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कर्मनाशा: चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे : रीता पेत्रो की कवितायें
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शनिवार, 23 मार्च 2013. चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे : रीता पेत्रो की कवितायें. रीता पेत्रो की पाँच कवितायें. अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह). ०१- तुम्हारे बिना. इस घर में. जो है खाली और जमाव की हद तक ठंडा. मुझे देती है गर्माहट. केवल तुम्हारी जैकेट।. ०२- मत चाहो प्रतिज्ञायें. मुझसे मत चाहो प्रतिज्ञायें. चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे. मुझसे मत चाहो सतत प्रेम. पास ही दुबकी पड़ी हैं. अनंतता और मत्यु की छायायें. मत चाहो कि मैं कहूँ अनकहे शब्द. चाहो तो बस इतना. हमने पी कॉफ़ी. ०५- पूर्णत्व. कवितì...
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बेदखल की डायरी: 11.09
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Monday, 9 November 2009. सींखची गुलाब और विलायती चांद की मनमोहक तस्वीरें. Posted by मनीषा पांडे. आ बैल मुझे मार. और अनुराग. आ धमके।. मैंने संभावित खतरे को पहले ही सूंघ लिया और तपाक से बोली, “दोनों।”. 15 मिनट इसी पर कटबहसी हुई।. 8220;अरे वो दूसरी मेरी नहीं किसी और की है।“”. 8220;किसकी? मैंने आव देखा न ताव। एक नाम उछाल दिया, मेरे हिसाब से जिससे सब खौफ खाते हैं।. 8220;किताब प्रमोद. की है।”. Posted by मनीषा पांडे. Friday, 6 November 2009. बचा रह जाता है. कितना तो सुनना था. एक नदी थी. बस यूं ह...बस एक द&#...
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जनपक्ष: फ़लस्तीन-इजराइल संघर्ष – इतिहास की क़ैद में फंसा भविष्य
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. मंगलवार, 9 सितंबर 2014. फ़लस्तीन-इजराइल संघर्ष – इतिहास की क़ैद में फंसा भविष्य. मेरा यह लेख आग़ाज़ के ताज़ा अंक में प्रकाशित है. दखल विचार मंच की मासिक पत्रिका. प्रथम विश्व युद्धोत्तर काल. पहला अरब-इजराइल युद्ध. डेरा यासीन हत्याकांड की स्मृति में इजिप्ट द्वारा ज़ारी डाक टिकट. दूसरा अरब-इजराइल युद्ध. पी एल ओ का उदय. पहला इंतिफादा. समझौतों की ओर : ओस्लो और आगे. रेबिन, क्लिंटन और अराफात. फिर तनाव. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. मेर&#...
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जनपक्ष: एक कहानी राजा-रानी की
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. बुधवार, 17 नवंबर 2010. एक कहानी राजा-रानी की. भाई मनोज पटेल का यह अनुवाद आज सृजनगाथा. से साभार. पैसा सबकुछ कर सकता है. लेकिन यह लिखाना क्या तुम्हें ही सूझा था कि : पैसा सबकुछ कर सकता है? शहजादे ने महसूस किया कि शायद वह हद पार कर गया था. शहजादे को लग गया कि वह कायदे से फंस चुका था. मुझे माफ़ कीजिए हुजूर. मैं फ़ौरन उन लफ़्ज़ों को म&...तो क्या हुआ? तुम होश में तो हो! सुनार चिल्लाया. मैनें कहा न कल! बूढ़ी औरत ने शहजì...राजा न...अगले...
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जनपक्ष: इस मुरदा-घर में उम्मीद की किरणें कहाँ से आएँगी?
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. रविवार, 1 सितंबर 2013. इस मुरदा-घर में उम्मीद की किरणें कहाँ से आएँगी? चित्र यहाँ. से साभार. 8216; इस से रिफ्रेश होकर लड़के फिर पूरे जोश से काम करते हैं. हाँ एक और चीज़ थी उनके पास काम के बाद रिलेक्स होने के लिए – ड्रग्स और शराब! 8216; साली बहुत सुन्दर लगाती थी. बाल गंगाधर तिलक. 1961 के अंक के पेज़. 5 पर कहते हैं. आज इस प्रयोग को व्याभिचार कहा जायेगा. इसी के साथ उस दौर की औपनिवेशिक आर्थ&...उत्तर प्रदेश. मध्यप्रदेश. मुक्ति ...इस अमानव&...
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कर्मनाशा: December 2007
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सोमवार, 31 दिसंबर 2007. कर्मनाशाः एक अपवित्र नदी? हां, एक सवाल यह भी कौंधता था कि गंगाजी की तर्ज पर कर्मनाशाजी कहने की कोशिश करने से डांट क्यों पड़ती है? कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो,. जिन्दगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह्. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. लेबल: किस्सा-कथा. बुधवार, 12 दिसंबर 2007. शुक्र है स्मृतियों पर नहीं जमी है बर्फ. सर्दियों में शहर. शहर में सर्दियों का मौसम है. हवा में नमी है. धूप में खुशनुमा उदासी है. और शहर चुपचाप सो रहा है।. सो रही है झील. जो जाग रही है. आजकल लगभग आधा शहर.
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जनपक्ष: संघ की देशभक्ति : कुछ ऐतिहासिक तथ्य
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. बुधवार, 15 अगस्त 2012. संघ की देशभक्ति : कुछ ऐतिहासिक तथ्य. वैसे यह भी की यह 'जनपक्ष' की तीन सौवीं पोस्ट है.आप सबके बिना यह सफ़र मुमकिन न था. इस सफ़र पर अगली पोस्ट में कुछ और. गोलवलकर ने राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन से दूर रहने को सही ठहराया. वह सभी समुदायों और वर्गों के एक संयुक्त मुक्ति संघर्ष को. 8216; और कुछ नहीं अपितु विराष्ट्रीकरण. 8217; कहने की हद तक जाते हैं। मिले. 8216; राष्ट्रीय. वास्तविक. 8216; देशभक्त. 8217; हैं. 9 मार्च. स्तर&...
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जनपक्ष: A tribute to Bhisham Sahni
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. रविवार, 9 अगस्त 2015. A tribute to Bhisham Sahni. साभार : द हिन्दू. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: Bhisham Sahani. कोई टिप्पणी नहीं:. एक टिप्पणी भेजें. स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). सवाल दुनिया को बदलने का है…. जो घर फूंके आपना…. मनोज पटेल. विजय गौड़. 6 माह पहलí...
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जनपक्ष: मार्क्सवाद के मूलभूत सिद्धांत - १
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. शुक्रवार, 9 मार्च 2012. मार्क्सवाद के मूलभूत सिद्धांत - १. पिछले दिनों मैंने मार्क्सवाद के मूलभूत सिद्धांतों पर एक ले खमाला लिखने का प्रस्ताव. प्रस्तावना. मार्क्सवाद बीसवीं सदी में दुनिया के. क्या यह सही नहीं कि हमने उन्हें दुष्प्रचार के लिए पर्याप्त मौके उपलब्ध कराये? हमें भूलना नहीं चाहिए कि मार्क्स ने अपने जीते जी अपने कुछ अन...साथ ही, इस रौशनी में मार्क्सवाद के आलोच...मेरी नज़र में कम्यूनि...एमिल बर्न्स. इतनी बातोæ...9 मार...
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जनपक्ष: वंदना और भर्त्सना से इतर आंबेडकर की तलाश
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जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. शनिवार, 18 अप्रैल 2015. वंदना और भर्त्सना से इतर आंबेडकर की तलाश. संजय जोठे. संजय जोठे. युवा विचारक और कवि हैं. ज्योतिबा फुले पर उनकी एक किताब हाल ही में दख़ल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: अम्बेडकर. संजय जोठे. 2 टिप्पणियां:. 18 अप्रैल 2015 को 12:42 pm. सार्थक चिंतन प्रस्तुति. उत्तर दें. उत्तर दें. नई पोस्ट. एक सच्च...
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