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सोमवार, 24 मई 2010. बीते हुए को लेकर बिताने वाले समय के साथ. भावी योजनाओं के अंतर्गत कुछ प्रश्न भी रखे जा सकते हैं. मुख्यतः जो आलेखों के मध्य किसी न किसी माध्यम से उपस्थित रहेंगे. लेखन में विचारधारागत लेखन की प्रतिबद्धता का टूटना और परिणामतः. समकालीन साहित्य का सामाजिक सरोकार क्या हो सकता है? तथा ऐसे ही कई बिन्दुओं पर आलेख प्रस्तुत करने की योजना होगी. निशांत कौशिक. ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो. बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें. कोड़ा खाने,. यही बेहतर. अधिक दाम लेकर चुप रहना! Posted by ताहम. Links to this post.

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सोमवार, 24 मई 2010. बीते हुए को लेकर बिताने वाले समय के साथ. भावी योजनाओं के अंतर्गत कुछ प्रश्न भी रखे जा सकते हैं. मुख्यतः जो आलेखों के मध्य किसी न किसी माध्यम से उपस्थित रहेंगे. लेखन में विचारधारागत लेखन की प्रतिबद्धता का टूटना और परिणामतः. समकालीन साहित्य का सामाजिक सरोकार क्या हो सकता है? तथा ऐसे ही कई बिन्दुओं पर आलेख प्रस्तुत करने की योजना होगी. निशांत कौशिक. ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो. बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें. कोड़ा खाने,. यही बेहतर. अधिक दाम लेकर चुप रहना! Posted by ताहम. Links to this post.
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ताहम | taaham.blogspot.com Reviews

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सोमवार, 24 मई 2010. बीते हुए को लेकर बिताने वाले समय के साथ. भावी योजनाओं के अंतर्गत कुछ प्रश्न भी रखे जा सकते हैं. मुख्यतः जो आलेखों के मध्य किसी न किसी माध्यम से उपस्थित रहेंगे. लेखन में विचारधारागत लेखन की प्रतिबद्धता का टूटना और परिणामतः. समकालीन साहित्य का सामाजिक सरोकार क्या हो सकता है? तथा ऐसे ही कई बिन्दुओं पर आलेख प्रस्तुत करने की योजना होगी. निशांत कौशिक. ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो. बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें. कोड़ा खाने,. यही बेहतर. अधिक दाम लेकर चुप रहना! Posted by ताहम. Links to this post.

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ताहम: बीते हुए को लेकर बिताने वाले समय के साथ

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सोमवार, 24 मई 2010. बीते हुए को लेकर बिताने वाले समय के साथ. भावी योजनाओं के अंतर्गत कुछ प्रश्न भी रखे जा सकते हैं. मुख्यतः जो आलेखों के मध्य किसी न किसी माध्यम से उपस्थित रहेंगे. लेखन में विचारधारागत लेखन की प्रतिबद्धता का टूटना और परिणामतः. समकालीन साहित्य का सामाजिक सरोकार क्या हो सकता है? तथा ऐसे ही कई बिन्दुओं पर आलेख प्रस्तुत करने की योजना होगी. निशांत कौशिक. ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो. बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें. कोड़ा खाने,. यही बेहतर. अधिक दाम लेकर चुप रहना! Posted by ताहम. बिकी ह...यार...

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ताहम: आलोचना के अधूरे प्रतिमान

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गुरुवार, 6 मई 2010. आलोचना के अधूरे प्रतिमान. व्यवहारिक बिंदु "छत्तीसगढ़ आज नक्सल आतंक का गढ़ बना हुआ है". आए दिन उनके द्वारा किये जाने वाले अत्याचार". या इसी तरह की तमाम अखबारी. है, किन्तु अब जो होगा वह शर्मनाक. जैसे शब्दों से ऊपर होगा. निशांत. Posted by ताहम. अशोक कुमार पाण्डेय. ने कहा…. 6 मई 2010 को 8:37 pm. सुशीला पुरी. ने कहा…. सही लिखा आपने . 6 मई 2010 को 9:47 pm. डॉ .अनुराग. ने कहा…. 7 मई 2010 को 1:29 am. रवि कुमार, रावतभाटा. ने कहा…. अशोक जी कह ही गये हैं. 7 मई 2010 को 8:01 am. नई पोस्ट. के ब...

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ताहम: पार्क

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गुरुवार, 18 मार्च 2010. कविता के बहुत सारे आयामों में तृष्णा, वेदना,. सजगता और संवेदनशीलता. होना कविता को उसके मूल अर्थ से जोड़ना होता है. कविता मूलतः. दो आयामों में विभक्त है,. और इसका पहला आयाम जो. प्रात्ययिक. सामाजिक और सभी महत्वपूर्ण परिस्थितिओं को मद्देनज़र रखकर ही कविता को सामने आने का कारण देता है।. आज इस रोगग्रस्त संझा. पार्क के एक कोने में. इस दिन भर तपे पत्थर पर बैठकर. सोचता हूँ मैं. कि तुमने अच्छा नहीं किया. सोचता हूँ मैं. मुझे कितनी सहज लग रही थी. अब सोचता हूँ. और सोचा भी. बाज़ार क&...पार...

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ताहम: शीर्षकहीन कविता

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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010. शीर्षकहीन कविता. हीन कविता"।. पहुँच से बाहर नहीं है मेरे. कुछ भी. लेकिन जब मैं पहुँच जाता हूँ वहां. तो बाहर हो जाता हूँ उस ' कुछ भी' से. स्वप्न कुछ नहीं होता. मगर कुछ भी हो जाता है मेरे लिए एक स्वप्न! अपने लिए कोई सटीक उदाहरण तलाशता मैं. भटक जाता हूँ. जान बूझकर. उस ' प्रसन्न अवस्था ' में जाने से पहले. धीरे से एक ठुनगी मार कर गिरा लेता हूँ. अपना बना - बनाया घर. मारे डर के. कि कहीं मैं बेरोजगार न हो जाऊं. उन दिनों मैं. कुछ ठहर सा गया था. और एक दिन. घर' भी नहीं. Posted by ताहम.

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ताहम: नशे में आत्मकथा

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बुधवार, 24 मार्च 2010. नशे में आत्मकथा. कंसेप्ट. शब्दों. प्रक्रिया. 2404; कुछ. सांस्कृतिक. साम्राज्यवाद. स्थिति. 2404; और इस रचना का मूल कारण भी संस्कृति के पक्ष में होने वाले भिन्न भिन्न अनुमान और उनकी सामाजिक भयावहता ही है. भूल. बीमारी. प्रस्तुत. समकालीन वक़्त. नया संस्करण है. बेवजह की अनुभूतियों से. भर देने को तत्पर. बजते हुए शून्य को. नेपथ्य में कोई हंगामा नहीं है. सारी छायाएं. अब सामने आकर. कर रही हैं. तर्क के नए प्रतिमानों के साथ. मुसलसल प्रतिवाद. सुदूर पूर्व में. पर शिकन रखे. Posted by ताहम. हत&#2...

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यरूशलम से समुद्र तक और वापसी – येहूदा आमीखाई | शिरीष कुमार मौर्य

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अन न द क अन ष ग. यर शलम स सम द र तक और व पस – य ह द आम ख ई. यर शलम स सम द र तक और व पस. 1 ब द यर शलम स. ब द यर शलम स ख ल सम द र क तरफ़. म न क स वस यत क ख लन क तरफ़. म गय प र न सड़क पर. र मल ल स क छ पहल. सड़क क क न र अभ तक खड़ ह. ऊ च -ऊ च अज ब-स व म नघर. व श वय द ध म आध तब ह. वह व व म न क इ जन क ज च क य करत थ. ज नक श र च प कर द त थ स र द न य क. महज उड़न भर क उड़न क ई छ प ख ज न ह गय थ तब. म र प र ज वन क ल ए! म य त र करत ह. व बच रहत ह हम श. यह बह त आस न ह –. बढ़त ह ए प ड़ और घ स स भर ण क पह ड़ ढल न. और द सर तरफ़.

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सुनो भाई गप्प-सुनो भाई सप्प – शिवराम | सृजन और सरोकार

https://ravikumarswarnkar.wordpress.com/2013/08/09/सुनो-भाई-गप्प-सुनो-भाई-सप्

स जन और सर क र. व भ न न कल -व ध ओ म रव क म र, र वतभ ट. अपन ब र म. स न भ ई गप प-स न भ ई सप प – श वर म. अगस त 9, 2013. स न भ ई गप प-स न भ ई सप प. मनम हन क न व म , छ द पच स हज र. तबह त र ठ ठ स , ब र-ब र बल ह र. नद क क स मत फ ट. स न भ ई गप प-स न भ ई सप प. कबह द ख व न न त , कबह ख ज व क ख. नयन स नयन लड व. प रम बढ त ह ज व. नयनन क र स रह इतर य. स ज’ म मन व ड ब ज य. स न भ ई गप प-स न भ ई सप प. म य ब रह म अ ग लग. ब रह म म य म रम. ब रह म क म य बरन न ज य. ब रह म क म य रह ल भ य. स न भ ई गप प-स न भ ई सप प. च ल च ल चल रह.

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टाइगर हावेन | जंगल कथा

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Just another WordPress.com weblog. Laquo; पदम भ षण पदम श र ब ल अर जन स ह. ट इगर ह व न. जनवर 6, 2010 Krishna Kumar Mishra. इस ल ए उस र ज ट इगर ह व न खण डहर स बस धर श ह ह न क त य र द ख ई द रह थ , और स ह ल ठहर ह ई नज़र आ रह थ. इस वर ष ब ल क तब यत खर ब ह न क ब वज द व ब ढ़ ग जर ज न क ब द द ब र यह आय , और कह क लगत ह , म र स थ ह ट इगर ह व न भ नष ट ह ज य ग! वह अचम भ त थ. व इल ड ल इफ़ प र ट क शन स स इट क प रम ख ब ल न ड र इट न म झ स द स भ जकर ख स ज ह र क , क ब ल स हब क क अन त म व द ई म वन-व भ ग न महत भ म क अद क.

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सर्वाधिकार | खामोश दरिया

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शब द स म ज दग क झलक द ख त ह .म सच च द ल क बदतम ज इन स न ह .म र भ वन ए ह .उज गर ह ह ज त ह .सच च ई न कल ह आत ह . पत र व यवह र. म र पर चय. Republishing of content of the blog is highly prohibited and will invite legal actions. Please mention the name of Author while using or republishing the matter from this blog. एक उत तर द जव ब रद द कर. Enter your comment here. Fill in your details below or click an icon to log in:. ईम ल (आवश यक). Address never made public). न म (आवश यक). दर पण क ट कड. न र -एक व व चन.

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2012 in review | खामोश दरिया

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शब द स म ज दग क झलक द ख त ह .म सच च द ल क बदतम ज इन स न ह .म र भ वन ए ह .उज गर ह ह ज त ह .सच च ई न कल ह आत ह . पत र व यवह र. म र पर चय. The WordPress.com stats helper monkeys prepared a 2012 annual report for this blog. Here’s an excerpt:. 600 people reached the top of Mt. Everest in 2012. This blog got about 8,400. Views in 2012. If every person who reached the top of Mt. Everest viewed this blog, it would have taken 14 years to get that many views. Click here to see the complete report. क एक उत तर.

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इन रिश्तों का सामान ! | खामोश दरिया

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अब कुकृत्य कौन सा बाकी है | खामोश दरिया

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शब द स म ज दग क झलक द ख त ह .म सच च द ल क बदतम ज इन स न ह .म र भ वन ए ह .उज गर ह ह ज त ह .सच च ई न कल ह आत ह . पत र व यवह र. म र पर चय. I dedicate this poem to the people of the world who feel for the humankind,and to the blessings of Geeta Madam and Vinay Sir,and to the love of the people who consider that I could write, AND to the inspiration of terrific poetry of Ramdhari Singh Dinkar ji and Harivansh Rai Bachchan ji. I am Happy! 8212;————————-. ज ज त क द भ ल ए ल ज घ ठ क चलत ह. क य द नकर अब अस त न ह त...

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सिर्फ सेहत के सहारे जिन्दगी कटती नहीं | charcha

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الخميس، 18 سبتمبر، 2014. كتابة مدونة حول هذه المشاركة. 8207;المشاركة في Twitter. 8207;المشاركة في Facebook. 8207;المشاركة على Pinterest. الاشتراك في: الرسائل (Atom). عرض الملف الشخصي الكامل الخاص بي. نموذج Simple. تدعمه Blogger.

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سیدفرهاد صالحی کارمند بانک ملی ایران شاغل در شعبه حضرتی قم 2706. قاط زدن یا قات زدن. پرتقال یا پوست پرتقال؟ برنامه تبلیغاتی نامزدهای ریاست جمهوری 1392. تیزر بانک ملی به سبک فیلم ماتریکس. دوست عزیزم آقای عبدالرضا شکری. سایت بانک ملی ایران. دوست عزیزم آقای رضا علیئی. بیشه ، عاشقان ادبیات. قاط زدن یا قات زدن. نویسنده: - ۱۳٩٢/۱۱/٧. وقتی می گویند یارو قات زده یعنی چی؟ همیشه فکر می کردم. از ویکی‌پدیا، دانشنامه آزاد. قات گیاه گلداری است که بومی بخش گرمسیری شرق افریقا و شبه جزیره عربستان می‌باشد. تو یه جمع ۲۰-۳۰...

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Thursday, July 31, 2014. Suasana Hari Raya 2014. Mohd Isa Abdul Shukor. Subscribe to: Posts (Atom). The World Will Be Right. When the man is Right. Suasana Hari Raya 2014. Mohd Isa Abdul Shukor.

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