्रिया के: हम से बेनियाज़ रहे. नज़र मिलाते तो दिल में समा गए होते. हमें उम्मीद नहीं ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से कोई. नमाज़ पढ़ते तो तुमको न पा गए होते. हमें ख़ुदाई से परहेज़ है, ग़नीमत है. जुनूँ तो वो: है के: हस्ती मिटा गए होते. समझ सके न कभी अहले सियासत हमको. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. 5 माह पहले. अर्श&#1...

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साझा आसमान : 12/15/12

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. शनिवार, 15 दिसंबर 2012. दीवाने लोग हैं . दीवाने लोग हैं जो हमको दीवाना समझते हैं. जुनूं - ए - क़ैस को परियों का अफ़साना समझते हैं. अगर दिल में बसे हैं वो: तो मग़रिब क्या है मशरिक़ क्या. के: हम तो बुतकदे को भी सनमख़ाना समझते हैं. हमारी शाइरी पे जो नज़र रखते हैं बरसों से. उम्मीद- ओ- सब्र का हमको वो: पैमाना समझते हैं. मगर हम इस से बेहतर फ़ौत हो जाना समझते हैं. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. कबीर जयंत...अर्...

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From a cameraman at Bombay Doordarshan. To TV serials and International films, Suresh Suvarna. Has come a long way. The Silver Screen was his ultimate goal yet after making an indelible niche in the movie industry, Suresh. Is anxious and ambitious, and wants to excel further. During his initial days with Bombay Doordarshan. Suresh did 162 episodes of Tara, one of the most popular serials on Zee TV. After Tara, there was no looking back. Suresh. To peruse through his biography, please click here.

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My Travelogues, Wildlife Photographs. In these pages, you'll see my old collection of travelogues. I do upload photographs now and then. I hope you enjoy them as much as I did doing them. Thanks for visiting. - Suresh V. All old travelogues are here. All wildlife photographs are here. Wildlife sighting lists from Jan 2006 are here.

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Bas karo yaar.bahut hogaya. Wednesday, May 7, 2008. Some of my regular visiting websites:. Http:/ googleblog.blogspot.com/2008/04/what-makes-design-googley.html. Http:/ www.webdesignfromscratch.com/process.cfm. Http:/ www.masternewmedia.org/information design/information-design-principles/web-20-design-simple-social-design-components-20071017.htm. Http:/ www.alistapart.com/topics/design/userinterfacedesign/. Http:/ www.digital-web.com/topics/information architecture. Tuesday, May 6, 2008.

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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. शनिवार, 15 अगस्त 2015. उधर जाएंगे, या . जो जज़्बात ज़ेरे-बह् र आएंगे. नज़र में समंदर नज़र आएंगे. ज़रा और नज़दीक़ आ जाएं दिल. नक़ूशे-मुहब्बत उभर आएंगे. शबो-शब हमें याद करते रहें. ख़ुदा की क़सम, दिन संवर आएंगे. रखेंगे कहां तक हमें मुंतज़िर. कभी तो मियां राह पर आएंगे. इधर घर हमारा, उधर मैकदा. उधर जाएंगे या इधर आएंगे? बिठाया जिन्होंने तुझे तख़्त पर. वही क़ब्र तक छोड़ कर आएंगे. मुअज़्ज़िन! न दीजो अज़ां ज़ोर से. शब्दार्थ:. इसे ब्ल&#23...Twitter प...

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साझी धरती. सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्. शनिवार, 15 अगस्त 2015. रख ले, भैये! यह आज़ादी. रख ले, भैये! यह आज़ादी तू ही रख ले. लूट-मार कर खाने वाली. सब का हक़्क़ दबाने वाली. सब का गला काटने वाली. हर आज़ादी. तू ही रख ले! लाल क़िले के ऊपर चढ़ जा. हाथ उठा कर. खुल कर चिल्ला. जितना झूठ बोल सकता है. ज़ोर-ज़ोर से बोल आज सब. तेरा दिन है! हमको ऐसी आज़ादी तो. नहीं चाहिए. आटा-दाल, सब्ज़ियां ग़ायब. हर ग़रीब की थाली ख़ाली. हर किसान के माथे पर. पड़ रही लकीरें. रख ले, भैये! लड़ कर, भिड़ कर. और वह भी.

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3 Keys to Greatness by Jim Rohn. Posted on Sunday, April 28, 2013 by Suresh Tan. This video started slow, but I was hooked on to it. But it did pay off well with Jim Rohn sharing his personal experience. The theories shared are simple and pretty straight forward. To summarize it, the 3 keys are Personal Development, Goals and Financial independence. Do watch this video, even though its a little long. It could be a breakthrough moment for your mind. Posted on Friday, April 19, 2013 by Suresh Tan. But it d...