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ज़िन्दगी की आरज़ू: January 2012
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ज़िन्दगी की आरज़ू. मैं एक अदना सा 'सलीम'. वक़्त बेपरवाह है. वक़्त के साथ चलो. कोई क़िस्सा न बनो. खुद में हालात बनो. वक़्त के साथ चलो. बज़्म में शोर नहीं. दिल पे कोई ज़ोर नहीं. अपना कोई ठौर नहीं. वक़्त के साथ चलो. नक़ाब-दर-नक़ाब है वो. फ़िर भी एक ख़्वाब है वो. जाने कैसा जनाब है वो. वक़्त के साथ चलो. इक ज़रा हाथ बढ़ा. दो क़दम साथ बढ़ा. जज़्बे हँसी में न उड़ा. वक़्त के साथ चलो. आईना टूट गया. साथ जो छूट गया. मुझसे वो रूठ गया. वक़्त के साथ चलो. पढ़ी न गई अपनी ताबीरें. कौन मुकीम. बुलाया. क्यूँ. Islamic cum Soc...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला: Saleem Khan
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ज़िन्दगी की आरज़ू. अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला: Saleem Khan. अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला. मुझसे जो शख्स मिला सिर्फ़ बेवफ़ा मिला. मैंने ज़िन्दगी भर उसे अपना हबीब ही समझा. उसको ये क्या हुआ कि वो रक़ीबों से जा मिला. उम्र भर जिसके साथ रहे मोहब्बत की राह में. उसी का पता ज़िन्दगी भर मैं पूछता मिला. दोस्त बन बन के मुझे दर्द देते रहे सभी. अपनों के बीच कुछ ऐसा सिलसिला मिला. 0 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. पुरानी पोस्ट. हमारी अन्जुमन. All India Bloggers' Association. लख़...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: कौन आता है यहाँ इस दर के लिए::: Saleem KHAN
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ज़िन्दगी की आरज़ू. कौन आता है यहाँ इस दर के लिए: : Saleem KHAN. बुलाया. आंसुओं. अंधेरों. क्यूँ. क्यूँ. हंगामा. फ़र्क़. रिश्ता. मुश्तक़बिल. 4 टिप्पणियाँ:. ने कहा…. इक ज़रा साथ मिले तो कह दूं. कितना उससे मैं प्यार करता हूँ. तरस गया हूँ मैं उस मंज़र के लिए. बेसबब बात यूँ उससे उलझ सी गयी. मुश्तक़बिल की तस्वीर बदल सी गयी. एक बूँद न मिली मेरे समंदर के लिए. 19 जनवरी 2012 को 6:58 pm. सलीम ख़ान. ने कहा…. 19 जनवरी 2012 को 7:06 pm. ने कहा…. Bahut badhiya rachana hai! 19 जनवरी 2012 को 7:39 pm. नई पोस्ट. ज़...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: May 2012
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ज़िन्दगी की आरज़ू. लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है: Saleem Khan. मेरे दम से ये पूरी क़ायनात है. लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है।. इश्क के सिवा काम क्या बचा. सुकून छिन गया दिल बेताब है।. क़ब्ज़ा-ए-दिल तुझसे जो जुड़ गया. लोग कहने लगे अरे कुछ तो बात है।. तेरी राह पे जबसे मैं चल पड़ा. उसूल की जगह निभाए जज़्बात है।. होश अब कहाँ दिल-ए-बेक़रार में. खुद पे अब कहाँ अख्तियारात है।. खो गया हूँ मैं अपने धुन में ही. अब कहाँ पता दिन या रात है।. 0 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. 0 टिप्पणियाँ:. नई पोस्ट. एक बार आरज़...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर: Saleem Khan
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ज़िन्दगी की आरज़ू. क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर: Saleem Khan. क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर. क्यूँ फूंक के बैठा हूँ खुद मैं अपना घर. ग़म ज़ेहन में पसरा है तारिक़ी का पहरा है. न रास्ते का है पता अब मैं जाऊं किस डगर. आरज़ू मेरे दिल की क्यूँ तमाम हो गयी. ज़िन्दगी जाएगी किधर नहीं है कुछ ख़बर. अक्स मेरा अब खुद हो गया खिलाफ़ मेरे. चेहरा मेरा खुद क्यूँ नहीं आता है नज़र. तेरा ही सहारा है ऐ खुदा, कर दे मदद. मेरी तरफ़ भी. कर दे रहम की नज़र. 2 टिप्पणियाँ:. ने कहा…. ने कहा…. नई पोस्ट. एक बार...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: दुआएं तेरी क्यूँ हो गयीं बेअसर...: Saleem Khan
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ज़िन्दगी की आरज़ू. दुआएं तेरी क्यूँ हो गयीं बेअसर.: Saleem Khan. मंज़िले-जाविदाँ की पा सका न डगर. पूरा होके भी पूरा हो सका. दुआएं तो तुने भी की थी मेरे लिए. दुआएं तेरी भी क्यूँ हो गयीं बेअसर. मुश्किल कुछ भी नहीं इस जहाँ में. साथ तेरा जो मिल जाए मुझे अगर. दिखा जब से मुझे सिर्फ तेरा ही दर. तब से ही भटक रहा हूँ मैं दर ब दर. जब तू समा ही गयी है मेरी नज़र में. तो अब क्यूँ नहीं आ रही है मुझे नज़र. 3 टिप्पणियाँ:. ने कहा…. तब से ही भटक रहा हूँ मैं दर ब दर. 27 जून 2011 को 6:15 pm. ने कहा…. नई पोस्ट. एक बार ...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे: SALEEM
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ज़िन्दगी की आरज़ू. दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे: SALEEM. दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे. सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे. किसी को जो जब अपने दिल से लगाओगे. सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे. जिसके नाम से ज़िन्दा है तुम्हारी दुनियाँ. उसी को तुम अपने से दूर. मसलके-इश्क़ के झंडाबरदारों को तुम 'सलीम'. अपने मसलक के खुदा से लड़ते बहुत पाओगे. 0 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. पुरानी पोस्ट. हमारी अन्जुमन. World's First Islamic Community blog in Hindi. लोकप...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है: Saleem Khan
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ज़िन्दगी की आरज़ू. लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है: Saleem Khan. मेरे दम से ये पूरी क़ायनात है. लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है।. इश्क के सिवा काम क्या बचा. सुकून छिन गया दिल बेताब है।. क़ब्ज़ा-ए-दिल तुझसे जो जुड़ गया. लोग कहने लगे अरे कुछ तो बात है।. तेरी राह पे जबसे मैं चल पड़ा. उसूल की जगह निभाए जज़्बात है।. होश अब कहाँ दिल-ए-बेक़रार में. खुद पे अब कहाँ अख्तियारात है।. खो गया हूँ मैं अपने धुन में ही. अब कहाँ पता दिन या रात है।. 0 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. ये सुन कर आ...लोक...
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ज़िन्दगी की आरज़ू: March 2012
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ज़िन्दगी की आरज़ू. देखें क्या बचा अब हुस्न यार में. दर्द उसने दिया मुझे फ़स्ल-ए-बहार में. चैन उसने ले लिया मेरे एक क़रार में. मेरे दम से अब तो ये क़ायनात है. शब्-ओ-माहताब हैं अख्तियार में. जुदाई का मज़ा भी क्या अजीब है. ऐसा मज़ा कहाँ विसाल-ए-यार में. आओ एक बार और आ जाओ. देखें क्या बचा अब हुस्न यार में. जीस्त की स्याह मेरी दास्तान में. कुछ नहीं बचा दिल-ए-दाग़दार में. कैसे गया उलझ 'सलीम' प्यार में. हाथ काँटों में और पाँव अँगार में. 1 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. All India Bloggers' Association.
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