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साझा आसमान : 12/05/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. बुधवार, 5 दिसंबर 2012. हमराह-ए-हक़ परस्त. नासेह की तरह हुस्न-फ़रामोश नहीं हैं. ख़ुम भर के पी चुके हैं प' मदहोश नहीं हैं. ये: जाम-ए-हक़ीक़ी है ईनाम-ए-इबादत. वैसे हम आदतन शराबनोश नहीं हैं. हम काबुल-ओ-बग़दाद में येरूशलेम में. हमराह-ए-हक़ परस्त हैं ख़ामोश नहीं हैं. हम हैं तो कायनात-ए-इश्क़ है अभी क़ायम. सर हाथ पे रखते हैं दिल-फ़रोश नहीं हैं. हुस्न-ए-ख़ुदा के शहर में जलवे हैं आजकल. 5 दिसं . 2012). शब्दार्थ:. नई पोस्ट. 5 माह पहले. अर्...
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साझा आसमान : 10/31/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. बुधवार, 31 अक्तूबर 2012. बे-आसरा नहीं हूँ मैं. कुछ भी कह बेवफ़ा नहीं हूँ मैं. तेरी तरह ख़ुदा नहीं हूँ मैं. मेरी अपनी भी एक हस्ती है. वक़्त का सानिया नहीं हूँ मैं. नक्शे-पा ख़ुद ही मिटा देता हूँ. भीड़ का रास्ता नहीं हूँ मैं. जी रहा हूँ तो अपनी शर्तों पे. आसमाँ से बंधा नहीं हूँ मैं. मुस्कुराना मेरी सिफ़अत में है. दर्द का फ़लसफ़ा नहीं हूँ मैं. अपनी आँखों में झाँक कर बतला. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. नई पोस्ट. अर्श पर&...हम ...
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साझा आसमान : 12/13/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. गुरुवार, 13 दिसंबर 2012. कहाँ चले बड़े मियां? कहाँ चले बड़े मियां. पहाड़ सी उमर लिए. बुझी हुई नज़र लिए. झुकी हुई कमर लिए. कहाँ चले बड़े मियां? कहाँ चले? कहाँ चले, रुको ज़रा. सुकून से बैठो यहाँ. कमर का ख़म मिटाओ तो. बयान-ए- ग़म सुनाओ तो. कहाँ चले के: उठ चुके हैं. दोस्त दरम्यान से. के: अब किसी की जेब में. न वक़्त है न दर्द है. न आरज़ू न हौसला. नक़द का बंदोबस्त. या उधार की जुगत नहीं. नवाबियाँ चली गईं. मगर ठसक वही रही! कबीर जयæ...
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साझा आसमान : 12/17/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. सोमवार, 17 दिसंबर 2012. बाद-ए-सबा साथ रहे . दौर-ए-हिजरां में. इक उम्मीद-ए-वफ़ा साथ रहे. चंद दिलशाद हसीनों की दुआ साथ रहे. दिल न दे तू मुझे अपनी तस्बी: दे दे. तू कहीं हाथ छुड़ा ले तो ख़ुदा साथ रहे. यूँ तो ईमां है मेरा इश्क़-ए-बुताँ पे लेकिन. हद से गुज़रूं तो मुअज्ज़िन की सदा साथ रहे. ज़ख़्म दर ज़ख़्म हुआ जाता है संदल-संदल. है शब-ए-वस्ल-ए-सनम बाद-ए-सबा साथ रहे. सुरेश स्वप्निल. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. अर्श प...हम ...
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साझा आसमान : 12/04/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. मंगलवार, 4 दिसंबर 2012. हवा ही ऐसी चली है. वो: जिन दिनों हमारे दिल के पास रहते थे. न जाने गुम कहाँ होश-ओ-हवास रहते थे. ख़ुदारा किसकी निगाहों में जा बसे हैं वो:. अभी-अभी तो मेरे दिल के पास रहते थे. उठाए फिरते हैं अपना सलीब काँधे पर. वो: घर कहाँ के जहाँ ग़म-शनास रहते थे. चमक रहे हैं आज जिनके घर में लाल-ओ-गुहर. सुना है उनके ख़ुदा बे-लिबास रहते थे. वगरन: हम तो बहुत कम उदास रहते थे. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. नई पोस्ट. कबीर ...
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साझा आसमान : 11/26/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. सोमवार, 26 नवंबर 2012. जुनूँ -ए -शौक़ की हद. दिलेर शख़्स है सबको गले लगाता है. न जाने इतनी अक़ीदत कहाँ से लाता है. उसे शहर की हर गली से इश्क़ है इतना. कि अपने घर का पता रोज़ भूल जाता है. हज़ार पेच-ओ-ख़म हैं जिगर से चश्म तलक. तलाश-ए -राह में हर अश्क छटपटाता है. तमाम कोशिशें करते हैं भूलने की मगर. पलट-पलट के गया वक़्त लौट आता है. वो: अब्र बन के समंदर पे छा रहा है अब. जुनूँ -ए -शौक़ की हद. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. कबीर जयæ...
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साझा आसमान : 12/11/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. मंगलवार, 11 दिसंबर 2012. तू हिमाला हुआ है. अपनी बेताबियों से डरते हैं. उनकी ग़ुस्ताखियों से डरते हैं. बुत- ए- ग़ुरूर बन गए रहबर. और फिर बिजलियों से डरते हैं. रश्क़ किस-किस से कीजिए साहब. अपनी रुस्वाइयों से डरते हैं. रिज्क़ तक लुट रहा है राहों पे. ऐसी आज़ादियों से डरते हैं. दाल छोड़ें के: बेच दें बच्चे. लोग मंहगाइयों से डरते हैं. कब - कहाँ - कौन जला दे बस्ती. शहर दंगाइयों से डरते हैं. सुरेश स्वप्निल. नई पोस्ट. अर्श पर...हम ...
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साझा आसमान : 11/21/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. बुधवार, 21 नवंबर 2012. मुर्शिदों के शहर में. मुर्शिदों के शहर में आए हैं. दिल तबर्रुख़ बना के लाए हैं. मोमिनों दाद तो दीजो हमको. वक़्त से क़ब्ल सफ़ लगाए हैं. रेशा- रेशा बसे हैं रग़-रग़ में. और कहते हैं हम पराए हैं. कोई तस्वीर खेंचियो इनकी. सौ बरस बाद मुस्कुराए हैं. हम हसीनों से दूर ही बेहतर. बात- बेबात दिल जलाए हैं. ऐ ख़ुदा माफ़ कीजियो हमको. बिन वुज़ू के हरम में आए हैं! सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. सफ़:पंक्ति. नई पोस्ट. अर्श&...
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साझा आसमान : 12/02/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. रविवार, 2 दिसंबर 2012. ख़ुदा न ख़्वास्ता . ख़ुदा न ख़्वास्ता अपनी पे आ गए होते. बवंडरों की तरह सब पे छा गए होते. तुम्हारा शुक्रिया के: हम से बेनियाज़ रहे. नज़र मिलाते तो दिल में समा गए होते. हमें उम्मीद नहीं ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से कोई. नमाज़ पढ़ते तो तुमको न पा गए होते. हमें ख़ुदाई से परहेज़ है, ग़नीमत है. जुनूँ तो वो: है के: हस्ती मिटा गए होते. समझ सके न कभी अहले सियासत हमको. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. 5 माह पहले. अर्श...
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साझा आसमान : 12/15/12
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साझा आसमान. साझा आसमान हर उस पंछी की विरासत है जो आज़ाद है और उड़ान भरना चाहता है. शनिवार, 15 दिसंबर 2012. दीवाने लोग हैं . दीवाने लोग हैं जो हमको दीवाना समझते हैं. जुनूं - ए - क़ैस को परियों का अफ़साना समझते हैं. अगर दिल में बसे हैं वो: तो मग़रिब क्या है मशरिक़ क्या. के: हम तो बुतकदे को भी सनमख़ाना समझते हैं. हमारी शाइरी पे जो नज़र रखते हैं बरसों से. उम्मीद- ओ- सब्र का हमको वो: पैमाना समझते हैं. मगर हम इस से बेहतर फ़ौत हो जाना समझते हैं. सुरेश स्वप्निल. शब्दार्थ:. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. कबीर जयंत...अर्...