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जीवन जैसा मैंने देखा

जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Friday 1 February 2008. पद चिह्नों पर नहीं चलूँगी. पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी. यह आदेश नहीं मानूँगी. चरण-चिह्न हो अलग हमारे. इतना ही अनुरोध करूँगी. पद-चिह्न के साथ चलूँगी. उनके चारों ओर चलूँगी. पूजा भी उनकी कर दूँगी. आदर-मान सदा मैं दूँगी. पर इन पर मैं चलूँ प्रिये. इतना तो कर नहीं सकूँगी. तुम भी इसी जगत के वासी. मेरा भी अस्तित्व अलग है. अपने-अपने चिह्न के संग. हम दोनों एक साथ चलेंगे. तुम अपनी पहचान बनाओ. Labels: कविता. मुझ&#...

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जीवन जैसा मैंने देखा | vimlatiwari.blogspot.com Reviews
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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Friday 1 February 2008. पद चिह्नों पर नहीं चलूँगी. पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी. यह आदेश नहीं मानूँगी. चरण-चिह्न हो अलग हमारे. इतना ही अनुरोध करूँगी. पद-चिह्न के साथ चलूँगी. उनके चारों ओर चलूँगी. पूजा भी उनकी कर दूँगी. आदर-मान सदा मैं दूँगी. पर इन पर मैं चलूँ प्रिये. इतना तो कर नहीं सकूँगी. तुम भी इसी जगत के वासी. मेरा भी अस्तित्व अलग है. अपने-अपने चिह्न के संग. हम दोनों एक साथ चलेंगे. तुम अपनी पहचान बनाओ. Labels: कविता. मुझ&#...
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जीवन जैसा मैंने देखा | vimlatiwari.blogspot.com Reviews

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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Friday 1 February 2008. पद चिह्नों पर नहीं चलूँगी. पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी. यह आदेश नहीं मानूँगी. चरण-चिह्न हो अलग हमारे. इतना ही अनुरोध करूँगी. पद-चिह्न के साथ चलूँगी. उनके चारों ओर चलूँगी. पूजा भी उनकी कर दूँगी. आदर-मान सदा मैं दूँगी. पर इन पर मैं चलूँ प्रिये. इतना तो कर नहीं सकूँगी. तुम भी इसी जगत के वासी. मेरा भी अस्तित्व अलग है. अपने-अपने चिह्न के संग. हम दोनों एक साथ चलेंगे. तुम अपनी पहचान बनाओ. Labels: कविता. मुझ&#...

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जीवन जैसा मैंने देखा: पद चिह्नों पर नहीं चलूँगी

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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Friday 1 February 2008. पद चिह्नों पर नहीं चलूँगी. पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी. यह आदेश नहीं मानूँगी. चरण-चिह्न हो अलग हमारे. इतना ही अनुरोध करूँगी. पद-चिह्न के साथ चलूँगी. उनके चारों ओर चलूँगी. पूजा भी उनकी कर दूँगी. आदर-मान सदा मैं दूँगी. पर इन पर मैं चलूँ प्रिये. इतना तो कर नहीं सकूँगी. तुम भी इसी जगत के वासी. मेरा भी अस्तित्व अलग है. अपने-अपने चिह्न के संग. हम दोनों एक साथ चलेंगे. तुम अपनी पहचान बनाओ. Labels: कविता. हम तो...

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जीवन जैसा मैंने देखा: कौन देश से आए पथिक तुम

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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Sunday 6 January 2008. कौन देश से आए पथिक तुम. जो पहनावे सो ही पहनूँ जो देवे सो खाऊँ. उसी मनोदशा में मैं हूँ।. एक पुरानी कविता यहाँ प्रस्तुत है. कौन देश से आए पथिक तुम. क्या है नाम तुम्हारा. किसकी तुम अद्भुत आशा हो. क्या है लक्ष्य तुम्हारा. मिलने का उद्देश्य तुम्हारा. मैंने जान न पाया. क्या है नाम तुम्हारा. युग युग की लालसा नयन में. वाणी में है याचना. चलते हो डगमग कदमों से. भूल गए हो रास्ता. Labels: कविता. इंटरनेट कन&...कवि...

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जीवन जैसा मैंने देखा: November 2007

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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Thursday 29 November 2007. आज नहीं मैं कल आऊँगी. धन्यवाद कहने आऊँगी. आज नहीं मैं कल आऊँगी. धीरे-धीरे पथ पर चल कर. पग पग पर तेरा कर धर कर. रोम-रोम में तुझ को भर कर. कण-कण में तुझको ही लख कर. पूर्ण समर्पण भाव हृदय धर. तुमसे मैं मिलने आऊँगी. धन्यवाद कहने आऊँगी. तुमको याद किया है मैंने. क्षण-क्षण नमन किया है मैंने. घूम घूम परिक्रमा की है. रो-रो कर पात्र भरा है मैं ने. अर्घ्य दान करने आऊँगी. Labels: कविता. Sunday 25 November 2007.

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जीवन जैसा मैंने देखा: February 2008

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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Friday 1 February 2008. पद चिह्नों पर नहीं चलूँगी. पद-चिह्नों पर नहीं चलूँगी. यह आदेश नहीं मानूँगी. चरण-चिह्न हो अलग हमारे. इतना ही अनुरोध करूँगी. पद-चिह्न के साथ चलूँगी. उनके चारों ओर चलूँगी. पूजा भी उनकी कर दूँगी. आदर-मान सदा मैं दूँगी. पर इन पर मैं चलूँ प्रिये. इतना तो कर नहीं सकूँगी. तुम भी इसी जगत के वासी. मेरा भी अस्तित्व अलग है. अपने-अपने चिह्न के संग. हम दोनों एक साथ चलेंगे. तुम अपनी पहचान बनाओ. Labels: कविता.

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जीवन जैसा मैंने देखा: कैसे मैं आँगन में आऊँ

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जीवन जैसा मैंने देखा. मन की चपल गति के साथ रूप बदलते भाव चित्र. मेरी कविता. Saturday 1 December 2007. कैसे मैं आँगन में आऊँ. द्वारे पर है भीड़ तुम्हारे. कैसे मैं आँगन में आऊँ. माँ मेरा भी हृदय विकल है. कैसे तेरा दर्शन पाऊँ. हाथों में है क्षत्र नारियल. चक्षु बन गए विस्तृत आँगन. अंतर में है गुफा तुम्हारी. कैसे माँ मैं दीप जलाऊँ. कैसे मैं आँगन में आऊँ. एक शिखर से वहीं विसर्जित. चरणों में मैं शीश नवाऊँ. खोज रही पग कहाँ पखारूँ. किधर शिला है जहाँ बैठकर. मन को कैसे धीर बधाऊँ. Labels: कविता.

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निर्मल-आनन्द: June 2012

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निर्मल-आनन्द. गुरुवार, 7 जून 2012. शांति नहा रही थी। बाहर से अजय की आवाज़ आई- ये क्या है शांति? अजय बेड पर बैठा बाथरूम के दरवाज़े की ओर देख रहा था जब शांति उस दरवाज़े में आई। अजय ने अपनी नज़रें गद्दे की ओर उचकाई और पूछा- ये क्या है? कहाँ से आए ये पैसे? या फिर कहाँ से आए ये पैसे? और अगर उधार लिए हैं तो मुझे बताया क्यों नहीं? और क्यों न होते इतने सारे सवाल? असीम के? दो लाख हैं? शांति ने हैरत व्यक्त की।. क्यों. तुम्हें नहीं मालूम? मैंने कभी गिने नहीं! चिप्पीकार:. अभय तिवारी. Labels: कहानी. कानपु...अम्...

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निर्मल-आनन्द: September 2013

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निर्मल-आनन्द. रविवार, 29 सितंबर 2013. संगीत विचारशील नहीं होता. संगीत भावशील होता है।. संगीत से एका क़ायम हो जाता है। सांस और धड़कन का। लय और ताल का। मन और तन का। जीव और ईश्वर का।. चिप्पीकार:. अभय तिवारी. 2 टिप्‍पणियां:. इस आलेख से जुड़ी कड़ियां. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. शनिवार, 28 सितंबर 2013. दबने वाला हीन नहीं. चिप्पीकार:. अभय तिवारी. 2 टिप्‍पणियां:. इस आलेख से जुड़ी कड़ियां. इसे ईमेल करें. चिप्पीकार:. अभय तिवारी. हमें ...हमे...

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निर्मल-आनन्द: May 2012

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निर्मल-आनन्द. मंगलवार, 29 मई 2012. अदब के लठैत. एक विशेष माहौल और परिवेश में मेरा जन्म हुआ और परवरिश हुई। यह लोग मुझसे ऐसी आशा क्यों करते हैं कि मैं उस जीवन का चित्रण करूँ जिससे मैं परिचित नहीं. भला कहा और इस तरह मज़ाक़ उड़ाया मानो मैं लोक. आन्दोलन की विरोधी हूँ।. हमारे कुछ जोशीले वामपंथी लठैत समय. हौसला बनाए रखें और जिस दुनिया को वे देखते. समझते हैं उसी पर अपनी उंगलियों को चलाते रहें।. चिप्पीकार:. अभय तिवारी. 4 टिप्‍पणियां:. इस आलेख से जुड़ी कड़ियां. इसे ईमेल करें. Labels: आलोचना. साहित्य. २ भारत म&...

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विनय पत्रिका: March 2010

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विनय पत्रिका. फिलहाल इसे प्रार्थना पत्र न समझें. Friday, March 5, 2010. एक सहपाठी से बात चीत का अंश. कहाँ बदे निकला रहे कहाँ उतिराने. बात चीत हमेशा की तरह ही अवधी में हुई। आप भी पढ़ें।. मैं-अउर बताव. पुट्टुर-अउर का बताई, समझ ठीकइ बा. मैं-का भ, बड़ा मन दवे बोलत हय. मैं- अइसन काहे कहथ हय.का कुछ नेवर होइ ग का. पुट्टुर- न निक भ न नेवर.बस ई लगता कि कुछ कइ नाहीं सके, जनमबे क कवनउ मतलब नाहीं निकला. मैं- काहे परेशान होत हय. मैं- बहुत सोच जिन. मैं- निक निक सोच. मैं- ठीकइ बा.चलता. पुट्टुर- चल. आज की छवि. विज...

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विनय पत्रिका: April 2009

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विनय पत्रिका. फिलहाल इसे प्रार्थना पत्र न समझें. Wednesday, April 22, 2009. नाम के लिए हत्या. अब तो नाम लोगे आलोचक. हो सके तो आप उनकी मदद कर दें। नाम बस ऐसा हो कि आलोचक, समीक्षक बिना उनको याद किए रह न पाएँ। हिंदी की सेवा का कुछ तो मेवा मिले।. नाम इस प्रकार हैं- और तिरछे अक्षरों में हैं।. द्वारा भेजा गया. बोधिसत्व. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: हिंदी के लिए. Tuesday, April 14, 2009. चिद्-विलास : पिता के साथ पुरखों का इतिहास. अपने पूर्वजों. द्वारा भेजा गया. बोधिसत्व. पिता का जीवन. Saturday, April 11, 2009.

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विनय पत्रिका: January 2010

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विनय पत्रिका. फिलहाल इसे प्रार्थना पत्र न समझें. Wednesday, January 13, 2010. अपने अश्क जी याद हैं आपको. लोग कितने भुलक्कड़ है. उपेन्द्र नाथ अश्क जी को आप भूल गए। हाँ वही अश्क जी. द्वारा भेजा गया. बोधिसत्व. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: जन्म-शती पर याद. Subscribe to: Posts (Atom). मेरे बारे में. बोधिसत्व. View my complete profile. क्या आप मेरे समर्थक नहीं हैं? मेरे सिर भानी. आज की छवि. अपने अश्क जी याद हैं आपको. दोस्तों की पत्रिका. मां की पत्रिका. आभा का घर. ज्ञान के दूत. नारद पुराण. शून्य जगत. जाए&#...

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विनय पत्रिका. फिलहाल इसे प्रार्थना पत्र न समझें. Friday, April 30, 2010. इनमें क्या है जो धड़कन में लिए फिरता हूँ. कबीर के पाँच दोहे जिन्हें गाता जा रहा हूँ. कभी-कभी ऐसा होता है कि आप के मन पर कुछ बातें छा जाती हैं। मेरे मन पर कबीर साहब के कुछ दोहे छाए हुए हैं. उतराएँ या छोड़ कर पार उतर जाएँ।. हेरत-हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ।. बूंद समानी समंद मैं,सो कत हेरी जाइ।।. हेरत-हेरत हे सखी,रह्या कबीर हिराइ।. कह कबीर ता दास की कौन सुने फरियाद।।. द्वारा भेजा गया. बोधिसत्व. लेबल: कबीर. Subscribe to: Posts (Atom).

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Vatten och Människan i Landskapet. VIMLA , vatten och människan i landskapet,. Är ett Interreg-projekt som startade 2015 och pågår till maj 2018. VIMLA handlar om att stärka medvetenheten om kustnära småvattens värde och hoten mot dem. Renare vatten och naturligt vattenflöde skapar förutsättningar för hållbara ekosystemtjänster, såsom fiske och turism. Projektet tar bl.a. fram information om sura sulfatjordar på bägge sidor om Kvarken. Skriv din kommentar här. Adressen lämnas aldrig ut). Fältträff i Vasa...

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