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जिंदगी की राहें: 05/11/15
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Monday, May 11, 2015. दो क्षणिका. खाली कनस्तर सी हो गयी. तुम्हारी स्मृतियाँ, झूठी - सच्ची. रखूं किसी अलमारी में, या. या, कबाड़ी वाले को ही न बेच दूं? ऐसे ही एक ख्याल :). मेरी हथेली में. है कटी-फटी रेखाएँ. जीवन, भाग्य और प्रेम की. पर है सिर्फ एक. खुशियों का आभासी द्वीप. अंगूठे के नीचे. ठीक बाएं कोने पर! उम्मीदें जवां हैं :). प्रस्तुतकर्ता. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: अलमारी. क्षणिका. Subscribe to: Posts (Atom). मुकेश कुमार सिन्हा. मेरे ब्लॉग. जिंदगी की राहें. मन के पंख. जाड़े की श&#...Kalam ya ki talwar:.
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जिंदगी की राहें: 06/09/15
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Tuesday, June 9, 2015. मेघ की आहट में. मचलता मोर. मेरे रंगीले सपने. जैसे मोर के सुनहले पंख! मेरी उम्मीद. जैसे छोटा सा उसका. तिकोना चमकता मुकुट! मेरी वास्तविकता. नाचते मोर के भद्दे पैर! नजर पड़ी जैसे ही. उन कुरूप पैरों पर. रुक गया नाचना थिरकना. उम्मीद सपने और वास्तविकता के साथ! मैं मोर नहीं उसका भद्दा पैर! प्रस्तुतकर्ता. इस संदेश के लिए लिंक. Subscribe to: Posts (Atom). कविता कोश पर मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायें. मुकेश कुमार सिन्हा. मेरे ब्लॉग. जिंदगी की राहें. मन के पंख. Kalam ya ki talwar:. कल अपनी...
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जिंदगी की राहें: 06/26/15
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Friday, June 26, 2015. क्षणिकाएं. मेरी राख पर. जब पनपेगा गुलाब. तब 'सिर्फ तुम' समझ लेना. प्रेम के फूल! इन्तजार करूँगा सिंचित होने का :). मेरी इच्छाएं रहती है हदों में,. पर नींद में कर जाता हूँ. सीमाओं का अतिक्रमण! हदों के पार :). कल रात ख़्वाबों के बुने स्वेटर. पर भोरे भोरे एक फंदा उतरा. सारे सपने ही उधड़ते चले गये. चलो गर्मी आ गयी इस रात सपनों का पंखा चलेगा. प्रस्तुतकर्ता. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: इच्छा. क्षणिकाएं. Subscribe to: Posts (Atom). मुकेश कुमार सिन्हा. मेरे ब्लॉग. मन के पंख. जाड़&...कल अपन...
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जिंदगी की राहें: 05/02/15
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Saturday, May 2, 2015. प्यारी ठिठोली. ओन ऑफ करते. पिट पिट की आवाज के साथ स्विच. रिमोट से भर भर करते हुए. स्वैप करते टीवी चैनल्स. नल के पानी के नीचे. काटते या रोकते जलधारा. दूर बैठ कर रिमोट से ही. कार के दरवाजे की बीप बीप सुनते. गुलाब के फूल की पंखुरियां. एक उसके नाम एक मेरे. छोटे छोटे कंकडो से. टिप टिप निशाना बांधते खनक के साथ. मोबाईल के अक्षर. बिना सोच के डाल देते स्टेटस पर. शायद बचपना है. या उँगलियाँ भी जता रही. प्यार भरी बेचैनियाँ! प्यारे दिल की बात! ऐवें ठिठोली :-). लेबल: गुलाब. मन के पंख. जाड&...
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जिंदगी की राहें: 07/28/15
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Tuesday, July 28, 2015. बुद्धं शरणम् गच्छामि.". मैं तुम पर खड़ा रहने के बदले. चाहता हूँ तुम्हारे गोद में सोना,. चाहता हूँ महसूसना. चाहता हूँ मेरे देह में. लिपटी हो मिटटी. जहाँ तहां घास और खर पतवार भी. और फिर, वही पड़े निहारूं. नीली चमकीली कोंपल से भरी दरख्ते,. और उस पर बैठी काली मैना! मेरे चेहरे पर, हो लगी. जीवनदायिनी नम कीचड़. उसके सौंधेपन में. खोया हुआ मैं! ताकूं नीले गगन को. और दिख जाए दूर उडती हुई. झक्क सफ़ेद, घर लौटते. हंसो का समूह! एक समूह में! ठीक वैसे ही न. ओ मेरी वसुधा. संवेदना. मन के पंख. उज्...
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जिंदगी की राहें: ~:kalam ya ki talwar:~
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Wednesday, June 4, 2008. Kalam ya ki talwar:. Aaj ke paripekshya main,. Koi tumse puchhe ki. Kalam ya ki talwar? Bina soche, samjhe. Beshak dil ke ek kone seaawaj aayegi. Kalam na ki talwar! Beshak kalam ki apnee takat hai. Beshak kalam kutchh bhi kah sakta hai. Par duniya ko ek hi jhatke main. Apne aur mor sakta hai talwar! Aaj koi bhi vidwan apne kalam. Ki takat se duniya ko loha manwa sakta hai. Par phir bhi koi bhi takatwar ya Hitlar. Duniya ko jhuka dega sirf dikha ke talwar! Kalam aapko vidwan, Kavi.
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जिंदगी की राहें: 07/23/15
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Thursday, July 23, 2015. एक बूँद जिंदगी के. कह कर डाल देते हैं. बच्चे के मुंह में, पोलियो ड्राप. बेचारा नन्हा कसैले से स्वाद के साथ. जी उठता है ताजिंदगी के लिए! कुछ ऐसा ही. एक कश लिया था. रेड एंड वाइट' के. बिना फ़िल्टर वाले सिगरेट का. बहुत अन्दर तक का. यह सोच कर कि. एक कश उसके नाम का! और, फिर. जैसे ही उड़ाया, होंठ गोल कर के. धुएं का छल्ला. धूमकेतु सी "तुम". बहती नजर आयी, दूर तक. एक बार तो सोचा. ये विक्रम वाली बेताल कैसे. भूतनी कही की! कुछ भी, कहीं भी, कैसे भी. चिढ़ती रहो . जिंदगी. धूमकेतु. जाड़&...Bina soch...
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जिंदगी की राहें: 03/23/15
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Monday, March 23, 2015. ब्लॉग यात्रा. चूँकि ब्लॉग बना तो पोस्ट भी जरुरी है! और फिर जिस भी ब्लॉग पर उन दिनों नजर पड़ी वो कवितायें ही लिखते थे! इस वजह मन में ये धारणा बन गयी की ब्लॉग पर सिर्फ कवितायें ही पोस्ट किये जाते हैं! हम भी तुकबन्दियाँ जोड़ने लगे! कुछ मेरे मेंटर या हमदर्द उसपर वाह या बहुत खूब लिखते, सीना चौड़ा हो जाता! फिलिंग अशोक वाजपेई जैसी जन्म ले ली! D साहित्य के पुरौधा ही बन बैठे! हँसते मुस्कुराते रोते सफ़र चलता रहा! अगर भिखारी को एक हजार का नोट पकड़ा ...हमने भी दोस्ती ...आइयेगा न! जिंदग...कवि...
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जिंदगी की राहें: 03/30/15
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Monday, March 30, 2015. पुरुष मन और बच्चियां. छोटी छोटी. नन्ही, खुबसूरत व प्यारी सी बच्चियां! पार्क में, घर के सामने. खिलखिलाती दौड़ती है. साथ ले जाती मन को. दुनियावी विसंगतियों से दूर. भुला देती है हर स्याह सफ़ेद! कुछ पलों के लिए. परियों के देश सा. अहसास देता है ये पार्क. जब चंचल, खुशियों भरी हंसी. ठुनकन व गुस्सा. सब गड्डमड्ड करके. एक साथ खिलती है कलियाँ. और, बच्चियां! चाहता है मन. भूलूं उम्र के रंग. भागूं खेलूं उनके संग. जी लूं सतरंगी बचपन! उफ़, पर ये हर दिन की न्यूज. फिर उनसे उपजते. हाँ सच . कवित&#...
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जिंदगी की राहें: 03/11/15
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Wednesday, March 11, 2015. बीडी बनाते बच्चे. मेरे गाँव और उसके आसपास. बीडी बनाते दिख जाते हैं. ढेरों छोटे-छोटे बच्चे. उनकी छोटी-छोटी उँगलियाँ. बड़ी तेजी से. भर रही होती है. तेदु के सूखे पत्ते में. तम्बाकू! इतनी तेज तो. वो खा भी नहीं पाते रोटी. झट मोड़ कर सूखा पत्ता. भर कर सूखी तम्बाकू. बांधते हुए धागे से. सहेजते हैं, सजाते हैं. लम्बी लम्बी बीड़ियाँ! चमकती आँखों से. बताते हैं साथी को. आज बनाई कुल. कितनी सारी बीड़ियाँ! उन्हें कहाँ पता होता. इससे जलता है फेफड़ा. इस फेफड़े को जलाने. की तरकीब को. ३० नवम्बर...